मानव शरीर में सफल सुअर की किडनी की सर्जरी अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। रिपोर्ट्स के मुताबिक, डॉक्टरों को इसमें कामयाबी भी मिली है। बताया गया है कि मानव शरीर में सुअर की किडनी अच्छे से काम कर रही है। फिलहाल इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट आनी बाकी है। दरअसल, यह मामला अमेरिका के न्यूयॉर्क का है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूयॉर्क सिटी में स्थित एनवाईयू लैंगन हेल्थ सेंटर में डॉक्टरों की एक विशेषज्ञ टीम ने सर्जरी अंजाम दिया है। इस सर्जरी को बेहद चरणबद्ध तरीके से किया गया है और इसकी तैयारी भी काफी ठोस तरीके से की गई थी। किडनी ट्रांसप्लांट से पहले सुअर के जीन को बदल दिया गया था, ताकि मानव शरीर उसके अंग को तत्काल खारिज न कर पाएं। रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रांसप्लांट की यह प्रक्रिया एक ब्रेन डेड हो चुके पेशेंट पर की गई।
पेशेंट की किडनी ने काम करना बंद कर दिया था लेकिन उसे लाइफ सपोर्ट से हटाने से पहले डॉक्टरों ने उनके परिवारों से इस टेस्ट की अनुमति मांगी थी, जिसके बाद उन्होंने यह प्रयोग किया। तीन दिन तक सुअर की किडनी ब्रेन डेड मरीज की रक्त वाहिकाओं से जुड़ा हुआ था। किडनी को शरीर के बाहर ही रखा गया था।
'डिलीवरथैंक्स' का दूसरा संस्करण लॉन्च, घोषणा
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। अमेज़न इंडिया ने अपने डिजिटल अभियान 'डिलीवरथैंक्स' का दूसरा संस्करण आज लॉन्च करने की घोषणा की। यह अभियान ग्राहकों को अमेज़न की फ्रंटलाईन टीम्स के लिए खुशी व सराहना का संदेश साझा करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
कंपनी ने यहां जारी बयान में कहा कि ये टीमें ग्राहकों के 'खुशियों के डिब्बे' की सुरक्षित व समयबद्ध डिलीवरी सुनिश्चित करते हैं। इस अभियान का उद्देश्य अमेज़न के ऑपरेशंस नेटवर्क में हजारों एसोसिएट्स के प्रयासों को सम्मानित करना है, जो त्योहारों के लिए ग्राहकों द्वारा की गई खरीद को हर बार उनके घरों पर सुरक्षित व समयबद्ध तरीके से पहुंचाते हैं। 'डिलीवरथैंक्स' का दूसरा संस्करण ग्राहकों को रचनात्मक बनने और डिलीवरी एसोसिएट्स के लिए अपने दरवाजे पर 'थैंकयू' नोट या पोस्टर लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, ताकि डिलीवरी के लिए ग्राहकों के घर पर पहुंचने पर इन डिलीवरी एसोसिएट्स को खुशी मिले। ग्राहक थैंक यू नोट या पोस्टर अपने सोशल मीडिया चैनलों पर पोस्ट करके भी 'थैंक्स डिलीवर' कर सकते हैं।
उसने कहा कि इस यूज़र जनरेटेड अभियान के साथ, अमेज़न का उद्देश्य अपने फुलफिलमेंट एवं डिलीवरी नेटवर्क में काम करने वाले सभी डिलीवरी एसोसिएट्स, पिकर्स, पैकर्स, सॉर्टर एवं अन्य एसोसिएट्स के प्रति ग्राहकों को अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल कर अपनी खुशी व सराहना साझा करने में समर्थ बनाना है, क्योंकि ये लोग त्योहारों पर उनकी शॉपिंग को संभव बना रहे हैं।
खेल: ऑस्ट्रेलिया को करारी शिकस्त, लय बनी रहीं
