बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित

नवरात्रि का आठवां दिन मां 'महागौरी' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
महागौरी हिंदू देवी मां महादेवी के नवदुर्गा पहलुओं में से आठवां रूप है। नवरात्रि के आठवें दिन उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि महागौरी अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हैं। 

शब्द-साधन... 

महागौरी नाम का अर्थ है अत्यंत उज्ज्वल, स्वच्छ रंग, चंद्रमा की तरह चमक के साथ। (महा, महा = महान; गौरी, गौरी = उज्ज्वल, स्वच्छ)। 

शास्त्र... 

महागौरी पवित्रता की प्रतीक हैं, जिन्हें आमतौर पर सफेद रंग में चित्रित किया जाता है और वे सफेद बैल की सवारी करती हैं। उन्हें चार हाथों से दर्शाया गया है– वे अपने दाहिने ऊपरी हाथ में त्रिशूल रखती हैं और अपने बाएं हाथ में वे डमरू रखती हैं और दाहिना हाथ अभयमुद्रा में। वह सुनहरे बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनती हैं। 

दंतकथा... 

महागौरी की उत्पत्ति की कहानी इस प्रकार है– शुंभ और निशुंभ राक्षसों को केवल पार्वती के कुंवारी, अविवाहित रूप द्वारा ही मारा जा सकता था। इसलिए, ब्रह्मा के कहने पर शिव ने बार-बार पार्वती को अकारण ही, बल्कि उपहासात्मक तरीके से "काली" कहा। पार्वती इस चिढ़ाने से उत्तेजित हो गई। इसलिए, उन्होंने सुनहरा रंग पाने के लिए ब्रह्मा की कठोर तपस्या की। ब्रह्मा ने उन्हें वरदान देने में अपनी असमर्थता बताई और इसके बजाय उनसे अपनी तपस्या बंद करने और शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध करने का अनुरोध किया। पार्वती सहमत हो गई और हिमालय में गंगा नदी में स्नान करने चली गई। पार्वती ने गंगा नदी में प्रवेश किया और जैसे ही उन्होंने स्नान किया, उनका काला त्वचा पूरी तरह से धुल गया और वे सफेद वस्त्र और परिधान पहने फिर वह उन देवताओं के सामने प्रकट हुई जो शुंभ और निशुंभ के विनाश के लिए हिमालय पर उनसे प्रार्थना कर रहे थे और चिंतित होकर उनसे पूछा कि वे किसकी पूजा कर रहे हैं। फिर उसने प्रतिबिंबित किया और अपने प्रश्न का उत्तर दिया और निष्कर्ष निकाला कि देवता शुंभ और निशुंभ राक्षसों से पराजित होने के बाद उससे प्रार्थना कर रहे थे। तब पार्वती ने देवताओं के लिए दया से काली हो गई और उन्हें कालिका कहा गया। फिर वह चंडी ( चंद्रघंटा ) में बदल गई और राक्षस धूम्रलोचन को मार डाला। चंड और मुंड को देवी चामुंडा ने मार डाला जो चंडी की तीसरी आंख से प्रकट हुईं। फिर चंडी ने रक्तबीज और उसके क्लोनों को मार डाला, जबकि चामुंडा ने उनका खून पी लिया। पार्वती फिर से कौशिकी में बदल गईं और शुंभ और निशुंभ को मार डाला। 
बैल की पीठ पर सवार होकर वह कैलाश वापस घर चली गई। जहां महादेव उसका इंतज़ार कर रहे थे। दोनों एक बार फिर से मिल गए और अपने बेटों कार्तिकेय और गणेश के साथ खुशी-खुशी रहने लगें। 
मां गौरी देवी, शक्ति या माँ देवी हैं, जो कई रूपों में प्रकट होती हैं। जैसे दुर्गा, पार्वती, काली और अन्य। वह शुभ, तेजस्वी हैं और अच्छे लोगों की रक्षा करती हैं जबकि बुरे कर्म करने वालों को दंडित करती हैं। मां गौरी आध्यात्मिक साधक को ज्ञान प्रदान करती हैं और मृत्यु के भय को दूर करती हैं। 

मंत्र... 

