मंगलवार, 18 मई 2021

एयरटेल को चौथी तिमाही में 759 करोड़ का लाभ

अकांशु उपाध्याय   

नई दिल्‍ली। निजी क्षेत्र की दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल को वित्‍त वर्ष 2020-21 चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में 759 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ हुआ। हालांकि, पिछले वित्‍त वर्ष की इसी तिमाही में कंपनी को 5,237 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था।

कंपनी ने सोमवार को जारी बयान में कहा कि आखिरी तिमाही में उसका एकीकृत राजस्व 11.9 फीसदी बढ़कर 25,747 करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले वित्‍त वर्ष 2019-20 की इसी तिमाही में 23,019 करोड़ रुपये था। लेकिन, वित्‍त वर्ष 2020-21 में भारती एयरटेल को 15,084 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जो वित्‍त वर्ष 2019-20 में 32,183 करोड़ रुपये था। इसके अलावा बीते वित्‍त वर्ष 2020-21 में भारती एयरटेल का वार्षिक राजस्व एक लाख करोड़ रुपये (1,00,616 करोड़ रुपये) के पार चला गया। हालांकि, वित्‍त वर्ष 2019-20 में यह 84,676 करोड़ रुपये था। वहीं, वित्‍त वर्ष 2020-21 चौथी (जनवरी-मार्च) तिमाही में कंपनी के वैश्विक स्तर पर ग्राहकों की संख्या लगभग 47 करोड़ थी।

उल्‍लेखनीय है कि वित्‍त वर्ष 2021 के पहले तीन महीनों (जनवरी-मार्च) के दौरान भारती एयरटेल के ग्राहकों की संख्या में 1.41 करोड़ का इजाफा हुआ। इससे भारत में कंपनी के ग्राहकों की संख्या 35 करोड़ पर पहुंच गई है। बीएसई पर आज कंपनी के एक शेयर का दाम 549.55 रुपये पर रहा, जबकि एनएसई पर 547.80 रुपये पर रहा। 

बढ़ती मौतों का आंकड़ा चिंता का विषय: वायरस

हरिओम उपाध्याय   
नई दिल्ली। भारत में लगातार कम हो रहे कोरोना के नए मामले तो राहत देने वाले हैं, लेकिन मौत की बढ़ती संख्या चिंता करने वाली है। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों की मानें तो कोरोना जब भारत में पीक पर था यानी रोज चार लाख के नए मामले सामने आ रहे थे, उसकी तुलना में आज के मौत का आंकड़े परेशान करने वाले हैं। भारत में 6 मई को सबसे ज्यादा नए केस सामने आए थे। उस दिन 3920 मरीजों की कोरोना के कारण जान चली गई थी। वहीं, आज जब 2.63 लाख नए पॉजिटिव केस की पुष्टि हुई है तो मौतों की संख्या ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। covid19india.org द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते 24 घंटे में 4329 मरीजों की मौत हो गई।
डरा रहे मौत के आंकड़े
भारत में भले ही रोजोना सामने आने वाले कोरोना के मामले घट रहे हैं, लेकिन मौत की बढ़ती संख्या परेशान करने वाली है। भारत में 6 मई को कोरोना पीक पर था। उस दिन 4.14 लाख नए मामले सामने आए थे 3,920 मरीजों की जान गई थी। आज नए मामले घटकर 2.62 लाख पर आ गए हैं, लेकिन मौत की संख्या ने सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं। देश में आज 4334 मरीजों की जान गई है।

