बुधवार, 23 अगस्त 2023

लापरवाही: प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा की मौत


बृजेश केसरवानी 
प्रयागराज। प्रयागराज के हंडिया कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले टेला गांव में प्रसव पीड़ा होने पर मह‍िला को निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो गई। घटना के बाद पर‍िजनों ने हंगामा कर द‍िया।
कोतवाली क्षेत्र के टेला भीतिहा का पूरा गांव निवासी सुनीता देवी उर्फ आरती उम्र 22 वर्ष पत्नी सुरेंद्र कुमार को प्रसव पीड़ा होने पर सूचना पर पहुंची आशा फूल पत्ती के द्वारा प्रसव पीड़िता को टेल स्थित दिव्या मेडिकल एंड फार्मा क्लीनिक में प्रसव के लिए भर्ती कर दिया गया। जहां पर डॉक्टर राजेश यादव व आशा की लापरवाही से प्रसव के दौरान बच्चे की मौत हो गई और कुछ देर बाद रक्त स्राव अधिक होने के कारण प्रसूता की भी मौत हो गई। परिजनों के द्वारा घटना की जानकारी डायल 112 पुलिस और कोतवाली पर दी गई। घटना की जानकारी मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने जच्चा और बच्चा दोनों के शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
बता दें कि मृतका की शादी 14 जून 2020 को हुई थी। उसका मायका जगतपुर थाना सुरियावां जनपद भदोही में है। मामले को लेकर जब सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अधीक्षक हंडिया डॉक्‍टर सुरेश यादव से बात की गई तो उन्होंने बताया कि घटना की जानकारी मिलने पर आशा फूलपत्ती देवी को तत्काल प्रभाव से कार्य मुक्त कर दिया गया है। जबकि, आरोपी डॉक्टर के खिलाफ जांच के दौरान दोषी पाए जाने पर उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। अस्पताल को सीज करने का आदेश दे दिया गया है।

विद्युत कटौती को लेकर ज्ञापन सोपा, विभाग में रोष

विद्युत कटौती को लेकर ज्ञापन सोपा, विभाग में रोष 

क्षेत्र में बढ़ रही बिजली कटौती को लेकर प्रवासी विकास मंच के प्रदेश अध्यक्ष सुशील श्रीवास्तव ने ज्ञापन के माध्यम से मुख्य अभियंता वितरण-चीफ दी बड़े जनआंदोलन की चेतावनी।
अश्वनी उपाध्याय 
गाजियाबाद/लोनी। बुधवार को गाजियाबाद के लोनी में दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रहीं विद्युत कटौती को लेकर क्षेत्र की जनता में विद्युत विभाग के प्रति काफी रोष नजर आ रहा हैं। जिसे देखते हुए आज सामाजिक संगठन प्रवासी विकास मंच के प्रदेश अध्यक्ष सुशील श्रीवास्तव ने ज्ञापन के माध्यम से विद्युत विभाग वरिष्ठ अधिकारी मुख्य अभियंता वितरण-चीफ के गाजियाबाद स्थित कार्यालय पर ज्ञापन सौपा।
सामाजिक संगठन प्रवासी विकास मंच के प्रदेश अध्यक्ष सुशील श्रीवास्तव ने ज्ञापन के माध्यम से विद्युत विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को अवगत कराते हुए कहा,
महोदय आपको इस ज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया जा रहा हैं कि जनपद गाजियाबाद के लोनी विधानसभा के अंतर्गत आने वाले विद्युत उपकेंद्र- नाईपुरा, रामपार्क, चमन विहार, बहेटा हाजीपुर, टीला सहबाजपुर आदि से क्षेत्र की दर्जनों कालोनियों में विधुत सप्लाई होती है। परंतु पिछले कई दिनों से सुचारू रूप से विद्युत सप्लाई ना होने के कारण कालोनीवासियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, क्षेत्र की जनता प्रतिदिन बढ़ती जा रही विद्युत कटौती के चलते हो चुकी हैं त्रस्त, जिसके कारण जनता में काफी रोष देखने को मिल रहा है।
क्षेत्र की कुछ कॉलोनिया तो ऐसी भी है, जहाँ 24 घंटे में मात्र 5-6 घंटे ही लाइट आती हैं। बिजली घरों में फोन करो तो अवर अभियनता-जेई, एसडीओ आदि अधिकारियों के जवाब संतोष जनक ना होना यह दर्शाता है कि भाजपा सरकार में पूर्व की भ्रष्ट सरकारों के अधिकारी विद्युत विभाग एवं माननीय योगी आदित्यनाथ जी की छवि धूमिल करने का मानो जैसे कार्य कर रहे हो। अधिकारी महोदय आज विद्युत आपूर्ति के बिना जीवन व्यतीत करना कितना कठिन है यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