ॐ देवी महागौर्यै नमः॥ 
ॐ देवी महागौर्यै नमः॥ 

भव्य 'दशहरा महोत्सव' का आयोजन किया गया

भव्य 'दशहरा महोत्सव' का आयोजन किया गया 

गणेश साहू 
कौशाम्बी। केपीएस भरवारी और एन डी कान्वेंट स्कूल के प्रांगण में बुधवार को भव्य दशहरा महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसमें विद्यार्थियों और शिक्षकों ने मिलकर इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया। इस उत्सव की शुरुआत संस्थान की डायरेक्टर श्रीमती सीमा पवार द्वारा की गई। जिन्होंने कन्या पूजन का आयोजन कर बालिकाओं को भोज कराया और उन्हें शुभकामनाएं दीं। इस धार्मिक अनुष्ठान ने भारतीय संस्कृति में नारी सम्मान और शक्ति की महत्ता को और अधिक उजागर किया। इस आयोजन का मुख्य आकर्षण रहा रावण दहन, जिसे स्कूल के प्रांगण में बड़े धूमधाम से मनाया गया। विद्यार्थियों ने एक विशाल रावण का पुतला तैयार किया। जिसका दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीकात्मक संदेश दिया गया। हेलो किड्स के छोटे-छोटे बच्चों ने राम, लक्ष्मण और सीता के वेश में रावण वध की लीला का मंचन किया। इन नन्हे कलाकारों ने अपनी मासूमियत और अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया।रावण का पुतला जलते ही पूरे स्कूल प्रांगण में जय श्री राम के नारों की गूंज उठी। बच्चों ने जोश के साथ बुराई के प्रतीक रावण के अंत का उत्सव मनाया और देश की संस्कृति और त्योहारों के महत्व को गहराई से समझा। इस अवसर पर संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर मयंक मिश्रा उपस्थित रहे। 
उन्होंने बच्चों के उत्साह की सराहना की और उन्हें अच्छाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उनका मार्गदर्शन बच्चों के लिए बेहद प्रेरणादायक रहा, और उन्होंने स्कूल के इस आयोजन की भूरी-भूरी प्रशंसा की।इस भव्य आयोजन का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं था, बल्कि यह बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करने पर केंद्रित था। दशहरा जोकि बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, के माध्यम से स्कूल ने अपने विद्यार्थियों को सिखाया कि सत्य और धर्म की राह पर चलने वालों की हमेशा जीत होती है। इस संदेश को बच्चों ने पूरे उत्साह से आत्मसात किया और अपनी ऊर्जा और जोश से माहौल को जीवंत बना दिया। 
इस प्रकार के आयोजन न केवल बच्चों के लिए शिक्षाप्रद होते हैं, बल्कि अभिभावकों और समाज के अन्य सदस्यों को भी प्रेरित करते हैं। केपीएस भरवारी और एन डी कान्वेंट स्कूल के इस अनोखे और प्रेरणादायक आयोजन ने समाज में एक सकारात्मक संदेश फैलाया। आयोजकों की मेहनत और विद्यार्थियों की भागीदारी ने इस आयोजन को सफल और यादगार बना दिया दशहरा का यह पर्व बच्चों के साथ-साथ स्कूल के पूरे स्टाफ के लिए एक अनमोल सीख का अवसर बन गया, जहां सभी ने मिलकर बुराई के अंत और सत्य की जीत का जश्न मनाया। 

