रविवार, 18 जुलाई 2021

पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया

अकांशु उपाध्याय             
नई दिल्ली। देश में रविवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया और इनकी कीमतें यथावत रहीं।
शनिवार को घरेलू स्तर पर पेट्रोल की कीमतों में 30 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई जिससे राजधानी दिल्ली सहित देश के आधिकांश हिस्सो में इसकी कीमत नए स्तर पर पहुंच गईं थी जबकि डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
गुरुवार को पेट्रोल 35 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि के साथ नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया था और डीजल 15 पैसे प्रति लीटर महंगा हो गया था।
दिल्ली में शनिवार की बढ़ोतरी के बाद पेट्रोल की कीमत 101.84 रुपये और मुंबई में 107.83 रुपये प्रति लीटर के पर पहुँच गई थी।
अग्रणी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अनुसार रविवार को पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
पेट्रोल-डीजल के मूल्यों की रोजाना समीक्षा होती है और उसके आधार पर हर दिन सुबह छह बजे से नयी कीमतें लागू की जाती हैं।
देश के चार महानगरों में आज पेट्रोल और डीजल के दाम इस प्रकार रहे।

12वीं कक्षा के छात्रों के लिए 26 से शुरू होंगी कक्षाएं

भुवनेश्वर। सरकारी और निजी स्कूलों में 10वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए ऑफलाइन कक्षाएं 26 जुलाई से शुरू होंगी।
स्कूल एवं जन शिक्षा सचिव सत्यब्रत साहू ने शनिवार को यह घोषणा की और कहा कि स्कूल बिना लंच ब्रेक के सुबह 10 बजे से दोपहर 1.30 बजे तक खुले रहेंगे। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि जिला कलेक्टर अपने इलाके में कोविड की स्थिति को देखते हुए स्कूल खोलने पर निर्णय लेंगे। 
वहीं कक्षाओं में शामिल होना छात्रों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।साहू ने कहा कि कक्षाओं को फिर से खोलने से पहले स्कूलों को साफ कर दिये जायेगा तथा शिक्षकों को टीका लगाया जायेगा। मास्क पहनना अनिवार्य रहेगा और सभी छात्रों की थर्मल स्क्रीनिंग करने के निर्देश जारी किये गये हैं। राज्य सरकार अगले 16 अगस्त से नौवीं और 15 सितम्बर से 11वीं कक्षा के छात्रों के लिए ऑफ़लाइन कक्षाएं शुरू करने पर भी विचार कर रही है। जबकि अन्य कक्षाओं के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं पहले की तरह जारी रहेगी।
एक अन्य फैसले में सरकार ने राज्य में वार्षिक हाई स्कूल प्रमाण पत्र परीक्षा की ऑफलाइन परीक्षा 30 जुलाई से पांच अगस्त तक आयोजित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए जिला एवं प्रखंड मुख्यालयों को परीक्षा केंद्र बनाया जायेगा। परीक्षा केंद्रों में प्रवेश करने से पहले छात्रों की थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। किसी भी छात्र को बिना मास्क पहने परीक्षा केंद्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। 
परीक्षा कोविड प्रोटोकॉल के कड़ाई से लागू होने के साथ आयोजित की जाएगी और परीक्षा से पहले परीक्षा के प्रभारी सभी शिक्षकों के कोविड परीक्षण किये जायेंगे।
ओडिशा सरकार ने कोविड महामारी के कारण माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की वार्षिक हाई स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा इस साल रद्द कर दी है। बोर्ड द्वारा वैकल्पिक मूल्यांकन प्रणाली के तहत गत जून को परिणाम घोषित किया गया था। परीक्षा में सम्मिलत कुल 6.30 लाख छात्रों में से रिकॉर्ड 6.10 लाख छात्रों ने परीक्षा पास की है।

