बाजवा ने चीन के प्रस्ताव पर विचार के लिए समय मांगा
सुनील श्रीवास्तव
कराची/बीजिंग। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बुलावे पर पहली बार ड्रैगन की सरजमीं पर पहुंचे पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के इस दौरे की असल वजह सामने आने लगी। बलूचिस्तान पोस्ट ने रिपोर्ट्स के हवाले से दावा किया है कि बलूच विद्रोहियों के भीषण हमलों से डरा चीन, अब ग्वादर समेत बलूचिस्तान के कई हिस्सों में अपनी ‘सुरक्षा एजेंसियों’ को तैनात करना चाहता है। जनरल बाजवा ने चीन के इस प्रस्ताव पर विचार के लिए समय मांगा है।
जनरल बाजवा के नेतृत्व में पाकिस्तान के तीनों सेनाओं का एक दल अहम बैठक के लिए पिछले दिनों चीन गया था। इस बैठक के दौरानी चीनी सेना के शीर्ष अधिकारियों ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को जमकर सुनाया था। चीन ने कहा कि सीपीईसी परियोजना में काम कर रहे और पाकिस्तान में रहे रहे चीनी नागरिकों की हत्या की जा रही है।
बताया जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना की विफलता के बाद अब चीन ने अपनी बदनाम सुरक्षा एजेंसियों को ग्वादर समेत बलूचिस्तान में तैनात करने का प्रस्ताव दिया।
चीन की ओर से मिली झाड़ के बाद जनरल बाजवा ने चीन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए समय मांगा है। यही नहीं पश्चिमी देशों के साथ बढ़ रहे तनाव को देखते हुए अब चीन ने जनरल बाजवा से खुलकर रणनीतिक भागीदारी बढ़ाने के लिए कहा है। इससे अब चीन के लिए अमेरिका के साथ संतुलन बनाए रखने में बहुत मुश्किल होने जा रही है। इससे पहले चीनी नागरिकों पर बढ़ते हमले को रोकने के लिए पाकिस्तान की शहबाज सरकार ने सीपीईसी में काम कर रहे चीनी नागरिकों की सुरक्षा को बढ़ाने का आदेश दिया था।
चीन की बढ़ती नाराजगी के बीच शहबाज शरीफ ने कहा कि चीनी नागरिकों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने गृह मंत्रालय और सुरक्षा एजेंसियों को पूरी सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया। इससे पहले चीनी शिक्षक की एक आत्मघाती हमले में हत्या के बाद चीन के सभी शिक्षक पाकिस्तान छोड़कर चले गए थे। इससे दोनों ही देशों को बड़ा झटका लगा था। पाकिस्तान की पुलिस ने एक चीनी दल को निशाना बनाने जा रहे आत्मघाती हमलावर को अरेस्ट किया था।
इस पूरे मामले में चीन के प्रधानमंत्री ली केकिआंग ने भी शहबाज शरीफ से बात की थी। चीन अगर अपने सुरक्षा एजेंसियों को पाकिस्तान में तैनात करता है तो यह पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं विश्लेषकों का कहना है कि इससे पाकिस्तान की संप्रभुता कमजोर होगी और चीनी सुरक्षा एजेंसियों के नाम पर अगर सैनिक आते हैं तो पाकिस्तान का यह इलाका चीनी ‘उपनिवेश’ में बदल जाएगा।