सपा ने 6 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की

सपा ने 6 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की 

संदीप मिश्र 
लखनऊ। समाजवादी पार्टी ने यूपी में होने वाले उपचुनाव के लिए छ: सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। पार्टी ने करहल विधानसभा सीट पर तेज प्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव विधायक चुने गए थे पर सांसद बनने के बाद सीट खाली हो गई थी। 
इसी तरह सीसामऊ विधानसभा सीट से नसीम सोलंकी, फूलपुर से मुस्तफा सिद्दीकी, मिल्कीपुर से अजीत प्रसाद, कटेहरी से शोभावती वर्मा और मंझवा विधानसभा सीट से डॉ. ज्योति बिंद को प्रत्याशी बनाया गया है। यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होगा जिसके लिए सभी दलों ने तैयारियां कर ली हैं। सपा के चार और सीटें घोषित न करने को कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कही जा रही है। बता दें कि उपचुनाव में कांग्रेस ने सपा से पांच सीटों की मांग की थी लेकिन छह सीटों पर उम्मीदवार घोषित होने से यह साफ है कि सपा ने कांग्रेस का फॉर्मूला मानने से इनकार कर दिया है। 

खेल: भारत ने बांग्लादेश को 86 रनों से हराया

खेल: भारत ने बांग्लादेश को 86 रनों से हराया 

इकबाल अंसारी 
नई दिल्ली। भारत ने बांग्लादेश के खिलाफ 3 मैच की टी-20 सीरीज जीत ली। सूर्यकुमार यादव की अगुआई वाली भारतीय टीम ने दूसरे टी-20 मैच में बांग्लादेश को 86 रनों से हराया। दिल्ली के अरुण जेटली स्टेडियम पर खेले गए मैच में बांग्लादेश के कप्तान नजमुल हुसैन शान्तो ने टॉस जीतकर गेंदबाजी का फैसला किया। 
भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 9 विकेट पर 221 रन का स्कोर खड़ा किया। भारतीय पारी की शुरुआत खराब रही। उसने शुरुआती 3 ओवर में ही अपने 2 विकेट (संजू सैमसन और अभिषेक शर्मा) गंवा दिये। उस समय उसका स्कोर 25 रन था। अभिषेक शर्मा 11 गेंद में 15 और संजू सैमसन 7 गेंद में 10 रन बनाकर पवेलियन लौटे। संजू सैमसन को तस्कीन अहमद और अभिषेक को तंजीम हसन साकिब ने अपना शिकार बनाया। पावरप्ले खत्म होते-होत तक सूर्यकुमार यादव भी पवेलियन लौट गए। पावरप्ले में भारत ने सिर्फ 41 रन पर 3 विकेट गंवा दिए थे।

IND vs BAN: नितीश रेड्डी ने करियर के दूसरे ही मैच में मचाया गर्दा, रोहित और पंत के क्लब में हुए शामिल 

इसके बाद नितीश कुमार रेड्डी और रिंकू सिंह ने पारी संभाली। अपना दूसरा टी20 अंतरराष्ट्रीय खेल रहे नितीश रेड्डी ने अपनी पारी में 4 चौके और 7 शानदार छक्के जड़े तो वहीं रिंकू ने पांच चौके और तीन छक्के लगाये। हार्दिक पंड्या ने 19 गेंद में दो चौके और दो छक्के की मदद से 32 जबकि रियान पराग ने दो छक्के की मदद से 6 गेंद में 15 रन बनाएं। 
बांग्लादेश के लिए तस्कीन अहमद ने शानदार गेंदबाजी करते हुए 4 ओवर में सिर्फ 16 रन देकर दो विकेट लिए। तंजीम हसन और मुस्तफिजुर रहमान को भी दो-दो सफलता मिली, लेकिन दोनों काफी महंगे रहे। रिशाद हुसैन ने 55 रन देकर तीन विकेट चटकाए। 
इससे पहले टॉस जीतने के बाद नजमुल हुसैन शान्तो ने बताया था कि उनकी प्लेइंग इलेवन में एक बदलाव है। शोरफुल इस्लाम की जगह तंजीम हसन साकिब की प्लेइंग इलेवन में एंट्री हुई। भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने बताया था कि उनकी प्लेइंग इलेवन में कोई बदलाव नहीं है। 