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। टी-20 वर्ल्ड कप में टीम इंडिया ने अपने दूसरे वार्मअप मैच में ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से धमाकेदार अंदाज में हरा दिया है। भारत के बल्लेबाजों ने मैच को अपने कब्जे में रखा और अंत तक लय नहीं खोई। दूसरे वार्मअप मैच में भारतीय बल्लेबाजों ने अपनी खोई हुई फॉर्म वापिस पा ली।
जिससे पाकिस्तान के खिलाफ धमाका होने की उम्मीद है। भारत ने दुनिया को महानतम बल्लेबाज दिए हैं। यहां हम बात करेंगे तीन ऐसे खिलाड़ियों की जो पाकिस्तान के खिलाफ अपने प्रदर्शन से कमाल करेंगे।
सबसे खतरनाक ओपनर।
इस समय इंटरनेशनल क्रिकेट में रोहित शर्मा से ज्यादा खतरनाक बल्लेबाज दुनिया में कोई नहीं है। रोहित वनडे क्रिकेट में तीन दोहरे शतक लगाने वाले दुनिया के इकलौते बल्लेबाज हैं। उनके छक्के लगाने की कला से हर गेंदबाज अच्छी तरफ से वाकिफ है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे वार्मअप मैच में रोहित शर्मा ने 41 गेंद पर 60 रनों की पारी खेली, जिसमें 3 आतिशी छक्के शामिल थे. वे इस पारी से फॉर्म में आ गए हैं। पिछली बार जब वनडे वर्ल्ड कप में रोहित ने पाकिस्तान के खिलाफ 140 रनों की पारी खेली थी। विराट कोहली इस भारतीय विस्फोटक ओपनर से पाकिस्तान के खिलाफ तूफानी पारी की उम्मीद करेंगे।
भारतीय कप्तान विराट कोहली ने पहले ही साफ किया हुआ है कि रोहित शर्मा के साथ केएल राहुल ओपनिंग करने उतरेंगे, लेकिन ईशान किशन ने अपने धमाकेदार प्रदर्शन से कोहली को एक और ओपनर दे दिया है।किशन भारतीय टीम में किसी भी क्रम पर बल्लेबाजी कर सकते हैं। किशन ने पहले वार्मअप मैच में 70 रनों की पारी खेली जबकि आईपीएल 2021 में सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ उन्होंने 32 गेंद में 82 रनों की तूफानी पारी खेली। किशन अपनी लय में होने पर किसी भी गेंदबाज की बखिया उधेड़ सकते हैं।
आज के दौर में ये भारतीय ऑलराउंडर सबसे खतरनाक नजर आता है। भारतीय कप्तान के लिए वे थ्रीडी प्रदर्शन करते हैं गेंदबाजी, बल्लेबाजी और फिल्डिंग में उन्हें महाराथ हासिल है यूएई और ओमान की पिचें स्पिनर की मददगार होती हैं जडेजा अपनी स्पिन गेंद से बल्लेबाजों को नचाते नजर आएंगे और बल्लेबाजी में तो वे एक ओवर में 37 रन तक बना देते हैं। आईपीएल 2021 में उन्होंने बहुत ही शानदार प्रदर्शन किया है। कोहली चाहेंगे कि वे पाकिस्तान के खिलाफ भी ऐसा प्रदर्शन करना जारी रखें।
पाकिस्तान के खिलाफ पहला मुकाबला।
टीम इंडिया टी20 वर्ल्ड कप के अपने पहले मुकाबले में सबसे बड़े दुश्मन पाकिस्तान का सामना करने वाली है।ये मैच 24 अक्टूबर को खेला जाएगा। भारतीय टीम आजतक वर्ल्ड कप में कभी भी पाकिस्तान के खिलाफ कोई मैच नहीं हारी है और आगामी मुकाबले में भी वो अपनी इस बढ़त को बरकरार रखना चाहेगी।
श्रम कानूनः हकीकत में कुछ, सच्चाई कुछ और
हरिओम उपाध्याय
नई दिल्ली। हमारे देश में कहने के लिए तो मज़दूरों के लिए दर्जनों केन्द्रीय और कई राज्य श्रम क़ानून काग़ज़ों पर मौजूद हैं। पर तमाम कारख़ानों-खेतों खलिहानों में काम करने वाले करोड़ों श्रमिक अपनी जीवन स्थितियों से जानते और समझते हैं कि इन क़ानूनों की वास्तविकता क्या है और हक़ीक़त में ये कितना लागू होते हैं। देश के असंगठित-अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत मज़दूर आबादी तो वैसे भी इन तमाम क़ानूनों के दायरे में बिरले ही आती है। वहीं औपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले संगठित कामगारों-कर्मचारियों के तबक़े को भी इस क़ानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर करने की क़वायदें तेज़ हो रही हैं। बावजूद इसके इन श्रम क़ानूनों के वास्तविक चरित्र की चर्चा कम ही होती है।
