वीडियो कॉल के माध्यम से बातचीत करेंगे 'राष्ट्रपति'
सुनील श्रीवास्तव मॉस्को। यूक्रेन की सीमा पर रूसी बलों की मौजूदगी बढ़ने के कारण अमेरिका और रूस के बीच बढ़े तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन मंगलवार को वीडियो कॉल के माध्यम से बातचीत करेंगे। व्हाइट हाउस और क्रेमलिन ने इस बात की पुष्टि की है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने शनिवार को कहा कि बाइडन सीमा पर रूसी सैन्य गतिविधियों को लेकर अमेरिका की चिंता व्यक्त करेंगे और ‘‘यूक्रेन की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के लिए अमेरिकी सहयोग की पुन: पुष्टि’’ करेंगे। वहीं, पुतिन इस बातचीत के दौरान अपनी चिंताएं व्यक्त करेंगे और उनका नाटो सैन्य गठबंधन में यूक्रेन को शामिल करने के हर प्रकार के कदम को लेकर विरोध प्रकट करने का इरादा है। क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा कि दोनों देशों के राष्ट्रपति ‘‘स्वयं फैसला करेंगे’’ कि वार्ता कितनी लंबी चलेगी।
इससे पहले, दोनों नेताओं के बीच वार्ता जुलाई में हुई थी। उस समय बाइडन ने अमेरिका के खिलाफ रैनसमवेयर हमले करने वाले रूसी आपराधिक हैकिंग गिरोहों पर लगाम लगाने के लिए पुतिन पर दबाव डाला था। रूस इस बात का दबाव बना रहा है कि अमेरिका यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किए जाने की गारंटी दे, लेकिन नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने पिछले सप्ताह कहा था कि यदि अन्य देश या गठबंधन विस्तार करना चाहते हैं, तो रूस का इससे कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।
बाडइन प्रशासन के एक अधिकारी के अनुसार, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने पता लगाया है कि रूस ने यूक्रेन के साथ लगती सीमा पर करीब 70 हजार सैनिकों की तैनाती की है और अगले वर्ष की शुरुआत में उसने संभावित आक्रमण की योजना बनाई है। अमेरिका के अधिकारियों और पूर्व अमेरिकी राजनयिकों का कहना है कि रूस के राष्ट्रपति जहां संभावित आक्रमण की तैयारियां कर रहे हैं, वहीं यूक्रेन की सेना पहले की तुलना में ज्यादा हथियारबंद एवं तैयार है और पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने से रूस की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचेगा।यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि रूस अगले महीने आक्रमण कर सकता है। यूक्रेन के रक्षा मंत्री ओलेक्सी रेजनिकोव ने कहा कि यूक्रेन और क्रीमिया के पास रूस के सैनिकों की अनुमानित संख्या 94,300 है और उन्होंने चेतावनी दी कि जनवरी में युद्ध भड़क सकता है। क्रेमलिन ने शुक्रवार को कहा कि बाइडन के साथ फोन पर बातचीत में पुतिन इस बात की गारंटी चाहेंगे कि यूक्रेन को नाटो के विस्तार में शामिल नहीं किया जाए।
यदि रूस यूक्रेन पर हमला करता है, तो बाइडन प्रशासन के पास रूस को वित्तीय नुकसान पहुंचाने के अपने संकल्प को पूरा करने के कई विकल्प हैं, जिनमें पुतिन के सहयोगियों को लक्ष्य बनाने वाले प्रतिबंध लागू करने से लेकर दुनियाभर में धन प्रवाहित करने वाली वित्तीय प्रणाली से रूस को काटना शामिल है। अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने यूक्रेन पर रूसी हमले की स्थिति में कोई सैन्य कदम उठाने की घोषणा नहीं की है, लेकिन वे उसे वित्तीय नुकसान पहुंचा सकते हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने इस सप्ताह कहा था, ‘‘हम अत्यधिक प्रभावित करने वाले वे वित्तीय कदम उठाएंगे, जिन्हें हम अतीत में उठाने से बचते रहे हैं।’’