महापंचायत का ऐलान, मामलें का संज्ञान लिया

महापंचायत का ऐलान, मामलें का संज्ञान लिया 

अश्वनी उपाध्याय 
गाजियाबाद। हिंदू संगठनों की ओर से मेट्रो सिटी में महापंचायत का ऐलान किए जाने के मामलें का संज्ञान लेते हुए पुलिस और प्रशासन की ओर से बीएनएस की धारा 163 लागू कर दी गई है और महापंचायत के लिए परमिशन देने से इनकार कर दिया है। 
बुधवार को गाजियाबाद में पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद से लगातार तनावपूर्ण बने माहौल के बीच हिंदू संगठनों की ओर से अब 13 अक्टूबर को महापंचायत का ऐलान किया गया है। पुलिस ने कहा है कि पूरे गाजियाबाद में बीएनएस की धारा 163 लागू है और महापंचायत के लिए परमिशन देने से इनकार कर दिया है। 
बुधवार को हिंदी संगठनों की ओर से आगामी 13 अक्टूबर को हिंदू पंचायत बुलाने का ऐलान करते हुए महापंचायत को लेकर हिंदू संगठनों की ओर से सोशल मीडिया पर भी जमकर प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया है। चलो डासना का नारा देते हुए हिंदू संगठनों की ओर से कहा गया है कि शिव शक्ति धाम की सुरक्षा की रूपरेखा तैयार करने के लिए हिंदू समाज की सभी 36 बिरादरियों की डासना में महापंचायत बुलाई गई है। सोशल मीडिया पर किए जा रहे प्रचार के अंतर्गत कहा गया है कि शिव शक्ति धाम डासना में 13 अक्टूबर को सुबह 10:00 बजे महापंचायत का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें अधिक से अधिक लोगों से पहुंचने की अपील की गई है। 
उधर हिंदू संगठनों की महापंचायत के ऐलान को लेकर गाजियाबाद पुलिस ने कहा है कि संपूर्ण गाजियाबाद में धारा 163 के अंतर्गत निषेधाज्ञा लागू है और महापंचायत के आयोजन की अनुमति नहीं दी गई है। 

प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

प्राधिकृत प्रकाशन विवरण 

1. अंक-355, (वर्ष-11)

पंजीकरण संख्या:- UPHIN/2014/57254

2. बृहस्पतिवार, अक्टूबर 10, 2024

3. शक-1945, आश्विन, शुक्ल-पक्ष, तिथि-सप्तमी, विक्रमी सवंत-2079‌‌। 

4. सूर्योदय प्रातः 05:39, सूर्यास्त: 06:58।

5. न्‍यूनतम तापमान- 33 डी.सै., अधिकतम- 37 डी.सै.। गर्जना के साथ बूंदाबांदी होने की संभावना।

6. समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा। सभी पद अवैतनिक है।

7. स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक, संपादक राधेश्याम व शिवांशु (विशेष संपादक) श्रीराम व सरस्वती (सहायक संपादक) संरक्षण-अखिलेश पांडेय (डिजीटल सस्‍ंकरण)। प्रकाशित समाचार, विज्ञापन एवं लेखोंं से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं हैं। पीआरबी एक्ट के अंतर्गत उत्तरदायी।

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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2024

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित

नवरात्रि का सातवां दिन मां 'कालरात्रि' को समर्पित 

सरस्वती उपाध्याय 
कालरात्रि देवी महादेवी के नौ नवदुर्गा रूपों में से सातवां रूप है। उनका पहला उल्लेख देवी महात्म्य में मिलता है। कालरात्रि देवी के भयावह रूपों में से एक है। 

मंत्र... 

