सोमवार, 9 मई 2022
करेत्तर राजस्व वसूली, बैठक आयोजित की
कई भाषाओं में कंटेंट उपलब्ध, एकेडमी
गणित की शिक्षा देने वाली यह एकेडमी दुनियाभर के कई भाषाओं में अपने कंटेंट उपलब्ध करवाती है।
उनके पास अपना कोई निजी जेट या निजी शेफ भी नहीं है। उन्होंने बताया कि उनका बचपन लुइसियाना के मेटाएरी में गरीबी में गुजरा। उनकी मां भारतीय मूल की थीं, जो घर को चलाने के लिए एक स्टोर में काम करतीं थीं। उनके पिता बांग्लादेशी मूल के थे, जो डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका आए थे।
चीन-रूस की सप्लाई चेन से अलग होने की रणनीति
चीन-रूस की सप्लाई चेन से अलग होने की रणनीति
अकांशु उपाध्याय/सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली/कीव। यूक्रेन संकट के बाद दुनिया के फिर दो खेमों में बंटने और शीतयुद्ध का दूसरा दौर शुरू होने के मद्देनजर लोकतांत्रिक विकसित देेश, चीन व रूस की सप्लाई चेन से अपने को अलग करने की रणनीति पर काम करने लगे हैं। दरअसल, कोरोना महामारी और रूस यूक्रेन युद्ध ने जनतांत्रिक विकसित देशों को एक अहम सबक सिखाया है। भविष्य में वे कच्चा माल और कलपुर्जों की सप्लाई के लिए मात्र एक देश पर निर्भर नहीं रहेंगे। चीन ने सस्ते और कुशल कामगार तथा सुव्यवस्थित कानून व्यवस्था के साथ विशाल उपभोक्ता बाजार की बदौलत विकसित देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित किया। इन कंपनियों ने चीन में कार, इनके कलपुर्जे, सेमीकंडक्टर चिप्स आदि बनाने शुरू किए और पूरी दुनिया को सप्लाई करने लगीं। धीरे-धीरे कंपनियों ने कलपुर्जों के उत्पादन अपने देश में बंद कर दिए और चीन के निर्माण उद्योग को चमकाने लगीं। नतीजतन चीन समृद्ध, ताकतवर और घमंडी होता गया।
प्रस्तावित परिषद का दीर्घकालीन इरादा उच्च तकनीक वाले उत्पादों के लिए चीन का वैकल्पिक स्रोत तैयार करना है और इनके उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करनी है ताकि इनकी सप्लाई के लिए चीन का मोहताज नहीं रहना पड़े। इसके पहले मार्च 2021 में चार देशों के संगठन क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, जापान , अमेरिका और भारत) ने चीन की सप्लाई चेन का विकल्प खोजने के लिए क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नलॉजी वर्किंग ग्रुप का गठन किया था, जिसका मकसद उच्च तकनीक वाले ऐसे उत्पादों की पहचान कर उनका क्वाड के साझेदार देशों में साझा उत्पादन करना है जिनके लिए क्वाड के देश चीन पर अत्यधिक निर्भर हैं। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने भी दुर्लभ खनिज का साझा उत्पादन कर बाकी दुनिया को सप्लाई करने पर भारत के साथ सहमति बनाई। दोनों देशों ने हाल में मुक्त व्यापार संधि कर सहयोग की इस सहमति को नया आयाम दिया है। वास्तव में दुर्लभ खनिज व उच्च तकनीक वाले कलपुर्जों की सप्लाई पर चीन का एकाधिकार है और चीन यदि किसी देश को इनमें से किसी की भी सप्लाई रोक दे तो उस देश का उद्योग-धंधा चौपट हो सकता है। ऐसे में चीन ने कुछ सालों से 5-जी नेटवर्क के विकास में महारत हासिल की और यूरोपीय देशों व अमेरिका-ब्रिटेन से लेकर भारत तक के बाजार में छा जाने का सपना देखने लगा तो उन देशों के कान खड़े हुए। यदि 5-जी पर भी चीन का एकाधिकर स्थापित हो जाए तो पूरी दुनिया चीन की मुट्ठी में होगी। इसलिए उच्च तकनीक वाले औद्योगिक कच्चा माल व कलपुर्जों की सप्लाई चेन का दायरा बढ़ाने की महत्वाकांक्षी रणनीति पर भारत के साथ विकसित देश गंभीरता से आगे बढ़ रहे हैं। वे देश चाहते हैं कि धीरे-धीरे चीन से इनका आयात कम किया जाए। इसके लिए वे देश अपनी कंपनियों को भी चीन छोड़ कर किसी और देश में जाने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। ऐसी कुछ कंपनियां भारत की ओर देख रही हैं तो कुछ अन्य वियतनाम व अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को परख रही हैं। लेकिन भारत के पास वैज्ञानिक व औद्योगिक आधार का जो विशाल दायरा है वह वियतनाम, थाइलैंड, मलयेशिया, इंडोनेशिया जैसे देशों के पास नहीं।