'इस्मत चुग़ताई’ कार्यक्रम आयोजित, जन्मशताब्दी

हरिओम उपाध्याय                
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में तारीख़ 14 अगस्त 2015 को मशहूर उर्दू लेखिका इस्मत चुग़ताई के जन्म शताब्दी समारोह के सिलसिले में इप्टा, लखनऊ ने ‘महत्व इस्मत चुग़ताई’ कार्यक्रम हिंदी संस्थान में आयोजित किया। अध्यक्षता जेएनयू के पूर्व प्रोफ़ेसर और उर्दू इल्म-ओ-अदब में बहैसियत समालोचक दख़ल रखने वाले शारिब रुदौलवी ने की। अलावा उनके मंच पर आबिद सुहैल, रतन सिंह, सबीहा अनवर, वीरेंद्र यादव और शबनम रिज़वी की मौज़ूदगी थी।
इप्टा के राष्ट्रीय सचिव राकेश ने संचालन करते हुए इस्मत चुग़ताई की ज़िंदगी पर रौशनी डालते हुए बताया इस्मत आपा के अफ़साने ‘लिहाफ़’ ने अदबी दुनिया में ज़बरदस्त हलचल पैदा की।
ये अफ़साना औरत की आज़ादी की बात तो करता ही है, पूरे समाज का रचनात्मक आत्मलोचन भी करता है। उन पर उनके भाई अज़ीम बेग चुग़ताई का और उनके लेखन का ख़ासा असर था। लेकिन इस्मत ने अज़ीम बेग को पार करके उर्दू अदब में खुद को स्थापित किया। ख़ुद अज़ीम बेग को भी इसका डर था।
इस्मत कहती थीं कि क़लम मेरे हाथ में जब आ जाती है तो मैं लिखती ही जाती हूं। वो 1947 में मुल्क़ की तक़सीम से पैदा हुए फ़सादात से गुज़रीं। तक़सीम मुल्क़ की ही नहीं हुई बल्कि अवाम के दिलों की भी हुई। वो कृष्ण चंदर, राजिंदर सिंह बेदी और सआदत अली मंटो की कड़ी हैं। प्रोग्रेसिव लेखन की अगुवा रहीं। उनका लेखन ऑटोबायोग्राफ़िकल रहा है। उनके अफ़साने बताते हैं वो किसी से भी बात कर लेती हैं। चाहे वो धोबी हो या मोची या सफ़ाई वाला या कामवाली बाई या अस्तबल का साइं।
एक बार मंटो से किसी ने पूछा था कि अगर मंटो की शादी इस्मत से हो गयी होती तो? मंटो ने जवाब दिया था कि निक़ाहनामे पर दस्तख़त करते-करते उनमें इतनी लानत-मलानत होती कि यह वहीं टूट जाती।
करामात हुसैन डिग्री कॉलेज की पूर्व प्रिसिपल और उर्दू की वरिष्ठ लेखिका सबीहा अनवर ने इस्मत आपा के साथ वक़्त वक़्त पर बिताये दिनों को भावुक अंदाज़ से याद किया। इस्मत आपा की राय बेहद बेबाक होती थी।उन्होंने दिखावटी बात नहीं की। प्रैक्टिकल, मुंहफट और आज़ाद ख़्याल. उन्हें दुनिया में होने वाली हर घटना की जानकारी लेने की फ़िक्र रहती।
उस पर अपना नज़रिया ज़ाहिर करती,वो जब कभी लखनऊ आतीं तो मेरे घर ज़रूर आती, क़याम भी फ़रमाती,जब भी मिलीं बड़े ख़लूस से मिलीं। उन्हें मिलने, देखने और सुनने वालों का सिलसिला सुबह से शाम चला किया। भीड़ लगी रहती,वो बेबाक बोलने से बाज़ न आयीं कभी,उनकी शैली व्यंग्यात्मक रही।
एक बार बोलीं कि मेरी मां को उसके दसवें बच्चे ने बिलकुल तंग नहीं किया क्योंकि वो पैदा होते ही मर गया। कोई न कोई कंट्रोवर्सी वाला बयान दे देतीं और फंस जातीं। अख़बारनवीसों को तो इसी का इंतज़ार रहता था।
एक दिन कह बैठीं कि मरने के बाद दफ़न करने के बजाये मुझे जलाया जाए। जब मैंने उनसे कहा कि आप थोड़ा सोचा-समझ कर बयान दिया करें तो उन्होंने कहा, मैं तुम्हारे जैसी समझदार नहीं हूं। जो दिल में है वही कहूँगी। मैं सच कहने से डरती नहीं। बहुत ज़िद्दी थीं वो। बोलने पर आतीं तो बेलगाम हो जातीं। यादों का कभी ख़त्म न होने वाला ख़जाना था उनकी झोली में।
