सोमवार, 8 मार्च 2021

सीरीज की फिल्में देखने का शौक, जीवन समाप्त

जिन भी दोस्तों को हॉलीवुड की एक्शन, हॉरर या थ्रिलर सीरीज की फिल्में देखने का शौक है। उन्होंने फाइनल डेस्टीनेशन सीरीज की फिल्में जरूर देखी होगी। इस सीरीज में एक कांसेप्ट है। मौत हर किसी के जीवन को समाप्त करने के लिए एक योजना बनाती है। प्लान तैयार करती है। अगर किसी तरह से उसने मौत को मात दे दी। बच गया तो मौत फिर प्लान बी पर काम करती है। उससे भी बच गया तो प्लान सी पर काम करती है। मौत अपनी कोशिशें बार-बार करती है।
इसी को अब हम कुछ दूसरे संदर्भ में देखेंगे। विशेषज्ञों का मानना है, कि हमारी धरती की उम्र लगभग साढ़े चार अरब साल की है। शुरुआत में हमारी धरती अंतरिक्ष में घूमता गैस और धूल का गुबार भर था। लेकिन, धीरे-धीरे यह ठंडी होती गई। ठंडा होने के साथ-साथ इसके ऊपर की परत जमती गई। जैसे उबलने के बाद जब दूध ठंडा होना शुरू करता है तो उस पर मलाई जम जाती है। ऊपर मिट्टी की परत मोटी होने के साथ ही नीची जगहों पर पानी भर गया और समुद्रों का निर्माण हुआ।
धरती की ऊपरी परत कुछ इसी तरह से मोटी होती गई। अंदर खौलते लावे के ऊपर जमी हुई मलाई की मोटी परत की तरह। धरती पर जीवन कैसे पैदा हुआ होगा इसे लेकर तमाम अलग-अलग थ्योरियां हैं। कहा जाता है। कि लगभग साढ़े तीन अरब साल पहले समुद्र मे पहली बार इस प्रकार के छोटे कण पनपने लगे थे। फासिल के रूप में जीवन के पहले साइनो बैक्टीरिया के मिलते हैं। ये बैक्टीरिया फोटोसिंथेसिस करते थे। और वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते थे। भारत में जीवन के सबसे पुराने निशान 1600 मिलियन पुराने हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और राजस्थान में भी सेडीमेंटरी रॉक में जीवन के सबसे पुराने स्वरूप फासिल यानी जीवाश्म के रूप में मिलते हैं।
जाहिर है कि उत्पत्ति के समय जीवन एक कोशिकीय और सरल था। सरल का मतलब है। कि कोशिका अपने आप में पूरी तरह से आत्मनिर्भर थी। यानी वो कोशिका खुद का पोषण भी करती थी। और प्रजनन भी करती थी। जीवन के सरल रूपों से जटिल रूप पैदा हुए। कोशिकाएं अलग-अलग कामों के लिए विशेषीकृत होती गईं और ऊतकों का निर्माण हुआ। जीवन के तमाम रूपों के फलने-फूलने के बाद कहानी शुरू होती है। महाविनाश की। जिसके बारे में ही कहे जाने का यहां उद्देश्य है।
धरती अब तक पांच महाविनाश झेल चुकी है। और छठवें महाविनाश से गुजर रही है। लगभग 444 मिलियन सालों पहले धरती पर पहला महाविनाश आया। इस महाविनाश की चपेट में उस समय धरती पर मौजूद जीवन का ज्यादातर हिस्सा काल-कवलित हो गया। कश्मीर और लद्दाख में मिलने वाले जीवाश्मों से भी इस महाविनाश की गवाही मिलती है। बहुत कुछ नष्ट हो गया। लेकिन, धरती धीरे-धीरे इस महाविनाश से उबर गई। जीवन ने कुछ दूसरे रूप धरकर फलना-फूलना शुरू कर दिया।