भारत के लिए समस्या जटिल, वैक्सीनेशन को बढ़ाये

कविता गर्ग   नई दिल्ली/जेनेवा। भारत कोरोना महामारी की दूसरी लहर भी संभाल नहीं पा रहा है और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि ऐसी कई और लहरें आ सकती हैं। विश्व संगठन की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि इसकी संभावना को देखते हुए भारत के लिए अगले 6-18 महीने कापी अहम हैं। अगर इस दौरान टीकाकरण अभियान की रफ्तार को बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुरक्षित कर लिया जाए, तो इसकी अगली लहरें ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगी। साथ ही इस साल के अंत तक कोरोना के मामलों में कमी आनी शुरू हो जाएगी।
भारत में कोरोना के विस्फोट की वजह बताते हुए डॉ. स्वामीनाथन ने कहा कि पहली बार भारत में मिला कोरोना वायरस का B 1.617 वैरिएंट निश्चित तौर पर ज्यादा संक्रामक है। ये ऑरिजिनल स्ट्रेन से डेढ़ से दो गुना अधिक संक्रामक हो सकता है। इसके अलावा ये ब्रिटेन में पाए गए B 117 वेरिएंट से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है। इससे बचने के लिए भारत को अगले 6 से 12 महीनों तक अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना होगा और ज्यादा से ज्यादा आबादी को वैक्सीनेट करना होगा। अगर ऐसा हुआ तभी हालात में सुधार की गुंजाइश बन सकती है।

वैसे, भारत में लगाये जा रहे दोनों कोरोना वैक्सीनों की तारीफ करते हुए डॉ. स्वामीनाथन ने कहा कि दोनों ही टीके कोरोना वायरस  के नए स्ट्रेन के खिलाफ काफी प्रभावशाली है। वैसे कुछ मामलों में दोनों डोज लेनेवाले लोग भी संक्रमित हुए हैं, लेकिन ये कोई बड़ी बात नहीं है। अच्छी बात ये है कि वैक्सीन की दो डोज लेने वालों की रिकवरी ज्यादा जल्दी और आसान रही है।

स्पर्म ही महिला को प्रेग्नेंसी के लिए देता हैं संकेत

मदन प्रजापति   

नई दिल्ली/सिडनी। किसी भी महिला के लिए गर्भवती होना कोई बहुत आसान प्रक्रिया नहीं होती है। इसमें एक साथ कई सारी चीजें घटित होती हैं। जाहिर सी बात है कि कोई भी महिला पुरुष के स्पर्म शुक्राणुओं के बिना प्रेग्नेंट नहीं हो सकती है। हालांकि नई स्टडी से पता चला है कि प्रेग्नेंसी में सीधी भूमिका के अलावा भी स्पर्म एक और बहुत अहम काम करता है। ये स्टडी ऑस्ट्रेलिया की एडिलेड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने की है।

ये स्टडी नेचर रिसर्च जर्नल कम्युनिकेशंस बायोलॉजी में छपी है। स्टडी के मुताबिक, स्पर्म ही महिला को प्रेग्नेंसी के लिए मनाता है। स्पर्म महिलाओं को प्रजनन ऊतकों को एक ऐसा संकेत देता है जिससे प्रेग्नेंसी की संभावना बढ़ जाती है। स्टडी के मुख्य लेखक प्रोफेसर सारा रॉबर्टसन ने कहा, 'यह पहली ऐसी स्टडी है जो बताती है कि महिलाओं का इम्यून रिस्पॉन्स स्पर्म से मिले सिग्नल पर काम करता है और एग को फर्टिलाइज करने की अनुमति देता है, जिससे कि प्रेग्नेंसी होती है।
प्रोफेसर रॉबर्टसन ने कहा, 'स्पर्म को लेकर ये स्टडी हमारी वर्तमान समझ के उलट है जैसा कि अब तक हम इसकी क्षमता को समझते आए थे। इसमें सिर्फ जेनेटिक मेटेरियल नहीं होता है बल्कि ये महिला के शरीर को ये समझाने का भी काम करता है कि वो उसमें अपनी प्रजनन क्षमता का निवेश करे। 'स्पर्म में पाया जाने वाला प्रोटीन प्रेग्नेंसी के समय महिला की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (इम्यून) को नियंत्रित करता है ताकि उसका शरीर बाहरी भ्रूण को स्वीकार कर सके। हालांकि स्पर्म इस प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं या नहीं, ये अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है।
शोधकर्ताओं की टीम ने ग्लोबल जीन को समझने के लिए चूहों के यूट्रस पर प्रयोग किया। इसके लिए उन्होंने पूरी तरह से ठीक और कुछ नसबंदी वाले स्पर्म का यूट्रस में मिलान किया। प्रयोग में पाया गया कि पूरी तरह से ठीक स्पर्म की वजह से महिला जीन में ज्यादा बदलाव आए, खासतौर से इम्यून रिस्पॉन्स के मामले में। स्टडी के अनुसार नसबंदी वाले पुरुषों की तुलना में बिना नसबंदी वाले पुरुषों के स्पर्म से महिलाओं को मजबूत इम्यून टॉलरेंस मिलता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं की कोशिकाओं में स्पर्म के प्रभाव का सीधा असर पड़ता है।
नई स्टडी के नतीजों से पता चलता है कि स्पर्म की सेहत का भी प्रेग्नेंसी पर असर पड़ता है। ये ना सिर्फ प्रेग्नेंसी के लिए बल्कि बच्चे की सेहत के लिए भी जरुरी है। उम्र, डाइट, वजन, शराब और स्मोकिंग जैसी आदतों का स्पर्म क्वालिटी पर असर पड़ता है और इसकी वजह से प्रेग्नेंसी हेल्थ भी प्रभावित हो सकती है। प्रोफेसर रॉबर्टसन ने कहा, 'ऐसा माना जाता है कि स्पर्म केवल एग को फर्टिलाइज करते हैं लेकिन प्रेग्नेंसी के अलावा स्पर्म क्वालिटी का असर प्रेग्नेंसी के दौरान महिला और होने वाले बच्चे की सेहत पर भी पड़ता है।
प्रोफेसर रॉबर्टसन ने कहा, 'मिसकैरेज, प्रीक्लेम्पसिया और समय से पहले बच्चे को जन्म देना जैसी स्थितियां महिलाओं के इम्यून रिस्पॉन्स की वजह से होती हैं और इसमें पार्टनर के स्पर्म भी जिम्मेदार होते हैं।

