अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। योग के नाम पर बाबा रामदेव भले ही करोड़ों के वारे-न्यारे कर रहे हो, मगर भारत के भावी योग गुरुओं की हालत यह है कि वह दिहाड़ी या ठेके पर काम कर रहे हैं। जिसके चलते बड़ी संख्या में उनका विदेशों में पलायन हो रहा है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, सफदरजंग, रोहतक मेडिकल कॉलेज व चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद संस्थान जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में योग के डिग्री धारी शिक्षक ठेके पर काम कर रहे हैं। देशभर के केंद्रीय विद्यालयों में भी योग शिक्षकों को ठेके पर रखा जा रहा है और उन्हें 10 माह का वेतन दिया जाता है। उन्हें अवकाश एवं अन्य सुविधाएं भी नहीं दी जा रही हैं। इनमें से ज्यादातर पीएचडी एवं नेट क्वालीफाई कर चुके योग गुरु हैं।
डॉ योगेंद्र सिंह ने योग से पीएचडी किया था जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वे सिंगापुर चले गए। इसी तरह डॉ गणेश सेमवाल व डॉ मनीष ठाकुर सहित तमाम मास्टर डिग्री व पीएचडी कर चुके लोगों को जब देश के किसी भी संस्थान कॉलेज या अस्पताल में काम नहीं मिला तो वे देश छोड़कर चले गए।अब वह लाखों रुपए कमा रहे हैं। जबकि भारत में केंद्रीय विद्यालयों में काम करने वाले योग गुरुओं को 22, हजार 500 रुपए मिलते हैं। इसमें भी उन्हें 70 दिन का कोई वेतन नहीं मिलता है।योग विज्ञान से एमएससी करने वाले राम नरेश यादव ने बताया कि उन्होंने एक वर्ष तक केंद्रीय विद्यालय में काम किया लेकिन जब उन्हें स्थाई नहीं किया गया तो अब वे यूपीएससी की तैयारी कर रहे हैं और ऑनलाइन योग सिखाते हैं जिसमें वे 25 से 30 हजार रुपए कमा लेते हैं।
आयुष मंत्रालय एवं शिक्षा मंत्रालय की पहल पर कई विश्वविद्यालयों, डिग्री कॉलेजों एम्स जैसे अस्पतालों में योग विभाग खोल तो दिए गए हैं मगर वहां पर स्थाई नौकरियां नहीं है। देशभर के केंद्रीय विद्यालयों में भी योग शिक्षक की नियुक्ति हो रही है।
मगर उन्हें 10-10 माह के ठेके पर रखा जाता है। जिसके चलते बड़ी संख्या में भारत के प्रशिक्षित योग गुरु कनाडा, अमेरिका, वियतनाम, सिंगापुर, चीन, मलेशिया, सऊदी अरब, रूस व कतर सहित कई देशों में जा रहे है।
प्रतिभा पलायन का यह खेल तब से चल रहा है जब से संयुक्त राष्ट्र की पहल पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत हुई और विदेशों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग योग को पसंद करने लगे।