बाइडन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई को “बेहद कठिन” बनाने का शुक्रवार को संकल्प लिया था और कहा था कि उनका प्रशासन रूस के आक्रमण को रोकने के लिए व्यापक कदम उठा रहा है। बाइडन ने कहा था कि वह व्यापक और सार्थक कदम उठा रहे हैं जिससे पुतिन के लिए आगे बढ़ना और लोगों को चिंतित करने वाले कदम उठाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
अफ्रीका व यूरोप के कई देशों में खलबली: ओमिक्रोन
अखिलेश पांंडेय प्रिटोरिया। कोराना वायरस के 'अत्यंत संक्रामक' बताए जा रहे नए वेरिएंट 'ओमीक्रोन' को लेकर जहां अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में खलबली मची है। वहीं इसने भारत में भी दस्तक देकर सरकार और प्रशासन के साथ ही आमजन की चिंता बढ़ा दी है। इसकी संक्रामक प्रवृत्ति और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को लेकर देश में तमाम तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। इन्हीं सब मुद्दों पर पब्लिक हेल्थ ौौ ऑफ इंडिया के अध्यक्ष एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के हृदय रोग विज्ञान (कार्डियोलॉजी) विभाग के पूर्व प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत की।
सवाल ओमीक्रोन ने भारत में दस्तक दे दी है और इसे लेकर दहशत का माहौल है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे बेहद संक्रामक बताते हुए चिंता जताई है। इस बारे में आपका क्या कहना है। जवाब जहां तक इसकी संक्रामक क्षमता का सवाल है तो यह सही है कि यह ज्यादा संक्रामक है। दक्षिण अफ्रीका और यूरोप के देशों में जिस गति से यह फैला है, वह इसका सबूत भी है। वायरस का यह वेरिएंट गंभीर रूप से बीमार करता है, अभी तक इसका कोई संकेत नहीं है। बल्कि अभी तक जो भी चीजें सामने आई हैं, उससे पता चलता है कि कि संक्रमित लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराने की बहुत ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे लोगों की जान नहीं जा रही है, जैसा कि हमें वायरस के डेल्टा वेरिएंट में देखने को मिला था। रही बात टीकों के प्रभाव की तो यह संभावना ज्यादा है कि टीकों का असर कम हो जाए। क्योंकि टीकों से बनने वाले एंटीबॉडी का स्तर कुछ समय बाद कम हो जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टीके वायरस से पूरी तरह हार जाएंगे।
सवाल इससे पहले कि ओमीक्रोन खतरनाक रूप धारण करे, सरकार को तत्काल क्या कदम उठाने चाहिए। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर भी प्रतिबंध की बात उठ रही है। इसलिए मास्क पहनकर चलें ताकि वायरस हमारे शरीर में प्रवेश नहीं कर सके। भीड़-भाड़ वाले जो कार्यक्रम हैं, उन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। टीकाकरण की गति बढ़नी चाहिए। स्वास्थ्य पर इसके असर की लगातार निगरानी करते रहनी होगी। संक्रमण भले ही फैले लेकिन अगर यह लोगों को गंभीर रूप से बीमार नहीं कर रहा है तो घर में ही इलाज का प्रबंध किया जाना चाहिए। बीमारी तीव्र हो तो जरूर अस्पतालों का भी प्रबंध किया जाना चाहिए। रही बात अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाने कि तो मेरा मानना है। इससे कुछ फायदा नहीं होने वाला है। चीन में जब यह महामारी आई तो कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाया था, ब्रिटेन में अल्फा वेरिएंट आया तब भी हमने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगाया और डेल्टा वेरिएंट के मामले में भी यही किया लेकिन इसके बावजूद हम इसे फैलने से नहीं रोक सके। लेकिन इसकी गति को हम थोड़ा कम कर सकते हैं, उड़ानों पर प्रतिबंध लगाकर। प्रतिबंध लगाने की बजाय जो यात्री विदेशों से आ रहे हैं, उनकी जांच की जाए और उनमें रोगों के लक्षण का पता लगाया जाए। उनके संपर्कों का पता किया जाना चाहिए।