अपने मरहूम शौहर शाहिद लतीफ़ और भाई अज़ीम बेग का बहुत ज़िक्र करतीं थीं। लेकिन दुःख साझे नहीं करतीं थीं। ‘जुनून’ की शूटिंग में मिलीं। मैंने पूछा कहां एक्टिंग में फंस गयीं। तो बोलीं क्या जाता है मेरा? फ़ाईव स्टार होटल और शानदार खाना है। मौज मस्ती है।चटपटे खाने की बहुत शौक़ीन थीं। खाते वक़्त खूब बातें करतीं थीं। एक बार मुझसे बोलीं, बड़ी मक्कार हो तुम। हस्बैंड को रवाना करके खूब बढ़िया-बढ़िया खाना खाती हो और गप्पें मारती हो। छोटी-छोटी बातों का बहुत ध्यान रखतीं थीं। पूरा सूटकेस पलट देतीं। समझौते नहीं कर सकतीं थीं। मैंने ऊपरी तौर पर उन्हें ज़िंदगी से भरपूर देखा।
लेकिन अंदर से मायूस और तनहा पाया। उन्होंने अपनी बेटियों का ज़िक्र बहुत कम किया। हां, नाती को कभी-कभी याद ज़रूर कर लेतीं। किसी को उनकी फ़िक़्र नहीं होती थी कि वो कहां हैं, कैसी हैं और कब लौटेंगी। उन दिनों वो हमारे घर पर रुकीं थीं। उनके लिए बंबई से फ़ोन आया। फलां फ्लाईट से फ़ौरन रवाना कर दें। मैं और मेरे पति अनवर उन्हें एयरपोर्ट छोड़ने गए।
वहीं बंबई जा रहे एक दोस्त मिल गए। हमने इस्मत आपा को उनके सिपुर्द कर दिया, इस ताक़ीद के साथ कि रास्ते भर उनका हर क़िस्म का ख्याल रखें और एयरपोर्ट से घर के लिए टैक्सी भी कर दें। दोस्त ने लौट कर बताया कि वो बलां की ज़िद्दी निकलीं. बंबई एयरपोर्ट पर उन्हें लेने कोई नहीं आया। टैक्सी करके सीधा बांद्रा चली गयीं अपने एक दोस्त के घर।
प्रसिद्ध लेखिका शबनम रिज़वी ने इस्मत आपा के अफ़सानों और नावेलों के किरदारों पर बड़े विस्तार से रौशनी डाली। वो खुद अव्वल दरजे की ज़िद्दी थीं। उनके किरदारों में अजीबो-ग़रीब ज़िद्द और इंकार साफ़ दिखता है। मुहब्बत करने वाला नफ़रत का इज़हार करता है। खेल-खेल में बात शुरू होती है। फिर नफ़रत में तब्दील हो जाती है। किरदार एक दूसरे पर हमला करते हैं मगर आख़िर आते-आते भावुक हो जाते हैं। उनके किरदार वक़्त के साथ बदलते भी रहते हैं,महिलाओं के लिए बहुत लिखा उन्होंने।
हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध समालोचक वीरेंद्र यादव ने रशीद जहां, अतिया हुसैन और कुर्तनलैन हैदर की पंक्ति में इस्मत चुग़ताई को रखते हुए बहुत बड़ी लेखिका बताया। यह सब लखनऊ के आधुनिक आईटी कॉलेज की पढ़ी हुईं थीं। उन्होंने अपने समाज की चिंता के साथ महिलाओं की आज़ादी की बात की है।
उनकी प्रसिद्ध कृति ‘लिहाफ़’ में शोषण के परिप्रेक्ष्य की सिर्फ़ बात नहीं है। उनमें फ़िक्र है कि हालात क्या हैं, रिश्ते क्या हैं और ऐसे रिश्ते क्यों हैं और उनके किरदारों के शौक क्या हैं?…उन्होंने सेक्सुल्टी की बात की। उस भाषा में बात की जो उनके समाज के मिडिल क्लास में बोली जाती है और उन विषयों पर लिखा जिन पर कभी किसी की निग़ाह नहीं गयी थी। वो मूल्यों के साथ जुडी रहीं, कभी किसी तहरीक़ के साथ जुड़ कर नहीं लिखा। थोपी हुई बातें नहीं मानीं,जो मन में आया, लिखा।