फ़िलहाल श्रम क़ानूनों का मसला इसलिए भी सुर्ख़ियों में बना हुआ है क्योंकि मोदी सरकार द्वारा मज़दूरों को प्राप्त श्रम क़ानून रूपी नाममात्र की इस राजकीय सुरक्षा और संरक्षण पर भी हमला बोला जा रहा है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि आज की फ़ासीवादी मोदी सरकार व अन्य राज्य सरकारें जिस मज़दूर वर्ग-विरोधी मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं उसकी शुरुआत बहुत पहले ही कांग्रेस के समय से हो चुकी थी। विशेष तौर पर 1991 में नव उदारवादी नीतियों की औपचारिक शुरुआत के साथ ही पूँजीवादी राज्यसत्ता और तमाम सरकारों की श्रम सम्बन्धी नीतियों में एक निरन्तरता दिखलाई पड़ती है जिसने पूँजीपति वर्ग के “धन्धे और कारोबार में आसानी” के नाम पर श्रम के अनौपचारिकीकरण, ठेकाकरण, कैज़ुअलकरण आदि की प्रकिया को बड़े पैमाने पर संवेग प्रदान किया है।
साथ ही, जिस स्वरूप में ये श्रम क़ानून अपने मूल रूप में भी मौजूद थे, उस रूप में भी ये किसी भी पैमाने से मज़दूरों के असली हक़ों-अधिकारों की नुमाइन्दगी नहीं करते थे। हालाँकि इस तथ्य को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें और मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी कर चुकी संशोधनवादी यूनियनें कभी नहीं उठाती हैं मानो कि अपने मूल रूप में ये क़ानून बहुत आमूलगामी या कल्याणकारी रहे हों। परन्तु इसका मतलब यह क़तई नहीं है कि आज सरकारों द्वारा श्रम क़ानूनों पर हो रहे हमलों का विरोध नहीं किया जाना चाहिए।
वास्तव में श्रम क़ानूनों के पूरे इतिहास और विकास क्रम को देखने पर पूँजीवादी राज्य का असली स्वरूप व चरित्र ही उद्घाटित होता है। पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तर्गत ऊपर से ऐसा दिखता है कि राज्य पूँजी और श्रम के बीच के सम्बन्धों के बीच तालमेल या सन्तुलन स्थापित कर रहा है। लेकिन वस्तुतः पूँजीवादी राज्य, पूँजीपति वर्ग से अपनी सापेक्षिक स्वायत्तता के बावजूद, अन्तिम तौर पर समूचे पूँजीपति वर्ग के क्रियाकलापों के प्रबन्धन का ही काम करता है, पूँजीवादी उत्पादन सम्बन्धों को रेखांकित और पुनरुत्पादित करता है और पूँजीपति वर्ग के दीर्घकालिक सामूहिक वर्ग हितों का प्रतिनिधित्व करता है। भारत में मौजूद क़ानून व न्यायिक व्यवस्था को देखने पर आम तौर पर और तमाम श्रम क़ानूनों के विश्लेषण में विशिष्ट तौर पर यही बात बार-बार सत्यापित भी होती है।
भारत में श्रम व फ़ैक्टरी विधि निर्माण की प्रक्रिया की शुरुआत औपनिवेशिक ब्रिटिश सत्ता द्वारा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध व बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में की गयी थी। भारत की उत्तर-औपनिवेशिक पूँजीवादी राज्यसत्ता ने मामूली बदलावों के साथ ही इन्हीं क़ानूनों को बरक़रार रखा क्योंकि ये भारतीय पूँजीपति वर्ग की आवश्यकताओं के भी अनुकूल था। यानी तमाम श्रम व फ़ैक्टरी अधिनियम जैसे कि कारख़ाना अधिनियम व इसके विभिन्न संशोधन, मज़दूरी संदाय अधिनियम 1936 (Payment of Wages Act, 1936), कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923), ट्रेड यूनियन अधिनियम 1926), व्यवसाय विवाद अधिनियम 1929), जो आगे चलकर
