अमित शाह
चडींगढ। पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी मंत्री हरीश रावत ने ठीक उसी समय यह बयान क्यों दिया ? जब चरणजीत सिंह चन्नी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पंजाब में पहली बार किसी दलित नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया है। कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर गलती की, ऐसा सभी लोग मानते हैं लेकिन वहां के नेताओं ने ऐसे हालात ही पैदा कर दिये थे जिससे कैप्टन को कुर्सी से उतारना ही पड़ा। कांग्रेस के पास कैप्टन के कद का कोई नेता नहीं है और 6 महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस सब के बाद भी दलित मुख्यमंत्री का कार्ड भारी पड़ रहा था। हरीश रावत ने बयान दिया कि विधानसभा के चुनाव नवजोत सिद्धू के चेहरे पर लड़े जाएंगे। इसका सीधा मतलब कि दलित नेता को सिर्फ दिखाने के लिए सीएम बनाया गया है। अकाली दल और पंजाब में उसकी सहयोगी बसपा प्रमुख मायावती ने इस मामले को तुरंत उठाया। इस प्रकार पंजाब में हरीश रावत ने कांग्रेस का सारा गुड़ गोबर कर दिया है। हरीश रावत के बयान को हाईकमान का मंतव्य समझा जा रहा है। यदि हाईकमान ने नवजोत सिद्धू को है। साधारण राजनीति भी यही बताती है कि दलित मुख्यमंत्री बनाते ही सवर्ण जाट का चेहरा आगे करने से पूरी रणनीति बिखर गयी है। सिद्धू के मन का ही तो सब कुछ हो रहा था, फिर बयान देने की हरीश रावत को इतनी जल्दी क्यों हुई।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब के नए सीएम ने अच्छी छाप छोड़ी। पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी ने पदभार संभालने के बाद किसानों और आम लोगों को बड़ा तोहफा दिया है। चन्नी ने शपथ ग्रहण करने के बाद अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हम किसानों के पानी और बिजली के बिल माफ करेंगे।’ पंजाब के सीएम ने कहा, ‘पंजाब सरकार किसानों के साथ खड़ी है। हम केंद्र से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की अपील करते हैं। अगर ये तीनों कानून वापस नहीं लिए गए तो किसानी खत्म हो जाएगी और पंजाब के हर परिवार पर फर्क पड़ेगा।’ उन्होंने इसके साथ ही कहा किसानों पर अगर किसी तरह की आंच आई तो वह अपनी गर्दन पेश कर देंगे। उन्होंने अपने को आम आदमी (कामन मैन) बताया।
चंडीगढ़ में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए चन्नी भावुक हो गए। उन्होंने खुद के गरीब परिवार में पैदा होने का जिक्र करते हुए कहा कि वह इस बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए कांग्रेस नेतृत्व का धन्यवाद करते हैं। उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस ने एक आम आदमी को मुख्यमंत्री बना दिया है।’ उन्होंने कहा कि पार्टी सुप्रीम है। सीएम या एमएलए सुप्रीम नहीं है।’ उन्होंने कहा कि सरकार कांग्रेस की विचारधारा पर चलेगी, जो सबको साथ लेकर चलने की है। उन्होंने कहा कि जाति या संप्रदाय के नाम पर कोई तोड़ नहीं सकता। उन्होंने कहा, ‘पंजाब की एकता, अखंडता और भाईचारा को कायम रखना है। हम सबको मिलकर रहना है। पंजाब को आगे बढ़ाना है। चन्नी ने यह भी कहा कि रेत माफिया के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और सभी मुद्दों का समाधान होगा। उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व की ओर से तय 18 सूत्री कार्यक्रम का उल्लेख करते हुए कहा कि वह राज्य के लोगों का भरोसा दिलाते हैं कि आने वाले दिनों में सभी मसलों का हल होगा। नवनियुक्त सीएम ने कहा, ‘मैं पंजाब के आम लोगों की आवाज बनूंगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह पर चन्नी ने कहा ‘वह हमारे नेता हैं। उन्होंने कहा कि कैप्टन सरकार के अधूरे काम हम पूरे करेंगे।’ चन्नी ने कहा, ‘राहुल गांधी एक क्रांतिकारी नेता हैं। मैं पंजाब प्रदेश कांग्रेस, कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब के लोगों का शुक्रगुजार हूं।’ चन्नी ने कहा, ‘मैं खुद एक रिक्शा चालक रहा हूं? मैं किसी को भी कृषि क्षेत्र को चोट नहीं पहुंचाने दूंगा। मैं केंद्र से काले कानूनों को निरस्त करने की अपील करूंगा। मैं किसानों के संघर्ष का पूरा समर्थन करता हूं।’ चन्नी ने इतना अच्छा माहौल बनाया था लेकिन हरीश रावत के बयान ने किये धरे पर पानी फेर दिया। अभी कुछ दिन पहले ही पंज प्यारे कहकर वे कांग्रेस की फजीहत करवा चुके हैं।