उनके अफ़सानों में 1947 के पार्टीशन से उपजे सांप्रदायिक दंगों का दर्द है। दिलों में दरारें पड़ने का दर्द है, ऐसे संगीन माहौल में एक लेखक का फ़र्ज़ बनता है कि वो हस्तक्षेप करें और ये इस्मत आपा ने पूरे समर्पण के साथ बखूबी किया। वो पाखंड की धज्जियां उड़ाती हैं।
‘कच्चे धागे’ कहानी में उनकी यह फ़िक्र और उनकी विचारधारा दिखती है कि वो किसके साथ खड़ी हैं। बापू की जयंती के रोज़ आत्माएं शुद्द हो रही हैं, गंदी और घिनौनी, मगर लालबाग़ और परेल के इलाकों में एक भी तकली नाचती नज़र नहीं आती है।
पच्चीस हज़ार श्रमिक कामगार मैदान में जमा हैं। छटनी की धार से ज़ख्मी मज़दूर, फीसों से कुचले विद्यार्थी, महंगाई के कारक और शिक्षक उम्मीद भरी नज़रों से आज़ाद मुल्क के रहनुमाओं को ताक रहे हैं। इंसान इंसान से नहीं हैवान से लड़ेगा। कामगार मैदान के चारों ओर पुलिस का पहरा है। मगर नाज़ायज़ शराब पर नहीं है, काले बाज़ार और चोर उच्चकों पर नहीं है। मैं इनके साथ हूं। भले मैं इस तूफ़ान में कतरा हूं लेकिन हर कतरा एक तूफ़ान है। आज बहुमतवादी आतंक है,मूल्यों का क्षरण हो रहा है। ऐसे में इस्मत आपा की और उनके जैसे समर्पित लेखन की सख़्त ज़रूरत है।
मशहूर सीनियर उर्दू अफ़सानानिगार रतन सिंह ने इस्मत आपा को याद करते हुए बताया कि वो बेहद संजीदा औरत थीं। एक वाक़या याद है। एक जलसे में उनको सुनने और देखने वालों से हाल भरा हुआ था और मैं जगह न मिलने की वज़ह से पीछे एक कोने में खड़ा था। इस्मत आपा ने देखा, ज़ोर से बोलीं -रतन सिंह पीछे क्यों खड़े हो? आगे आओ। इसके पीछे उनका मक़सद था, नई पीढ़ी के अदीबों आगे आओ। सीनियर अदीब जूनियर के लिए रास्ता साफ़ करे। एक जनरेशन दूसरी जेनरेशन को तैयार करे।हमें उनके काम को आगे बढ़ाना चाहिए। आज मुल्क़ में कोई ऐसा रिसाला नहीं है जिसमें पूरे मुल्क़ के अदब को देखा जा सके।
मशहूर सीनियर उर्दू अफ़सानानिगार और सहाफ़ी आबिद सुहैल ने बताया कि इस्मत आपा सिर्फ़ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि सारी दुनिया में मशहूर थीं। पहली मरतबे उन्हें 1962 में देखा था। लखनऊ के बर्लिंग्टन होटल में एक जलसा हुआ। बेशुमार नौजवान अदीब जमा हुए इस्मत आपा को देखने और सुनने। उन्होंने अपील की, घर से बाहर निकलो, लोगों से मिलो, उन्हें देखो और लिखो। इस्मत आपा शादी के कुछ दिनों बाद तक अपने शौहर शाहिद लतीफ़ के नाम से लिखती रहीं। बाद में अपने नाम से लिखा,औरत जब चुटकी लेती है तो मर्द कसमसा कर रहा जाता है। इस्मत आपा इसमें माहिर थीं।
एक जलसे में जाने से पहले शाहिद ने उनसे कहा, मेरी कहानी के मुतल्लिक कुछ नहीं कहना. मुंह बिलकुल बंद रखना। लेकिन वो अपना वादा नहीं निभा सकीं। शाहिद लतीफ़ के अफ़साने की बखिया उधेड़ कर रख दी। वापसी पर शाहिद ड्राइव कर रहे थे और इस्मत उनका चेहरा देख रहीं थीं कि शाहिद कुछ बोलेंगे। लेकिन वो बिलकुल ख़ामोश रहे।
