शुक्रवार, 25 मार्च 2022
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'दिल्ली नगर निगम' को लोकसभा में पेश किया
'दिल्ली नगर निगम' को लोकसभा में पेश किया
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। सरकार ने दिल्ली के तीन नगर निगमों का एकीकरण करने संबंधी दिल्ली नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2020 को शुक्रवार को विपक्षी दलों के सदस्यों के विरोध के बीच लोकसभा में पेश किया। विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस विधेयक को पेश करनाा, इस सदन के विधायी दायरे में नहीं आता है। निचले सदन में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने उक्त विधेयक पेश किया। इसका कांग्रेस, आरएसपी और बहुजन समाज पार्टी ने विरोध किया।
इस पर गृह राज्य मंत्री राय ने कहा कि वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि विधेयक को पेश करना कहीं से भी भारत के संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं है और ना ही यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239 (क) (क) के तहत दिल्ली से जुड़े इस कानून में संशोधन करने में सदन सक्षम है। राय ने कहा कि दिल्ली में तीन समवर्ती नगर निगमों के सृजन का मुख्य उद्देश्य जनता को प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराना था लेकिन पिछले 10 वर्षों का अनुभव यह दर्शाता है कि ऐसा नहीं हुआ। इसलिये यह विधेयक लाया गया है। विधेयक पेश किये जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि यह विधेयक दिल्ली सरकार और दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का हनन करता है।
उन्होंने कहा कि सदस्यों को विधेयक के मसौदा का अध्ययन करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला और इसका मसौदा जटिल है। कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि यह विधेयक संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। उन्होंने कहा कि इसे सदन में लाने से पहले केंद्र ने राजनीतिक दलों और अन्य हितधारकों से कोई विचार-विमर्श नहीं किया।उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के प्रयास में जल्दबाजी में यह विधेयक लाई है। बसपा के रीतेश पांडे ने कहा कि हम इस विधेयक को पेश किये जाने का विरोध करते हैं क्योंकि यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है। उन्होंने संविधान के संबंधित अनुच्छेद का उल्लेख करते हुए कहा कि एक तरफ नगर निगम का चुनाव नहीं कराया गया, दूसरी ओर तीनों नगर निगमों के एकीकरण का विधेयक लेकर आएं हैं, जो संवैधानिक रूप से गलत है। यह दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र का विषय है।
वहीं, कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि हम इस विधेयक को पेश किये जाने का इसलिये विरोध करते हैं क्योंकि यह इस सदन की विधायी दक्षता एवं दायरे से बाहर का विषय है। उन्होंने कहा कि नगर पालिका से जुड़ा विषय राज्य सरकार के पास है और इस बारे में अगर किसी की विधायी दक्षता है, तो वह दिल्ली विधानसभा के पास है इस सदन के पास नहीं। तिवारी ने कहा कि यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्ष 2011 में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र की विधानसभा द्वारा दिल्ली नगर निगम संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा उक्त अधिनियम को संशोधित किया गया था जिससे उक्त निगम का तीन पृथक निगमों में विभाजन हो गया। तत्काल दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में विभाजन करने का मुख्य उद्देश्य जनता को अधिक प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिये दिल्ली में विभिन्न केंद्रों में सुसंबद्ध नगर पालिकाओं का सृजन करना था, फिर भी दिल्ली नगर निगम का तीन भागों में विभाजन राज्य क्षेत्रीय प्रभागों और राजस्व सृजन की संभाव्यता के अर्थ में असमान था।
इसमें कहा गया है कि समय के साथ दिल्ली के तीन नगर निगमों की वित्तीय कठिनाइयों में वृद्धि हुई जिससे वे अपने कर्मचारियां को वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में अक्षम हो गए। वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में विलंब का परिणाम नगर निगम कर्मचारियों द्वारा निरंतर हड़ताल के रूप में सामने आया जिसने न केवल नागरिक सेवाओं को प्रभावित किया बल्कि इससे सफाई और स्वच्छता से संबंधित समस्याएं भी उत्पन्न हुईं। तीन नगर निगमों की ऐसी वित्तीय कठिनाइयों का परिणाम उनकी संविदा संबंधी और कानूनी बाध्यताओं को पूरा करने में अनियमित विलंब के रूप में हुआ जिसने दिल्ली में नागरिक सेवाओं के बनाए रखने में गंभीर रूकावटें उत्पन्न कीं। इसमें कहा गया है कि दिल्ली में तीन समवर्ती नगर निगमों के सृजन का मुख्य उद्देश्य जनता को प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराना था।
मसौदे के अनुसार पिछले 10 वर्षो का अनुभव यह दर्शाता है कि संसाधनों की अपर्याप्तता और निधियों के आवंटन एवं जारी करने की अनिश्चितता के कारण तीनों निगम गंभीर वित्तीय कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जिससे उनके लिये वांछित स्तर पर दिल्ली में नागरिक सेवाओं को बनाए रखना कठिन हो गया। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, सरकार देश की राजधानी में नागरिक सेवाएं प्रदान करने तथा वित्तीय कठिनाइयों एवं क्रियाशील अनिश्चितताओं को दूर करने के प्रयास के तहत दिल्ली नगर निगम संशोधन विधेयक 2022 लाई है। इसके तहत तीन नगर निगमों को एकीकृत करने की बात कही गई है। इसमें संसाधनों का बेहतर उपयोग करने के लिये एक सुदृढ़ तंत्र सुनिश्चित करना तथा दिल्ली के लोगों को अधिक कुशल नागरिक सेवा पूरी तरह पारदर्शिता के साथ प्रदान करने की बात कही गई है।
