सपा द्वारा असंतोष दूर करने की कोशिश: राजनीति
हरिओम उपाध्याय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक किसके साथ रहेगा। क्या समाजवादी पार्टी का एम+वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण बिखर जाएगा। अगर मुस्लिम वोट बैंक समाजवादी पार्टी से छिटका तो उनका दूसरा ठिकाना कौन बनेगा? इन तमाम सवालों के बीच रमजान का महीना गुजर गया। ईद के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई बदलावों की चर्चा की कानाफूसी हो रही है। इन कानाफूसी के बीच प्रदेश की राजनीति किस किनारे लगेगी, यह भविष्य बताएगा।
फिलहाल, हर तरफ से अपने वोट बैंक को बचाने और खोए वोट बैंक को पाने की खींचतान चल रही है। उत्तर प्रदेश में भले ही चुनाव आने में करीब दो साल का समय हो, लेकिन अखिलेश यादव की बड़ी परीक्षा अगले कुछ माह में होने वाली है। आजम खान की नाराजगी के बहाने अल्पसंख्यक वोट बैंक में उपजे असंतोष को तमाम गैर-भाजपा राजनीतिक दल हवा देकर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वहीं, अखिलेश यादव रोजा-इफ्तार पार्टियों के जरिए असंतोष को दूर करने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
आजम के मुद्दे ने बढ़ाया है प्रदेश का राजनीतिक तापमान
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक तापमान को आजम खान के मुद्दे ने काफी बढ़ा दिया है। अल्पसंख्यक समाज के भीतर अखिलेश यादव के रवैये पर एक नाराजगी साफ दिख रही थी। चाहे केंद्र हो या राज्य की भाजपा सरकार, उनकी नीतियों के खिलाफ अखिलेश ने उस प्रकार का विरोध नहीं दर्ज कराया, जिसकी उम्मीद यह समाज कर रहा था। नाहिद हसन हों या शहजिल इस्लाम, दोनों के ठिकानों पर बुलडोजर चला तो अखिलेश खुलकर सामने आकर विरोध नहीं कर पाए। कानून व्यवस्था के मसले पर होने वाली कार्रवाई के मामलों में भी अखिलेश का विरोध लोग सतही मानने लगे हैं। ऐसे में आजम खान के प्रवक्ता की ओर से उनके पार्टी और पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ नाराजगी का मामला सामने आया तो समाज को एक आवाज मिल गई। सुर में सुर मिले तो लखनऊ तक हिल गया।
अखिलेश ने लगातार रोजा-इफतार कार्यक्रमों में हुए हैं शामिल।
रोजा-इफ्तार के जरिए वोट बैंक का साधने की कोशिश
रमजान के महीने में राजधानी और अन्य स्थानों पर रोजा-इफ्तार कार्यक्रमों में अखिलेश यादव ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पिछले दिनों में उन्हें दो से तीन ऐसे कार्यक्रमों में शिरकत करते देखा गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजम खान की नाराजगी के साथ बढ़ रहे अल्पसंख्यक समुदाय के आक्रोश को कम करने के लिए इस प्रकार की कवायद की गई। इस दरम्यान प्रदेश के अन्य नेताओं की आवक इन कार्यक्रमों में नहीं दिखी। संकेतों में अखिलेश यादव, मायावती और कांग्रेस नेताओं पर तंज कसते रहे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी यूपी चुनाव परिणाम के बाद से लखनऊ की राजनीति में दिख ही नहीं रही हैं। ऐसे में अखिलेश अपने नाराज वोट बैंक को मनाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। वे जानते हैं कि अभी उनकी जगह को भरने वाला कोई दिख नहीं रहा।
इफ्तार कार्यक्रमों में पहले अखिलेश दिखता था अलग लुक
इफ्तार कार्यक्रमों में पहले अखिलेश दिखता था अलग लुक
टोपी-रुमाल का भी उठ रहा मुद्दा
अखिलेश यादव भले ही रोजा-इफ्तार में जमकर भागीदारी कर रहे हों, लेकिन उनके पहनावे का मुद्दा भी खासा जोर पकड़ रहा है। अखिलेश यादव की पुरानी रोजा-इफ्तार कार्यक्रमों की तस्वीरें देखेंगे तो उसमें वे सफेद टोपी और कंधे पर गमछा लिए दिख जाएंगे। इस बार वह लुक बदला हुआ दिखा। अखिलेश यादव पार्टी की टोपी यानी लाल टोपी में ही रोजा-इफ्तार कार्यक्रमों में नजर आए। इस पर भी मुस्लिम समाज में चर्चा का बाजार गर्म है कि अखिलेश यादव को भी हिंदू वोट बैंक की चिंता सताने लगी है। अगर उन्होंने लुक बदला तो इसे अलग रूप में पेश किया जाएगा। इसलिए, वे उनकी तरह नहीं दिखना चाहते हैं।
अखिलेश के पहले के लुक और बदले लुक की हो रही चर्चा
अखिलेश के पहले के लुक और बदले लुक की हो रही चर्चा
ईद के दिन आजम खान ने अपनी नाराजगी व्यक्त कर साफ कर दिया है कि समाजवादी पार्टी अब उनकी प्राथमिकता में नहीं है। पार्टी को उनकी चिंता नहीं है। ऐसे में आगे सुप्रीम कोर्ट में होने वाली जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें बेल मिलती है। वे बाहर आते हैं तो उनके अगले कदम पर हर किसी की नजर होगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के सीनियर वकील एस. फरमान नकवी के अनुसार, मुस्लिम समुदाय को नया विकल्प बनाना होगा। मतलब साफ है कि मुस्लिमों में अब सपा के विकल्प की तलाश होने लगी है। ऐसे में अगर आजम खान एक अलग राह पकड़ते हैं तो यह वर्ग उनके साथ जाता दिखाई दे सकता है।
लोकसभा चुनाव वर्ष 2024 में है और विधानसभा चुनाव वर्ष 2027 में। फिर अभी अखिलेश यादव की नाराजगी क्यों बढ़ी हुई है। इसको ऐसे समझिए, अगले कुछ माह में अखिलेश की बड़ी परीक्षा होने वाली है। इसमें अल्पसंख्यक वोट बैंक सबसे महत्वपूर्ण होगा। वह परीक्षा है आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा उप चुनाव। आजमगढ़ से अखिलेश यादव सांसद थे। वहीं, रामपुर से आजम खान। दोनों ने यूपी चुनाव 2022 के परिणाम के बाद अपनी सांसदी छोड़ दी। अब उप चुनाव में अगर अल्पसंख्यक वोट बैंक का बिखराव होता है।
अखिलेश यादव के खिलाफ यह वर्ग नाराज रहता है तो समाजवादी पार्टी की परंपरागत दोनों सीटों पर चुनाव परिणाम बदल सकता है। यह अखिलेश यादव के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर देगा। इसलिए, अखिलेश अभी इस वर्ग को किसी और पाले में जाने देने के मूड में नहीं है। वैसे, उन्हें लगता है कि वक्त के साथ नाराजगी भी दूर हो ही जाएगी, लेकिन तत्कालिक नाराजगी अगर बनी रही तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं।