पर्यावरण मंत्रियों के 'राष्ट्रीय सम्मेलन' का शुभारंभ
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से गुजरात के एकता नगर में पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ किया। सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने एकता नगर में आयोजित पर्यावरण मंत्रियों के राष्ट्रीय सम्मेलन में सभी का स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सम्मेलन तब हो रहा है जब भारत अगले 25 वर्षों के लिए नए लक्ष्य निर्धारित कर रहा है। इसका महत्व बताते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि वनों, जल संरक्षण, पर्यटन और हमारे आदिवासी भाइयों व बहनों की बात करें तो एकता नगर का समग्र विकास पर्यावरण के तीर्थ क्षेत्र का एक प्रमुख उदाहरण है।
इंटरनेशनल सोलर एलाइंस, कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलियंट इन्फ्राट्रक्चर, और लाइफ अभियान का उदाहरण देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत न केवल अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में बड़ी प्रगति कर रहा है, बल्कि दुनिया के अन्य देशों का भी मार्गदर्शन कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज का नया भारत, नई सोच, नई अप्रोच के साथ आगे बढ़ रहा है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भारत तेजी से विकसित होती इकोनॉमी भी है, और निरंतर अपनी इकोलॉजी को भी मजबूत कर रहा है। उन्होंने कहा, “हमारे वन कवर में वृद्धि हुई है और आर्द्रभूमि का दायरा भी तेजी से बढ़ रहा है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के हमारे ट्रैक रिकॉर्ड के कारण ही दुनिया आज भारत के साथ जुड़ रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, “बीते वर्षों में गीर के शेरों, बाघों, हाथियों, एक सींग के गेंडों और तेंदुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश में चीता की घर वापसी से एक नया उत्साह लौटा है।” प्रधानमंत्री ने वर्ष 2070 के नेट जीरो लक्ष्य की ओर सबका ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि भारत ने साल 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य रखा है। अब देश का फोकस ग्रीन ग्रोथ पर है, ग्रीन जॉब्स पर है। उन्होंने कहा कि इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए, हर राज्य के पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका बहुत बड़ी है। प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं सभी पर्यावरण मंत्रियों से आग्रह करूंगा कि राज्यों में सर्कुलर इकोनॉमी को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें।” श्री मोदी ने कहा कि इससे सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और एकल उपयोग वाली प्लास्टिक से मुक्ति के हमारे अभियान को भी ताकत मिलेगी।
पर्यावरण मंत्रालयों की भूमिका को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इस भूमिका को सीमित तरीके से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने इस बात पर अफसोस व्यक्त किया कि लंबे समय तक पर्यावरण मंत्रालय एक नियामक के रूप में ही अधिक देखा गया है। हालांकि, प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे लगता है कि पर्यावरण मंत्रालय की भूमिका नियामक के बजाय पर्यावरण को प्रोत्साहित करने के रूप में अधिक है।” उन्होंने राज्यों से वाहन स्क्रैपिंग नीति, और जैव ईंधन उपायों जैसे एथेनॉल मिश्रण आदि उपायों को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए कहा। उन्होंने इन उपायों को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ राज्यों के बीच सहयोग कायम करने का आह्वान किया।
भूजल के मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आजकल हम देखते हैं कि कभी जिन राज्यों में पानी की बहुलता थी, ग्राउंड वॉटर ऊपर रहता था, वहां आज पानी की किल्लत दिखती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती, अमृत सरोवर और जल सुरक्षा जैसी चुनौतियां व उपाय सिर्फ पानी से जुड़े विभाग की ही नहीं है, बल्कि पर्यावरण विभाग को भी इसे उतनी ही बड़ी चुनौती समझना होगा। “पर्यावरण मंत्रालयों द्वारा एक सहभागी और एकीकृत दृष्टिकोण के साथ काम करना महत्वपूर्ण है। जब पर्यावरण मंत्रालयों का नजरिया बदलेगा तो मुझे यकीन है कि प्रकृति को भी फायदा होगा।”
