मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं: रिजिजू 

देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं: रिजिजू 

इकबाल अंसारी 

अहमदाबाद। केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के मुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का मुखपत्र माने जाने वाले पांचजन्य की ओर से यहां आयोजित साबरमती संवाद में रिजिजू ने कहा कि उन्होंने देखा है कि आधे समय न्यायाधीश नियुक्तियों को तय करने में व्यस्त होते हैं, जिसके कारण न्याय देने का उनका प्राथमिक काम प्रभावित होता है। मंत्री की यह टिप्पणी पिछले महीने उदयपुर में एक सम्मेलन में उनके बयान के बाद आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर एक सवाल के जवाब में रिजिजू ने कहा, 1993 तक भारत में प्रत्येक न्यायाधीश को भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से कानून मंत्रालय द्वारा नियुक्त किया जाता था। उस समय हमारे पास बहुत प्रख्यात न्यायाधीश थे। उन्होंने कहा, संविधान इसके बारे में स्पष्ट है। संविधान कहता है कि भारत के राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे, इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भारत के प्रधान न्यायाधीश के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।

कॉलेजियम प्रणाली से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि 1993 तक सारे न्यायाधीशों की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश के साथ विमर्श कर सरकार ही करती थी। उच्चतम न्यायाल कॉलेजियम की अध्यक्षता प्रधान न्यायाधीश करते हैं और इसमें अदालत के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। हालांकि, सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों के संबंध में आपत्तियां उठा सकती है या स्पष्टीकरण मांग सकती है, लेकिन अगर पांच सदस्यीय निकाय उन्हें दोहराता है तो नामों को मंजूरी देना प्रक्रिया के तहत बाध्यकारी होता है।

उन्होंने कहा, मैं जानता हूं कि देश के लोग न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं। अगर हम संविधान की भावना से चलते हैं तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का काम है। उन्होंने कहा, संविधान की भावना को देखा जाए तो न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार का ही काम है। दुनिया में कहीं भी न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश बिरादरी नहीं करती हैं। उन्होंने कहा, देश का कानून मंत्री होने के नाते मैंने देखा है कि न्यायाधीशों का आधा समय और दिमाग यह तय करने में लगा रहता है कि अगला न्यायाधीश कौन होगा। मूल रूप से न्यायाधीशों का काम लोगों को न्याय देना है, जो इस व्यवस्था की वजह से बाधित होता है।

रिजिजू ने कहा कि जिस प्रकार मीडिया पर निगरानी के लिए भारतीय प्रेस परिषद है, ठीक उसी प्रकार न्यायपालिका पर निगरानी की एक व्यवस्था होनी चाहिए और इसकी पहल खुद न्यायपालिका ही करे तो देश के लिए अच्छा होगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र में कार्यपालिका और विधायिका पर निगरानी की व्यवस्था मौजूद है, लेकिन न्यायपालिका के भीतर ऐसा कोई तंत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की चयन प्रक्रिया में कई बार गुटबाजी तक हो जाती है और यह बहुत ही जटिल है, पारदर्शी नहीं है। न्यायिक सक्रियता (ज्यूडिशियल एक्टिविज्म) से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अगर अपने-अपने दायरे में रहें और अपने काम में ही ध्यान लगाए तो फिर यह समस्या नहीं आएगी।

उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि हमारी कार्यपालिका और विधायिका अपने दायरे में बिल्कुल बंधे हुए हैं। अगर वे इधर-उधर भटकते हैं तो न्यायपालिका उन्हें सुधारती है। समस्या यह है कि जब न्यायपालिका भटकती है, उसको सुधारने का व्यवस्था नहीं है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वह न्यायपालिका को कोई आदेश नहीं दे सकते हैं, लेकिन उसे सतर्क जरूर कर सकते हैं क्योंकि वह भी लोकतंत्र का हिस्सा है और लाइव स्ट्रीमिंग (इंटरनेट के माध्यम से कार्यवाही के सीधे प्रसारण) व सोशल मीडिया के जमाने में वह भी जनता की नजर में है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए आपका भी व्यवहार अनुकूल हो… जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाकियों का होता है। लोग आपको भी देख रहे हैं… आप अपने लिए सेल्फ रेगुलेटिंग मेकैनिज्म (स्व-विनियमन तंत्र) बनाएं तो यह देश के लिए अच्छा होगा।

