समुदाय को रोजगार के लिए अब तक गठित नहीं हो पाई समिति
दुर्गेश मिश्रा
ऋषिकेष। गुजर समुदाय को पुनर्वासित करने की योजना फाइलों में ग़ज़ल की पंक्तियां बनकर रह गई हैं। सरकारी अफसरों और लाभार्थियों की दशा ऐसी है मानो एक दूसरे से कह रहे हों कि ‘अपनी धुन में रहता हूँ, मैं भी तेरे जैसा हूं। ऐसा इसलिए भी है कि एक ओर तो सूचीबद्ध हुए लाभार्थी योजना का लाभ लेने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं दूसरी ओर समीक्षा बैठक में तय हुई रूपरेखा पर वन विभाग के अफसर कुंडली मारकर बैठ गए हैं।
गुजर पुनर्वास योजना की हालत बिल्कुल कॉमेडी सर्कस जैसी हो गई है। यानी समीक्षा बैठक के नाम पर बड़े बड़े अफसर गंभीर मुखमुद्रा में रणनीति बनाते हैं। उसके बाद वर्षों तक सरकारी स्याही फाइलों में मटमैली होती रहती है। ऐसी ही एक बैठक बीते 20 जुलाई को बड़े भारी मंसूबे के साथ वन विभाग के दिग्गज अफसरों ने की थी। सरकारी भाषा मे इसे समीक्षा बैठक कहा गया। जाहिर है इस दौरान चाय की चुस्कियों के साथ गुजर समाज के विकास की रूपरेखा भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज की गई। फिलहाल जो मौजूद नतीजा है वो ये साबित करने के लिए काफी है कि गुजर समुदाय के जो लोग पुनर्वास का लाभ पाने के लिए सूचीबद्ध किए गए थे दरअसल उन्हें सरकारी योजना की मलाई खाने का शौक ही नहीं है। खामख्वाह सरकारी अमला उन्हें जमीन आवंटित करने पर तुला हुआ है। वजह ये है कि सरकारी दस्तावेज भी कह रहे हैं कि 104 परिवारों में से सिर्फ 28 ने लाभ उठाने में रुचि दिखाई। हालांकि इसमें वन विभाग के अफसरों ने भी कम लापरवाही नहीं बरती है। काफी दिनों तक तो राजाजी रिजर्व प्रशासन को 28 की सूची भी नहीं सौपी गई।
दूसरी ओर सरकारी मुलाजिमों की दलील है कि कई बार गेड़ी खत्ता/पथरी के लाभान्वितों को भूमि आवंटित करने के बाद नोटिस जारी किया गया फिर भी कब्जा करने नहीं पहुंचे।
अधिकारियों की उम्मीद अब भी बरकरार
ऋषिकेश। समीक्षा बैठक में मौजूद अफसरों को अब भी उम्मीद है कि अंतिम सूची के शेष रह गए 76 आवंटी कभी भी भूखंड पर कब्जा लेने आ सकते हैं। लिहाज भूखंड अब भी सुरक्षित रखे गए हैं।
कागजों में दौड़ रहीं सुनहरी योजनाएं
ऋषिकेश। प्रमुख वन संरक्षक की ओर से निर्देश जारी किया गया था कि गूजरों के मवेशियों की रक्षा के लिए पशुचिकित्सक उपलब्ध कराए जाएं। साथ ही युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए एक सोसाइटी का गठन हो। जमीनी हकीकत ये है कि गुर्जर परिवार के युवा सोसायटी बनने का इंतजार कर रहे हैं। शासन का सपना था कि बेरोजगार युवक युवतियों को नेचर गाइड आदि का प्रशिक्षण देकर उन्हें उद्यमी बनाया जाय। इसके साथ ही आवंटित प्लाटों को दलदल की समस्या से मुक्त करने के लिए स्थलीय परीक्षण कर समाधान के निर्देश थे। फिलहाल गुजर परिवार अपनी धुन में हैं और वन विभाग के अफसर फाइलों में अलग ही इतिहास रच रहे हैं।