एक वाकया रामलाल के घर पर हुआ। हम सब वहां पहुंचे। रामलाल वो तमाम खतूत संभालने और खंगालने में लगे थे जिन्हें तमाम अदीबों ने उन्हें लिखे थे। इस्मत बोलीं यह सब बेकार मेहनत क्यों कर रहे हो? तुम्हारे जाने के बाद सब ख़त्म हो जाएगा। कोई इन्हें संभाल नहीं रखेगा। इस्मत के अफ़सानों में डायलॉग बहुत कम हैं। कहानी बनाई नहीं जाती, बल्कि चलती रहती है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष और ,जेएनयू के पूर्व प्रोफ़ेसर और उर्दू समालोचक शारिब रुदौलवी की निग़ाह में इस्मत चुग़ताई की कहानियां ख़ास तरह की थीं। तरक़्क़ीपसंद अफ़साने लिखे, फ़िक्री कहानियां लिखीं, जिनकी बुनियाद मसायल हैं। मसायल में इंसान के काम की अहमियत है। उर्दू में भंगी समाज पर सिर्फ़ दो अफ़साने लिखे गए हैं। एक कृष्ण चंदर ने लिखा – कालू भंगी और दूसरा लिखा इस्मत ने – दो हाथ। यह इस्मत की ही हिम्मत थी कि उन्होंने उस किरदार की समाज में अहमियत बताई। उनके अफ़सानों को पढ़ कर लोग हैरान होते थे जब उन्हें यह पता चलता था कि ये खातून ने लिखे हैं। उस दौर में यह बहुत बड़ी बात थी,अफ़साना तो कोई भी लिख सकता है।
सवाल यह है कि मसला क्या है? इस्मत ऐसे मसायल लेकर चलती हैं जिनमें औरत की जद्दोजहद पूरी शिद्दत के साथ पेश की जाती है। उसे समाज में हक़ दिलाती हैं। इस्मत ने बदनामियों को झेल कर औरत को उसका मुक़ाम दिलाया. आज़ादी दिलाई। अफ़साने आते रहेंगे और अफ़सानानिगार भी. लेकिन इस्मत का आना मुश्किल है। इस्मत आपा वाक़ई अद्भुत थीं। वो मेरे वालिद, उर्दू के मशहूर अफ़सानानिगार रामलाल, की दोस्त थीं। हमारे घर पर रहीं भी,मैंने उन्हें पहली मरतबे 1962 में देखा था। वो चारबाग़ वाले हमारे घर आईं थीं। बेहद ख़ूबसूरत,मैं तो उन पर फ़िदा हो गया था। उस वक़्त मेरी उम्र महज़ बारह साल थी।
साल1987 में वो हमारे इंदिरा नगर घर आयीं।दो रोज़ रहीं भी।उनसे मैंने सिनेमा के बारे बहुत लंबी बात की। खास तौर पर दिलीप कुमार के बारे में। उनके शौहर शाहिद लतीफ़ ने दिलीप कुमार को ‘शहीद’ और ‘आरज़ू’ में डायरेक्ट किया था। इसकी कहानी इस्मत आपा ने लिखी थी।
शाहिद ने गुरुदत्त की ‘बहारें फिर भी आयेंगी’ भी डायरेक्ट की थी। एक बार जब मैं बंबई घूमने गया था तो इस्मत आपा से तो घर पर मुलाक़ात हुई लेकिन शाहिद लतीफ़ साहब से मिलने हमें श्री साउंड स्टूडियो जाना पड़ा, जहां वो चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी के लिए ‘जवाब आएगा’ के शूटिंग कर रहे थे। इस्मत आपा बहुत बिंदास थीं और जो बात उन्हें पसंद नहीं थी तो लाख बहस के वो हां नहीं करती थीं।
एक बार मैंने उनसे कहा रामायण सीरियल का राम अरुण गोविल मुझे फूटी आंख नहीं सुहाता। इस पर वो बहुत नाराज़ हुईं, वो थ्री कैसल विदेशी सिगरेट पी रही थीं। मैं उन्हें ललचाई आंखो से देख रहा था। वो समझ गयीं। अपने पर्स से एक डिब्बी निकाल कर मेरी जेब में डाल दी। मैंने इसे किसी से शेयर नहीं किया। रोज़ एक एक करके धुआं कर डाली।
उनके इंतक़ाल की ख़बर ने मुझे हतप्रभ कर दिया था। बड़ा अजीब लगता है और ख़ालीपन सा भी, जब कोई ऐसा गुज़र जाए जिसे आपने बहुत करीब से देखा और समझा होऔर फिर इस्मत आपा तो हमारे परिवार की सदस्य थीं। इस कार्यक्रम में साहित्य, रंगमंच और पत्रकारिता से जुड़े जुगल किशोर, के.के.चतुर्वेदी, सुशीला पुरी, विजय राज बली, ऋषि श्रीवास्तव आदि तमाम जानी-मानी हस्तियों मौजूद थीं।