विद्युत विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को संगठन के प्रदेश अध्यक्ष ने ज्ञापन देते हुए सख्त शब्दों में दी क्षेत्र की जनता के साथ मिलकर बड़े जनआंदोलन की चेतावनी।

महोदय जल्द से जल्द लोनी क्षेत्र की विद्युत कटौती एवं अन्य समस्याओं को दुरुस्त करवाया जाए, जिससे कि क्षेत्र की जनता को होने वाली बिजली की समस्या से निजात मिल सके। अगर जल्द क्षेत्र की विद्युत व्यवस्था दुरुस्त नही हुई तो, मजबूरन लोनी की जनता सड़कों पर उतर कर विधुत विभाग के खिलाफ एक बड़ा जनआंदोलन करने पर मजबूर होंगी।

27 अगस्त को मनाई जाएगी 'पुत्रदा एकादशी'

27 अगस्त को मनाई जाएगी 'पुत्रदा एकादशी' 

सरस्वती उपाध्याय    

सनातन धर्म में एकादशी का बड़ा महत्व है। पुत्रदा एकादशी व्रत सावन महीने की शुक्ल-पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। शास्त्रों में इस एकादशी का बड़ा ही महत्व बताया गया है। इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है। एक सावन महीने के शुक्ल पक्ष में और दूसरा पौष मास के शुक्ल पक्ष में। इस बार सावन की पुत्रदा एकादशी 27 अगस्त यानि रविवार के दिन मनाई जाएगी।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से निसंतान दंपतियों को सुख मिलता है। इस व्रत को भी संतान की लंबी आयु और सुखद जीवन के लिए किया जाता है। बता दें कि सालभर में कुल 24 एकादशियां होती है, लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है, तो इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। 

शुभ मुहूर्त और पारण का समय

  • शुक्ल एकादशी तिथि आरंभ- 27 अगस्त 2023 को प्रात 12 बजकर 08 मिनट पर
  • शुक्ल एकादशी तिथि समापन - 27 अगस्त 2023 को रात 9 बजकर 32 मिनट पर
  • पुत्रदा एकादशी व्रत तिथि- 27 अगस्त 2023
  • एकादशी व्रत पारण समय - 28 अगस्त 2023 को सुबह 5 बजकर 57 मिनट से सुबह 8 बजकर 31तक

महत्व
पुत्रदा एकादशी का व्रत केवल पुत्र से नहीं है, बल्कि संतान से है। संतान पुत्र भी हो सकता है और पुत्री भी। मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इसके आलावा जो व्यक्ति ऐश्वर्य, संतति, स्वर्ग, मोक्ष, सब कुछ पाना चाहता है, उसे यह व्रत करना चाहिए। वहीं जो लोग संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं या जिनकी पहले से संतान है और वे अपने बच्चे का सुनहरा भविष्य चाहते हैं, जीवन में उनकी खूब तरक्की चाहते हैं, उन लोगों के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत किसी वरदान से कम नहीं है। पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान सुख बढ़ता है।

इसरो ने 15 साल में तीन चंद्र अभियान भेजें

इसरो ने 15 साल में तीन चंद्र अभियान भेजें

इकबाल अंसारी 
बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 15 साल में तीन चंद्र अभियान भेजें हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो चंद्रमा इसरो को अपने यहां बार-बार आमंत्रित करता है, और ऐसा क्यों न हो ? वैज्ञानिकों को 2009 में चंद्रयान-1 से मिले डेटा का पहली बार इस्तेमाल कर चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में अंधकार वाले और सबसे अधिक ठंडे हिस्सों में बर्फ के अंश का पता चला था।
चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र अभियान था। इसका प्रक्षेपण 22 अक्टूबर, 2008 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से हुआ था। यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे जिसने चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो-भूगर्भीय मानचित्रण के लिए उसकी सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चारों ओर परिक्रमा की थी।
अभियान के सभी अहम पहलुओं के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद मई 2009 में कक्षा का दायरा बढ़ाकर 200 किलोमीटर कर दिया गया। उपग्रह ने चंद्रमा के आस पास 3,400 से अधिक कक्षाएं बनाईं। कक्षीय अभियान की अवधि दो साल थी और 29 अगस्त 2009 को यान के साथ संचार संपर्क टूट जाने के बाद समय से पहले ही इसे रद्द कर दिया गया था।
इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने कहा, ‘‘चंद्रयान-1 ने अपने 95 प्रतिशत उद्देश्य हासिल किए।’’ एक दशक बाद चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया, जिसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल था। देश के दूसरे चंद्र अभियान का उद्देश्य ऑर्बिटर पर पेलोड द्वारा वैज्ञानिक अध्ययन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तथा घूर्णन की प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करना था।