गौरतलब है कि राज्य में विपक्षी दल आम आदमी पार्टी ने ऐलान किया था कि अगर वह आगामी चुनावों के बाद सरकार में आई तो फ्री बिजली और पानी का इंतजाम करेगी। ऐसे में कांग्रेस सरकार की कोशिश है कि वह अपने विपक्षियों को जनता के बीच कोई खास मौका न दे इसीलिए पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने एक दलित चरनजीत सिंह चन्नी को सीएम की कुर्सी पर बैठाया और इधर यूपी में मायावती ने कांग्रेस पार्टी पर हमला बोल दिया। कांग्रेस और बसपा का दलित वोट बैंक से रिश्ता ही ऐसा है। एक का प्लस दूसरे का माइनस बन जाता है। दलित पहले कांग्रेस के साथ थे। जैसे जैसे उसका साथ छोड़ते गये, बसपा के साथ जुड़ते गये। इसीलिए कांग्रेस खत्म होती गयी और बसपा खिलती गयी। अब मायावती सशंकित रहती हैं कि कहीं दलित फिर से न कांग्रेस की ओर रूख कर लें। कांग्रेस की यही लालसा है कि उसका घर फिर से दलित बसा दें। झगड़ा इसी का है। पंजाब और यूपी में अगले साल एक साथ विधानसभा के चुनाव होने हैं। पंजाब में तो कांग्रेस ने दलित कार्ड चल दिया है लेकिन, इसे यूपी में भी खूब प्रचारित किया जायेगा। दलित वोट बैंक की गोलबंदी के लिए कांग्रेस पार्टी यूपी की अपनी रैलियों और सभाओं में भी इसे जोर जोर से बताएगी कि उसने एक दलित को सीएम बनाया।
दलित वोट बैंक से कांग्रेस और बसपा का क्या रिश्ता रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 1985 के बाद से कांग्रेस का ग्राफ गिरता चला गया। 1985 में यूपी में कांग्रेस का वोट शेयर 39 फीसदी था। 1989 में ये गिरकर 29 फीसदी रह गया। 1991 में तो मात्र 18 फीसदी ही बचा। 1993 में और गिरकर 15 फीसदी पर आ टिका। यही वो चुनाव था जिसमें दलित वोटबैंक पूरी तरह कांग्रेस से टूटकर बसपा के खेमे में जा खड़ा हुआ। बसपा के आंकड़े देखिए। 1989 और 1991 के चुनाव में बसपा को मात्र 10 फीसदी वोट मिले थे लेकिन, 1993 में उसका वोट शेयर बढ़ गया। पार्टी को 28 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। बसपा के लिए यही चुनाव टर्निंग प्वाइंट था। इस चुनाव में दलित वोट बैंक कांग्रेस से पूरी तरह टूटकर बसपा के खेमें में आ चुका था। तब से लेकर आजतक बसपा गिरती हालत में भी 20 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करती रही है और कांग्रेस 10 फीसदी से कम (2012 के चुनाव को छोड़कर)। बता दें कि इसी के बाद बसपा को सत्ता में आने का मौका हासिल हुआ। मायावती इसी वोट बैंक के सहारे चार बार सीएम बनीं। भले ही ये कहा जाए कि मायावती को सीएम बनाने में और भी कई समुदायों का वोट बैंक शामिल रहा है लेकिन, कोर वोट बैंक तो दलित समुदाय ही माना जाता है।
अब कांग्रेस बसपा से इस वोट बैंक की छीनाझपटी में लगी है। ऐसा होते देख मायावती भला चुप कैसे रह सकती हैं। उन्हें भी तो अपना घर बचाना है। लिहाजा वे भाजपा पर हमला बोलते-बोलते कांग्रेस को लपेटे में लेना नहीं भूलतीं। चरणजीत सिंह चन्नी के राज्य का सीएम चुने जाने के बाद हरीश रावत ने सिद्धू के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कह दी। पंजाब राज्य कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पार्टी के पंजाब के प्रभारी हरीश रावत के उस बयान को लेकर असहमति जताई है। जिसमें उन्होंने (रावत) ने कहा था कि अगले वर्ष होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव नवजोत सिंह सिद्धू की अगुवाई में लड़े जाएंगे।