भारत को 'रेल ट्रांजिट' सुविधा मुहैया, नुकसान नहीं
अखिलेश पांडेय
ढाका। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने कहा है कि भारत को रेल ट्रांजिट सुविधा मुहैया कराने के फ़ैसले से उनके देश को कोई नुक़सान नहीं होगा।
उन्होंने अपने हालिया भारत दौरे को लेकर मंगलवार सुबह गणभवन में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बात कही।
शेख़ हसीना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "चाहे कितना भी छोटा हो, यह हमारा संप्रभु देश है। हम उस संप्रभुता की रक्षा करने और दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं।"
उन्होंने बांग्लादेश की ज़मीन पर भारत को रेल ट्रांजिट सुविधा का उपयोग करने देने के पैसले के संबंध में अलग-अलग हलकों में की जा रही आलोचनाओं पर भी सवाल उठाए।
उन्होंने पूछा, "एक देश से दूसरे देश में जाने में क्या नुकसान है? यूरोप को देखिए। कहीं कोई सीमा नहीं है, तो क्या एक देश ने दूसरे देश को बेच दिया है ? तो हम दक्षिण एशिया में क्यों इससे पीछे रहें ?"
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के लोगों की भलाई को देखते हुए भारत के साथ रेल कम्युनिकेशन बढ़ाया जा रहा है।
शेख हसीना ने कहा, "रेलवे (भारत के साथ) जो इतने लंबे समय से बंद थे, उसे धीरे-धीरे खोला जा रहा है।"
"यह हमारे कारोबार को आसान बनाता है। हम सभी संचार प्रणालियां खोल दें, तो हमारे देश के लोगों को सबसे अधिक लाभ होगा।''
"यदि हम सभी कम्युनिकेशन सिस्टम खोल दें तो देश के लोगों को सबसे ज्यादा फ़ायदा होगा। लोग, पढ़ाई और इलाज के लिए भारत जाते हैं। उनका फायदा होगा। बिजनेस और कॉमर्स और ज्यादा खुलेगा।''
विपक्ष के आरोपों में शेख़ हसीना ने कहा कि वो सत्ता में बने रहने के लिए देश नहीं बेचतीं।
शेख हसीना बोलीं- 'मैं देश नहीं बेचती...'
शेख हसीना ने कहा, "मैं हमेशा देश के हितों की रक्षा करती हूं। शेख हसीना इस देश को नहीं बेचती। क्योंकि हमने इस देश को स्वतंत्र कराया है।"
उन्होंने कहा, "जो लोग ऐसा कहते हैं कि हसीना देश बेच रही है, वही भारत के प्रभाव में आ जाते हैं। सैन्य शासक ज़िया, इरशाद और खालिदा ज़िया ने पहले भारत विरोधी बातें कहीं और फिर उनके कदमों में जाकर बैठ गए. ये तो हमने खुद देखा और जाना है।"
शेख़ हसीना ने ये बातें उस समय कही है, जब कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान दस समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।
उनमें से एक है रेल ट्रांजिट समझौता। अगर ये समझौता लागू हो गया, तो भारत को बांग्लादेश की ज़मीन का इस्तेमाल कर अपने माल को देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक रेल से सीधे पहुंचाने में मदद मिलेंगी।
शेख हसीना ने कहा कि सरकार ने भारत और बांग्लादेश की सीमा पर और अधिक हाट और बाज़ार लगाने लगाने का शुरुआती फैसला किया गया है।
क्या है रेल ट्रांजिट सुविधा ?
रेल ट्रांजिट समझौता शेख़ हसीना की भारत यात्रा के दौरान हुए दस समझौतों में से एक है।
अगर ये लागू होता है कि भारत को बांग्लादेश की ज़मीन का इस्तेमाल कर अपना माल रेल से एक हिस्से से दूसरे हिस्से में सीधे पहुंचाने की सुविधा मिल जाएगी।
भारत ने कहा है कि जुलाई में बांग्लादेश के रास्ते वह अपनी रेलें चला सकता है।
इससे पहले साल 2018 में दोनों देशों के बीच एक और समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था।
इस के तहत भारत को बांग्लादेश के चटगांव और मोंगला बंदरगाहों का उपयोग करके सड़क मार्ग से पूर्वोत्तर राज्यों तक माल परिवहन करने की भी अनुमति दी गई थी।
वर्तमान में बांग्लादेश-भारत ट्रेनें पांच रूटों पर चलती हैं। इनमें से तीन यात्री इंटरचेंज हैं, जबकि शेष दो माल ढुलाई इंटरचेंज हैं।
हालांकि, मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक़, सीमा पर पहुंचने के बाद ट्रेन बांग्लादेशी इंजन लेकर बांग्लादेश में प्रवेश करती है।
नए समझौते के मुताबिक, भारतीय मालगाड़ियां पश्चिम बंगाल के गेडे बॉर्डर से बांग्लादेश के चुआडांगा में प्रवेश करेंगी।
इसके बाद भारत दर्शन रेलवे स्टेशन से पाबना के ईश्वरडी, नटोर के अब्दुलपुर, दिनाजपुर के पार्वतीपुर, निलफामारी के चिलाहाटी से पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले के हल्दीबाड़ी स्टेशन तक अपनी मालगाड़ियों को ले जा सकता है।
बांग्लादेश को कितना फ़ायदा
बांग्लादेश और भारत के बीच इस नए समझौते के फायदों के बारे में अभी तक कोई ज्यादा स्पष्टता नहीं है क्योंकि दोनों ही सरकार ने इसका ब्योरा जारी नहीं किया है। लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि इससे बांग्लादेश को कोई ख़ास फायदा नहीं होगा।
बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन ने बीबीसी बांग्ला से कहा, "अब तक के अनुभव से यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश को इस नए समझौते के बदले में बहुत कुछ नहीं मिलेगा। 2010 में ट्रांजिट समझौते पर हस्ताक्षर के बाद बांग्लादेश सरकार ने कहा था कि इससे देश को आर्थिक फायदा होगा।"
असल में भारत माल परिवहन के लिए बांग्लादेश को प्रति टन ट्रांजिट शुल्क का भुगतान करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश को प्रति टन सिर्फ 300 रुपये मिलते हैं।
तौहीद हुसैन कहते हैं, "तब कहा गया था कि प्रति वर्ष लगभग 50 करोड़ डॉलर का मुनाफ़ा होगा। लेकिन क्या इतनी कमाई हुई?''