गांगुली का 160वां जन्मदिन गूगल डूडल पर मनाया

अकांशु उपाध्याय                    
नई दिल्ली। क्या आप जानते हैं कि भारत की पहली महिला डॉक्टर कौन थीं, अगर नहीं तो आज गूगल डूडल जरूर देख लें। गूगल अपने डूडल के जरिए आज पहली महिला डॉक्टर कादंबिनी गांगुली का 160वां जन्मदिन मना रहा है। जिस समय महिलाएं घूंघटे में रहती थी उस समय कादंबिनी गांगुली ने समाज की परवाह किए बिना चिकित्सा के क्षेत्र में पुरुषों के बराबर पहुंच कर महिलाओं का सम्मान बढ़ाया और सबकी प्रेरणा भी बनीं।
 इनका जन्म 18 जुलाई, 1861 भागलपुर ब्रिटिश भारत (अब बांग्लादेश में) में हुआ था। कादंबिनी गांगुली आगे जाकर एक डॉक्टर और स्वतंत्रता सेनानी बनीं। इन्हें महिला अधिकार संगठन का पहला सह-संस्थापक भी बनाया गया।1883 में, कादंबिनी बोस ने प्रोफेसर और कार्यकर्ता द्वारकानाथ गांगुली से शादी की। वास्तव में, द्वारकानाथ ही थे जिन्होंने अपनी पत्‍नी को मेडिकल में डिग्री हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया।
1884 में कोलकाता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाली पहली महिला बनीं। 
1886 में उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और इस प्रकार, भारतीय-शिक्षित डॉक्टर बनने वाली पहली महिला के रूप में इतिहास रच दिया। फिर यूनाइटेड किंगडम में काम करने और अध्ययन के बाद वे स्त्री रोग विशेषज्ञ बनकर अपनी निजी प्रैक्टिस करने भारत लौटीं। हालांकि, 03 अक्टूबर 1923 को उन्होंने कोलकाता में अंतिम सांस ली।

