हरिओम उपाध्याय
हल्द्वानी। उच्च अधिकारियों की मेहरबानी कहो या फिर सफेदपोशों की चापलूसी। हल्द्वानी तहसील में एक अधिकारी का प्रमोशन होने के बाद भी वह अपनी पुराने पद की कुर्सी पर बना हुआ है। क्या तहसील में इनसे ज्यादा काबिल अधिकारी नही रहे। आपको बता दें हल्द्वानी तहसील परिसर में आरके साहब पदोउन्नति के बाद नायब तहसीलदार बन गए हैं। नायब तहसीलदार बनने के बाद भी आरके पद व ऑफिस का मोह नहीं छोड़ पा रहें हैं।
न चार्ज छोड़ रहें हैं और न ही किसी अन्य को काम करने का मौका दे रहें है, आख़िर ऐसा क्यो। क्या है ऐसी वजह जिसके लिए वह गुणा-गणित में जुटे है।
उच्च अधिकारियों की नज़र आख़िर इन महाशय पर क्यों नहीं पड़ रही है। सूत्रों की माने तो इन महाशय की फ़ाइल खगाली जाएगी तो पता चलेगा कि अब तक इनके द्वारा आख़िर क्या क्या गुल खिलाएं गए हैं, कालाढूंगी तहसील से लेकर हल्द्वानी तहसील तक के सफर में इनकी की गई गलतियों की सजा कई कर्मचारियों को भुगतनी पड़ी थी।सूत्रों के अनुसार मीठी वाणी के धनी इन महाशय द्वारा तहसीलदार हल्द्वानी को तक गुमराह करने का काम किया जाता है।
तहसील परिसर में बने आरके ऑफिस में खतौनी की प्रतिलिपि लेने वाले लोग कम होते है और भू-माफियाओं जमात ज्यादा होती है। महाशय का व्यवहार इतना लचीला है कि प्रोपर्टी डीलर कुर्सी में बैठें होंगे और वह खुद स्टूल में बैठें मिलेंगे।
लाख शिकायतों के बाद भी इन महाशय पर अधिकारियों की अति कृपा दृष्टि आख़िर क्यों है, समझ से परे है। महाशय द्वारा कुछ तथाकथित पत्रकारों को भी सांध कर रखा जाता है, ताकि अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए उनकी लेखनी को अपने हिसाब से दिशाहीन कर सकें।इन महाशय पर दो-दो भारी भरकम जिम्मेदारियां जिलाधिकारी के निर्देश पर आख़िर क्यों दी गई है। अधिकारियों की कमी है या फिर हल्द्वानी तहसील में कोई काबिल अधिकारी नहीं बचा है। वैसे तो सवालों की फेहरिस्त बहुत लंबी है।
इसी मामले पर जल्द दस्तावेजों के साथ होगी अगली ख़बर, जिसमे खुलेंगे कई चेहरो से ईमानदारी के नक़ाब, कौन-कौन है नेतानगरी में इन महाशय के आका, किस-किस अधिकारियों की चापलूसी ने इन्हें एक ही तहसील में सालों से रोका है।