प्रक्षेपण, महत्वपूर्ण कक्षीय अभ्यास, लैंडर को अलग करना, ‘डी-बूस्ट’ और ‘रफ ब्रेकिंग’ चरण सहित प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के अधिकांश घटकों को सफलतापूर्वक पूरा किया गया। चांद पर पहुंचने के अंतिम चरण में रोवर के साथ लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिससे चांद की सतह पर उतरने का उसका मकसद सफल नहीं हो पाया।
नायर ने सोमवार को एक न्यूज एजेंसी से कहा, ‘‘हम बेहद करीब थे लेकिन आखिरी दो किलोमीटर में (चंद्रमा की सतह के ऊपर) इसमें (चंद्रयान-2 अभियान के दौरान चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग में) सफल नहीं हो पाए।’’ हालांकि लैंडर और रोवर से अलग हो चुके ऑर्बिटर के सभी आठ वैज्ञानिक उपकरण डिजाइन के मुताबिक कार्य कर रहे हैं और बहुमूल्य वैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध करा रहे हैं।

इसरो के अनुसार, सटीक प्रक्षेपण और कक्षीय अभ्यास के कारण ऑर्बिटर का अभियान जीवन सात वर्ष तक बढ़ गया। इसरो ने सोमवार को कहा कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लूनर मॉड्यूल के बीच दो तरफा सफल संचार कायम हुआ है।
वर्ष 2009 में चंद्रमा पर पानी की खोज एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसके बाद वैज्ञानिकों ने भारत के चंद्रयान-1 के साथ गए एक उपकरण के डाटा का उपयोग करके चंद्रमा की मिट्टी की सबसे ऊपरी परत में पानी का मौजूदगी का पहला नक्शा बनाया।
इसरो के वैज्ञानिकों ने कहा कि यह भविष्य में चंद्रमा की खोज के लिए काफी उपयोगी साबित होगा। ‘साइंस एडवांसेज’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन 2009 में चंद्रमा की मिट्टी में पानी और एक संबंधित आयन - हाइड्रॉक्सिल की प्रारंभिक खोज पर आधारित है।

हाइड्रॉक्सिल में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एक-एक परमाणु होते हैं। अमेरिका में ब्राउन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने वैश्विक स्तर पर कितना पानी मौजूद है, इसकी मात्रा निर्धारित करने के लिए नासा के मून मिनरलॉजी मैपर से लिए गए डाटा के एक नए कैलिब्रेशन (किसी उपकरण पर मापन-इकाइयों के निर्धारण की क्रिया) का उपयोग किया।
नासा का मून मिनरलॉजी मैपर 2008 में चंद्रयान-1 के साथ भेजा गया था। भारत के चंद्रयान-1 मिशन द्वारा एकत्र किए गए डाटा का उपयोग करते हुए नासा ने चंद्रमा की सतह के नीचे छिपे जादुई पानी के भंडार का पता लगाया है।

मुंबई: मजबूती के साथ खुले स्थानीय शेयर बाजार

मुंबई: मजबूती के साथ खुले स्थानीय शेयर बाजार

कविता गर्ग 
मुंबई। वैश्विक बाजारों के मिले-जुले रुख के बीच स्थानीय शेयर बाजार बुधवार को मजबूती के साथ खुले। हालांकि, विदेशी कोषों की सतत निकासी की वजह से शेयर बाजारों ने बाद में अपना शुरुआती लाभ गंवा दिया।
बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 216.07 अंक की बढ़त के साथ 65,436.10 पर पहुंच गया। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी शुरुआती कारोबार में 53.75 अंक की बढ़त के साथ 19,450.20 अंक पर रहा।
हालांकि, बाद में सेंसेक्स 76.55 अंक के नुकसान से 65,143.48 अंक पर आ गया। वहीं निफ्टी 20.10 अंक टूटकर 19,376.35 अंक पर कारोबार कर रहा था। सेंसेक्स के शेयरों में टाटा स्टील, एक्सिस बैंक, जेएसडब्ल्यू स्टील, इन्फोसिस, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, रिलायंस इंडस्ट्रीज, अल्ट्राटेक सीमेंट और एनटीपीसी लाभ में थे।
वहीं जियो फाइनेंशियल सर्विसेज, भारती एयरटेल, आईटीसी, कोटक महिंद्रा बैंक, इंडसइंड बैंक और महिंद्रा एंड महिंद्रा के शेयर नुकसान में थे। अन्य एशियाई बाजारों में जापान का निक्की और हांगकांग का हैंगसेंग लाभ में थे जबकि दक्षिण कोरिया का कॉस्पी और चीन का शंघाई कम्पोजिट नुकसान में थे।
अमेरिकी बाजार मंगलवार को मिले-जुले रुख के साथ बंद हुए थे। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड 0.15 प्रतिशत की बढ़त के साथ 84.16 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था। शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने मंगलवार को 495.17 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे।

