मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

सीएनजी के साथ-साथ पीएनजी के दामों में बढ़ोतरी 

सीएनजी के साथ-साथ पीएनजी के दामों में बढ़ोतरी 

संदीप मिश्र 

लखनऊ। सीएनजी गैस की आपूर्ति करने वाली इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड ने वाहन चालको को दीपावली से पहले महंगाई का तोहफा दिया है। सीएनजी के साथ-साथ पीएनजी के दामों में भी बढ़ोतरी कर दी गई है। सीएनजी के दामों में की गई बढ़ोतरी के बाद अब पर्यावरण के अनुकूल इंधन बताए जा रहे सीएनजी के दाम पेट्रोल से भी ऊपर चले गए हैं।

राजधानी लखनऊ में सीएनजी अब पेट्रोल से महंगी हो गई है। ऐसा पहली बार हुआ है, जब सीएनजी के दामों ने पेट्रोल के रेट को पछाड़ा है। मौजूदा समय में पेट्रोल की कीमत 96 रुपए 57 पैसे है तो वही सीएनजी के दाम अब 97 रुपए प्रति किलो की दर पर पहुंच गए हैं। सीएनजी के दामों में कंपनी द्वारा 2 रूपये प्रति किलो तथा पीएनजी की कीमत में 3 रुपए 30 पैसे प्रति एससीएम की दर से बढ़ोतरी की गई है।

सार्स-सीओवी-2 वायरस जैसे 'कण' विकसित किए 

सार्स-सीओवी-2 वायरस जैसे 'कण' विकसित किए 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के शोधकर्ताओं ने सार्स-सीओवी-2 वायरस जैसे कण (वीएलपी) विकसित किए हैं, जो कोविड-19 के खिलाफ एक संभावित टीके के दावेदार हैं। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि वीएलपी ने चूहों में जवाबी प्रतिक्रिया शुरू करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को धोखा दिया, जैसा कि यह सार्स-सीओवी-2 के खिलाफ करता है।

आईआईटी दिल्ली के कुसुमा स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज की मुख्य शोधकर्ता और प्रोफेसर मणिदीपा बनर्जी ने कहा,“दुनिया भर में विकसित अधिकांश वीएलपी ने प्राथमिक प्रतिजन के रूप में केवल सार्स-सीओवी-2 के स्पाइक प्रोटीन का उपयोग किया है। हालांकि, हमारे वीएलपी यथासंभव देशी वायरस की तरह हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें सार्स-सीओवी-2 (एस-स्पाइक, एन-न्यूक्लियोकैप्सिड, एम-मेम्ब्रेन, ई-एनवेलप) के सभी चार संरचनात्मक प्रोटीन होते हैं।”

उन्होंने कहा, “निष्क्रिय वायरस पर आधारित टीकों का स्वाभाविक रूप से यह लाभ होता है। हालांकि, वीएलपी सुरक्षित हैं क्योंकि वे जीनोम के अभाव के कारण गैर-संक्रामक हैं। टीएचएसटीआई में किए गए पशु प्रयोगों से संकेत मिलता है कि हमारे वीएलपी कई एंटीजन (प्रतिजन) के खिलाफ एक मजबूत अनुकूली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को शुरू करते हैं।”

हरियाणा के फरीदाबाद स्थित ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (टीएचएसटीआई) के एक दल के साथ मिलकर शोधकर्ताओं ने इस पर काम किया। “वायरस-लाइक पार्टिकल्स ऑफ सार्स-सीओवी-2 एज वायरस सरोगेट्स: मॉर्फोलॉजी, इम्यूनोजेनेसिटी एंड इंटर्नलाइजेशन इन न्यूरोनल सेल्स” शीर्षक वाला अध्ययन हाल ही में “एसीएस इंफेक्शस डिजीजेज” पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

अधिकारियों के अनुसार, कोविड महामारी फैलने के बाद से शोधकर्ता सार्स-सीओवी-2 वायरस की बेहतर समझ हासिल करने और इसके खिलाफ टीके विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। बनर्जी ने कहा, “टीके वायरस से काफी हद तक सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ लोग जिन्हें टीके लग चुके हैं, वे अब भी कोविड-19 की चपेट में आ जाते हैं।