वैक्सीनेशन के बाद गंभीर लक्षणो की रिपोर्ट करें

कविता गर्ग   

नई दिल्ली। ब्रिटेन और कई अन्य देशों की तरह अब भारत में भी कोविशील्ड वैक्सीन लेने के बाद रक्त स्राव और खून के थक्के जमने की घटनाएं सामने आने लगी हैं। वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों को लेकर गठित राष्ट्रीय समिति ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने हेल्थकेयर वर्कर्स और वैक्सीन लेने वालों के लिए वैक्सीन के साइड-इफेक्ट को लेकर एक एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी में लोगों से अपील की गई है कि वे टीका लेने के 20 दिन के भीतर ब्लड क्लॉट्स यानी खून के थक्के जमने के लक्षणों की पहचान करें और अगर कोई गंभीर लक्षण दिखता है तो टीकाकरण केंद्र पर जाकर उसकी रिपोर्ट करें।

एडवाइजरी के मुताबिक, कोई भी वैक्सीन (खासकर कोविशील्ड) लेने के बाद अगर आपको शरीर में सूजन, छाती में दर्द, बिना उल्टी के पेट दर्द, तेज सिर दर्द और सांस लेने में तकलीफ जैसे गंभीर लक्षण दिखें, तो टीकाकरण केंद्र पर जाकर उसकी रिपोर्ट जरूर करें।एडवाइजरी के मुताबिक, अगर आपको इंजेक्शन लगने वाली जगह के अलावा शरीर के किसी भी हिस्से पर लाल रंग के धब्बे नजर आ रहे हैं तो सतर्क हो जाइए। ये ब्लड क्लॉट्स के लक्षण हो सकते हैं। इसके अलावा अगर आपको माइग्रेन की समस्या नहीं है, लेकिन उसके बावजूद तेज सिर दर्द हो रहा है, तो टीकाकरण केंद्र पर इसकी रिपोर्ट भी करनी जरूरी है।