इस बात पर जोर देते हुए कि यह काम सिर्फ सूचना विभाग या शिक्षा विभाग तक सीमित नहीं है, प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के लिए जन जागरूकता एक और महत्वपूर्ण पहलू है। श्री मोदी ने कहा, “जैसा कि आप सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि देश में लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुभव आधारित शिक्षा पर बहुत जोर दिया गया है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि इस अभियान का नेतृत्व पर्यावरण मंत्रालय को करना चाहिए। इससे बच्चों में जैव विविधता के प्रति जागरूकता पैदा होगी और पर्यावरण की रक्षा के बीज भी बोए जाएंगे। प्रधानमंत्री ने कहा, “हमारे तटीय क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को यह भी सिखाया जाना चाहिए कि मरीन इको-सिस्टम की रक्षा कैसे करें। हमें अपने बच्चों और आने वाली पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना है।” हमारे राज्यों के विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं को जय अनुसंधान के मंत्र का पालन करते हुए पर्यावरण संरक्षण से संबंधित नवाचारों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रौद्योगिकी को अपनाने पर भी जोर दिया। श्री मोदी ने कहा, “जंगलों में वनों की स्थिति पर अध्ययन और अनुसंधान समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।”
पश्चिमी दुनिया में जंगल की आग की चिंताजनक दर पर ध्यान केंद्रित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि वाइल्ड-फायर की वजह से वैश्विक उत्सर्जन में भारत की हिस्सेदारी भले ही नगण्य हो, लेकिन हमें अभी से जागरूक होना होगा। प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हर राज्य में फायर फाइटिंग मैकेनिज्म मजबूत हो, टेक्नोलॉजी आधारित हो, ये बहुत जरूरी है। श्री मोदी ने हमारे वन रक्षकों के प्रशिक्षण पर भी जोर दिया, जब जंगल में आग बुझाने की बात हो तो विशेष जोर दिया जाना चाहिए।
एनवायरमेंट क्लीयरेंस प्राप्त करने में आने वाली जटिलताओं की ओर इशारा करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के बिना, देश का विकास, देशवासियों के जीवन स्तर को सुधारने का प्रयास सफल नहीं हो सकता। प्रधानमंत्री ने सरदार सरोवर बांध का उदाहरण दिया जिसे 1961 में पंडित नेहरू द्वारा शुरू किया गया था। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के नाम पर की जा रही साजिशों के कारण इसके निर्माण को पूरा करने में दशकों लग गए। प्रधानमंत्री ने विभिन्न वैश्विक संगठनों और फाउंडेशनों से करोड़ों रुपये लेकर भारत के विकास में बाधा डालने में शहरी नक्सलियों की भूमिका को भी चिन्हित किया। प्रधानमंत्री ने ऐसे लोगों की साजिशों की ओर भी इशारा किया जिसके चलते विश्व बैंक ने बांध की ऊंचाई बढ़ाने के लिए कर्ज देने से इनकार कर दिया था।
नरेंद्र मोदी ने कहा, “इन साजिशों को विफल करने में कुछ समय लगा, लेकिन गुजरात के लोग विजयी हुए। बांध को पर्यावरण के लिए खतरा बताया जा रहा था और आज वही बांध पर्यावरण की रक्षा का पर्याय बन गया है।” प्रधानमंत्री ने सभी से अपने-अपने राज्यों में शहरी नक्सलियों के ऐसे समूहों से सतर्क रहने का भी आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने दोहराते हुए कहा कि एनवायरमेंट क्लीयरेंस के लिए 6000 से अधिक प्रस्ताव और फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए 6500 आवेदन राज्यों के पास पड़े हैं। उन्होंने कहा, “राज्यों द्वारा हर उपयुक्त प्रस्ताव को जल्द से जल्द मंजूरी देने का प्रयास किया जाना चाहिए। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस देरी की वजह से हजारों करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट अटक जाएंगे।” प्रधानमंत्री ने काम के माहौल में बदलाव लाने की जरूरत पर भी जोर दिया ताकि लंबित मामलों की संख्या कम हो और मंजूरी में तेजी लाई जा सके। प्रधानमंत्री ने कहा कि एनवायरमेंट क्लीयरेंस देने में हम नियमों का भी ध्यान रखते हैं और उस क्षेत्र के लोगों के विकास को भी प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने कहा, “यह इकोनॉमी और इकोलॉजी दोनों के लिए एक जीत की स्थिति है।” उन्होंने जोर देकर कहा, “हमारी कोशिश होनी चाहिए कि पर्यावरण के नाम पर ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के कार्य में कोई बाधा पैदा न होने दी जाए। हमें यह याद रखना होगा कि जितनी तेजी से एनवायरमेंट क्लीयरेंस मिलेगी, विकास भी उतनी ही तेजी से होगा।
