ब्राह्मणों को एकजुट करने की जिम्मेदारी सौंपी
संदीप मिश्र
शाहजहांपुर। विधानसभा चुनाव में इस बार सर्वाधिक केंद्र बिंदु में ब्राह्मण ही रहे। चुनाव के दौरान यह भी खूब प्रचारित किया गया कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज हैं। हालांकि मुख्यमंत्री समेत तमाम वरिष्ठ नेता इस बात को नकारते ही रहे, इसके बावजूद ब्राह्मणों को साधने की कवायद भी चलती रही। इसी कवायद के एक हिस्से के रूप में कांग्रेस के नेता जितिन प्रसाद को बतौर ब्राह्मण चेहरा भाजपा में शामिल किया गया और उन्हें ब्राह्मणों को समझाने और एकजुट करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई।
इस जिम्मेदारी को जितिन प्रसाद बहुत ही खामोशी से निभाकर एक तरफ हट गए। शहर सीट से भाजपा के दिग्गज नेता सुरेश कुमार खन्ना की नौवीं जीत काफी हद तक जितिन प्रसाद की ही देन है। यदि ब्राह्मण वोट नहीं साधा गया होता, तो इस बार खन्ना की हवाइयां उड़ चुकी होतीं। वैसे भी जीत के बाद से ही रोजा मंडी मतगणना स्थल पर सभी भाजपाई एक ही बात कहते घूम रहे थे कि इस बार गोली कनपटी से निकल गई। वहीं, भाजपा से निकाले जाने के बाद सपा का दामन थामने वाले जितिन के चचेरे भाई जयेश प्रसाद ने भी विप्रों को साधने के लिए कई मीटिंगें की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी।
जितिन प्रसाद वाला कमाल जलालाबाद में सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए विधायक शरदवीर सिंह ने किया, जिस कारण इस विधानसभा में भाजपा खाता खोलने में कामयाब हो सकी। वैसे देखा जाए तो राजनीति का खेल बाकई बहुत घिनौना है। अब देखिए कि अंतिम नगर पालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में भाजपा से जयेश प्रसाद की पत्नी नीलिमा प्रसाद चुनाव मैदान में थीं और सपा से पार्टी जिलाध्यक्ष और तत्कालीन निवर्तमान चेयरमैन तनवीर खां की वालिदा जहांआरा उम्मीदवार थीं।
इस चुनाव में जयेश प्रसाद समेत पूरा भाजपाई अमला तनवीर खां का बर्चस्व तोड़ने में लगा था, लेकिन कामयाबी नहीं मिली और जीत जहांआरा की ही हुई, इससे पहले तनवीर खां ही चेयरमैन बनते आए थे। विधानसभा चुनाव में वही जयेश प्रसाद तनवीर के पक्ष में ब्राह्मणों यानि विप्रवरों को एकजुट करने में जुटे थे। अगर जयेश प्रसाद के प्रयास सफल हो जाते तो भी सुरेश खन्ना की पराजय पक्की थी और अपने वर्ग के सहारे खन्ना को घेरने वाले तनवीर खां के मंसूबे पूरे हो जाते, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
वहीं, जितिन प्रसाद इस मामले में बाजी मार ले गए और पूरे अंक बटोर कर चुपचाप किनारे हट गए। विप्र समाज जितिन के पीछे-पीछे ही था। लोगों की माने तो खन्ना की जीत में जितिन प्रसाद का बड़ा हाथ है। वहीं, चुनाव में खन्ना ने जिस तरह से ककरांकला को विकास का केंद्र बनाया और उसे तब न्यू सिटी घोषित किया, जब ककराकलां की हालत ऐसी थी कि वहां लोग जाना तक पसंद नहीं करते थे।
क्षेत्र में जबरदस्त विकास कराने के बाद खन्ना इस मुगालते में आ गए कि इस बार वहां के लोग उन्हें जरूर वोट देंगे, लेकिन बताया जाता है कि ककराकलां से खन्ना को जो वोट मिले वह दहाई के आंकड़े वाले भी नहीं थे। कमोवेश यही हाल मोहल्ला किला का भी रहा। यहां खन्ना की मीटिंगें कराकर उन्हें न सिर्फ सम्मानित किया गया, बल्कि भरोसा भी दिया गया कि इस बार वोट उन्हें ही दिया जाएगा, लेकिन यहां भी इसका उल्टा ही हुआ।
इसी तरह विधानसभा जलालाबाद में भाजपा जिलाध्यक्ष हरि प्रकाश वर्मा की जीत में सपा विधायक शरदवीर सिंह का बड़ा हाथ रहा, जो चुनाव से ठीक पहले टिकट नहीं मिलने पर सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे और उन्होंने भाजपा को जिताने तथा सपा प्रत्याशी नीरज कुशवाहा को हराने का संकल्प ले लिया था। इसके बाद वह हरि प्रकाश वर्मा के साथ क्षेत्र के ठाकुरों और ब्राह्मणों को एकजुट करने में कामयाब रहे। मतगणना में नीरज कुशवाहा और हरि प्रकाश वर्मा में कांटे की टक्कर दिखाई दी। अंत में भले ही जीत हरि प्रकाश वर्मा के हिस्से आई हो, लेकिन इस जीत में शरदवीर सिंह का भी योगदान है।