लेकिन, 375 मिलियन सालों पहले दूसरा महाविनाश आ गया। धरती का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया। बहुत सारे जीव इस गर्मी को बरदाश्त नहीं कर पाए। माना जाता है। कि समुद्र के नीचे मौजूद ज्वालामुखियों के फूटने से समुद्र के पानी का तापमान बहुत ज्यादा हो गया। बहुत सारा जीवन नष्ट हो गया। समुद्र में पाए जाने वाले 75 फीसदी जीव समाप्त हो गए। लद्दाख की जंस्कार वैली में भी इस महाविनाश का शिकार हुए जीवों के जीवाश्म मिलते हैं।
समय लगा पर धरती इस महाविनाश से उबर गई। लेकिन, लगभग 250 मिलियन सालों पहले फिर से बहुत सारे ज्वालामुखियों के फूटने की शुरुआत हुई। माना जाता है। कि यह महाविनाश लगभग दस लाख सालों तक चलता रहा और इसके परिणाम स्वरूप समुद्र में रहने वाले 95 फीसदी जीव नष्ट हो गए। ज्वालामुखियों से निकलने वाली राख और गैस की परत आसमान पर छा गई और इसके चलते धरती पर सूरज की रोशनी का पहुंचना भी बंद हो गया। इसके चलते धरती बेहद ठंडी हो गई। धरती लगभग पूरी तरह से ही मरने लगी।
लेकिन, धरती समाप्त नहीं हुई। उसने मौत को चकमा दे दिया। फिर से जीवन फलने-फूलने लगा। जीवन ने इस बार पहले से अलग रूप धरा। पर लगभग 201 मिलियन सालों पहले फिर से महाविनाश शुरू हुआ। इस महाविनाश ने भी धरती का सत्तर फीसदी जीवन नष्ट कर दिया।
इसके बाद, लगभग 65 मिलियन सालों पहले पांचवा महाविनाश शुरू हुआ। उल्कापिंडों के धरती से टकराने के चलते बहुत ज्यादा एनर्जी और गर्मी पैदा हुई। यह महाविनाश हमारे लिए सबसे ताजा है। इसी महाविनाश के फलस्वरूप धरती पर पैदा होने वाले सबसे बड़े जीव यानी डायनासोर भी विलुप्त हो गए। आपको यह जानकर शायद हैरत हो कि आज से लगभग दो सौ सालों पहले कोई डायनसोर के बारे में जानता भी नहीं था। जब 1820 के बाद पहली बार विज्ञानियों को खुदाई में विशालकाय हड्डियां व फासिल मिलना शुरू हुईं तो उन्होंने अनुमान लगाया कि यह कोई विशालकाय छिपकली जैसा जीव रहा होगा।
अपने जीवन काल से धरती ये पांच महाविनाश झेल चुकी है। और छठवें का सामना कर रही है। महाविनाशों में एक बात सामान्य है। धरती पर मौजूद जीवन को नष्ट करने में गर्मी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। कभी वो गर्मी हजारों ज्वालामुखियों के फटने से पैदा हुई तो कभी उल्कापिंड के टकराने से। गौर से देखें तो हमने बीते दो सौ सालों में धरती को लगभग वैसा ही गर्म कर दिया है। जिससे जीव-जंतुओं का जीना दूभर हो गया है। इसके चलते जीवों की तमाम प्रजातियां तेजी से विलुप्त हो रही हैं। ये ऐसी प्रजातियां हैं। जो धरती पर जीवन को आधार देती हैं।
