गुरुवार, 4 मई 2023

40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया: कंपनियां 

40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया: कंपनियां 

अकांशु उपाध्याय/अखिलेश पांडेय 

नई दिल्ली/वाशिंगटन डीसी। अमेरिका में भारत की 163 भारतीय कंपनियों ने अबतक 40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। जिससे देश में करीब 4,25,000 नौकरियां पैदा हुई हैं। एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के ‘इंडियन रूट्स, अमेरिकन सॉयल’ शीर्षक वाले सर्वे को बुधवार को अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने जारी किया। इस अवसर पर भारत में अमेरिका के नामित राजदूत एरिक गार्सेटी भी मौजूद थे। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व पर लगभग 18.5 करोड़ डॉलर खर्च किए हैं। अमेरिका आधारित शोध एवं विकास परियोजनाओं में उनका वित्तपोषण करीब एक अरब डॉलर है। संधू ने इस मौके पर बड़ी संख्या में उपस्थित भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘अमेरिका में भारतीय कंपनियां मजबूती, जुझारूपन और प्रतिस्पर्धा ला रही हैं। ये रोजगार पैदा कर रही हैं और स्थानीय समुदायों को समर्थन दे रही हैं।’’ 

भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधि यहां एक सम्मेलन में भाग लेने आए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 163 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 40 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है। इससे देश में लगभग 4,25,000 नौकरियां पैदा हुई हैं। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, ‘‘भारतीय कंपनियों ने अमेरिकी बाजार में अपनी जुझारू क्षमता और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया है। उन्होंने यहां निवेश बढ़ाने के साथ रोजगार का भी सृजन किया है और विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण किया है।’’ 

भारतीय कंपनियों द्वारा सृजित नौकरियों से लाभान्वित होने वाले शीर्ष दस राज्यों में टेक्सास (20,906 नौकरियां), न्यूयॉर्क (19,162 नौकरियां), न्यू जर्सी (17,713 नौकरियां), वॉशिंगटन (14,525 नौकरियां), फ्लोरिडा (14,418 नौकरियां), कैलिफोर्निया (14,334 नौकरियां), जॉर्जिया (13,945 नौकरियां), ओहियो (12,188 नौकरियां), मोंटाना (9,603 नौकरियां), इलिनॉयस (8,454 नौकरियां) हैं। 

बिहार: जाति आधारित गणना पर 'एचसी' की रोक

बिहार: जाति आधारित गणना पर 'एचसी' की रोक

अविनाश श्रीवास्तव 

पटना। पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे जाति आधारित गणना पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी। अदालत मामलें की सुनवाई अब तीन जुलाई को करेगी। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सरकार को जाति आधारित सर्वेक्षण को तुरंत रोकने और इस सर्वेक्षण अभियान के तहत अबतक एकत्र किए गए आंकडों को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया।

पीठ ने सरकार को यह भी निर्देश दिया कि मामले में अंतिम आदेश पारित होने तक इन आंकड़ों को किसी के भी साथ साझा नहीं किये जाएं। अदालत मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख तीन जुलाई तय की है। अदालत ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि याचिकाकर्ताओं ने राज्य सरकार द्वारा जाति आधारित सर्वेक्षण की प्रक्रिया को जारी रखने के खिलाफ तथा आंकडे की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाया है, जिसका सरकार की ओर से विस्तृत समाधान किया जाना चाहिए।’’

बिहार के महाधिवक्ता प्रशांत कुमार शाही ने अपने अधिवक्ताओं की टीम के साथ सरकार की ओर से बहस की जबकि याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव, धनंजय कुमार तिवारी और अन्य ने किया। बहस के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के फैसले का हवाला देते हुए अदालत को बताया गया कि जाति आधारित गणना में ट्रांसजेंडरों को एक जाति के रूप में दर्शाया गया है, जबकि ऐसी कोई जाति श्रेणी वास्तव में मौजूद नहीं है। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि ट्रांसजेंडरों को जाति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा पर अधिसूचना में इसे जाति की सूची में रखा गया है। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है, जिस तरह से यह किया जा रहा है, जो एक जनगणना के समान है, इस प्रकार संघ की विधायी शक्ति पर अतिक्रमण होगा।