कोरोना वैक्सीन लगने के बाद अगर आपको कमजोरी हो रही है, बिना किसी कारण के लगातार उल्टी हो रही है, आंखों में दर्द है या धुंधला दिख रहा है, शरीर के किसी अंग ने काम करना बंद कर दिया है, तो ये समस्याएं बेहद ही गंभीर हैं। इसलिए टीकाकरण केंद्र पर मौजूद हेल्थकेयर वर्कर्स को इस लक्षणों के बारे में जानकारी दें।वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों को लेकर गठित राष्ट्रीय समिति ने कहा है कि देश में ब्लड क्लॉट के बहुत कम मामले कोविशील्ड वैक्सीन से जुड़े हो सकते हैं। समिति के मुताबिक, भारत में कोविशील्ड वैक्सीन की प्रति 10 लाख खुराक पर खून के थक्के जमने के सिर्फ 0.61 फीसदी मामले ही देखने को मिले हैं।

एडवाइजरी के मुताबिक, वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि वैक्सीन लेने के बाद खून के थक्के जमने का खतरा यूरोपीय मूल के व्यक्तियों की तुलना में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई मूल के व्यक्तियों में लगभग 70 फीसदी कम होता है। राष्ट्रीय एईएफआई (टीकाकरण के बाद प्रतिकूल घटना) समिति का कहना है कि कोवैक्सीन टीका लगाने के बाद खून के थक्के जमने का एक भी मामला अभी तक दर्ज नहीं किया गया है।

केंद्र ने 13 राज्यों को भेजी 10,000 टन ऑक्सीजन

अकांशु उपाध्याय  
नई दिल्ली। कोरोना काल में अपनी विशेष ऑक्सीजन एक्सप्रेस को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही भारतीय रेल ने अब तक 269 ऑक्सीजन एक्सप्रेस के जरिए दस हजार टन से ज्यादा लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की है। सोमवार को गुजरात में तूफानी हवाओं के बीच रेलवे ने लगभग 150 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन वाली दो ट्रेनों को का भी सफल संचालन किया है। ऑक्सीजन एक्सप्रेस की गति बढ़ाई गई है और इनकी औसत गति 75 किलोमीटर प्रति घंटे है। रेल बोर्ड के अध्यक्ष और सीईओ सुनीत शर्मा ने कहा है कि ऑक्सीजन प्राणवायु है और रेलवे की प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है। इसलिए उनके दिमाग में इसके परिवहन पर आने वाली लागत है ही नहीं। यह सेवा का काम है, जिसमें पूरे देश के साथ रेलवे भी शामिल है। शर्मा ने बताया कि गुजरात में सोमवार को तूफान के बावजूद रेलवे ने वहां से तेज हवाओं के बीच अपनी दो ऑक्सीजन एक्सप्रेस का संचालन किया है। 
18 अप्रैल से रेलवे ने अपनी विशेष ऑक्सीजन एक्सप्रेस की शुरुआत की थी और अब तक 10302 टन लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा चुकी है। रेलवे ने 13 राज्यों को यह ऑक्सीजन आपूर्ति की है। इसके लिए उसे 269 ऑक्सीजन एक्सप्रेस चलानी पड़ी है, जिनके जरिए 634 टैंकरों को विभिन्न राज्यों में पहुंचाया गया है। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश को 197, दिल्ली को 191, महाराष्ट्र को 34, हरियाणा को 83 और मध्य प्रदेश को 38 टैंकर शामिल है।
इस समय 1005 विशेष मेल एक्सप्रेस ट्रेन :- कोरोना संक्रमण को रोकने और यात्रियों की संख्या में आई कमी को देखते हुए रेलवे इस समय 1005 विशेष मेल एक्सप्रेस ट्रेन यात्री ट्रेनों का संचालन कर रही है। उपनगरीय सेवाओं में भी कमी आई है और इनकी संख्या इस समय 3893 है। इसके अलावा सवारी गाड़ियों की संख्या भी कम होकर 517 रह गई है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अभी तक 4.32 लाख कर्मचारियों का टीकाकरण हो चुका है।