प्रधानमंत्री ने दिल्ली में प्रगति मैदान सुरंग का उदाहरण दिया जिसे कुछ सप्ताह पहले राष्ट्र को समर्पित किया गया। “इस सुरंग के कारण दिल्ली के लोगों के जाम में फंसने की परेशानी कम हुई है। प्रगति मैदान सुरंग हर साल 55 लाख लीटर से अधिक ईंधन बचाने में भी मदद करेगी। इससे हर साल कार्बन उत्सर्जन में करीब 13 हजार टन की कमी आएगी जो कि 6 लाख से ज्यादा पेड़ों के बराबर है। श्री मोदी ने कहा, “चाहे फ्लाईओवर, सड़कें, एक्सप्रेसवे या रेलवे परियोजनाएं हों, उनके निर्माण से कार्बन उत्सर्जन को कम करने में समान रूप से मदद मिलती है। क्लीयरेंस के समय हमें इस बिंदु की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।” प्रधानमंत्री ने पर्यावरण से संबंधित सभी प्रकार की मंजूरी के लिए सिंगल विंडो मोड परिवेश पोर्टल के इस्तेमाल पर जोर देते हुए कहा कि परिवेश पोर्टल, पर्यावरण से जुड़े सभी तरह के क्लीयरेंस के लिए सिंगल-विंडो माध्यम बना है। ये ट्रांसपेरेंट भी है और इससे अप्रूवल के लिए होने वाली भागदौड़ भी कम हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, “आठ साल पहले तक एनवायरमेंट क्लीयरेंस में जहां 600 से ज्यादा दिन लग जाते थे, वहीं आज 75 दिन लगते हैं।”
मोदी ने कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में समन्वय बढ़ा है, जबकि कई परियोजनाओं ने गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के कार्यान्वयन के बाद से गति प्राप्त की है। पर्यावरण की रक्षा के लिए पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान भी एक बेहतरीन उपाय है। उन्होंने आपदा-रोधी इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता पर भी जोर दिया। श्री मोदी ने कहा कि हमें जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए अर्थव्यवस्था के हर उभरते हुए क्षेत्र का सदुपयोग करना है। प्रधानमंत्री ने कहा, “केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर ग्रीन इंडस्ट्रियल इकोनॉमी की ओर बढ़ना है।” अपने संबोधन के समापन में प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय न केवल एक नियामक संस्था है, बल्कि लोगों के आर्थिक सशक्तिकरण और रोजगार के नए साधन पैदा करने का एक बड़ा माध्यम भी है। “आपको एकता नगर में सीखने, देखने और करने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। गुजरात के करोड़ों लोगों को अमृत देने वाला सरदार सरोवर बांध यहीं मौजूद है।’
केवड़िया, एकता नगर में सीखने के अवसरों की ओर इशारा करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इकोलॉजी और इकोनॉमी के एक साथ विकास, पर्यावरण को मजबूत करने एवं रोजगार के नए अवसरों के निर्माण, इको-टूरिज्म को बढ़ाने के माध्यम के रूप में जैव विविधता, और हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों की संपत्ति के साथ वन संपदा के विकास जैसे मुद्दों का समाधान यहां से किया जा सकता है। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल और केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव उपस्थित थे।
सहकारी संघवाद की भावना को आगे बढ़ाते हुए, बहु-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण मैं कमी लाने, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए राज्यों की कार्ययोजनाओं, जीवन-शैली पर प्रभावी ढंग से ध्यान केंद्रित करने, पर्यावरण के लिए जीवन शैली जैसे मुद्दों पर बेहतर नीतियां तैयार करने में केंद्र व राज्य सरकारों के बीच और तालमेल बनाने के लिए सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। यह वन क्षेत्र को बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें विशेष रूप से डीग्रेडेड भूमि को दुरुस्त करने और वन्यजीव संरक्षण पर जोर दिया जाएगा।
23 और 24 सितंबर को आयोजित किए जा रहे दो-दिवसीय सम्मेलन में छह विषयगत सत्र होंगे, जिनमें लाइफ, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला (उत्सर्जन के शमन और जलवायु प्रभावों के अनुकूलन के लिए जलवायु परिवर्तन पर राज्यों की कार्ययोजनाओं को अद्यतन करना), परिवेश (एकीकृत हरित मंजूरी सिंगल विंडो सिस्टम); वानिकी प्रबंधन; प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण; वन्यजीव प्रबंधन; प्लास्टिक और अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने वाले विषय शामिल होंगे।