अदालत ने राज्य विधानसभा में विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सर्वेक्षण के आंकड़े साझा करने की सरकार की मंशा के बारे में कहा कि यह निश्चित रूप से निजता के अधिकार का सवाल है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने जीवन के अधिकार का एक पहलू माना है। पीठ ने यह स्पष्ट किया कि राज्य एक सर्वेक्षण की आड़ में एक जातिगत जनगणना करने का प्रयास नहीं कर सकता है, खासकर जब राज्य के पास बिल्कुल विधायी क्षमता नहीं है और उस स्थिति में न ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के तहत एक कार्यकारी आदेश को बनाए रखा जा सकता है।

अदालत ने कहा कि जनगणना और सर्वेक्षण के बीच आवश्यक अंतर यह है कि जनगणना सटीक तथ्यों और सत्यापन योग्य विवरणों के संग्रह पर विचार करता है। सर्वेक्षण का उद्देश्य आम जनता की राय और धारणाओं का संग्रह और उनका विश्लेषण करना है । इसने कहा कि एकत्र किए गए आंकडे के विश्लेषण में दोनों परिणाम जो जनगणना के मामले में अनुभवजन्य हैं, जबकि सर्वेक्षण में ज्यादातर तार्किक निष्कर्ष होते हैं। बिहार राज्य द्वारा वर्तमान कवायद को केवल सर्वेक्षण के नाम पर जनगणना करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। उच्च न्यायालय ने यह भी माना कि राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना इस तरह के सर्वेक्षण को करने के लिए किसी भी प्रत्यक्ष वस्तु का खुलासा नहीं करती है। यह भी तर्क दिया जा रहा है कि आंकडे़ सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य द्वारा लागू कोई उपाय भी नहीं है, भले ही आंकड़ों का संग्रह स्वैच्छिक आधार पर हो।

पीठ ने कहा कि ऐसे आंकड़ों का कोई सार्वजनिक उपयोग नहीं हो सकता है, जो फिर से किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा, भले ही ये स्वेच्छा से दिये गये हों। बिहार में जाति सर्वेक्षण का पहला दौर 7 से 21 जनवरी के बीच आयोजित किया गया था। दूसरा दौर 15 अप्रैल को शुरू हुआ था और 15 मई तक जारी रहने वाला था। उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाएं सामाजिक संगठन और कुछ व्यक्तियों द्वारा दायर की गई थी, जो पिछले महीने उच्चतम न्यायालय गये थे।

अदालत का निर्णय आने से पूर्व आज दिन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनकी सरकार द्वारा की जा रही जाति आधारित गणना को लेकर कुछ हलकों से विरोध पर नाराज़गी जताई थी। नीतीश ने पटना उच्च न्यायालय में जाति सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली एक याचिका पर पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ सरकार ने भी अपनी दलीलें रखी हैं। अब हम फैसले का इंतजार कर रहे हैं। पता नहीं क्यों इसका विरोध हो रहा है। इससे तो पता चलता है, कि लोगों को मौलिक चीज की समझ नहीं है।

लखनऊ बेंच ने पूर्व आईपीएस सेन को जमानत दी 

लखनऊ बेंच ने पूर्व आईपीएस सेन को जमानत दी 

संदीप मिश्र 

लखनऊ। पशुपालन घोटाले के मामलें में पिछले 2 साल से जेल में बंद पूर्व आईपीएस अफसर अरविंद सेन को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने जमानत दे दी है। अदालत ने जमानत के मामले पर सुनवाई करते हुए गबन के 20,00000 रुपए याचिकाकर्ता को देने का आदेश दिया है। बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पिछले 2 साल से जेल में बंद चल रहे पूर्व आईपीएस अफसर अरविंद सेन की पशुपालन घोटाले के मामलें में जमानत स्वीकार कर ली है। 

अदालत ने पूर्व आईपीएस की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को गबन के 20 लाख रुपए देने का आदेश दिया है। जमानत पाने वाले आईपीएस अफसर अरविंद सेन वर्ष 2021 की 27 जनवरी से राजधानी लखनऊ की जेल में बंद रहे हैं। पशुपालन घोटाले के इस मामले में आरोपी बनाए गए 17 लोगों में से अभी तक चार आरोपियों को अदालत द्वारा जमानत दी जा चुकी है। जमानत पाने वालों में शामिल सुनील गुर्जर की भूमिका नहीं होने पर हाईकोर्ट की बेंच ने उसे जमानत दे दी थी।