खास बात यह भी है। कि इससे पहले जो महाविनाश हुए हैं, उनका कारण कोई न कोई प्राकृतिक या खगोलीय घटना रही है। ऐसा पहली बार हो रहा है। कि धरती पर रहने वाली ही कोई प्रजाति इस महाविनाश को जन्म दे रही हो। कुदरत ने अपने लाखों सालों के विकासक्रम में जिस प्रजातियों को सबसे ज्यादा विकसित किया हो, उसी की कारगुजारियां कुछ ऐसी हों कि उससे पूरी धरती के ही खतम होने का खतरा पैदा होने लगे।
इनके विलुप्त होने का मतलब है। कि धरती पर जीवन नष्ट होगा। यह हमारे सामने हो रहा है। हम इसे नष्ट होते हुए देख रहे हैं। हमने ज्यादातर जंगल काट डाले हैं। ज्यादातर समुद्रों को जहरीला बना दिया है। ज्यादातर बर्फ को गला डाला है। ज्यादातर नदियों को सुखा डाला है। धरती की उर्वरता नष्ट कर डाली है। कीटों की ज्यादातर प्रजातियां नष्ट होने की कगार पर हैं। मधुमक्खी भी इसी में से एक है। इसमें खास बात क्या है। शायद इस महाविनाश का दौर भी अगले सौ-डैढ़ सालों में पूरा हो जाए। बहुत सारी प्रजातियां नष्ट हो जाएं। बहुत सारी प्रजातियां नष्ट हो जाएं। हो सकता है। कि नष्ट होने वाली प्रजातियों में मनुष्य भी शामिल हो।
अगर हम फाइनल डेस्टीनेशन वाली बात पर लौटें, तो यह कहा जा सकता है। कि महाविनाश इस धरती को मारने की एक योजना बनाता है। धरती इस मौत को चकमा देती है। लेकिन हर बार जब महाविनाश खतम होता है। तो प्रजातियां वहीं नहीं रहतीं। बल्कि ऐसी प्रजातियां पैदा होती हैं। जो नए वातावरण में जीवन जीने के ज्यादा अनुकूल होती हैं। पुरानी प्रजातियां समाप्त हो जाती हैं, नई प्रजातियां पैदा होती हैं।
हो सकता है, कि इस महाविनाश से हमारे वर्तमान समय में मौजूद तमाम प्रजातियां सर्वाइव नहीं कर पाएं। लेकिन, इतना तय है, कि यह धरती सर्वाइव करेगी। यहां पर जीवन फलेगा-फूलेगा। हो सकता है। कि जीवन को हम लोग अभी जिस रूप में देख रहे हैं। आगे जीवन उससे कुछ अलग रूप में दिखे। लेकिन, जीवन दोबारा से पैदा जरूर होगा।
क्योंकि, धरती के पास मौत को चकमा देने के हुनर हैं। उसने इससे पहले के पांच महाविनाशों में ऐसा किया है। उम्मीद है। कि आगे भी ऐसा ही होगा।
हिरोशिमा, नागासाकी और चेर्नोबिल जैसी जगहें जो न्यूक्लियर हमले या न्यूक्लियर दुर्घटनाओं में नष्ट हुई हैं। वहां भी कुछ समय की चुप्पी के बाद जीवन ने अपने रंग दिखाए ही हैं। हालांकि, एक महाविनाश की तुलना में ये घटनाएं बहुत ही छोटी और तुच्छ हैं।

देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मंदिर सर्वाधिक

जन गण मन के आराध्य भगवान शिव सहज उपलब्धता और समाज के आखरी छोर पर खडे व्यक्ति के लिए भी सिर्फ कल्याण की कामना यही शिव है। किरात भील जैसे आदिवासी एवं जनजाति से लेकर कुलीन एवम अभिजात्य वर्ग तक अनपढ़ गंवार से लेकर ज्ञानी अज्ञानी तक सांसारिक मोहमाया में फंसे लोगो से लेकर तपस्वियों, योगियों, निर्धन, फक्कडों, साधन सम्पन्न सभी तबके के आराध्य देव है भगवान शिव, भारत वर्ष में अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मन्दिर सर्वाधिक है। हर गली मुहल्ले गांव देहात घाट अखाडे बगीचे पर्वत नदी जलाशय के किनारे यहां तक की बियाबान जंगलों मे भी शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। यह इस बात का साक्ष्य है कि हमारे श्रृजनता का भगवान शिव में अगाध प्रेम भरा है। वस्तुत: इनका आशुतोष होना अवघडदानी होना केवल वेलपत्र या जल चढानें मात्र से ही प्रशन्न होना आदि कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो इनको जन गण मन का देव अर्थात् महादेव बनाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। शिव को अनादि अनन्त अजन्मां माना गया है। यानि उनका न आरम्भ है न अन्त ।न उनका जन्म हुआ है न वे मृत्यु को प्राप्त होते है। इस तरह से भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर है। शिव की साकार यानि मुर्ति रूप एवम निराकार यानि अमूर्त रूप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याण कारी माना गया है। धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर उसकी हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।इसी का एक रूप गाजीपुर जनपद के आखिरी छोर पर स्थित कामेश्वर नाथ धाम कारो जनपद बलिया का है।रामायण काल से पूर्व में इस स्थान पर गंगा सरजू का संगम था और इसी स्थान पर भगवान शिव समाधिस्थ हो तपस्यारत थे। उस समय तारकासुर नामक दैत्य राज के आतंक से पूरा ब्रम्हांड व्यथित था। उसके आतंक से मुक्ति का एक ही उपाय था कि किसी तरह से समाधिस्थ शिव में काम भावना का संचार हो और शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हो जिनके हाथो तारकासुर का बध होना निश्चित था। देवताओं के आग्रह पर देव सेनापति कामदेव समाधिस्थ शिव की साधना भूमिं कारो की धरती पर पधारे। सर्वप्रथम कामदेव ने अप्सराओं ,गंधर्वों के नृत्य गान से भगवान शिव को जगाने का प्रयास किया। विफल होने पर कामदेव ने आम्र बृक्ष के पत्तों मे छिपकर अपने पुष्प धनुष से पंच बाण हर्षण प्रहस्टचेता सम्मोहन प्राहिणों एवम मोहिनी का शिव ह्रदय में प्रहार कर शिव की समाधि को भंग कर दिया। इस पंच बाण के प्रहार से क्रोधित भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। तभी से वह जला पेंड युगो युगो से आज भी प्रमाण के रूप में अपनी जगह पर खडा है।इस कामेश्वर नाथ का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बाल सर्ग के 23 के दस पन्द्रह में मिलता है। जिसमे अयोध्या से बक्सर जाते समय महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को बताते है की देखो रघुनंदन यही वह स्थान है जहां तपस्या रत भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। कन्दर्पो मूर्ति मानसित्त काम इत्युच्यते बुधै: तपस्यामि: स्थाणु: नियमेन समाहितम्।इस स्थान पर हर काल हर खण्ड में ऋषि मुनी प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से साधना रत रहते है। इस स्थान पर भगवान राम अनुज लक्ष्मण एवम महर्षि विश्वामित्र के साथ रात्रि विश्राम करने के पश्चात बक्सर गये थे। स्कन्द पुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इसी आम के बृक्ष के नीचे तपस्या किया था।महात्मां बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां पर रूके थे। ह्वेन सांग एवम फाह्यान ने अपने यात्रा बृतांत में यहां का वर्णन किया है। शिव पुराण देवीपुराण स्कंद पुराण पद्मपुराण बाल्मीकि रामायण समेत ढेर सारे ग्रन्थों में कामेश्वर धाम का वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि गर्ग पराशर अरण्य गालव भृगु वशिष्ठ अत्रि गौतम आरूणी आदि ब्रह्म वेत्ता ऋषि मुनियों से सेवित इस पावन तीर्थ का दर्शन स्पर्श करने वाले नर नारी स्वयं नारायण हो जाते है। मन्दिर के ब्यवस्थापक रामाशंकर दास के देख रेख में करोणो रूपये खर्च कर धाम का सुन्दरीकरण किया गया है। चितबडागांव मुहम्मदाबाद मार्ग पर धर्मापुर में भव्य प्रवेश द्वार, कामेश्वर धाम के पास पोखरे के समीप भव्य द्वार, सत्संग हाल,प्रवचन मंच,समेत अनेक निर्माण कार्य सम्पन्न है और कुछ का निर्माण कार्य चल रहा है। शिव रात्रि एवम सावन मास में लाखो लोग यहा आकर बाबा कामेश्वर नाथ का दर्शन पूजन करते है। सावन मास में लोग उजियार घाट से गंगा स्नान कर गंगा जल लेकर कारो आते है और बाबा कामेश्वर नाथ जी को अर्पित करते है। 