पूर्व विधायकों को एक कार्यकाल के लिए पेंशन
पूर्व विधायकों को एक कार्यकाल के लिए पेंशन
अमित शर्मा
चंडीगढ़। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शुक्रवार को कहा कि पूर्व विधायकों को अब सिर्फ एक कार्यकाल के लिए ही पेंशन मिलेगी। मान ने एक वीडियो संदेश में कहा कि, पंजाब में पूर्व विधायक, भले ही पांच बार या 10 बार चुनाव जीते हों, उन्हें अब सिर्फ एक कार्यकाल के लिए पेंशन मिलेगी।
उन्होंने कहा कि इससे जो बचत होगी उस धन को लोगों के कल्याण पर खर्च किया जाएगा। मान ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि, विधायक सहित हमारे राजनेता, आपसे हाथ जोड़ कर यह कहते हुए वोट मांगते हैं कि अपनी सेवा का हमें बस एक मौका दीजिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि लेकिन आप यह जानकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि तीन बार, चार बार या पांच बार जीतने वाले कई विधायकों को और फिर चुनाव हार जाने वाले या चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं मिलने के बाद उन्हें प्रति माह लाखों रुपये की पेंशन मिलती है। भगवंत मान ने कहा कि, किसी को 3.50 लाख रुपये, किसी को 4.50 लाख रुपये और किसी को 5.25 लाख रुपये की पेंशन मिलती है। इसका सरकारी खजाने पर करोड़ों रुपये का वित्तीय बोझ पड़ता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके (पूर्व विधायकों के) परिवार की पेंशन में भी कटौती की जाएगी। मान ने कहा कि उन्होंने इस सिलसिले में संबद्ध अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिये हैं। विधायक को एक कार्यकाल के लिए 75,000 रुपये की पेंशन मिलती है।
इसके बाद, आगे के प्रत्येक कार्यकाल के लिए अतिरिक्त 66 प्रतिशत पेंशन राशि मिलती है। कुछ दिन पहले शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता प्रकाश सिंह बादल ने कहा था कि वह पूर्व विधायक के तौर पर पेंशन नहीं लेंगे। वह 11 बार विधायक निर्वाचित हुए हैं। उन्होंने पंजाब सरकार और विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया था कि उनकी पेंशन की राशि समाज कल्याण में लगा दी जाए और इसके जरिये कुछ जरूरतमंद छात्राओं को उनकी शिक्षा में मदद को प्राथमिकता दी जाए।
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4 राज्यों में जीत के बाद मिशन 2024 की तैयारी प्रारंभ
4 राज्यों में जीत के बाद मिशन 2024 की तैयारी प्रारंभ
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। पांच राज्यों के चुनाव में अपनी सरकार वाले सभी चार राज्यों में जीत के बाद भाजपा में मिशन 2024 की तैयारी शुरू हो गई है। इस बीच 2022 के आखिर में दो और 2023 में नौ राज्यों के चुनाव होने हैं। भाजपा का लक्ष्य इन सभी राज्यों में अपनी या एनडीए की सरकारें बनवाने का है, ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह से सकारात्मक माहौल में उतरा जा सके। इसके लिए संगठन को चुस्त-दुरुस्त करना शुरू कर दिया गया है। अप्रैल में पार्टी में कुछ अहम संगठनात्मक बदलाव होने की संभावना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अहमदाबाद में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक में भाजपा संगठन की भी समीक्षा की गई। चूंकि, भाजपा के संगठन मंत्री संघ के प्रचारक होते हैं, इसलिए इनकी नियुक्ति के राजनीतिक मायने काफी अहम माने जाते हैं। इस बैठक के बाद मध्य प्रदेश में पार्टी के संगठन मंत्री को बदला गया है। संगठन मंत्री रहे सुहास भगत को संघ में वापस लाया गया है। उनके साथ सह संगठन मंत्री के रूप में काम कर रहे हितानंद शर्मा को संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया है। सूत्रों के अनुसार, मिशन 2024 को ध्यान में रखते हुए तीन से चार राज्यों में भी संगठन मंत्रियों में बदलाव किए जाने हैं।
अगले लोकसभा चुनाव के पहले देश के 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें दो गुजरात व हिमाचल प्रदेश में इसी साल 2022 के आखिर में चुनाव होने हैं। दोनों में भाजपा की सरकारें हैं। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने से अहम है तो हिमाचल प्रदेश पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा का गृह राज्य है। हिमाचल प्रदेश इसलिए भी अहम है क्योंकि वहां पर बीते दिनों हुए चार उप चुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।
इसके बाद 2023 का साल सबसे अहम होगा। इस साल में नौ विधानसभा चुनाव है। लोकसभा चुनाव से पहले का साल होने से यह चुनावी तैयारियों को लेकर भी अहम होगा। इन नौ राज्यों में चार पूर्वोत्तर के मेघालय, नागालैंड, मिजोरम व त्रिपुरा हैं। त्रिपुरा में भाजपा की सरकार है और बाकी में राजग के सहयोगी सत्ता में हैं। बड़े राज्यों में कर्नाटक पहले होगा और उसके बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान व तेलंगाना के चुनाव होने हैं। इनमें कर्नाटक व मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है, जबकि कांग्रेस की छत्तीसगढ़ व राजस्थान में और टीआरएस की तेंलगाना में सरकार है। कांग्रेस के पास यही दो राज्य सरकारें बची हैं।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने संघ के साथ मिलकर मजबूत संगठनात्मक तैयारी शुरू कर दी है। इसमें दोनों सालों में विधानसभा चुनाव वाले राज्यों के साथ अन्य राज्य भी शामिल हैं। लगभग आधा दर्जन राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष व संगठन स्तर पर भी कई बदलाव किए जाने हैं। अप्रैल माह से यह बदलाव शुरू हो जाएंगे।
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