औद्योगिक 1947) बना, आदि का उद्भव औपनिवेशिक काल में देखा जा सकता है। फ़िलहाल इस लेख में हम श्रम विधि निर्माण में ट्रेड यूनियन सम्बन्धी अधिनियमों और क़ानूनी प्रावधानों पर अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे।
ट्रेड यूनियन अधिनियम, 1926 का मूलभूत उद्देश्य “उत्तरदायित्वपूर्ण यूनियनवाद” को बढ़ावा देना था, वहीं व्यवसाय विवाद अधिनियम का मक़सद विवाद के पक्षों (ज़ाहिरा तौर पर मुख्यतः मज़दूर यूनियनों) को समझौते और मध्यस्थता के लिए बाध्य करना था। जैसा कि हमने ऊपर भी इंगित किया यही व्यवसाय विवाद अधिनियम आगे चलकर औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के रूप में सामने आता है। स्वातंत्र्योत्तर भारत में भारतीय राज्यसत्ता को ये तमाम क़ानून विरासत में प्राप्त हुए। स्पष्टतः इन आधे-अधूरे लूले-लँगड़े श्रम क़ानूनों के निर्माण में भी मुख्य तौर पर जुझारू मज़दूर संगठनों व संघर्षों की भूमिका अग्रणी थी और राज्यसत्त्ता द्वारा ये ख़ैरात में नहीं दिये गये थे। ग़ौरतलब है कि उस दौर में इन मज़दूर संघर्षों का चरित्र राजनीतिक था और राष्ट्रीय आन्दोलन के भीतर भी मज़दूर आन्दोलन की उपस्थिति और दख़ल था। इसके अलावा, वैश्विक परिस्थितियाँ भी एक भूमिका अदा कर रही थीं जिसमें 1917 की रूस की अक्टूबर बोल्शेविक क्रान्ति और उसके आलोक में कई देशों में कम्युनिस्ट पार्टियों के गठन की भूमिका उल्लेखनीय है।
हालाँकि श्रम क़ानूनों को बनाने के पीछे एक अन्य पहलू भी काम कर रहा था। वह था इन क़ानूनों के ज़रिए औद्योगिक विवादों में, यानी श्रम और पूँजी के अन्तरविरोध में पूँजीवादी राज्य की हस्तक्षेपकारी भूमिका को रेखांकित और परिभाषित करना और साथ ही मज़दूर संघर्षों को इन क़ानूनों के द्वारा विनियमित करना और मज़दूर आन्दोलन के पूरे विमर्श को ही वैधता और क़ानून के दायरे में संकुचित करना।
आज़ादी के बाद त्वरित आर्थिक विकास और “औद्योगिक शान्ति” को बनाये रखने के लिए पूँजीपति नियोक्ताओं और यूनियनों (यानी पूँजी और श्रम) के बीच राज्य की मध्यस्थता को श्रम व फ़ैक्टरी संहिताओं के ज़रिए स्थापित किया गया मानो पूँजीवादी राज्य इन संघर्षरत वर्गों से इतर और उनके ऊपर बैठा हुआ कोई निष्पक्ष या तटस्थ निकाय हो। इसके तहत औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए श्रम और पूँजी के बीच राज्य एजेंसियों की मध्यस्थता को अनिवार्य शर्त बना दिया गया। यानी औद्योगिक विवादों में कहने के लिए एक “त्रिपक्षीय” व्यवस्था लागू की गयी।
सोने-चांदी की कीमत में उछाल, बढत का असर
अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। डॉलर इंडेक्स का रुख में नरमी से अंतरराष्ट्रीय बुलियन मार्केट में सोने-चांदी की उछाल जारी है। इसका असर घरेलू दामों पर भी दिख रहा है। गुरुवार यानी 21 अक्टूबर, 2021 को भी सोने में बढ़त दर्ज हुई है। आज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर सोना सुबह 55 रुपये की बढ़त लेकर 47,554 रुपये प्रति 10 ग्राम पर दर्ज हुआ। वहीं, सिल्वर फ्यूचर में 118 रुपये के आसपास तेजी आई और यह मेटल 65,725 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर देखा गया।
सोना पिछले सत्र में 47,499 रुपये के स्तर पर बंद हुआ था। वहीं, चांदी 65,607 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट पर बंद हुई थी। ग्लोबल बाजारों में भी तेजी देखी जा रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में देखें तो Goldprice.org के मुताबिक, तो भारतीय समयानुसार सुबह 9.35 पर सोने में 0.26 फीसदी की तेजी दर्ज हो रही थी और यह 1786.50 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर था। वहीं चांदी 0.48 फीसदी की तेजी के साथ 24.41 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गई थी।
इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स असोसिएशन लिमिटेड के अनुसार आज सोने-चांदी की कीमत (जीएसटी के बगैर)
अगर प्रमुख शहरों में गोल्ड की कीमतों पर नजर डालें तो दिल्ली में 22 कैरेट के सोने की कीमत 46,610 और 24 कैरेट सोने की कीमत 50,850 चल रही है। मुंबई में 22 कैरेट सोना 46,480 और 24 कैरेट सोना 47,480 पर चल रहा है। कोलकाता में 22 कैरेट सोना 46,900 रुपए है, वहीं 24 कैरेट सोना 49,600 रुपए है। चेन्नई में 22 कैरेट सोने की कीमत 44,840 और 24 कैरेट 48,920 रुपए पर है। ये कीमतें प्रति 10 ग्राम सोने पर हैं।
अगर चांदी की बात करें तो वेबसाइट के मुताबिक, प्रति किलोग्राम चांदी की कीमत 65,900 रुपए प्रति किलो है। दिल्ली में चांदी 65,900 रुपए प्रति किलो बिक रही है। मुंबई और कोलकाता में भी चांदी की कीमत यही है। चेन्नई में चांदी की कीमत 70,200 रुपए प्रति किलो है।
विरोध अधिकार, मार्ग नहीं रोक सकतेः एससी
हरिओम उपाध्याय
नई दिल्ली। लगातार किसानों के विरोध-प्रदर्शन और उसके कारण सड़क जाम जैसी स्थितियों के उत्पन्न होने पर बड़ा बयान दिया है। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने का अधिकार है। लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति एस एस कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि कानूनी रूप से चुनौती लंबित है फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के खिलाफ नहीं है लेकिन अंततः कोई समाधान निकालना होगा।
पीठ ने कहा कि किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन वे अनिश्चितकाल के लिए सड़क अवरुद्ध नहीं कर सकते। आप जिस तरीके से चाहें विरोध कर सकते हैं लेकिन सड़कों को इस तरह अवरुद्ध नहीं कर सकते। लोगों को सड़कों पर जाने का अधिकार है लेकिन वे इसे अवरुद्ध नहीं कर सकते।शीर्ष अदालत ने किसान यूनियनों से इस मुद्दे पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को सात दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। न्यायालय नोएडा की निवासी मोनिका अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जिसमें कहा गया है कि किसान आंदोलन के कारण सड़क अवरुद्ध होने से आवाजाही में मुश्किल हो रही है।