सिद्धार्थ की भारत यात्रा की गाजीपुर से शुरुआत हुई

गाजीपुर। रविवार की सुबह सिद्धार्थ सेवार्थ अपनी भारत यात्रा पर गाजीपुर के खुरपी से निकल गये। इस मौक़े पर भारी संख्या मे ग्रामीण पुरूष एवम महिलाओं ने गाँव से बाहर निकल निकल कर अन्न दान का कार्य किया। ना कोई दल, ना कोई धर्म। सभी मे होड़-सी लगी थी। अपने सिद्धार्थ भैया की झोली भरने की। कोई आशीर्वाद देता कोई आशीर्वाद लेता कोई उँगली थाम कर चलता दिखा तो कोई नंगे पाँव चल रहे सिद्धार्थ को गड्ढा पार करवाता दिखा। सिद्धार्थ धोती कुर्ते मे गले मे गमछा डाले आगे बढ़ते रहे। इस यात्रा के दौरान सिद्धार्थ ने कई संकल्प ले रखे हैं। जैसे मिट्टी के बर्तन का ही उपयोग केवल.और पुरी यात्रा बिना पैर मे कुछ पहने क्यूं की सिद्धार्थ का कहना है यह एक पवित्र काम है, प्रभु का काम है। प्रथम दिन हाला - हरिहरपुर से निकल कर सिद्धार्थ जमानियाँ मे रात्रि विश्राम करेंगे और फिर अगले दिन जमानियाँ मे कार्यक्रम करने के बाद चंदौली के लिए निकल जायेगे। फिर सिद्धार्थ इसी तरफ़ वाराणसी , ज्ञानपुर , प्रयागराज , लखनऊ होते हुए उत्तराखंड और हरियाणा से आगे बढ़ते जायेगे। इस यात्रा के दौरान सिद्धार्थ के छोटे भाई अभिषेक व हिमांशु भी मौजूद रहेंगे। इस यात्रा को कई चरणों मे पुरा किया जायेगा। यात्रा के दौरान आज किसी ने मिट्टी के बर्तन दिये , किसी ने खाने की सामग्री दी , किसी ने पाँव रंगा तो किसी ने दौरी दी किसी ने यात्रा के दौरान उपयोग के लिए मेडिकल कीट भेंट किया।हाला हरिहर पुर में मां काली का दर्शन पूजन कर सिद्धार्थ की पदयात्रा प्रारम्भ हो गयी। रास्ते में जगह जगह बैंड बाजा के साथ लोगों ने धूप में खडे होकर इस पदयात्रा का इंतजार किया। पदयात्रा के पहुंचने पर हर हर महादेव के जयघोष एवं माल्यार्पण कर सिद्धार्थ सेवार्थ की झोली में एक मुट्ठी अन्न का दान किया। लोग दौड दौड कर झोली में अन्न दान कर रहे थे। लोगों का अन्न दान.शुभकामना एवं आशिर्वाद लेते हुए काफिला आगे बढता रहा।तेज धूप के बावजूद छोटे छोटे बच्चे अपने अभिभावक सिद्धार्थ के अगल बगल नंगे पाव चलते नजर आ रहे थे। इस पदयात्रा में सिद्धार्थ राय को शुभकामना एवम एक मुट्ठी अन्न भेंट करने के लिए गाजीपुर सदर बिधायक संगीता बलवन्त। भाजपा नेत्री रूद्रा पाण्डेय समेत हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहे। फतेउल्लाहपुर स्थित गाजीपुर बाराणसी मार्ग पर पहुंचने के बाद सिद्धार्थ ने खुरपी से साथ आये लोगों को वापस बिदा किया और आगे की यात्रा पर निकल गये।