एकवेणी जपकर्णपुरा नग्न कालरात्रि भीषणा| दंस्त्रकरालवदं घोरं मुक्तकेश्वरम्|| लल्जतक्षं लम्बोष्टं शतकर्णं तथैव च| वामपदोलासोलोः लताकान्तकभूषणम्||

काली और कालरात्रि नामों का परस्पर उपयोग करना असामान्य नहीं है। हालांकि, कुछ लोगों द्वारा इन दोनों देवताओं को अलग-अलग संस्थाएँ माना जाता है। काली का उल्लेख पहली बार हिंदू धर्म में महाभारत में ३०० ईसा पूर्व के आसपास एक अलग देवी के रूप में किया गया है , जिसके बारे में माना जाता है कि इसे ५वीं और २वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच लिखा गया था (संभवतः बहुत पहले की अवधि से मौखिक संचरण के साथ)। कालरात्रि की पूजा पारंपरिक रूप से नवरात्रि उत्सव की नौ रातों के दौरान की जाती है। नवरात्रि पूजा का सातवाँ दिन विशेष रूप से उन्हें समर्पित है, और उन्हें देवी का सबसे उग्र रूप माना जाता है, उनका स्वरूप ही भय का कारण बनता है। देवी के इस रूप को सभी राक्षसी संस्थाओं, भूतों, बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश करने वाला माना जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके आगमन की जानकारी होने पर वे भाग जाते हैं। 
सौधिकागम, उड़ीसा का एक प्राचीन तांत्रिक ग्रंथ जिसका संदर्भ शिल्पा प्रकाशन में दिया गया है। देवी कालरात्रि को प्रत्येक कैलेंडर दिवस के रात्रि भाग पर शासन करने वाली देवी के रूप में वर्णित करता है। वह मुकुट चक्र (जिसे सहस्रार चक्र के रूप में भी जाना जाता है ) से भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि यह उपासक को सिद्धियाँ (अलौकिक कौशल) और निधियाँ (धन) प्रदान करती है: विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन। कालरात्रि को शुभंकरी (शुभंकरी) के नाम से भी जाना जाता है, जिसका संस्कृत में अर्थ है शुभ/अच्छा करने वाली, क्योंकि मान्यता है कि वह अपने भक्तों को हमेशा सकारात्मक परिणाम प्रदान करती हैं। इसलिए, ऐसा माना जाता है कि वह अपने भक्तों को निडर बनाती हैं। 
इस देवी के अन्य, कम प्रसिद्ध नामों में रौद्री और धुमोरना शामिल हैं। 

शास्त्रीय संदर्भ... 

महाभारत

कालरात्रि का सबसे पहला उल्लेख महाभारत (पहली बार 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखा गया था, जिसमें 1 शताब्दी ईसा पूर्व तक कुछ परिवर्तन और संशोधन होते रहे) में मिलता है, विशेष रूप से सौप्तिका पर्व (नींद की पुस्तक) के दसवें भाग में। पांडवों और कौरवों के युद्ध के बाद , द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने की कसम खाई। रात के अंधेरे में युद्ध के नियमों के विरुद्ध जाकर, वह पांडव अनुयायियों के प्रभुत्व वाले कुरु शिविर में घुस जाता है। रुद्र की शक्ति से , वह अनुयायियों पर हमला करता है और उन्हें उनकी नींद में मार देता है। अपने अनुयायियों पर उन्मत्त आक्रमण के दौरान, कालरात्रि मौके पर प्रकट होती हैं। "..... उसका साकार रूप, एक काली प्रतिमा, खून से सने मुंह और खून से सनी आंखों वाला, लाल रंग की माला पहने और लाल रंग का लेप लगाए, लाल कपड़े का एक टुकड़ा पहने, हाथ में फांसी का फंदा लिए, और एक बुजुर्ग महिला जैसी, एक उदास स्वर में मंत्रोच्चार करती हुई और उनकी आंखों के सामने खड़ी थी। " 
इस संदर्भ में कालरात्रि को युद्ध की भयावहता के साक्षात रूप में दर्शाया गया है। 

मार्कण्डेय पुराण 

दुर्गा सप्तशती के अध्याय 1 , श्लोक 75 में देवी का वर्णन करने के लिए कालरात्रि शब्द का प्रयोग किया गया है। 