ऐसे में और बेहतर टीके तथा उपचार विकसित करने के लिए, आदर्श रूप से असल वायरस के साथ प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है, जिसे केवल बहुत विशिष्ट प्रयोगशालाओं में ही नियंत्रित तरीके से किया जा सकता है।” उन्होंने कहा कि ऐसे में सुरक्षित और आसान रणनीति वीएलपी का उपयोग करना है जो आणविक नकल हैं जो संक्रामक न होने के साथ ही एक निश्चित वायरस की तरह दिखते और कार्य करते हैं।

दवा कंपनी की 185 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त 

दवा कंपनी की 185 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त 

अकांशु उपाध्याय/अमित शर्मा 

नई दिल्ली/चंडीगढ़। प्रवर्तन निदेशालय ने मंगलवार को कहा कि कथित बैंक धोखाधड़ी मामले में उसने धन शोधन निवारण कानून के तहत चंडीगढ़ स्थित एक दवा कंपनी की 185 करोड़ रुपये की संपत्ति को जब्त किया है। धन शोधन निवारण कानून (पीएमएलए) के तहत जारी आदेश के बाद दवा कंपनी सूर्या फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड और कुछ संबद्ध संस्थाओं की इमारतों, संयंत्र और मशीनरी को जब्त किया गया है।

जांच एजेंसी ने एक बयान में कहा कि सीबीआई की दो प्राथमिकी के बाद धन शोधन का मामला दर्ज किया गया। इस संबंध में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), चंडीगढ़ और पंजाब एंड सिंध बैंक, करनाल ने शिकायत की थी। कंपनी पर 828 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है।

ईडी ने कहा कि ‘फर्जी चालान’ के बदले कंपनी के नाम पर साख पत्र (एलओसी) का लाभ उठाया गया था। बैंक से मिली राशि का इस्तेमाल गलत तरीके से कंपनी, व्यक्तियों और संबद्ध संस्थाओं के नाम से संपत्ति खरीदने के लिए किया गया।

ग्रेनेड हमले में 2 गैर स्थानीय प्रवासी मजदूरों की मौंत 

ग्रेनेड हमले में 2 गैर स्थानीय प्रवासी मजदूरों की मौंत 

इकबाल अंसारी 

श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर के शोपियां जिले में मंगलवार तड़के हुए ग्रेनेड हमले में दो गैर स्थानीय प्रवासी मजदूरों की मौंत हो गई। पुलिस ने बताया कि ग्रेनेड फेंकने वाले लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के एक स्थानीय 'हाइब्रिड आतंकवादी' को गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस ने कहा कि हरमन शोपियां में उत्तर प्रदेश के मजदूरों पर उस समय ग्रेनेड फेंका गया था, जब वे अपने आवास पर सो रहे थे। पुलिस ने एक ट्वीट ने कहा,"आतंकवादियों ने हरमन शोपियां में हथगोला फेंका, जिसमें उप्र के दो मजदूर मनीष कुमार और राम सागर, दोनों कन्नौज, के निवासी घायल हो गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने दम तोड़ दिया। घटना के बाद में सुरक्षा बलों ने इलाके की घेराबंदी कर दी। कश्मीर के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक विजय कुमार ने कहा कि ग्रेनेड फेंकने वाले लश्कर के एक 'हाइब्रिड आतंकवादी' को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। उन्होंने कहा, "आगे की जांच और छापेमारी जारी है।" शोपियां जिले में गैर स्थानीय लोगों पर हमला आतंकवादियों द्वारा एक कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट की गोली मारकर हत्या करने के तीन दिन बाद हुआ है।

उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में गैर स्थानीय लोगों और अल्पसंख्यकों की लक्षित हत्याओं में तेजी आई है। खासकर नई दिल्ली द्वारा अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद। इस साल, जम्मू-कश्मीर के छह गैर स्थानीय, तीन कश्मीरी पंडित और तीन गैर मुस्लिमों सहित 17 नागरिक मारे गए हैं।