देश की आजादी से पहले प्रयागराज में थे रहीस लोग

बृजेश केसरवानी  
प्रयागराज। देश की आजादी के पहले प्रयागराज में कई रहीस लोग थे। जो खुलकर दान करते थे। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों के लिए इनके घर के दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। इन्हीं में एक थे लाला मनोहरदास। वे 19वीं शताब्दी में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के सबसे बड़े रईसों में से थे। कपड़े के व्यापार, साहूकारों तथा विविध उद्योगों से उन्होंने करोड़ों रुपये की संपति अर्जित की थी। वे केवल रईस ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यों के लिए भी मदद करते थे। नगर में उनके सहयोग से बने अनके जनोपयोगी स्थान तथा भवन उनकी सहदयता तथा दानशीलता के प्रतीक हैं। वे राजाओं और अंग्रेजों को भी कर्ज दिया करते थे। चौक जीरोरोड निवासी बाबा अभय अवस्थी बताते हैं कि लाला मनोहरदास के परबाबा लाला आत्मराम 1765 में प्रयागराज आए थे। उनके पिता का नाम कंधई लाल तथा बाबा का नाम लाला गप्पूमल था। लाला मनोहरदास का जन्म प्रयागराज के रानीमंडी में हुआ था। उनका मुख्य व्यापार कपड़े का था। उनके नील के 18 गोदाम थे। लाला मनोहरदास साहूकारी का भी काम करते थे। अभय अवस्थी बताते हैं कि लाला मनोहरदास व्यापारियों को ही नहीं बल्कि निकटवर्ती जिलों के ताल्लुकेदारों एवं राजाओं तक को ऋण दिया करते थे। वे कतिपय अंग्रेज अधिकारियों को कर्ज दिया करते थे। 1874 में ट्रुप के लिखे प्रयागराज के गजेटियर में उनकी गणना प्रदेश के सबसे बड़े महाजनों में की गई थी। उन्होंने गंगागंज एवं सुलेमसराय में विशाल बाग लगवाए। एक समय उनके कर्जदारों में बारा के राजा वंशपति सिंह, कानपुर के लाल तुलसीराम, जबलपुर के राजा गोकुलचंद भी थे। इसके बदले उन्हें काफी संपत्ति मिली। ऋण वसूली में उन्हें सिविल लाइंस क्षेत्र में कई बंगले मिले थे।

चुनाव को लेकर मायावती ने की 18 मंडलों में बैठक

हरिओम उपाध्याय    

 लखनऊ। बसपा सुप्रीमो ने पंचायत चुनाव को लेकर मंडलीय बैठकें शुरू कर दी हैं। उन्होंने सबसे पहले कानपुर, चित्रकूट और झांसी मंडल के पदाधिकारियों के साथ बैठक की। मायावती ने मुख्य सेक्टर प्रभारियों को निर्देश दिया है, कि पंचायत चुनाव दमदारी के साथ लड़ा जाए। खासकर जिला पंचायत सदस्य चुनाव पर अधिक ध्यान देने को कहा गया है। मायावती प्रदेश के 18 मंडलों की अलग-अलग बैठकें करेंगी। उन्होंने बैठक में मुख्य सेक्टर प्रभारियों को निर्देश दिया कि पंचायत चुनाव की। तैयारियों को लेकर वे अपने-अपने मंडलों में बैठक करेंगे। पंचायत सदस्य के उम्मीदवारों का पैनल तैयार किया जाएगा और इसके आधार पर समर्थित उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाएगा। बसपा सुप्रीमों ने इसके साथ ही विधानसभा चुनाव की तैयारियों में अभी से जुट जाने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत किया जाएगा। जिससे चुनाव के समय हर बूथ तक बसपा की पहुंच बन सके। मायावती ने 15 मार्च को कांशीराम की जयंती मंडलीय स्तर पर मनाने का निर्देश दिया है। लखनऊ और कानपुर मंडल लखनऊ मंडल मुख्यालय पर जयंती संबंधी कार्यक्रम आयोजित करेंगे। मायावती के लखनऊ रहने के दौरान वह इसमें शामिल हो सकती हैं। बसपा कांशीराम जयंती हर साल धूमधाम से मनाती रहती है, लेकिन कोविड-19 को देखते हुए प्रोटोकाल का पूरा पालन करने को कहा गया है।