उन्होंने उदाहरण दिया कि संसद का कोई सदस्य अगर आपत्तिजनक शब्दों या भाषा का इस्तेमाल करता है तो उस पर लगाम लगाने के प्रावधान हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री से लेकर नीचे तक के लोग नियमों से बंधे होते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन लोकतंत्र में यह नियम हमारे न्यायपालिका में भी होना चाहिए…कोई इन हाउस मैकेनिज्म बनाया जाए न्यायपालिका के अंदर ही हो और इसे वे ही इसको विनियमित करे तो यह सबसे अच्छा और उपयोगी होगा। ना कि हम कोई कानून बनाएं।

रिजिजू ने कहा कि अदालती कार्रवाई के दौरान न्यायाधीश टिप्पणियां करते हैं, लेकिन उनके फैसलों में इसका जिक्र नहीं होता है। उन्होंने कहा, टिप्पणी करके न्यायाधीश अपनी सोच उजागर करते हैं और समाज में इसका विरोध भी होता है। न्यायपालिका के साथ फिर न्यायाधीशों के साथ जब भी मेरी वार्ता होती है तो मैं साफ तौर पर उनको कहता हूं कि वह अगर आदेश में टिप्पणी करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।

भारत: वर्ष-2023 में न्यू स्विफ्ट को पेश किया जाएगा

भारत: वर्ष-2023 में न्यू स्विफ्ट को पेश किया जाएगा 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। मारुति की स्विफ्ट देश के अंदर सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक है। हर महीने ये हैचबैक टॉप-3 या टॉप-5 कारों की लिस्ट में शामिल रहती है। ऐसे में अब इस लग्जरी बजट हैचबैक का नया मॉडल एंट्री करने के लिए तैयार है। स्विफ्ट की इन दिनों दुनियाभर के अलग-अलग बाजारों में टेस्टिंग की जा रही है। इस वजह से उम्मीद है कि इसका 2023 मॉडल जल्द बाजार में दस्तक देगा। भारतीय बाजार में इसे अगले साल लॉन्च किया जा सकता है। माना जा रहा है कि ऑटो एक्सपो 2023 के दौरान न्यू स्विफ्ट को पेश किया जा सकता है।

अब 2023 स्विफ्ट के रेंडर और डिटेल को Motor1 वेबसाइट ने लीक कर दिया है। इस वेबसाइट पर कार के स्पाई फोटो को दिखाया गया है। बता दें कि स्विफ्ट को दुनियाभर के कई देशों में बेचा जाता है। इस हैचबैक के लिए भारत बड़ा बाजार है। ग्लोबल सेल्स की 50% डिमांड भारतीय बाजार में होती है। यही वजह है कि कंपनी स्विफ्ट को नई जनरेशन के हिसाब से और भी ज्यादा पावरपैक बनाने पर ध्यान दे रही है।

2023 स्विफ्ट के डिजाइन की बात करें तो इसके रेंडर को देखकर ये पता चलता है कि नए मॉडल के डिजाइन में ज्यादा चेंजेस नहीं किए जाएंगे। यानी ये 3rd जनरेशन स्विफ्ट के जैसी ही होगी। हालांकि, इसके रेशियो में कुछ चेंजेस जरूर दिख रहे हैं। रेंडर के साइड प्रोफाइल की बात करें तो ये कार मौजूदा मॉडल से अलग दिख रही है।

4th जनरेशन स्विफ्ट के डायमेंशन में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। माना जा रहा है कि इसके अंदर मौजूदा मॉडल की तुलना में ज्यादा स्पेस मिलेगा। कार की ग्रिल में ज्यादा बड़ी नजर आ रही है। वैसे भी नेक्स्ट जनरेशन स्विफ्ट में कंपनी ग्रिल का साइज बढ़ाती जा रही है। इसमें राउंड शेप की ग्रिल देखने को मिल सकती है।