मनोरंजन: फिल्म 'तेरे संग' का फर्स्ट लुक रिलीज 

मनोरंजन: फिल्म 'तेरे संग' का फर्स्ट लुक रिलीज 

कविता गर्ग 

मुंबई‌। भोजपुरी अभिनेत्री संजना पांडेय और गौरव झा की आने वाली फिल्म 'तेरे संग' का फर्स्ट लुक रिलीज हो गया है। 'तेरे संग' के निर्माता बी एन तिवारी - संजीव कुमार सिंह और निर्देशक अरविंद कुमार हैं। इस फिल्म को लेकर संजना पांडेय बेहद रोमांचित हैं। संजना पांडेय ने कहा कि 'तेरे संग' एक सम्पूर्ण रोमांटिक फिल्म है, जिसे आज की युवा पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इस फिल्म में मेरा किरदार एक गरीब लड़की का है, जो गांव में रहती है। उसके उपर घर की पूरी जिम्मेदारी होती है। लेकिन उसकी शादी शहर के लड़के से हो जाती है। लड़का शहर में पला- बढ़ा है और शहर में ही रहता है। लेकिन उसके पिता उसकी शादी गांव की लड़की से करवा देता है। शहर के लड़के का किरदार गौरव झा निभा रहे हैं, जो एक बेहतरीन कलाकार हैं। इस फिल्म में परिवार की अहम भूमिका को भी दिखाया गया है। फिल्म शानदार बनी है, इसलिए मैं सबों से आग्रह करूंगी कि फिल्म जब भी रिलीज हो। सभी लोग समस्त परिवार के साथ फिल्म देखें। 

गौरतलब है कि 'तेरे संग' का निर्माण ब्रदर मीडिया एंटरटेनमेंट से हुआ है। इस फिल्म के सह निर्माता यश राज शर्मा और शशि शर्मा हैं। फिल्म में गौरव झा और संजना पांडेय के साथ जे पी सिंह, विद्या सिंह, नीतू चौहान, रानी सिंह, अतुल सिंह, शिवा सिंह राजपूत, विभा सिंह और अमित शर्मा मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म में गीत - संगीत विनय बिहारी का है। कहानी साजिद मालिक, डीओपी बिपिन प्रसाद हैं। संकलन कृष्ण मुरारी यादव, कोरियोग्राफी संजय सुमन एवं अशोक मैटी और आर्ट रणधीर एस दास का है।

23 अक्टूबर को 'रामलला' के दर्शन करेंगे पीएम 

23 अक्टूबर को 'रामलला' के दर्शन करेंगे पीएम 

उमर सिंह 

अयोध्या। पीएम मोदी दिवाली के मौके पर अयोध्या का दौरा करेंगे। वह 23 अक्टूबर को अयोध्या जाएंगे और शाम 5 बजे श्रीराम जन्मभूमि पर रामलला के दर्शन करेंगे। इसके बाद वह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र साइट का अवलोकन करेंगे। इस दौरान शाम 5 बजकर 40 मिनट पर वह श्रीराम कथा पार्क में भगवान श्रीराम के राज्य अभिषेक के साक्षी बनेंगे। पीएम मोदी शाम साढ़े 6 बजे सरयूजी के नए घाट पर आरती कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे और 6.40 बजे रामजी की पैड़ी पर दीपोत्सव में हिस्सा लेंगे। वह साढ़े 7 बजे ग्रीन और डिजिटल आतिशबाजी देखेंगे।

इस साल दिवाली पर अयोध्या में 17 लाख मिट्टी के दीपक जलेंगे। बीते साल यहां 9 लाख मिट्टी के दीपक जलाए गए थे। वहीं साल 2020 में यहां 5.84 लाख दीपक जलाए गए थे। अवध विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, दीपक बिछाने का काम 21 अक्टूबर से शुरू हो जाएगा और इसमें तेल डालने का काम 22 तारीख से शुरू होगा। 23 तारीख की शाम को केवल दीपकों को जलाने का काम बचेगा। सुरक्षा संबंधी भी सारी तैयारियां कर ली गई हैं और इसके लिए जो वालंटियर्स हैं, उनके लिए ब्रीफिंग रखी गई है।

दिवाली वाले दिन यानी 24 अक्टूबर को हर साल की तरह पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर में भारतीय सशस्त्र बलों के जवानों के साथ दिवाली मनाएंगे। गौरतलब है कि पीएम मोदी पिछले 8 साल से जवानों के साथ दिवाली मना रहे हैं।

देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं: रिजिजू 

देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं: रिजिजू 

इकबाल अंसारी 

अहमदाबाद। केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुखपत्र माने जाने वाले पांचजन्य की ओर से यहां आयोजित साबरमती संवाद में रिजिजू ने कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने में व्यस्त होते हैं, जिसके कारण न्याय देने का उनका प्राथमिक काम प्रभावित होता है। मंत्री की यह टिप्पणी पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन में उनके बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा, 1993 तक भारत में प्रत्येक न्यायाधीश को भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था। उस समय हमारे पास बहुत प्रख्यात न्यायाधीश थे। उन्होंने कहा, संविधान इसके बारे में स्पष्ट है। संविधान कहता है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।

कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि 1993 तक सारे न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के साथ विमर्श कर सरकार ही करती थी। उच्चतम न्यायाल कॉलेजियम की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश करते हैं और इसमें अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। हालांकि, सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में आपत्तियां उठा सकती है या स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर पांच सदस्यीय निकाय उन्हें दोहराता है तो नामों को मंजूरी देना प्रक्रिया के तहत बाध्यकारी होता है।

उन्होंने कहा, मैं जानता हूं कि देश के लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं। अगर हम संविधान की भावना से चलते हैं तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का काम है। उन्होंने कहा, संविधान की भावना को देखा जाए तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का ही काम है। दुनिया में कहीं भी न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश बिरादरी नहीं करती हैं। उन्होंने कहा, देश का कानून मंत्री होने के नाते मैंने देखा है कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग यह तय करने में लगा रहता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा। मूल रूप से न्यायाधीशों का काम लोगों को न्याय देना है, जो इस व्यवस्था की वजह से बाधित होता है।

रिजिजू ने कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए और इसकी पहल खुद न्यायपालिका ही करे तो देश के लिए अच्छा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका पर निगरानी की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन न्यायपालिका के भीतर ऐसा कोई तंत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में कई बार गुटबाजी तक हो जाती है और यह बहुत ही जटिल है, पारदर्शी नहीं है। न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अगर अपने-अपने दायरे में रहें और अपने काम में ही ध्यान लगाए तो फिर यह समस्या नहीं आएगी।

उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हमारी कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बंधे हुए हैं। अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है, उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह न्यायपालिका को कोई आदेश नहीं दे सकते हैं, लेकिन उसे सतर्क जरूर कर सकते हैं क्योंकि वह भी लोकतंत्र का हिस्सा है और लाइव स्ट्रीमिंग (इंटरनेट के माध्यम से कार्यवाही के सीधे प्रसारण) व सोशल मीडिया के जमाने में वह भी जनता की नजर में है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए आपका भी व्यवहार अनुकूल हो… जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाकियों का होता है। लोग आपको भी देख रहे हैं… आप अपने लिए सेल्फ रेगुलेटिंग मेकैनिज्म (स्व-विनियमन तंत्र) बनाएं तो यह देश के लिए अच्छा होगा।

उन्होंने उदाहरण दिया कि संसद का कोई सदस्य अगर आपत्तिजनक शब्दों या भाषा का इस्तेमाल करता है तो उस पर लगाम लगाने के प्रावधान हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक के लोग नियमों से बंधे होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन लोकतंत्र में यह नियम हमारे न्यायपालिका में भी होना चाहिए…कोई इन हाउस मैकेनिज्म बनाया जाए न्यायपालिका के अंदर ही हो और इसे वे ही इसको विनियमित करे तो यह सबसे अच्छा और उपयोगी होगा। ना कि हम कोई कानून बनाएं।

रिजिजू ने कहा कि अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायाधीश टिप्पणियां करते हैं, लेकिन उनके फैसलों में इसका जिक्र नहीं होता है। उन्होंने कहा, टिप्पणी करके न्यायाधीश अपनी सोच उजागर करते हैं और समाज में इसका विरोध भी होता है। न्यायपालिका के साथ फिर न्यायाधीशों के साथ जब भी मेरी वार्ता होती है तो मैं साफ तौर पर उनको कहता हूं कि वह अगर आदेश में टिप्पणी करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।

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