प्रकृतिस्त्वञ्च सर्वस्य गुणत्रय विभाविनी,
काहारत्रिर्महारात्रिरमोहरात्रिश्च दारुण। 

आप हर चीज के आदि कारण हैं, तीन गुणों (सत्व, रज और तम) को प्रभावी बनाना। 

आप आवधिक विघटन की अंधेरी शक्ति हैं। आप अंतिम प्रलय की महान रात्रि और मोह की भयानक रात्रि हैं।

स्कंद पुराण 

स्कंद पुराण में भगवान शिव द्वारा अपनी पत्नी पार्वती से देवताओं की सहायता करने की प्रार्थना का वर्णन है। जब वे राक्षस-राजा दुर्गमासुर से आतंकित थे। वह स्वीकार करती है और देवी कालरात्रि को भेजती है। "... एक ऐसी महिला जिसकी सुंदरता ने तीनों लोकों के निवासियों को मोहित कर दिया। उसने अपने मुंह की सांस से उन्हें भस्म कर दिया ।" 

देवी भागवत पुराण 

देवी अंबिका (जिसे कौशिकी और चंडिका के नाम से भी जाना जाता है) के पार्वती के शरीर से बाहर आने के बाद, पार्वती की त्वचा अत्यंत काली हो जाती है, लगभग काली, काले बादलों की तरह। इसलिए, पार्वती को कालिका और कालरात्रि नाम दिया गया है । उन्हें दो भुजाओं वाली, एक तलवार और खून से भरा खोपड़ी का प्याला पकड़े हुए बताया गया है और वह अंततः राक्षस राजा शुम्भ का वध करती हैं। 
देवी कालरात्रि के अन्य शास्त्रीय संदर्भों में ललिता सहस्रनाम ( ब्रह्मांड पुराण में पाया गया ) और लक्ष्मी सहस्रनाम शामिल हैं।

शब्द-साधन... 

कालरात्रि शब्द का पहला भाग काल है । काल का मुख्य अर्थ समय होता है, लेकिन इसका अर्थ काला भी होता है । यह संस्कृत में पुल्लिंग संज्ञा है। प्राचीन भारतीय मनीषियों के अनुसार समय वह जगह है जहाँ सब कुछ घटित होता है; वह ढांचा जिस पर सारी सृष्टि प्रकट होती है। मनीषियों ने काल की कल्पना एक साकार देवता के रूप में की थी। इसके बाद, यह विचार उत्पन्न हुआ कि काल को सभी चीज़ों का भक्षक माना जाता है। इस अर्थ में कि समय सबको खा जाता है। कालरात्रि का अर्थ "वह जो समय की मृत्यु है" भी हो सकता है। महानिर्वाण तंत्र में, ब्रह्मांड के विघटन के दौरान, काल (समय) ब्रह्मांड को खा जाता है और इसे सर्वोच्च रचनात्मक शक्ति, काली के रूप में देखा जाता है। काली , कालम् ( काला, गहरे रंग का) का स्त्रीलिंग रूप है कालः शिवः । तस्य पत्नीति काली - "शिव काला हैं। इस प्रकार, उनकी पत्नी काली हैं।" 
कालरात्रि शब्द का दूसरा भाग रात्रि है और इसकी उत्पत्ति सबसे पुराने वेद ऋग्वेद और उसके भजन रात्रिसूक्त से देखी जा सकती है । कहा जाता है कि ऋषि कुशिक ने ध्यान में लीन रहते हुए अंधकार की घेरने वाली शक्ति को महसूस किया और इस तरह भजन के रूप में रात्रि (रात) को एक सर्वशक्तिमान देवी के रूप में आह्वान किया। सूर्यास्त के बाद का अंधकार देवत्व बन गया। तांत्रिक परंपरा के अनुसार, रात का प्रत्येक कालखंड एक विशेष भयावह देवी के प्रभाव में होता है, जो साधक की एक विशेष इच्छा पूरी करती है। तंत्र में कालरात्रि शब्द का अर्थ रात के अंधेरे से है। एक ऐसी स्थिति जो आम तौर पर आम लोगों को डराती है। लेकिन देवी के उपासकों के लिए फायदेमंद मानी जाती है। 
बाद के समय में, रात्रिदेवी ('देवी रात्रि' या 'रात की देवी') को विभिन्न देवियों के साथ पहचाना जाने लगा। चूंकि, काले रंग को सृष्टि से पहले के मूल अंधकार और अज्ञानता के अंधकार के संदर्भ में देखा जाता है। इसलिए, देवी के इस रूप को अज्ञानता के अंधकार को नष्ट करने वाली के रूप में भी देखा जाता है। 
ऐसा कहा जाता है कि देवी कालरात्रि का आह्वान करने से भक्त को समय की भयावह गुणवत्ता और रात्रि की सर्वव्यापी प्रकृति का बल मिलता है। जिससे सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और सभी उपक्रमों में सफलता की गारंटी मिलती है। 

