सार्स-सीओवी-2 वायरस जैसे 'कण' विकसित किए
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के शोधकर्ताओं ने सार्स-सीओवी-2 वायरस जैसे कण (वीएलपी) विकसित किए हैं, जो कोविड-19 के खिलाफ एक संभावित टीके के दावेदार हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वीएलपी ने चूहों में जवाबी प्रतिक्रिया शुरू करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा दिया, जैसा कि यह सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ करता है।
आईआईटी दिल्ली के कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज की मुख्य शोधकर्ता और प्रोफेसर मणिदीपा बनर्जी ने कहा,“दुनिया भर में विकसित अधिकांश वीएलपी ने प्राथमिक प्रतिजन के रूप में केवल सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन का उपयोग किया है। हालांकि, हमारे वीएलपी यथासंभव देशी वायरस की तरह हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें सार्स-सीओवी-2 (एस-स्पाइक, एन-न्यूक्लियोकैप्सिड, एम-मेम्ब्रेन, ई-एनवेलप) के सभी चार संरचनात्मक प्रोटीन होते हैं।”
उन्होंने कहा, “निष्क्रिय वायरस पर आधारित टीकों का स्वाभाविक रूप से यह लाभ होता है। हालांकि, वीएलपी सुरक्षित हैं क्योंकि वे जीनोम के अभाव के कारण गैर-संक्रामक हैं। टीएचएसटीआई में किए गए पशु प्रयोगों से संकेत मिलता है कि हमारे वीएलपी कई एंटीजन (प्रतिजन) के खिलाफ एक मजबूत अनुकूली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को शुरू करते हैं।”
हरियाणा के फरीदाबाद स्थित ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (टीएचएसटीआई) के एक दल के साथ मिलकर शोधकर्ताओं ने इस पर काम किया। “वायरस-लाइक पार्टिकल्स ऑफ सार्स-सीओवी-2 एज वायरस सरोगेट्स: मॉर्फोलॉजी, इम्यूनोजेनेसिटी एंड इंटर्नलाइजेशन इन न्यूरोनल सेल्स” शीर्षक वाला अध्ययन हाल ही में “एसीएस इंफेक्शस डिजीजेज” पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
अधिकारियों के अनुसार, कोविड महामारी फैलने के बाद से शोधकर्ता सार्स-सीओवी-2 वायरस की बेहतर समझ हासिल करने और इसके खिलाफ टीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। बनर्जी ने कहा, “टीके वायरस से काफी हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ लोग जिन्हें टीके लग चुके हैं, वे अब भी कोविड-19 की चपेट में आ जाते हैं।
ऐसे में और बेहतर टीके तथा उपचार विकसित करने के लिए, आदर्श रूप से असल वायरस के साथ प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है, जिसे केवल बहुत विशिष्ट प्रयोगशालाओं में ही नियंत्रित तरीके से किया जा सकता है।” उन्होंने कहा कि ऐसे में सुरक्षित और आसान रणनीति वीएलपी का उपयोग करना है जो आणविक नकल हैं जो संक्रामक न होने के साथ ही एक निश्चित वायरस की तरह दिखते और कार्य करते हैं।