कार में हेडलाइड भी एकदम नई दिख रही हैं। हालांकि, इसके अलॉय में चेंजेस नहीं दिख रहा है। हां, इसे बेहतर दिखाने के लिए डुअल-टोन ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। ये रेंडर 4th जनरेशन स्विफ्ट के स्पाई शॉट्स के अनुसार तैयार किया गया है। रेंडर में कार डुअल-टोन कलर में दिख रही है। इसकी बॉडी ऑरेंज और रूफ ब्लैक कलर में दिखाई है।

रिपोर्ट्स का मानें तो नई स्विफ्ट HEARTECT प्लेटफॉर्म के मॉडीफाइज वर्जन पर बेस्ड होगी। ग्लोबल मार्केट में सुजुकी ने इसमें 1.4L टर्बो पेट्रोल ऑप्शन या एक हाइब्रिड पावरट्रेन से लैस करने की संभावना है। अब सुजुकी ने टेक्नोलॉजी शेयर के लिए टोयोटा के साथ पार्टनरशिप की है। हालांकि, भारत में लॉन्च होने वाली न्यू स्विफ्ट में 3rd जनेर्शन का 1.2L K12 4-सिलेंडर इंजन मिलने की उम्मीद है। जिसमें डुअल जेट और डुअल VVT टेक्नोलॉजी दी है। यह इंजन 89 bhp का पावर और 113 Nm का टार्क बनाता है।

न्यू स्विफ्ट में 360 डिग्री कैमरा के साथ 9-इंच का स्मार्टप्ले प्रो प्लस टचस्क्रीन इंफोटेनमेंट सिस्टम मिल सकता है। बेहतरीन म्यूजिक के लिए ARKAMYS के सराउंड सिस्टम मिलने की उम्मीद है। इसमें AC वेंट्स को फिर से डिजाइन किया जा सकता है। इंस्ट्रूमेंट क्लस्टर भी नए डिजाइन का मिलने की उम्मीदै है। सेफ्टी के लिए इसमें 6 एयरबैग्स मिल सकते हैं। इसके अलावा, इसमें क्रूज कंट्रोल, सेफ्टी बेल्ट रिमायंडर, स्पीड अलर्ट, बैक कैमरा, रिवर्स पार्किंग सेंसर जैसे सेफ्टी फीचर्स भी दिए जाएंगे।

पीएम ने 90वीं इंटरपोल महासभा का शुभारंभ किया

पीएम ने 90वीं इंटरपोल महासभा का शुभारंभ किया

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के प्रगति मैदान में मंगलवार को आयोजित 90वीं इंटरपोल महासभा का शुभारंभ किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत आजादी के 75 वर्ष मना रहा है और ये हमारे लोगों, संस्कृति और उपलब्धि का उत्सव है। ये समय हमें पीछे देखने का है कि हम कहां से आए और आगे देखने का है कि हम कहां तक जाएंगे। पीएम ने कहा कि विविधता और लोकतंत्र को कायम रखने में भारत दुनिया के लिए एक केस स्टडी है। उन्होंने कहा कि पिछले 99 वर्षों में इंटरपोल ने 195 देशों में विश्व स्तर पर पुलिस संगठनों को जोड़ा है। यह कानूनी ढांचे में अंतर के बावजूद है।

नरेंद्र मोदी ने कहा कि इंटरपोल एक ऐतिहासिक मील के पत्थर के करीब पहुंच रहा है। 2023 में, यह अपने 100 साल पूरे करेगा। यह दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए सार्वभौमिक सहयोग का आह्वान है। भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में शीर्ष योगदानकर्ताओं में से एक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में बहादुर लोगों को भेजने में शीर्ष योगदानकर्ताओं में से एक है। अपनी आजादी से पहले भी, हमने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए बलिदान दिया है। भारतीय पुलिस बल 900 से अधिक राष्ट्रीय और 10,000 राज्य कानूनों को लागू करता है।