दंतकथाएं... 

एक बार शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो राक्षस थे , जिन्होंने देवलोक पर आक्रमण किया और देवताओं को हरा दिया। देवताओं के शासक इंद्र , अन्य देवताओं के साथ अपने निवास को पुनः प्राप्त करने में भगवान शिव की सहायता लेने के लिए हिमालय गए। साथ में, उन्होंने देवी पार्वती से प्रार्थना की। पार्वती ने स्नान करते समय उनकी प्रार्थना सुनी, इसलिए उन्होंने राक्षसों को हराकर देवताओं की सहायता करने के लिए एक और देवी, चंडी ( अंबिका ) की रचना की। चंड और मुंड शुम्भ और निशुम्भ द्वारा भेजे गए दो राक्षस सेनापति थे। जब वे उससे युद्ध करने आए, तो देवी चंडी ने एक काली देवी, काली (कुछ खातों में, कालरात्रि कहा जाता है) बनाई। काली/कालरात्रि ने उन्हें मार डाला, जिससे उन्हें चामुंडा नाम मिला। 
इसके बाद, रक्तबीज नामक एक राक्षस आया। रक्तबीज को वरदान था कि यदि उसके रक्त की एक भी बूंद जमीन पर गिरेगी, तो उसका एक प्रतिरूप निर्मित हो जाएगा। जब कालरात्रि ने उस पर आक्रमण किया, तो उसके बहे हुए रक्त से उसके कई प्रतिरूप उत्पन्न हो गए। ऐसे में उसे हराना असंभव हो गया। इसलिए युद्ध करते समय, क्रोधित कालरात्रि ने उसका रक्त पी लिया ताकि वह नीचे न गिरे, अंततः रक्तबीज को मार डाला और देवी चंडी की सहायता से उसके सेनापतियों शुंभ और निशुंभ का वध किया। वह इतनी भयंकर और विनाशकारी हो गई कि उसने अपने सामने आने वाले सभी लोगों को मारना शुरू कर दिया। सभी देवताओं ने उसे रोकने के लिए भगवान शिव के सामने प्रार्थना की तो शिव ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए उसके पैर के नीचे आने का फैसला किया। जब वह सभी को मारने में व्यस्त थी, तो भगवान शिव उसके पैर के नीचे प्रकट हुए। अपने प्रिय पति को अपने पैर के नीचे देखकर, उसने अपनी जीभ काट ली। 
एक अन्य किंवदंती कहती है कि देवी चामुंडा (काली) देवी कालरात्रि की निर्माता थीं। एक शक्तिशाली गधे पर सवार होकर, कालरात्रि ने चंड और मुंड नामक राक्षसों का पीछा किया और उन्हें पकड़कर काली के पास ले आईं। फिर इन राक्षसों का देवी चामुंडा ने वध किया। यह कहानी चंदमारी नामक एक अन्य देवी से निकटता से जुड़ी हुई है। 
वह सबसे अंधेरी रात की शक्ति है। रात में, पशु जगत काम से छुट्टी लेता है और वे सभी सो जाते हैं। सोते समय उनकी थकावट दूर हो जाती है। अंतिम प्रलय के समय, दुनिया के सभी जीव माँ देवी की गोद में आश्रय, सुरक्षा और शरण चाहते हैं। वह अंधेरी रात, मृत्यु-रात्रि का समय है। वह महारात्रि (आवधिक प्रलय की महान रात्रि) के साथ-साथ मोहरात्रि (भ्रम की रात) भी है। समय के अंत में, जब विनाश आता है, देवी खुद को कालरात्रि में बदल लेती हैं। जो बिना कोई अवशेष छोड़े सभी समय को खा जाती हैं। 