एससी ने इलाहाबाद एचसी के आदेश पर रोक लगाई 

एससी ने इलाहाबाद एचसी के आदेश पर रोक लगाई 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें उत्तर प्रदेश के स्कूलों को 2020-21 के शैक्षणिक सत्र के दौरान ली गई "अतिरिक्त" फीस का 15% वापस करने या समायोजित करने का निर्देश दिया गया था, जब कोविड-19 महामारी में उन्हें फीस के लिए बंद करने के लिए मजबूर किया था। 

भविष्य में भुगतान किया जाए, शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाकर्ता, एक निजी स्कूल ने उक्त निर्देश को चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि यह खुद को या किसी अन्य निजी स्कूल को अवसर प्रदान किए बिना पारित किया गया था।

मेरठ: एसटीएफ ने दुजाना को मुठभेड़ में ढेर किया 

मेरठ: एसटीएफ ने दुजाना को मुठभेड़ में ढेर किया 

सत्येंद्र पंवार 

मेरठ। मेरठ एसटीएफ के साथ जानी थाना क्षेत्र की भोला झाल पर मुठभेड़ के दौरान अनिल दुजाना मुठभेड़ में ढेर हो गया। हाल ही में जेल से छूटा था। गुरुवार को एसटीएफ के स्थापना दिवस पर एसटीएफ ने अनिल दुजाना को मुठभेड़ में ढेर कर दिया। अनिल पर यूपी समेत कई राज्यों में लगभग 50 हत्या, रंगदारी, फिरौती आदि के मुकदमे दर्ज हैं।

जिला गौतमबुद्ध नगर के ​​​​​​​बादलपुर का दुजाना गांव कभी कुख्यात सुंदर नागर उर्फ सुंदर डाकू के नाम से जाना जाता था। सत्तर और अस्सी के दशक में सुंदर का दिल्ली-एनसीआर में खौफ था। उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी जान से मारने की धमकी दी थी। इसी दुजाना गांव का अनिल नागर उर्फ अनिल दुजाना रहने वाला है। पुलिस रिकॉर्ड में 2002 में गाजियाबाद के कवि नगर थाने में इसके खिलाफ हरबीर पहलवान की हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ।

‘सत्ता के लोभ की राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराया 

‘सत्ता के लोभ की राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराया 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। कांग्रेस ने मणिपुर में हिंसा भड़कने के लिए भारतीय जनता पार्टी की ‘सत्ता के लोभ की राजनीति’ को जिम्मेदार ठहराते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूर्वोत्तर के इस प्रदेश में शांति एवं सामान्य स्थिति बहाल करने पर ध्यान देना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने मणिपुर के लोगों से शांति और संयम बरतने की अपील भी की। खरगे ने ट्वीट किया, "मणिपुर जल रहा है।

भाजपा ने समुदायों के बीच दरार पैदा की और इस खूबसूरत राज्य की शांति को भंग कर दिया है।'' उन्होंने आरोप लगाया, "भाजपा की नफरत और विभाजन की राजनीति तथा सत्ता का लोभ इस समस्या के लिए जिम्मेदार है।" कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, "हम सभी पक्षों के लोगों से संयम बरतने और शांति को एक मौका देने की अपील करते हैं।" राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘मणिपुर में तेजी से बिगड़ती कानून की व्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंतित हूं। प्रधानमंत्री को वहां शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मैं मणिपुर के लोगों से भी शांति का आग्रह करता हूं।’’

उल्लेखनीय है कि आदिवासी आंदोलन के दौरान हुई हिंसा को लेकर मणिपुर के आठ जिलों में बुधवार को कर्फ्यू लगा दिया गया और पूरे पूर्वोत्तर राज्य में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित कर दी गईं। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की श्रेणी में शामिल करने की मांग का विरोध करने के लिए छात्रों के एक संगठन द्वारा आहूत ‘आदिवासी एकता मार्च’ में हिंसा भड़क गई थी।

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