गुरुवार, 31 मार्च 2022
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अरहर व उड़द दाल के आयात को मुक्त श्रेणी में रखें
अरहर व उड़द दाल के आयात को मुक्त श्रेणी में रखें
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। घरेलू आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए केंद्र सरकार ने मार्च 2023 तक अरहर दाल और उड़द दाल के आयात को मुक्त श्रेणी में रखने का फैसला किया है। मुक्त श्रेणी में डाले जाने का मतलब है कि इन दालों के आयात पर कोई पाबंदी नहीं होगी। सरकार ने बयान जारी कर कहा है, घरेलू उपलब्धता बढ़ाने और आवश्यक खाद्य वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रण में रखने के सक्रिय कदम के तहत केंद्र ने 31 मार्च, 2023 तक अरहर और उड़द के आयात को मुक्त श्रेणी के तहत रखने के निर्णय को अधिसूचित किया।सरकार के अनुसार, इस नीतिगत उपाय को संबधित विभागों और संगठनों द्वारा सुविधाजनक उपायों और इसके कार्यान्वयन की बारीकी से निगरानी के साथ सहयोग दिया गया है।
इस फैसले ने अगले वित्त वर्ष में तुअर और उड़द के लिए आयात नीति व्यवस्था से जुड़ी अटकलों पर विराम लगा दिया है। यह नीति एक स्थिर व्यवस्था का भी संकेत देती है। इस नीति से सभी अंशधारकों को फायदा पहुंचने की उम्मीद है। सरकार का कहना है कि इस उपाय से देश में दालों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए इनका निर्बाध आयात सुनिश्चित किया जा सकेगा। गौरतलब कि इन दालों की उपलब्धता में बढ़ोतरी से इनके दाम घटेंगे और इसका सीधा फायदा उपभोक्ताओं को पहुंचेगा।
दरअसल, केंद्र सरकार ने 15 मई, 2021 से तहत अरहर, उड़द और मूंग के आयात को ‘मुक्त श्रेणी’ में डाल दिया था जो 31 अक्टूबर, 2021 तक वैध था। बाद में मूंग दाल को इस श्रेणी से निकाल दिया गया और अरहर व उड़द के आयात के संबंध में मुक्त व्यवस्था को 31 मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया गया।
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टाटा को 'भारत रत्न' की याचिका पर विचार से इनकार
टाटा को 'भारत रत्न' की याचिका पर विचार से इनकार
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने उद्योगपति रतन टाटा को भारत रत्न देने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर विचार करने से गुरुवार को इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता की मांग पर नाराज़गी जताते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति विपिन चावला की खंडपीठ ने सवाल किया , “क्या अदालत का यह काम है कि वह सरकार को किसी व्यक्ति को भारत रत्न पुरस्कार देने का निर्देश दे? यह किस तरह की याचिका है?”
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को चेतावनी दी कि अगर वह याचिका वापस नहीं लेता है तो अदालत उससे लागत वसूल करेगा। यह सुनने के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से याचिका वापस लेने का अनुरोध किया।याचिका में अदालत के समक्ष तर्क दिया गया था कि रतन टाटा का जीवन बेदाग है और वह भारत रत्न से सम्मानित होने के योग्य हैं। क्योंकि वह राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं। वकील ने कहा कि रतन टाटा ने एक अनुकरणीय जीवन व्यतीत किया है, दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित किया है और एक उत्कृष्ट नेता साबित हुए हैं। उन्होंने याचिका में कहा कि केंद्र सरकार को उद्योगपति रतन टाटा को भारत रत्न देने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
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ड्रेसकोड का पालन न करने वाले विद्यार्थी देश छोड़ दें
ड्रेसकोड का पालन न करने वाले विद्यार्थी देश छोड़ दें
इकबाल अंसारी
बेंगलुरु। कर्नाटक के भीतर चल रहे हिजाब विवाद को लेकर चल रहे जुबानी तीर थमते हुए नहीं लग रहे हैं। हिजाब विवाद में अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता ने कूदते हुए यूनिवर्सिटी के भीतर आयोजित किए गए कार्यक्रम में कहा है कि शिक्षा संस्थाओं में ड्रेसकोड का पालन नहीं करने वाले विद्यार्थी तुरंत देश छोड़ दें। उनकी इस टिप्पणी को लेकर छात्र संघों ने अपना विरोध जाहिर किया है। दरअसल मंगलौर विश्वविद्यालय के मंगल गंगोत्री परिसर में स्नातकोत्तर छात्र परिषद की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसके उद्घाटन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता कल्लाडका भट को आमंत्रित किया गया था। परिषद का उद्घाटन करने के बाद हुई सभा को संबोधित करते हुए आरएसएस नेता कल्लाडका भट ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष देश है। यह शांति और सद्भाव की भूमि है। शिक्षा संस्थानों द्वारा निर्धारित की गई ड्रेस को पहनने से इंकार करने वाले विद्यार्थियों की आलोचना करते हुए आरएसएस नेता ने कहा कि अगर वह यहां के नियमों का पालन नहीं कर सकते हैं तो उन्हें देश छोड़कर चले जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत का समृद्ध इतिहास है और मुगल राजा उस इतिहास का हिस्सा नहीं है। उन्होंने मुगल राजा अकबर को लेकर भी कुछ विवादित बातें कही हैं।
उधर आरएसएस नेता कल्लाडका भट की बातों का केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया एवं स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की ओर से विरोध किया गया है। इन संगठनों ने आरएसएस नेता को छात्र परिषद के कार्यक्रम के उद्घाटन के लिए बुलाने हेतु विश्वविद्यालय प्रशासन की आलोचना की है।
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