कलाकारों के समूह ने मकान को एक नया रूप दिया
मिनाक्षी लोढी
कोलकाता। कोलकाता के कालीघाट में स्थित 120 साल पुराने, जर्जर हो चुके एडवर्डकालीन एक मकान को कलाकारों के एक समूह ने अपनी कोशिश से एक नया रूप दे दिया है। कभी यह मकान कला का अद्भुत नमूना था जिसकी अर्ध वृत्ताकार बालकनी, हरे रंग से रंगी खिड़कियां, संगमरमर जड़े फर्श, लोहे की रेलिंग और कलाकृतियां शानदार हैं। भवन निर्माताओं द्वारा इसे धराशायी करने से पहले यह मकान कलाकारों के समूह के लिए अपनी कला को नए स्वरूप में प्रदर्शित करने का माध्यम बन गया है। कलाकारों ने जर्जर हो चुके ‘जगत निवास’ की दीवारों को भित्तिचित्रों और सीढ़ियों को ‘अल्पना’ (रंगोली) से सजाया है, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा में संदेश लिखे हैं, प्रयोग के तौर पर रोशनी की व्यव्स्था की है। ताकि इन अंधेरे कमरों का इतिहास लोगों के सामने लाया जा सके।
इमारत के एक कमरे में जापानी शैली में स्याही और कूची से चित्रकारी की गई है जो इसका संबंध द्वितीय विश्वयुद्ध के योद्धा मेजर (डॉ) बी सी दीवानजी से बताती है। दीवानजी बर्मा (मौजूदा म्यांमा) से आए थे और इस इमारत के मूल मालिक थे। वहीं एक अन्य कमरे में साड़ी से साधारण झूला बनाया गया है जो इस इमारत में लोगों के हुए जन्मों को इंगित करता है।
यह इमारत कालीघाट स्थित मशहूर काली मंदिर परिसर से काफी नजदीक है। विश्व भारती विश्वविद्यालय के शांतिनिकेतन से प्रशिक्षित 46 वर्षीय कलाकार तौफिक रियाज ‘म्यूजियम ऑफ एयर ऐंड डस्ट’ से शुरू की गई इस परियोजना से जुड़े हैं। उन्होंने से कहा, ‘‘बड़ी संख्या में कलाकार, कवि, वास्तुशास्त्री, अभिनेता, बुद्धिजीवी और आसपास रहने वाले निवासी इस घर को जर्जर ढांचे से कला के केंद्र में तब्दील करने के काम से जुड़े हैं।’’
उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में जो लोग रह रहे हैं उनमें बर्मा से करीब 60 साल पहले आए शरणार्थी भी हैं और रंगून (अब यंगून) से हृदयविदारक अवस्था में निकाले जाने की यादें उनके मनोमस्तिष्क में अब तक ताजा हैं। इन लोगों के लिए नेपाल भट्टाचार्य स्ट्रीट स्थित इस घर को छोड़ने की घड़ी नजदीक आ रही है। एक समय बंगाली फिल्मों में काम करने वाले शिवाजी दीवानजी ने कहा, ‘‘इस घर को लेकर हमारी कई यादें हैं, कितने विवाह और जन्म यहां हुए, दोस्ती और उत्सव हुए, इसे छोड़ना आसान नहीं है।