कान फिल्म समारोह में पुरस्कार से सम्मानित किया

कविता गर्ग                        
मुबंई। फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक जूलिया डुकोरनू को उनकी फिल्म ‘टाइटन’ के लिए कान फिल्म महोत्सव में ‘पाम डी’ओर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इसी के साथ वह पिछले 28 साल में यह पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला निर्देशक बन गई हैं। इस फिल्मोत्सव में पुरस्कारों के लिए चयन स्पाइक ली की अध्यक्षता वाली जूरी ने किया। ये पुरस्कार शनिवार को ग्रैंड थियेटर लुमियरे में 74वें कान फिल्म महोत्सव के समापन समारोह में दिए गए। इस फिल्म महोत्सव के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि मुख्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा जूरी में महिलाओं की संख्या पुरुषों की संख्या से ज्यादा रही।
डुकोरनू पाम डी’ओर पुरस्कार जीतने वाली अब तक की दूसरी महिला निर्देशक हैं। इससे पहले न्यूजीलैंड की जेन केम्पियन को ‘द पियानो’ के लिए 1993 में ‘पाम डी’ऑर’ पुरस्कार से नवाजा गया था। वहीं महोत्सव में दूसरे स्थान का पुरस्कार माने जाने वाले ‘ग्रैंड प्रिक्स’ के लिए दो फ़िल्मों को चुना गया। इसे ईरान के फिल्म निर्देशक असगर फरहादी की ‘ए हीरो’ और फिनलैंड के जूहो कुओसामेन के ‘कंपार्टमेंट नंबर 6’ को दिया गया।
वहीं लियोस कराक्स को ‘एनेट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार कालेब लैंड्री को ‘निट्रम’ के लिए दिया गया, जबकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार रिनेट रीन्सवे के नाम रहा।

भारत: 88 सदस्य खिलाड़ियों का दल 'जापान' पहुंचा

अखिलेश पांडेय  
टोक्यो। ओलंपिक में कुछ कर गुजरने के लक्ष्य के साथ भारतीय दल का 88 सदस्यीय पहला जत्था 23 जुलाई से शुरू होने वाले खेलों के लिए रविवार की सुबह जापान पहुंच गया। कोविड-19 महामारी के बीच आयोजित किए जा रहे खेलों के लिए भारत के आठ खेलों तीरंदाजी, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, हॉकी, जूडो, जिम्नास्टिक, तैराकी और भारोत्तोलन के खिलाड़ी, सहयोगी स्टाफ और अधिकारी नई दिल्ली से विशेष विमान से जापान की राजधानी पहुंचे।
पहला जत्था 88 सदस्यों का है। जिनमें 54 खिलाड़ियों के अलावा सहयोगी स्टाफ और भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। भारतीय खिलाड़ियों का हवाई अड्डे पर कुरोबे शहर के प्रतिनिधियों ने स्वागत किया। उनके हाथों में बैनर थे जिन पर लिखा था, ”कुरोबे भारतीय खिलाड़ियों का समर्थन करता है।
हॉकी में पुरुष और महिला हॉकी टीमें शामिल हैं। यह किसी एक खेल में भारत का सबसे बड़ा दल है। इससे पहले शनिवार की रात को खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने नई दिल्ली में इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर हर्ष ध्वनि, तालियों की गड़गड़ाहट और शुभकामना संदेशों के साथ भारतीय दल को औपचारिक विदाई दी। हवाई अड्डे पर अप्रत्याशित दृष्य देखने को मिला। ओलंपिक दल के लिए लाल कालीन बिछाया गया था।
खिलाड़ियों की विदाई के लिए इतना उत्साह बना हुआ था कि भारत सरकार ने इन सदस्यों की कागजी औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए विशेष व्यवस्था की थी। ठाकुर के अलावा विदाई समारोह में खेल राज्यमंत्री निसिथ प्रमाणिक, भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के महानिदेशक संदीप प्रधान, आईओए के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा और महासचिव राजीव मेहता ने भी हिस्सा लिया।
भारत के कुछ खिलाड़ी विदेशों में अपने अभ्यास स्थलों से पहले ही टोक्यो पहुंच चुके थे। भारत की एकमात्र भारोत्तोलक मीराबाई चानू अमेरिका के सेंट लुई में अपने अभ्यास स्थल से शुक्रवार को टोक्यो पहुंची। मुक्केबाज और निशानेबाज इटली और क्रोएशिया में अपने अभ्यास स्थलों से यहां पहुंचे हैं। भारत का 228 सदस्यीय दल ओलंपिक में भाग लेगा जिसमें 119 खिलाड़ी शामिल हैं 
भारत से सबसे पहले चार भारतीय नाविक नेत्र कुमानन और विष्णु सरवनन (लेजर क्लास), केसी गणपति और वरुण ठक्कर (49ईआर क्लास) यूरोप में अपने अभ्यास स्थलों से टोक्यो पहुंचे थे। उन्होंने गुरुवार को अभ्यास भी शुरू कर दिया है। इसके अलावा रोइंग टीम भी टोक्यो पहुंच चुकी है।

