उत्तराखंड में अगले 5 वर्षों के लिए किसकी सरकार ?
पंकज कपूर
नैनीताल। उत्तराखंड को बने अभी 21 वर्ष ही और चार विधानसभा चुनाव ही हुए हैं, और इतना समय मिथकों व रिकॉर्डों के बनने-टूटने के लिए कम होता है और यह भी कहा जाता है। मिथक व रिकॉर्ड हमेशा कभी न कभी टूटने के लिए ही बनते हैं। बहरहाल आगामी 10 मार्च को ऐसे ही यह 10 मिथक हैं। जो बरकरार रहकर या टूटकर तय करेंगे कि राज्य में अगले पांच वर्षों के लिए किसकी सरकार होगी ? देहरादून में राज्य बनने के बाद भगत सिंह कोश्यारी को छोड़कर सभी मुख्यमंत्री, बल्कि पिछले मुख्यमंत्री हरीश रावत तो दो सीटों से विधानसभा चुनाव और हारते रहे हैं। यहां तक कि राज्य के मुख्यमंत्री तो आगे कोई चुनाव ही नहीं लड़े या हरीश रावत का ही उदाहरण है कि लोकसभा चुनाव भी हारे हैं, और उन्हें कोई जीत नसीब नहीं हुई है। निशंक इस मामले में बाद में लोकसभा चुनाव जीतकर जरूर मिथक तोड़ चुके हैं। बहुगुणा, खंडूड़ी, एनडी तिवारी बाद में कोई चुनाव नहीं लड़े।
उत्तराखंड के चारों विधानसभा चुनावों में राज्य के शिक्षा मंत्री-नरेंद्र सिंह भंडारी, मंत्री प्रसाद नैथानी व गोविंद सिंह बिष्ट चुनाव हारे हैं। अब अरविंद पांडे पर इस मिथक के टूटने या बरकरार रहने का दारोमदार है। यह मिथक भी मातबर सिंह कंडारी व प्रकाश पंत जैसे नेताओं की हार के साथ बना हुआ है। इस बार बिशन सिंह चुफाल पर इस मिथक के टूटने या बरकरार रहने का दारोमदार है। नैनीताल के राज्य बनने से पूर्व से हर विधायक सत्ता में रहा है। राज्य बनने के बाद भी उक्रांद के डॉ. नारायण सिंह जंतवाल, भाजपा के खड़क सिंह बोहरा, कांग्रेस की सरिता आर्य व भाजपा के संजीव आर्य सत्ता में रहे हैं। ऐसी कई अन्य सीटें भी हैं जहां के विधायक लगातार सरकार में रहे हैं।
कालाढुंगी, डीडीहाट, काशीपुर, यमकेश्वर, देहरादून की कैंट तथा हरिद्वार शहर सीटों से हमेशा भाजपा के और जागेश्वर व चकराता से हमेशा कांग्रेस के विधायक या कहें कि एक ही व्यक्ति चुनाव जीतते रहे हैं। यानी यह सीटें एक ही पार्टी या प्रत्याशी के अभेद्य किले की तरह हैं। यह मिथक भी इस बार कसौटी पर कसा जाना बाकी है। कांग्रेस के किले बताई गई उपरोक्त सीटों के अलावा पिथौरागढ़ की झूलाघाट सीट पर भाजपा पिछले चुनाव में मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद नहीं जीत पाई। पहले चुनाव में यहां निर्दलीय गगन सिंह रजवार जीते और उसके बाद कांग्रेस के हरीश धामी व हरीश रावत। भाजपा को आज भी यहां से जीत का इंतजार है।
यह मिथक इस देश की आजादी के बाद से हर चुनाव में बना हुआ है, और राज्य बनने के बाद भी नहीं टूटा है। रानीखेत से हारने वाली पार्टी की बनती है सरकार, यह मिथक सबको पता है। हर चार वर्ष में बदलती है राज्य में सरकार, यह मिथक भी सबको पता है।