शांति व सद्भाव में मनाया 'बकरीद' का पर्व
इस्लाम में हज़रत इब्राहीम की सुन्नत पर अमल करने का नाम है ईद ए क़ुरबां
ईदगाह सहित शहर भर की सभी छोटी बड़ी मस्जिदों में अदा की गई ईदुल अज़हा की विशेष नमाज़
फजिर की नमाज़ के बाद से ईद उल अज़हा की नमाज़ के बाद देर शाम तक बारगाहे खुदावन्दी में दी जाती रही दुम्बों और बकरों की कुर्बानी
बृजेश केसरवानी
प्रयागराज। बकरीद यानी ईद-उल-अजहा का पर्व हज़रत इब्राहीम के देखे ख्वाब की तामील को अमली जामा पहनाते हुए आज अक़ीदत व ऐहतेराम के साथ शांति व सद्भाव में मनाया गया।
उम्मुल बनीन सोसायटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी के अनुसार प्रातः 6 बजे से 10 :30 बजे तक ईदगाह सहित शहर भर की मस्जिदों इबादतगाहों और घरों में ईद उल अज़हा की खास नमाज़ ओलमा की क़यादत में अदा की गई। ईदगाह ,चौक जामा मस्जिद ,चक ज़ीरो रोड शिया जामा मस्जिद, रौशन बाग़ शाह वसी उल्ला मस्जिद, करैली बीबी खदीजा मस्जिद, बख्शी बाज़ार मस्जिद क़ाज़ी साहब, दायरा शाह अजमल की खानकाह मस्जिद, अटाला व रसूलपुर की बड़ी मस्जिद, दायरा शाह अजमल की मस्जिद ए नूर, बैदन टोला, सियाहमुर्ग़, धोबी घाट की हरी मस्जिद करैली लेबर चौराहे की मस्जिद ए मोहम्मदी, दरियाबाद की इमाम रज़ा मस्जिद , बैतुस्सलात, मुसल्ला ए ज़ीशान, इबादतखाना,मदरसा जमीयतुल अब्बास वीआईपी कालोनी सहित शहर भर की सैकड़ों मस्जिदों में तय समय पर ईद उल अज़हा की खास नमाज़ अदा की गई।मस्जिदों में रिज़्क़ सेहत बरकत आपस में यकजहती सभी धर्मों का आदर करने के साथ मुल्क ए हिन्द को हमेशा कामयाबी और कामरानी के साथ आगे बढ़ते रहने की दुआ मांगी गई।
अना,हसद,ग़ुस्सा ,तकब्बुर ,गुमराही को क़ुरबान करना ही सही मायनों में ईद ए क़ुरबॉ का असली मक़सद (मौलाना जवादुल हैदर रिज़वी )
मस्जिद क़ाज़ी साहब बख्शी बाज़ार में ईद-उल-अजहा यानी ईद ए क़ुरबां पर बाद नमाज़ खुतबे मे मौलाना सैय्यद जव्वादुल हैदर रिज़वी ने ईद क़ुरबॉ की फज़ीलत बयान की कहा हज़रत इब्राहीम को तीन मर्तबा ख्वाब में अल्लाह ने अपने बेटे को राहें खुदा में क़ुरबान करने का हुक्म दिया, तो उस ख्वाब को उन्होंने अपनी बीवी और बेटे हज़रत इस्माईल को बताया।
बीवी और बेटे की रज़ामन्दी के बाद हज़रत इब्राहीम मेना की पहाड़ी पर बेटे को राहें खुदा में क़ुरबान करने को ले कर गए।रास्ते में तीन शख्स ने अलग अलग तरीकों से उनहे इस अहकाम से रोकने की कोशिश की लेकिन दोनों ने उनको नकारते हुए यही कहा की तुम शैतान हो।आज काबे में हज के बाद उन्हीं तीन शैतानों पर हाजी कंकड़ी मारते हैं।
जब तक इस रस्म की अदायगी नहीं होती, तब तक हज मुकम्मल नहीं होता।
हज़रत इब्राहीम ने जब खुदा के हुक्म से बेटे इस्माईल के गर्दन पर छूरी फेरनी चाही तो अल्लाह की तरफ से ग़ैब से उस जगहा पर दुम्बा ज़िबहा पाया और ऑख की पट्टी खोली तो देखा दुम्बा क़ुरबान हो चुका था और बेटे हज़रत इस्माईल बग़ल में सही सलामत खड़े मुस्कुरा रहे हैं।
इसी सुन्नत को अमल में लाते हुए दुनिया भर में मुसलमान आज के दिन दुम्बों व बकरों की कुर्बानी देते हैं। इस तहरीक से लोगों को चाहिये की आज से अहद लें कि सिर्फ जानवर ही नहीं अना हसद ग़ुस्सा तकब्बुर गुमराही को भी क़ुरबान कर अच्छे और सच्चे मोमिन बन जाएं, ताकि अल्लाह हमारी क़ुरबानी को क़ुबूल करें।