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूरोपीय देशों ने हाल में भारत के साथ जिस तरह के सहयोग समझौते किए हैं। वह भारत की औद्योगिक व तकनीकी क्षमता को मान्यता प्रदान करता है। सहयोग की ये सहमतियां और समझौते प्रभावी ढंग से अमल में लाए गए तो आने वाले सालों में भारत निश्चित रूप से चीन का कारगर विकल्प बन सकता है। लेकिन इसमें कई पेंच हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत इसके लिए तैयार है। इसके लिए विकसित देशों की कंपनियों को अनुकूल घरेलू माहौल प्रदान करना होगा। समुचित माहौल बनाने के लिए न केवल देश भर में कानून व्यवस्था की स्थिति सुधारनी होगी बल्कि राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर निवेश के अनुकूल नीतियां बनानी होंगी, माहौल ठीक करना होगा और लालफीताशाही दूर करनी होगी।
पूर्वी एशिया की 'यथास्थिति' बदलने की कोशिश
पूर्वी एशिया की 'यथास्थिति' बदलने की कोशिश
अकांशु उपाध्याय/अखिलेश पांडेय
नई दिल्ली/टोक्यो। इस बीच जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने पिछले हफ़्ते अपने ब्रिटेन दौरे पर चेताया है कि जो यूक्रेन के साथ हुआ, वह ताइवान के साथ भी हो सकता है और इस क्षेत्र में स्थिरता न सिर्फ़ जापान की सुरक्षा के लिए, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है। उनका इशारा सीधे चीन की ओर था। दूसरी ओर डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने भी कहा है कि चीन यूक्रेन में रूस के हमले पर पैनी नज़र रखे हुए है और इससे ताइवान को लेकर उसके आकलन भी प्रभावित हो रहे हैं। भारत पहले से ही चीन की आक्रामकता झेल रहा है।
अधिकारियों ने तालाब से अतिक्रमण हटवाया
चुनिंदा लोगों को सूट करता है नीलम, खासियत
नागरिकता आवेदन, पाकिस्तान लौटें कई प्रवासी हिंदू
नागरिकता आवेदन, पाकिस्तान लौटें कई प्रवासी हिंदू
सुनील श्रीवास्तव
इस्लामाबाद/नई दिल्ली। भारत में पाकिस्तानी अल्पसंख्यक प्रवासियों के हक़ की आवाज़ उठाने वाली संस्था सीमांत लोक संगठन (एसएलएस) ने ये दावा किया हैै, कि नागरिकता आवेदन के बाद प्रक्रिया में कोई प्रगति न देखने के बाद इनमें से कई प्रवासी हिंदू तो वापस पाकिस्तान लौट गए। ये आँकड़े साल 2021 के हैं। एसएलएस के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढा के हवाले से अख़बार ने लिखा है, “एक बार वे वापस लौट गए तो पाकिस्तानी एजेंसियां उनका इस्तेमाल भारत को बदनाम करने के लिए करती हैं। उन्हें मीडिया के सामने लाया गया और ये बयान देने को मजबूर किया गया कि भारत में उनके साथ बुरा बर्ताव हुआ।
गृह मंत्रालय ने साल 2018 में नागरिकता आवेदन की ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू की थी। मंत्रालय ने सात राज्यों में 16 कलेक्टरों को भी ये ज़िम्मेदारी दी थी कि वे पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्धों नागरिकता देने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार करे।
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