योगी जीते तो राज्य छोड़ बंगाल चलें जाएंगे: एलान

हरिओम उपाध्याय                   
लखनऊ। शायर मुनव्वर राना ने कहा है कि अगले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी यदि योगी आदित्यनाथ जीते तो वह राज्य छोड़ कोलकाता में बस जाएंगे। उन्होंने शनिवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी पर भी निशाना साधा और कहा कि ओवैसी मुसलमानों का वोट बांटने तथा भाजपा को मदद करने उत्तर प्रदेश आए हैं। मुनव्वर राना ने कहा कि ओवैसी की वजह से अगर प्रदेश में भाजपा जीती और योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बने तो वो यूपी छोड़ कोलकाता लौट जाएंगे। उनका कहना है कि यूपी में मुसलमानों का वोट बंट जाता है। 
ओवैसी यूपी आकर यहां के मुसलमानों को बरगला रहे हैं। इस तरह वह मुसलमानों के वोट बैंक को बांटकर भाजपा की मदद कर रहे हैं।
पिछले दिनों एटीएस द्वारा राजधानी में आतंकियों की गिरफ्तारी को लेकर मुनव्वर राना ने कहा कि चुनाव जीतने के लिए ये सब किया जा रहा है। भाजपा सरकार का एक ही काम है कि किसी भी तरीके से मुसलमानों को परेशान करो। चाहे वो धर्मांतरण कानून व जनसंख्या नियंत्रण कानून का मामला हो या फिर आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारी।इससे पहले एक और दो जुलाई का रात को मशहूर शायर मुन्नवर राना के लखनऊ के लालकुआं स्थित फ्लैट पर रायबरेली पुलिस ने उनके बेटे तबरेज राना की तलाश में छापा मारा था। कार्रवाई को लेकर मुन्नवर राना व उनकी बेटियों ने पुलिस पर अभद्रता के आरोप लगाए थे। 28 जून को रायबरेली में राना के बेटे तबरेज पर जानलेवा हमला हुआ था। वहीं, पुलिस ने रायबरेली में चार लोगों को गिरफ्तार कर खुलासा किया था कि तबरेज राना ने चार चाचा व चचेरे भाइयों को फंसाने के लिए खुद अपनी कार पर फायरिंग कराई थी। 
साजिश रचने को लेकर उसकी तलाश में ही छापा मारा गया था। मुन्नवर राना का आरोप था कि रात में अचानक पुलिस उनके फ्लैट पर पहुंची और दरवाजा पीटने लगी। इससे परिवार के लोग दहशत में आ गए। दरवाजा खोला तो आठ-दस पुलिसकर्मी धड़धड़ाते हुए घुसे और हर कमरे में तबरेज को ढूंढने लगे। मुन्नवर राना के परिवार की महिलाओं और बच्चियों ने देर रात पुलिस के ऐसे फ्लैट में घुसने का विरोध किया। आरोप है कि जब वीडियो बनाना शुरू किया तो एक पुलिसकर्मी ने मोबाइल छीन लिया था। 28 जून को मुनव्वर राना के बेटे तबरेज राना ने रायबरेली में सदर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था। 
उनका आरोप था कि वह अपनी कार में डीजल लेकर निकल रहे थे तभी एक बाइक पर सवार दो युवकों ने कार पर फायरिंग कर दी।तबरेज का कहना था कि वह अपनी लाइसेंसी गन लेकर नीचे उतरे तो नकाबपोश बदमाश मौके से भाग गए। पुलिस ने पेट्रोल पंप के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज लेकर मामले की जांच शुरू की। पुलिस का दावा था कि तबरेज पर हमले का पूरा मामला फर्जी है। खुद तबरेज ने अपने चाचा और चचेरे भाइयों को फसाने के लिए मुकदमा दर्ज कराया था।

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें

यूक्रेन द्वारा कजान पर ड्रोन के माध्यम से हमलें  सुनील श्रीवास्तव  मॉस्को। यूक्रेन द्वारा अमेरिका के 9 /11 जैसा अटैक करते हुए कजान पर ड्रोन ...