बसपा की सेंधमारी गठबंधन को नुकसान करेगी
अकांशु उपाध्याय
लखनऊ। यूपी के लोकसभा के चुनावी रण में सपा-कांग्रेस का एक साथ रहना तय हो चुका है। सीटों के बंटवारे में कांग्रेस के खाते में वही सीटें गई हैं जिन पर उसका अपना प्रभाव कभी रहा करता था। यूपी की 80 लोकसभा सीटों के इतिहास पर नजर डाला जाए तो सपा-कांग्रेस गठबंधन का सीधा असर 25 सीटों पर सीधा दिखाई दे रहा है। इसमें सबसे अधिक 13 सीटें मुस्लिम बाहुल्य वाली हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात तो यह है कि वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा इनमें से पांच सीटें जीतने में कामयाब रही थी। इन सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 35 से लेकर 45 प्रतिशत तक बताई जा रही है।
एक समय था कि यूपी में कांग्रेस, सपा व बसपा का दबदबा हुआ करता था, लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनावों में भाजपा ने इन सभी को पीछे छोड़ दिया। बात सिर्फ तीन लोकसभा चुनावों की करें तो भाजपा ने सभी पार्टियों को पीछे धकेला है। वर्ष 2009 के चुनाव में सपा ने 23 तो कांग्रेस ने 21 सीटें यूपी में जीती थीं। इन दोनों पार्टियों का वोट प्रतिशत भी भाजपा से कहीं अधिक था, लेकिन वर्ष 2014 और 2019 के चुनावों में इनका वोटिंग प्रतिशत काफी नीचे चला गया।
यह माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्र्रेस के एक साथ आने से मुस्लिम वोटों का बंटवारा काफी हद तक रुकेगा। अब देखने वाला यह होगा कि बसपा कितने सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारती है, क्योंकि वह इनके साथ नहीं है और अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है। बसपा के मुस्लिम दांव पर वोटों का बंटवारा रोकने के लिए सपा और कांग्रेस की रणनीति कितनी कारगर होती है यह तो समय बताएगा। बसपा मुस्लिम वोट बंटवारा कराने में सफल रही तो इसका सीधा नुकसान सपा-कांग्रेस गठबंधन पर पड़ेगा। जिसकी संभावना बहुत कम प्रतीत होती है।
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के साथ गठब्ंधन पर चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य 13 सीटों पर मुस्लिमों का वोट एकतरफा गठबंधन को गया था। इसका सीधा फायदा यह हुआ की मुस्लिम प्रभाव वाली 13 सीटों में आठ इस गठबंधन के पास गई। इसमें से पांच बसपा तो तीन सपा जीती थी।