जी-20 देशों ने 14 सौ अरब डॉलर आवंटित किए

जी-20 देशों ने 14 सौ अरब डॉलर आवंटित किए

इकबाल अंसारी/अखिलेश पांडेय 
नई दिल्ली/वाशिंगटन डीसी। जी20 देशों ने यूक्रेन युद्ध के कारण ईंधन की बढ़ती कीमतों के प्रभाव को कम करने और ऊर्जा भंडार को मजबूत करने के उद्देश्य से 2022 में जीवाश्म ईंधन के लिए अपने कोष से 14 सौ अरब अमेरिकी डॉलर आवंटित किए।
एक नए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई। विन्निपेग (कनाडा) के स्वतंत्र थिंक टैंक ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ (आईआईएसडी) और साझेदारों का यह अध्ययन ऐसे वक्त सामने आया है जब जी-20 नेता नयी दिल्ली में 9-10 सितंबर को होने वाले शिखर सम्मेलन की तैयारी में जुटे हैं।
वर्तमान में जी-20 अध्यक्ष भारत ने स्वच्छ ऊर्जा के लिए समर्थन बढ़ाते हुए 2014 से 2022 के बीच जीवाश्म ईंधन रियायत में 76 प्रतिशत की कटौती की। अध्ययन में कहा गया है कि यह भारत को इस मुद्दे पर नेतृत्व करने के लिए मजबूत स्थिति में रखता है।
अध्ययन के अनुसार,14 सौ अरब अमेरिकी डॉलर की अप्रत्याशित राशि में जीवाश्म ईंधन रियायत (एक हजार अरब अमेरिकी डॉलर), राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम निवेश (322 अरब अमेरिकी डॉलर) और सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों द्वारा उधार दिया गया धन (50 अरब अमेरिकी डॉलर) शामिल हैं। अध्ययन में कहा गया है कि यह कुल राशि 2019 में कोविड-19 महामारी और ऊर्जा संकट से पहले की स्थिति की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
आईआईएसडी के एक वरिष्ठ सहयोगी और अध्ययन के मुख्य लेखक तारा लान ने कहा, ये आंकड़े इस बात का स्मरण दिलाते हैं कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते विनाशकारी प्रभावों के बावजूद जी-20 सरकारें जीवाश्म ईंधन में भारी मात्रा में सार्वजनिक धन खर्च कर रही हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जी-20 शिखर सम्मेलन में जीवाश्म ईंधन रियायत के मुद्दे पर विचार विमर्श जरूरी है, खासकर जब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बदतर होते जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जी-20 के पास हमारी जीवाश्म-आधारित ऊर्जा प्रणालियों को बदलने की शक्ति और जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि जी-20 समूह के लिए ‘दिल्ली लीडर्स समिट’ के एजेंडे में जीवाश्म ईंधन रियायत को शामिल करना और कोयला, तेल और गैस के लिए सभी सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह को खत्म करने के लिए सार्थक कार्रवाई करना महत्वपूर्ण है।

जीवाश्म ईंधन के लिए वित्तीय सहायता अत्यधिक गर्मी की स्थिति, जंगल की आग और भारी बारिश जैसे मानव निर्मित जलवायु संकट और इसके कठोर प्रभावों को और बढ़ा सकते हैं। अध्ययन में इस बात को रेखांकित किया गया है कि जीवाश्म ईंधन की कीमतों को कम करने के लिए रियायत देना एक समस्या है क्योंकि यह इन हानिकारक ऊर्जा स्रोतों के अधिक उपयोग को प्रोत्साहित करती है।
अध्ययन में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से छुटकारा पाने के लिए एक बेहतर योजना का भी सुझाव दिया गया है। विकसित देशों को इसे 2025 तक बंद कर देना चाहिए और उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इसे 2030 तक समाप्त करना चाहिए।
रिपोर्ट से पता चलता है कि अगर जी-20 समूह जीवाश्म ईंधन रियायत पर खर्च किए गए खरबों डॉलर में से कुछ राशि को स्थानांतरित करता है, तो इससे बड़ा अंतर आ सकता है। इससे पवन और सौर ऊर्जा (प्रति वर्ष 450 अरब अमेरिकी डॉलर) के अंतर को पाटने, भूख से निपटने (33 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष), सभी को स्वच्छ बिजली और खाना पकाने के विकल्प देने (36 अरब अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष) आदि में विकासशील देशों को मदद मिल सकती है।

