आजादी के शताब्दी वर्ष के लिए 3 लक्ष्य दिये: पीएम
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के प्रशासनिक अधिकारियों को आजादी के शताब्दी वर्ष के लिए बृहस्पतिवार को तीन लक्ष्य दिये और कहा कि देश की एकता अखंडता को अक्षुण्ण रखते हुए जनसामान्य को नियमों एवं कानूनों के ऐसे बंधनों से मुक्त किया जाना चाहिए। जिससे उनका सामर्थ्य एवं साहस बाधित होता है। मोदी ने आज यहां सिविल सर्विस डे के मौके पर देश के प्रशासन में नवान्वेषण करने वाले अधिकारियों को प्रधानमंत्री लोक प्रशासन पुरस्कार प्रदान किया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, जनशिकायत, पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह, कैबिनेट सचिव राजीव गौबा एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के अमृतकाल के लिए सभी जिलाधिकारियों को अपने कार्यालय में लक्ष्यों को लिख कर दीवार पर लगाना चाहिए। जिन्हें आजादी के शताब्दी वर्ष 2047 तक हासिल करना है। उन्होंने कहा कि हर देशवासी प्रशासिक अधिकारियों को आशा एवं आकांक्षा से देख रहा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जो प्रेरणा दी, संकल्प दिया और प्रेरित किया था, हमें आज फिर उसे दोहराना है।
श्री मोदी ने कहा कि आजादी के अमृतकाल में हमारे सामने तीन लक्ष्य होने चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि आखिर देश में यह पद, व्यवस्था, प्रतिष्ठा, ये तामझाम किस बात के लिए है। उन्होंने कहा कि हमारा पहला लक्ष्य होना चाहिए कि पहला लक्ष्य सामान्य से सामान्य मानव के जीवन में बदलाव आये सुगमता आये और उसे अहसास भी हो
रोजमर्रा के जीवन में सरकार से सामान्य मानव के जो सरोकार हों, उसे पाने के लिए कोई समस्या नहीं आये। उसे अपने सपने को संकल्प और संकल्प को सिद्धि तक ले जाने का रास्ता स्वाभाविक एवं सुगम लगना चाहिए। इस काम में हमें उसका हाथ पकड़ कर चलने वाला साथी बनना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दूसरा लक्ष्य यह हो कि भारत आज वैश्वीकरण के केन्द्र में आ रहा है तो हमारे हर काम को वैश्विक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। आज हम जो भी करें उसे वैश्विक संदर्भ में देख कर करें, यह समय की मांग है।
भारत को भविष्य में कहां जाना है, यह सोच कर बढ़ना है। हम जो करें, उसमें नवीनता हो। हमारी व्यवस्था, नियमों एवं परंपरा में परिवर्तन पल पल के हिसाब से हो।
उन्होंने कहा कि हमारा तीसरा लक्ष्य सिविल सेवा का सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण काम है। प्रशासनिक अधिकारी किसी भी व्यवस्था में काम करें। उसमें ध्यान रखें कि देश की एकता एवं अखंडता से कोई समझौता नहीं हो। राजनीतिक रूप से आकर्षक लगने वाले बड़े से बड़े काम को इस तराजू से तौलना चाहिए कि उसका देश की एकता अखंडता पर दूरगामी दुष्प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। इतना ही नहीं, हमारा कोई भी काम देश की एकता को अखंडता को मजबूत करने वाला होना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं राजनीति से दूर जननीति से जुड़ा सामान्य मानविकी हूं।”
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में विचारधाराएं अलग अलग हो सकतीं हैं।लेकिन प्रशासन के केन्द्र में देश की एकता अखंडता को आगे रख कर काम करना होगा। हमारे हर काम ये कसौटी यह होनी चाहिए, राष्ट्र प्रथम। उन्होंने प्रशासनिक अधिकारियों से सचेत किया कि वे सरकार की नीतियोे में उनके जिले के लिए आवश्यक जरूरत को स्वविवेक से उठायें। इसके लिए उन्हें अलग से निर्देशों की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि भारत की महान संस्कृति की विशेषता है, हमारा देश राज्य व्यवस्था अथवा राजसिंहासनों से नहीं बना है। यह देश हजारों साल से परंपरा रही है और यह जनसामान्य के साथ बढ़ा है। आज भी हमें जो मिला है, वह जनभागीदारी से मिला है। जनता ने ही अपने जीवन से काल बाह्य चीजों को निकाल दिया है। उन्होंने कहा कि प्रशासन में हरेक को समाज में सहज होने परिवर्तन की अगुवाई करना होगा। उन्हें सोचना होगा कि ये नियमों कानूनों के बंधन क्या उसके साहस को सामर्थ्य को प्रभावित कर रहे हैं तो समय के साथ चलने का शक्ति खो जाएगी।
उन्होंने उदाहरण दिया कि देश के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेक्टर के नौजवानों ने देश की छवि बनाने का काम किया है। अगर नियम कानूनों से जकड़ दिया होता तो वे आगे नहीं बढ़ पाते। इसी तरह से स्टार्ट अप्स के बारे में बात करें तो 2022 के पहले तिमाही में 14 यूनीकॉर्न की जगह प्राप्त कर ली। केवल तीन माह में 14 यूनीकॉर्न बन जाना बताता है कि शासन व्यवस्था के बाहर भी सामर्थ्य बहुत है। इसी प्रकार से कृषि क्षेत्र में हमारे किसान आधुनिकता की ओर जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, “मेरी दृष्टि में लाखों लोगों में चेतना होनी चाहिए, सामर्थ्य होना चाहिए। मैं पल पल को जीना चाहता हूं, जीकर औरों को जीने की प्रेरणा देना चाहता हूं।” उन्होंने सवाल किया कि शासन में सुधार हमारा सहज स्वभाव बना है क्या ?” उन्होंने कहा कि शासन में समयानुकूल बदलाव सहज नित्य प्रयोगशील प्रक्रिया होनी चाहिए। देश की आशा आकांक्षा मजबूर कर रही है। जब तक देश की आशा आकांक्षा को नहीं समझेंगे तो शासन में समयानुकूल बदलाव नहीं कर पाएंगे।
उन्होंने अधिकारियों का आह्वान किया कि इलैक्ट्रॉनिक प्रणालियाें के आने के बाद बहुत तरह से कम्प्लायंस के लिए पुराने तरीके बदलें। उन्होंने कहा कि जितना हम नागरिक को कंप्लायंस के दबाव से मुक्त करेंगे उतना हमारा नागरिक खिलेगा। उन्होंने कहा कि एक समय था, हम अभाव में थे इसलिए हमारे नियम अभाव में कैसे जीयें , इस भाव से बनें। हमें तकनीक की मदद से नयी आने वाली चुनौतियों को भांपना और उसका समाधान खोजना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गर्वनेंस में बदलाव लाना हमारा नित्य कर्म होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आठ साल में कई ऐसे काम हुए जिनसे व्यवहार में बदलाव आना चाहिए। अब स्वच्छता आपके जीवन का स्वभाव बन जाना चाहिए।
हमारा यूपीआई की दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है, क्या हम अपनाते हैं या नहीं ? यदि यह नहीं हो पा रहा है तो आम नागरिक से क्या अपेक्षा करेंगे?