एक अन्य कथा के अनुसार, दुर्गासुर नामक एक राक्षस था जो दुनिया को नष्ट करना चाहता था और उसने सभी देवताओं को स्वर्ग से भगा दिया और चार वेद छीन लिए। पार्वती को इस बारे में पता चला और उन्होंने कालरात्रि को उत्पन्न किया, और उन्हें दुर्गासुर को आक्रमण के विरुद्ध चेतावनी देने का निर्देश दिया। हालाँकि, जब दुर्गासुर एक दूत के रूप में आया तो उसके रक्षकों ने कालरात्रि को पकड़ने की कोशिश की। तब कालरात्रि ने एक विशाल रूप धारण किया और उसे चेतावनी दी। इसके बाद, जब दुर्गासुर कैलाश पर आक्रमण करने आया, तो पार्वती ने उससे युद्ध किया और उसे मार डाला और दुर्गा नाम प्राप्त किया। यहाँ कालरात्रि एक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती हैं, जो पार्वती की ओर से दुर्गासुर को संदेश और चेतावनी देती हैं। 
कालरात्रि मंदिर डुमरी बुजुर्ग नयागांव, बिहार , सारण
कालरात्रि का रंग रात के सबसे अँधेरे जैसा है, उनके बाल घने हैं और उनका रूप दिव्य है। उनके चार हाथ हैं - बाएँ दो हाथों में तलवार और वज्र है और दाएँ दो हाथ वरद (आशीर्वाद) और अभय (सुरक्षा) मुद्रा में हैं । वह एक हार पहनती है जो चाँद की तरह चमकता है। कालरात्रि की तीन आँखें हैं जो बिजली की तरह किरणें छोड़ती हैं। जब वह साँस लेती या छोड़ती हैं तो उनकी नाक से लपटें निकलती हैं। उनका वाहन गधा है, जिसे कभी-कभी शव के रूप में भी माना जाता है। इस दिन नीले, लाल और सफेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए। 
देवी कालरात्रि का स्वरूप दुष्टों के लिए विनाशक के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन वे अपने भक्तों के लिए हमेशा अच्छे फल लाती हैं और उनके सामने आने पर डरना नहीं चाहिए, क्योंकि वे ऐसे भक्तों के जीवन से चिंता का अंधकार दूर करती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन उनकी पूजा को योगियों और साधकों द्वारा विशेष महत्व दिया जाता है। 

मंत्र... 

ॐ देवी कालरात्र्यै नम: ॐ देवी कालरात्र्यै नम:
मां कालरात्रि मंत्र- मां कालरात्रि मंत्र:।

या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

ध्यान मंत्र... 

करालवंदना धोरां मुक्ताकेशी चतुर्भुजम्। कालरात्रिं करालिंका दिव्यं विद्युतमाला विभूषितम्॥

करालवंदना धोरं मुक्तकेशी चतुर्भुजम्। काल रात्रिम् कार्लिकाम् दिव्यम् विद्युत्मला विभूषितम्। 

डेंगू का शिकार हो चुके हैं एक हजार से ज्यादा लोग

डेंगू का शिकार हो चुके हैं एक हजार से ज्यादा लोग  संदीप मिश्र  लखनऊ। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा सरकार में प्रदेश की...