औद्योगिक क्षेत्र में कटौती, विनिर्माण सुधार में देरी
सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली/सिडनी/बीजिंग/जकार्ता। कोयला एक जीवाश्म ईंधन है। भारत के बिजली उत्पादन में कोयले का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पर्याप्त नहीं पहुंच पाने की वजह से बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ने की संभावना है। इसको देखते हुए रेलवे ने विभिन्न बिजली संयंत्रों में कोयले की ढुलाई के लिए अपने 86 प्रतिशत खुले वैगनों को तैनात करने की बात कही थी। आईसीआरए लिमिटेड की अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अगर औद्योगिक क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति में कटौती की जाती है, तो यह विनिर्माण क्षेत्र में कम से कम एक और तिमाही में सुधार में देरी कर सकता है।
भारत करीब 200 गीगावॉट बिजली यानी करीब 70% बिजली का उत्पादन कोयले से चलने वाले प्लांट्स से करता है, लेकिन इस समय ज्यादातर प्लांट्स बढ़ती हुई बिजली की मांग और कोयले की कमी की वजह से कम बिजली सप्लाई कर पा रहे हैं। देश के कोयले से चलने वाले बिजली प्लांट्स के पास पिछले 9 सालों में सबसे कम कोयले का भंडार बचा है। यानी बिजली की डिमांड ज्यादा है, लेकिन कोयले की कमी की वजह से प्लांट्स जरूरत के मुताबिक बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। कोल इंडिया बिजली प्लांट्स के लिए रोजाना 16.4 लाख टन कोयले की सप्लाई कर रहा है, जबकि कोयले की मांग प्रतिदिन 22 लाख टन तक पहुंच गई है। कोयले की खपत इस साल 8% बढ़ी है, लेकिन कोल इंडिया ने कोयले का उत्पादन नहीं बढ़ाया है। देश में कोयले का 80% उत्पादन कोल इंडिया ही करता है।
देश में पीक आवर में बिजली की डिमांड इस साल कोरोना महामारी की वजह से दो साल बाद बढ़ी है। रॉयटर्स के मुताबिक, अप्रैल के पहले 27 दिनों में बिजली सप्लाई डिमांड से 1.88 अरब यूनिट यानी 1.6% कम रही। ये पिछले 6 वर्षों में किसी एक महीने में सबसे ज्यादा बिजली की कमी है। देश में पिछले हफ्ते 62.3 करोड़ यूनिट बिजली की कमी हुई। यह पूरे मार्च महीने में हुई बिजली की कमी से भी ज्यादा है। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश तक देश के लगभग हर हिस्से में 2-8 घंटे तक की बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के मुताबिक, देश के कोयले से चलने वाले 150 बिजली प्लांट्स में से 86 में कोयले का स्टॉक बेहद कम हो गया है। इन प्लांट्स के पास अपनी सामान्य जरूरतों का 25% स्टॉक ही बचा है। इस समय देश भर में स्थित थर्मल बिजली प्लांट्स में 2.12 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है, जोकि सामान्य स्तर 6.63 करोड़ टन से काफी कम है।
पिछले साल अक्टूबर में भी कोयले की कमी की वजह से बिजली संकट पैदा हुआ था, लेकिन इस बार ये संकट गर्मियों के महीने में पड़ने की वजह से और ज्यादा गहरा है। बिजली संकट की एक और वजह कोयले की ढुलाई न हो पाना है। दरअसल, कोयला कंपनियों से बिजली प्लांट्स तक कोयला पहुंचाने के लिए रेलवे के पास पर्याप्त कोच नहीं थे। बिजली संकट गहराने पर बिजली प्लांट्स तक कोयला ले जाने वाली ट्रेनों को रास्ता देने के लिए रेलवे ने ट्रेनों के 670 फेरे रद्द कर दिए हैं। रेलवे बिजली प्लांट्स तक कोयला पहुंचाने के लिए 415 कोच उपलब्ध करवा रहा है। हर मालगाड़ी से करीब 3500 टन कोयला ले जाया जा सकता है। कोयला ढुलाई में कमी के आरोपों के बीच रेलवे का कहना है कि उसने वित्त वर्ष 2022 में कोयले के ट्रांसपोर्टेशन में 11.1 करोड़ टन की बढ़ोतरी करते हुए 65.3 करोड़ टन कोयला ढोया। साथ ही रेलवे ने अप्रैल के पहले दो हफ्ते में कोयला ढोने वाले कोचों की संख्या को 380 से बढ़ाकर 415 कर दिया है।
इस संकट की एक और वजह है कोयले का आयात घटना। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला आयातक भारत ने पिछले कुछ वर्षों से लगातार अपना आयात घटाने की कोशिश की है। लेकिन इस दौरान घरेलू कोयला सप्लायर्स ने उतनी ही तेजी से अपना उत्पादन बढ़ाया नहीं है। इससे सप्लाई गैप पैदा हुआ। अब इस गैप को सरकार चाहकर भी नहीं भर सकती क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इंटरनेशनल मार्केट में कोयले की कीमत 400 डॉलर यानी 30 हजार रुपए प्रति टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं।
देश में कोयले के उत्पादन के अतिरिक्त सालाना करीब 20 करोड़ टन कोयला इंडोनेशिया, चीन और ऑस्ट्रेलिया से आयात होता है। लेकिन अक्टूबर 2021 के बाद इन देशों से आयात घटना शुरू हो गया और अब भी इन देशों से आयात पूरी तरह प्रभावित है। इसका नतीजा ये हुआ कि बिजली कंपनियां कोयले के लिए अब पूरी तरह कोल इंडिया पर ही निर्भर हो गईं।
इस संकट की एक और प्रमुख वजह ये है कि राज्यों ने कोल इंडिया को जरूरत से एक महीने पहले कोयले की मांग ही नहीं भेजी। साथ ही कई राज्यों ने निर्धारित समय पर कोयले का उठाव भी नहीं किया। गर्मी बढ़ने से बिजली की खपत भी तेजी से बढ़ी और कोयला कम पड़ने लगा और अचानक बिजली संकट खड़ा हो गया। इस संकट के अगले दो महीने तक बने रहने की आशंका है। दरअसल, राज्यों का कोल इंडिया के साथ सालाना करार होता है। इसी के अनुसार हर राज्य को हर महीने निर्धारित कोयले का उठाव करना होता है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। कई राज्यों पर तो कोयले का उठान नहीं करने के लिए कोल इंडिया ने जुर्माना भी लगाया। सभी राज्य आने वाले 3-4 महीनों में कोयले की आवश्यकता का आकलन करने में चूक गए।