विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बनेगा 'भारत'
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भारत को लेकर बड़ा दावा किया गया है। दावा यह है कि भारत जल्दी ही पूरी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बन जाएगा। यह दावा भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर किया गया है। दावा है कि अर्थव्यवस्था के मामले में भारत वर्ष-2027 तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति बनने वाला है। दुनिया भर के अर्थशास्त्री बता रहे हैं कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने से पहले भारत को देश में बेरोजगारी की समस्या से जूझना होगा।
भारत बनेगा दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
आपको बता दें कि इन दिनों हर जगह तकरीबन इस बात की ही चर्चा रहती है कि भारत बड़ी तेजी से विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है। पर इस बात के पीछे क्या आर्थिक तथ्य और साक्ष्य हैं? पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का तमगा भारत को 2022 में मिला, जब उसने अर्थव्यवस्था के जीडीपी के आकार में इंग्लैंड को पीछे छोड़ा। 2014 में भारत दसवें पायदान पर हुआ करता था। उस समय भारत का जीडीपी 18.6 खरब अमेरिकी डॉलर के बराबर था और भारत से आगे तब क्रमश: इटली (21.4 खरब डॉलर), ब्राजील (22.1 खरब डॉलर), इंग्लैंड (27.9 खरब डॉलर), फ्रांस (28.1 खरब डॉलर), जर्मनी (37 खरब डॉलर), जापान (52.1 खरब डॉलर), चीन (95.7 खरब डॉलर) तथा सबसे आगे अमेरिका (175.5 खरब डॉलर) थे।
इससे साबित होता है कि पिछले एक दशक में भारत के जीडीपी में तकरीबन दो गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। यह अपने आप में आश्चर्यजनक है, क्योंकि इस दौरान पूरे विश्व ने कोरोना महामारी के चलते लगभग दो वर्षों तक आर्थिक मंदी के दौर को देखा है और भारतीय अर्थव्यवस्था ने तो उस दौरान आजादी के बाद पहली दफा लगभग 25 फीसदी की नकारात्मक विकास दर को भी सहन किया था।
भारत के तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का पहली दफा उल्लेख अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने किया था। उसने भारत की लगातार चल रही छह और सात फीसदी की वार्षिक आर्थिक प्रगति दर को देखते हुए अनुमान लगाया कि वर्ष 2027 तक भारत का जीडीपी 50 खरब अमेरिकी डॉलर के स्तर से ऊपर निकल जाएगा। अभी भारत से आगे चल रहे जर्मनी और जापान तब क्रमश 49.5 खरब डॉलर और 50.8 खरब डॉलर के स्तर पर रहते हुए भारत से पीछे होंगे और तब भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा। लेकिन इस हकीकत को भी समझना अत्यंत आवश्यक है कि भारत आज भी प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से बहुत पीछे है। अगर इंग्लैंड से ही तुलना की जाए, जिसे पीछे छोडक़र भारत पांचवीं अर्थव्यवस्था बना है, तो प्रति व्यक्ति आय में आज भी दोनों देशों में 20 गुना का अंतर है।
प्रति व्यक्ति आमदनी चिंता का विषय
यहां यह समझना भी जरूरी है कि पिछले एक दशक में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से वैश्विक रैंकिंग में भारत मात्र छह पायदान ही ऊपर आया है। वर्तमान समय में 189 देशों में से भारत प्रति व्यक्ति आय में 141वें स्थान पर है, जबकि 2013-14 में भारत 147वें स्थान पर था। इससे स्पष्ट है कि पिछले एक दशक में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी लगभग आधी से ही अधिक हुई है, जबकि जीडीपी दोगुना से अधिक बढ़ा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012 में भारत में तकरीबन एक करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार थे, जबकि 2022 में इनकी संख्या 2.29 करोड़ तक जा पहुंची थी, जिसके चलते बेरोजगारी की दर पिछले 10 वर्षों में 2.18 फीसदी से बढक़र चार फीसदी पर पहुंच गई।
इसके अलावा, भारत का कृषि क्षेत्र बहुत पीछे हो चुका है। जीडीपी में उसके अंशदान को बढ़ाना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है, अन्यथा प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी बहुत आसानी से नहीं की जा सकती। 50 फीसदी जनसंख्या का रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर रहना ही इसका प्रमुख कारण है। इसके अलावा, विनिर्माण क्षेत्र, जो रोजगार सृजन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र है, को बड़ी तेजी से मुख्यधारा में लाना होगा।
गौरतलब है कि पिछले तीन दशकों से भारत की अर्थव्यवस्था के विकास की बागडोर सेवा क्षेत्र के कंधों पर है। उसने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया भी है, आय में लेकिन आज भारत में तेजी से बढ़ती आर्थिक विषमता, जो गरीबी और अमीरी के बीच खाई का प्रतीक है, उसके पीछे भी बहुत हद तक सेवा क्षेत्र है, क्योंकि जीडीपी में सेवा क्षेत्र का अंशदान 50 फीसदी से अधिक है, परंतु रोजगार में इसका अंशदान 30 से 35 फीसदी के बीच में ही है। इसलिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के कद को बढ़ाने के साथ-साथ रोजगार के अवसरों में तेजी से बढ़ोतरी अगर एक मकसद के रूप में नहीं रहा, तो दौरान तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भी भारत एक गरीब मुल्क के तौर पर ही अपनी पहचान रख पाएगा, जो एक कड़वा सच होगा।