सवाल। जब भी वायरस का कोई नया वेरिएंट सामने आता है, देश में यह बहस छिड़ जाती है कि टीके इसके खिलाफ कारगर हैं या नहीं। अगर हैं तो कौन सा टीका अत्यधिक प्रभावी है। बूस्टर खुराक की भी चर्चा होने लगती है। आप क्या कहेंगे। जवाब मैं पिछले अप्रैल महीने से ही कह रहा हूं कि ये जो टीके बने हैं या फिर जिनका हम दुनिया भर में इस्तेमाल कर रहे हैं, वे गंभीर बीमारी को रोक सकते हैं लेकिन वायरस का संक्रमण फैलने से नहीं रोक सकते। संक्रमण को फैलने से रोकने का काम मास्क ही कर सकता है और टीका हमें सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए हमें टीके भी लगवाने हैं और मास्क भी पहनना है। रही बात बूस्टर खुराक की तो यह टीकों के प्रभाव पर निर्भर करता है।कुछ टीके हैं जो तेजी से एंटीबॉडीज बढ़ा देते हैं। कुछ हैं कि जिनमें एंटीबॉडी का स्तर कुछ महीनों के बाद खत्म भी हो जाता है। टीके-टीके में फर्क है और व्यक्ति-व्यक्ति में भी फर्क है। बूस्टर खुराक देने से पहले यह देखना जरूरी होगा कि ओमीक्रोन कितने गंभीर रूप से बीमार कर रहा है।
सवाल: देशव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अब तक टीकों की 126.53 करोड़ से अधिक खुराक लगाई गई हैं। इनमें से दोनों खुराक सिर्फ 46,88,15,845 लोगों को ही दी गई हैं जबकि 79,56,76, 342 लोगों ने पहली खुराक ली है। इस बारे में आपकी राय। जवाब हमें जल्दी से जल्दी टीकों की दोनों खुराक देनी होंगी। टीकाकरण कार्यक्रम को जल्द से जल्द पूरा किया जाना आवश्यक है। अगर यह साबित होता है कि ओमीक्रोन से स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो रहा है, तो बूस्टर खुराक शुरू कर सकते हैं। इसमें भी 60 साल से अधिक उम्र या गंभीर बीमारी वालों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सवाल लोगों के मन में बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि क्या हर साल कोरोना वायरस का कोई न कोई वेरिएंट आता रहेगा और हम इसी प्रकार भय के साये में जीने को मजबूर रहेंगे। इसके खतरे को हम जरूर कम कर सकते हैं और उसे संकेत दे सकते हैं कि तुम्हें हमारे बीच में रहना है तो बीमारी ज्यादा मत फैलाओ, फिलहाल, घबराने वाली बात नहीं है क्योंकि ओमीक्रोन से अभी तक स्वास्थ्य पर बहुत गंभीर असर नहीं देखा गया है। यह हमारे लिए अच्छा संकेत है। इसलिए मास्क पहनें, भीड़-भाड़ से दूर रहें और टीका लगवाएं।
‘एक चीन’ नीति को लेकर प्रतिबद्ध हैं अमेरिका
अखिलेश पांंडेय वाशिंगटन डीसी। अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने शनिवार को कहा कि पेंटागन उच्च प्रौद्योगिकी प्रणालियों को विकसित करने के लिए निजी उद्योग के साथ मिलकर बेहतर तरीके से काम करने का इरादा रखता है और चीन पर प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाए रखने के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोगियों के साथ संबंध मजबूत करना चाहता है। रक्षा मंत्री ने कैलिफोर्निया में ‘रीगन नेशनल डिफेंस फोरम’ में कहा कि क्षेत्र में और खासकर स्वशासी ताइवान के निकट चीन की सैन्य गतिविधियां और उसके आक्रामक कदम परेशान करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका लंबे समय से चली आ रही ‘एक चीन’ नीति को लेकर अब भी प्रतिबद्ध है तथा इसके साथ ही वह ताइवान को अपनी रक्षा करने में और सक्षम बनाना चाहता है।