'सनातन धर्म और जाति व्यवस्था' पर हमला बोला
इकबाल अंसारी
तिरुवनंतपुरम। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने सिवागिरि तीर्थयात्रा में अपने संबोधन के दौरान सनातन धर्म और जाति व्यवस्था पर तीखा हमला बोला। उन्होंने सनातन धर्म को वर्णाश्रम धर्म से अभिन्न बताया और कहा कि यह चतुर्वर्ण व्यवस्था पर आधारित है। मुख्यमंत्री ने कहा, “वर्णाश्रम धर्म वंशानुगत व्यवसायों को महिमामंडित करता है। लेकिन, श्री नारायण गुरु ने इन वंशानुगत व्यवसायों को चुनौती दी। ऐसे में, गुरु को सनातन धर्म का समर्थक कैसे कहा जा सकता है ?” विजयन ने मंगलवार को सिवगिरी माधोम में 92वें सिवागिरी तीर्थयात्रा के उद्घाटन के दौरान सामाजिक सुधार का संदेश दिया।
उन्होंने सिवगिरी माधोम द्वारा भक्तों से मंदिरों में प्रवेश करते समय शर्ट उतारने की प्रथा को खत्म करने की अपील को आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के अनुरूप बताया। मुख्यमंत्री ने कहा कि सिवगिरी माधोम के अध्यक्ष स्वामी सच्चितानंद ने इस प्रथा को पुराने समय का अवशेष करार दिया, जो आज के प्रगतिशील समाज में अप्रासंगिक है। उन्होंने कहा, “उनकी बातों ने श्री नारायण गुरु के सुधारवादी विचारों और उनके संदेश को प्रतिबिंबित किया।”
श्री नारायण गुरु और सुधारवादी आंदोलन
विजयन ने बताया कि श्री नारायण गुरु से जुड़े मंदिरों ने इस प्रथा को पहले ही छोड़ दिया है और उन्होंने उम्मीद जताई कि अन्य मंदिर भी इस दिशा में कदम उठाएंगे। मुख्यमंत्री ने श्री नारायण गुरु को सनातन धर्म के समर्थक के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिशों की निंदा की।
उन्होंने कहा कि सनातन धर्म और वर्णाश्रम धर्म में कोई विशेष अंतर नहीं है। दोनों ही सामाजिक व्यवस्था को जाति आधारित रूप से बांधते हैं और निम्न वर्गों के लिए सामाजिक उन्नति के रास्ते बंद करते हैं।
सनातन धर्म पर तीखा हमला
विजयन ने कहा, “सनातन धर्म सार्वभौमिक कल्याण की बात करता है, लेकिन इसके पीछे ‘गायों और ब्राह्मणों की भलाई’ की शर्त जोड़ दी जाती है। यह धर्म जातिगत सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ब्राह्मणवादी वर्चस्व को बढ़ावा देता है।” उन्होंने इसे ‘एकल सत्ता’ का महिमामंडन और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बनाए रखने वाला बताया।
मुख्यमंत्री ने महाभारत में न्याय की अस्पष्टता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि महाभारत उस युग की रचना है, जब समाज आदिवासी व्यवस्था से जातिगत राजनीति में बदल रहा था। श्री नारायण गुरु ने इस ग्रंथ की न्याय के प्रति अस्पष्टता पर कठोर सवाल उठाएं। उन्होंने कहा, “महाभारत स्वयं यह तय नहीं करता कि धर्म क्या है, बल्कि धर्म को लेकर संदेह और प्रश्न खड़े करता है।” मुख्यमंत्री ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में “सनातन हिंदुत्व” की आलोचना की।
उन्होंने कहा, “हम ऐसे समय में जी रहे हैं, जब सनातन हिंदुत्व को अत्यंत श्रेष्ठ और गौरवशाली बताने की कोशिश की जा रही है। इसे सभी सामाजिक समस्याओं का समाधान बताया जा रहा है।” उन्होंने “लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु” जैसे नारों पर चर्चा करते हुए कहा कि इस नारे का अर्थ निश्चित रूप से सकारात्मक है और यह सार्वभौमिक खुशी की कामना करता है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इसे केवल हिंदुत्व की विशेषता के रूप में प्रस्तुत करना एक सुनियोजित नैरेटिव का हिस्सा है।
दलितों और पिछड़ों के लिए न्याय की मांग
विजयन ने कहा कि आज भी ग्रामीण उत्तर भारत में दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे हैं। सीएम ने कहा, “इन अत्याचारों को राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण मिलता है, जिससे अपराधी कानून की गिरफ्त से बच जाते हैं।”