उन्होंने कहा कि विविधता और लोकतंत्र को कायम रखने में भारत दुनिया के लिए एक केस स्टडी है… पिछले 99 वर्षों में इंटरपोल ने 195 देशों में विश्व स्तर पर पुलिस संगठनों को जोड़ा है। यह कानूनी ढांचे में अंतर के बावजूद है।

एमएसपी को 2,125 रुपये प्रति क्विंटल करें, फैसला 

एमएसपी को 2,125 रुपये प्रति क्विंटल करें, फैसला 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। सरकार ने मंगलवार को मौजूदा फसल विपणन वर्ष के लिए गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 110 रुपये बढ़ाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल करने का फैसला किया। इसके साथ ही सरसों का एमएसपी 400 रुपये बढ़ाकर 5,450 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। एक बयान में कहा गया कि किसानों के उत्पादन और आय को बढ़ावा देने के लिए यह फैसला किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल की समिति (सीसीईए) की बैठक में एमएसपी बढ़ाने का फैसला किया गया।

एमएसपी वह दर है, जिस पर सरकार किसानों से कृषि उपज खरीदती है। इस समय सरकार खरीफ और रबी, दोनों सत्रों में उगाई जाने वाली 23 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। रबी (सर्दियों) फसलों की बुवाई, खरीफ (गर्मी) फसलों की कटाई के बाद अक्टूबर में शुरू होती है। गेहूं और सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं।

सीसीईए ने फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) और विपणन सत्र 2023-24 में छह रबी फसलों के लिए एमएसपी में वृद्धि को मंजूरी दी है। फसल वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं का एमएसपी 110 रुपये बढ़ाकर 2,125 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है, जो फसल वर्ष 2021-22 में 2,015 रुपये प्रति क्विंटल था। बयान में कहा गया है कि गेहूं की उत्पादन लागत 1,065 रुपये प्रति क्विंटल रहने का अनुमान है।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार इस साल 2.3 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी सिर्फ यूरिया पर दे रही है। 2014 के मुकाबले भी खरीद दोगुनी की है। पहले 50% फसल नष्ट होने पर मुआवज़ा मिलता था जिसे 30% किया है। PM किसान सम्मान निधी में अब तक 2.16 हजार करोड़ रुपए किसानों के खातों में गए हैं। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि गेहूं के एमएसपी में 110 रुपये, जौ में 100 रुपये, चना को 105 रुपये, मसूर में 500 रुपये, रेपसीड और सरसों के 400 रुपये और कुसुम के एमएसपी में 209 रुपये की बढ़ोतरी की गई है।

इनके बढ़े दाम 
केंद्र सरकार ने मार्केटिंग सीज़न 2023-24 के लिए रबी की छह फसलों का प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ा दिया है। बकौल सरकार, गेहूं का एमएसपी ₹110 बढ़ाकर ₹2,125, जौ का ₹100 बढ़ाकर ₹1,735, चना का ₹105 बढ़ाकर ₹5,335, मसूर का ₹500 बढ़ाकर ₹6,000, सरसों का ₹400 बढ़ाकर ₹5,450 जबकि कुसुम का एमएसपी ₹209 बढ़ाकर ₹5,650 किया गया है।

11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका, सुनवाई

11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका, सुनवाई 

अकांशु उपाध्याय 

नई दिल्ली। बिलकिस बानो गैंगरेप केस के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले में दाखिल की गई पीआईएल के जवाब में गुजरात ने सोमवार को अपना हलफनामा दायर किया था। इस सुनवाई में याचिकाकर्ता ने और समय की मांग की है। अब इस मामले में अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी।

याचिका में कहा गया है कि इस पूरे मामले की जांच CBI ने की थी इसलिए गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट का एकतरफा फैसला नहीं कर सकती।

गुजरात सरकार का हलफनामा
दोषियों को रिहा करने पर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। गुजरात सरकार ने कहा है कि गृह मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद ही दोषियों को रिहा किया गया है। रिमिशन पॉलिसी के तहत सभी दोषियों को जेल से छोड़ा गया है। इस मामले में PIL दाखिल होना कानून का दुरुपयोग है। किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है, इसलिए याचिका खारिज की जाए।