चंद्रमा पर 'चंद्रयान-3' की सॉफ्ट लैंडिंग, टिकी नजर

चंद्रमा पर 'चंद्रयान-3' की सॉफ्ट लैंडिंग, टिकी नजर

इकबाल अंसारी 
चेन्नई। दुनियाभर की निगाहें चंद्रमा पर भारत के चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग पर टिकी हुईं हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के इस अभियान को यहां तक पहुंचाने में तमिलनाडु के बेटों -पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, चंद्रयान-2 के मिशन निदेशक मायिलसामी अन्नादुरई, चंद्रयान-3 के परियोजना निदेशक वीरमुथेवल पी का ही योगदान नहीं है, बल्कि राज्य की माटी ने भी इसमें अहम योगदान दिया है। 

राज्य की राजधानी चेन्नई से करीब 400 किलोमीटर दूर स्थित नामक्कल 2012 से चंद्रयान मिशन की क्षमताओं को जांचने के लिए इसरो को माटी उपलब्ध करा रहा है, क्योंकि इस जिले की जमीन चंद्रमा की सतह से मिलती जुलती है। इस प्रकार से इसरो को अपने लैंडर मॉड्यूल की क्षमताओं की जांच करने और इसमें सुधार लाने में मदद मिली है। 

अगर चंद्रयान-3 का लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा में सॉफ्ट लैंडिंग के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो इससे तमिलनाडु के खाते में एक और उपलब्धि जुड़ जाएगी। तमिलनाडु ने इसरो के महत्वाकांक्षी चंद्रमा मिशन के परीक्षण के लिए तीसरी बार मिट्टी की आपूर्ति की है। पेरियार विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के निदेशक प्रोफेसर एस अनबझगन ने बताया कि नामक्कल में प्रचुर मात्रा में मिट्टी उपलब्ध थी, ऐसे में जरूरत पड़ने पर इसरो ने इसका इस्तेमाल किया। 

उन्होंने कहा, ‘‘ हम भूविज्ञान में शोध करते रहे हैं। तमिलनाडु में इस प्रकार की मिट्टी है जैसी चंद्रमा की सतह पर है। यह मिट्टी खासतौर पर दक्षिणी ध्रुव (चंद्रमा के) पर मौजूद मिट्टी से काफी मिजली-जुलती है। चंद्रमा की सतह पर मिट्टी ‘एनॉर्थोसाइट’ है जो मिट्टी का एक प्रकार है।’’ प्रोफेसर एस अनबझगन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ इसरो ने जब चंद्रमा अन्वेषण कार्यक्रम की घोषणा की, इसके बाद से हम लगातार मिट्टी भेज रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसरो को कम से कम 50 टन मिट्टी भेजी गई, जो चंद्रमा की सतह पर मौजूद मिट्टी से मिलती-जुलती है।’’ 

उन्होंने बताया कि विभिन्न परीक्षणों से इसरो के वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि नामक्कल में मौजूद मिट्टी चंद्रमा की सतह पर मौजूद मिट्टी की ही भांति है। एक प्रश्न के उत्तर में अनबझगन ने कहा कि नामक्कल के पास स्थित सीतमपुंडी और कुन्नामलाई गांव, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों और देश के उत्तरी क्षेत्रों में इस प्रकार की मिट्टी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। उन्होंने कहा, ‘‘ हम इसरो को उनकी जरूरत के हिसाब से मिट्टी भेज रहे हैं। वे हमारे द्वारा उपलब्ध कराई गई मिट्टी पर परीक्षण कर रहे हैं। अगर चंद्रयान-4 मिशन भी शुरू होता है तो हम उसके लिए भी मिट्टी उपलब्ध कराने के लिए तैयार हैं।’’ 

'सैनिक बंधू' की बैठक आयोजित की: सीडीओ

'सैनिक बंधू' की बैठक आयोजित की: सीडीओ  गणेश साहू  कौशाम्बी। मुख्य विकास अधिकारी अजीत कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में बुधवार को जिल...