यूपी मेट्रो में 1 दिन के लिए करें मुफ्त में यात्रा

हरिओम उपाध्याय  

लखनऊ। मेट्रो में आज सोमवार को सभी यात्री मुफ्त यात्रा कर सकेंगे। लेकिन इसके लिए यात्रियों के पास यूपी मेट्रो का गो स्मार्ट कार्ड होना चाहिए। पूरे कॉरिडोर पर मेट्रो परिचालन के 2 वर्ष पूरे होने पर यूपी मेट्रो ने सोमवार को स्टेशनों पर कई कार्यक्रम आयोजित किए हैं। सचिवालय के नए गेट नंबर- 5 का उद्घाटन भी होगा। लखनऊ मेट्रो यात्रियों की सेहत की जांच के लिए हजरतगंज, आलमबाग़, इंदिरा नगर एवं मुंशी पुलिया मेट्रो स्टेशन पर कैम्प लगाएगा। 10 रुपए में शुगर, बीपी की जांच होगी। हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर शाम 5 बजे से शाम 6 बजे फॉर्चून व्हील घुमाकर यात्री इनाम भी जीत सकेंगे। इनाम में मेट्रो ट्रॉय ट्रेन, गोस्मार्ट कार्ड, पेन, फ़्रिज मैग्नेट आदि चीजें मिलेंगी। हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर शाम 5 बजे 3 करोड़वें मेट्रो यात्री के साथ, सबसे अधिक रीचार्ज करवाने वाले तीन यात्रियों को भी सम्मनित किया जाएगा। बच्चों के लिए पेंटिंग प्रतियोगिता भी होगी। विश्व महिला दिवस पर हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर महिला पुलिस कर्मियों के साथ संवाद होगा। शाम 6 बजे हजरतगंज मेट्रो स्टेशन पर म्यूज़िक बैंड का भी आयोजन किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च 2019 को संपूर्ण उत्तर-दक्षिणी कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। 

दिल्ली में बनेंगे 100 नए चार्जिंग स्टेशन, तैयारी शुरू

अकांशु उपाध्याय   
नई दिल्ली। दिल्ली में अगले छह महीनों में बिजली वाहनों के लिए 100 चार्जिग पॉइंट्स के साथ 100 नए चार्जिग स्टेशन बनाने की तैयारी है। बिजली से चलने वाले वाहनों के बारे में जागरूकता पैदा करने ईवी नीति के लाभों के बारे में बताने के लिए चलाया गया स्विच दिल्ली अभियान पांचवे सप्ताह में प्रवेश कर गया है।परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा कि दिल्ली सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय राजधानी में एक प्रभावी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) चार्जिग बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए व्यापक योजना तैयार की है। सरकार ने ईवी के आसान बदलाव का रास्ता तैयार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हमारे पास पहले से ही शहर में 72 से अधिक चार्जिग स्टेशन हैं। अगले छह महीनों में 100 चार्जिग पॉइंट्स के साथ 100 नए चार्जिग स्टेशन आ रहे हैं।

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें  सुनील श्रीवास्तव  मॉस्को। यूक्रेन द्वारा अमेरिका के 9 /11 जैसा अटैक करते हुए कजान पर ड्रोन ...