क्या है रिमिशन पॉलिसी?
गुजरात सरकार ने ये फैसला CrPC की धारा 433 और 433A के तहत लिया था। CrPC की इन दो धाराओं के तहत- संबंधित राज्य सरकार किसी भी दोषी के मृत्युदंड को किसी दूसरी सजा में बदल सकती है। इसी तरह उम्रकैद को भी 14 साल की सजा पूरी होने के बाद माफ कर सकती है। इसी तरह संबंधित सरकार कठोर सजा को साधारण जेल या जुर्माने में और साधारण कैद को सिर्फ जुर्माने में भी बदल सकती है। इस आधार पर राज्य नीति बनाते हैं। जिसे रिमिशन पॉलिसी कहते हैं।

गुजरात सरकार ने बनाई थी समिति
बिलकिस बानो वाले मामले में 11 दोषियों में से एक राधेश्याम भगवानदास शाह ने सीधे गुजरात हाईकोर्ट में अपील दायर की। अपील में कहा था कि रिमिशन पॉलिसी के तहत उसे रिहा किया जाए। जुलाई 2019 में गुजरात हाईकोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि सजा महाराष्ट्र में सुनाई गई थी, इसलिए रिहाई की अपील भी वहीं की जानी चाहिए। दरअसल, बिलकिस बानो की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को महाराष्ट्र ट्रांसफर किया था। जहां मुंबई की स्पेशल CBI कोर्ट में इन सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

दोषी भगवानदास सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोषी भगवानदास सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में गुजरात सरकार फैसला करे, क्योंकि अपराध वहीं हुआ था। कोर्ट के निर्देश पर ही गुजरात सरकार ने रिहाई पर फैसला लेने के लिए पंचमहल के कलेक्टर सुजल मायत्रा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। समिति ने सर्वसम्मति से 11 दोषियों के समय से पहले रिहाई के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद गुजरात सरकार ने इन दोषियों की रिहाई पर मुहर लगा दी।

बिलकिस का परिवार खेत में छिपा था, तभी हमला हुआ
3 मार्च 2002 को दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव में बिलकिस बानो के परिवार पर हमला हुआ था। दंगों की वजह से वे अपने परिवार के साथ एक खेत में छिपी थीं। तब बिलकिस की उम्र 21 साल थी और वे 5 महीने की गर्भवती थीं। दंगाइयों ने बिलकिस का गैंगरेप किया। उनकी मां और तीन और महिलाओं का भी रेप किया गया। परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी। इस हमले में 17 में से 14 लोग मारे गए। इनमें 6 का पता नहीं चला। हमले में सिर्फ बिलकिस, एक शख्स और तीन साल का बच्चा ही बचे थे।

दिवंगत नेता की करीबी शशिकला को दोषारोपित किया

दिवंगत नेता की करीबी शशिकला को दोषारोपित किया

विमलेश यादव 

चेन्नई। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की 2016 में हुई मौत के लिए जिम्मेदार परस्थितियों की जांच कर रहे एक आयोग ने दिवंगत नेता की करीबी विश्वस्त वी.के. शशिकला को दोषारोपित किया है। न्यायमूर्ति ए अरुमुगास्वामी आयोग की जांच रिपोर्ट मंगलवार को तमिलनाडु विधानसभा के पटल पर रखी गई, जिसमें कहा गया है कि कई पहलुओं पर विचार करते हुए शशिकला को ‘दोषारोपित’ किया गया है और जांच की सिफारिश की गई है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि जांच का आदेश दिया गया तो पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन और चिकित्सा के पेशे से जुड़े के.एस. शिवकुमार भी दोषी पाये जाएंगे। रिपोर्ट में तत्कालीन मुख्य सचिव राम मोहन राव और चिकित्सकों सहित अन्य के खिलाफ भी जांच की सिफारिश की गई है। विजयभास्कर अन्नाद्रमुक के नेता एवं विधायक हैं।

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