भारतीय क्षेत्र में क्यों आते हैं भयानक समुद्री तूफान

अकांशु उपाध्याय   
नई दिल्‍ली। अरब सागर में आए जबरदस्‍त चक्रवात टाक्‍टे कर्नाटक, गोवा, महाराष्‍ट्र के बाद अब गुजरात की तरफ जा पहुंचा है। जहां-जहां से ये गुजरा है वहां पर इसने तबाही के निशान भी छोड़े हैं। सही समय पर उठाए गए कदमों की बदौलत इस चक्रवात से जानमाल के अधिक नुकसान होने से बचा जा सका है। भारतीय नौसेना ने इसमें फंसे दो जहाजों से करीब करीब 132 लोगों को बचाया है। इस काम में भारतीय नौसेना के आइएनएस कोच्चि और आइएनएस कोलकाता जुटे हुए हैं। इस चक्रवात का असर उत्‍तर भारत के कई राज्‍यों में भी देखा जा रहा है। 
गौरतलब है कि हाल के कुछ वर्षों में भारतीय क्षेत्र में चक्रवातों के बनने का सि‍लसिला बढ़ा है। विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) के विशेषज्ञों की राय में इसकी बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन की वजह से समुद्र का तापमान बढ़ रहा है। इस तापमान के बढ़ने का व्‍यापक असर समुद्र में बनने वाले चक्रवातों पर भी पड़ा है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि चक्रवातों के बनने की शुरुआत समुद्र के गर्म क्षेत्र में ही होती है। यहां से चलने वाली हवा गर्म होकर कम वायु दाब का क्षेत्र बनाती हे। गर्म हवा तेजी से ऊपर आती है जहां उसको नमी मिलती है जो बाद में घने बादल का निर्माण करती है। इस वजह से खाली हुई जगह को भरने के लिए नम हवा तेजी से नीचे जाकर फिर ऊपर की ओर उठती है। ऐसे में जब हवा तेजी के साथ इसके ऊपर चक्‍कर काटती हे तो घने बादल कड़कती बिजली के साथ बारिश करते हैं। इसका बड़ा रूप ही चक्रवात बनता है, जो अपने साथ-साथ तेज हवाएं और बारिश लेकर आता है। अरब सागर में तेज होते चक्रवात वैज्ञानिकों की चिंता का सबब बने हुए हैं। 
विशेषज्ञों का मानना है कि ये सभी कुछ जलवायु परिवर्तन और समुद्र के तापमान के बढ़ने से हो रहा है। विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि इससे निपटने के लिए प्रयास तेज करने होंगे, क्‍योंकि इस तरह के चक्रवात तटीय इलाकों में कई बार भारी तबाही मचाते हैं। जानकारों की मानें तो पहले अरब सागर का तापमान इतना नहीं था जितना कि आज है। बदलते दौर के साथ ये ये गर्म पानी का विशाल कुआं बन गया है, जो तीव्र चक्रवातों का जन्‍म देता है। इन जानकारों के मुताबिक उष्‍णकटिबंधीय चक्रवात गर्म पानी से अपनी ऊर्जा प्राप्‍त करते हैं और इसी कारण वे गर्म पानी के ऐसे इलाकों में बनते हैं जहां का तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से अधिक होता है। जानकारों के मुताबिक 1980 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब लगातार चार बार 2018-2021 में मानसून सीजन के दौरान चक्रवातों का सामना करना पड़ा है। 
बीते वर्ष ही भारत ने एम्‍फान, निसर्ग और निवार चक्रवाती तूफान का सामना किया था। भारत की ही बात करें तो यहां पर अधिकतर चक्रवात मई से अक्‍टूबर के बीच आते हैं। इनमें से अधिकतर बंगाल की खाड़ी में आते हैं। इनका असर बंगाल से लेकर दक्षिण के राज्‍य तमिलनाडु तक दिखाई देता है। जानकारों की राय में भारतीय क्षेत्र में आने वाले ताकतवर चक्रवाती तूफानों की ताकत हर वर्ष 8 फीसद की दर से बढ़ रही है। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक बीते एक दशक के दौरान अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले चक्रवाती तूफानों की संख्या में 11 प्रतिशत वृद्धि हुई है। जानकार मानते हैं कि समुद्री सतह का तापमान बढ़ने से चक्रवात अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। टोक्‍टे के समय में अरब सागर का तापमान 31 डिग्री सेल्सियस तक बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो जैसे जैसे समुद्र का तापमान बढ़ता जाएगा चक्रवातों की शक्ति भी उतनी ही तेजी से बढ़ती जाएगी।

'राष्ट्रपति' ने विमान हादसे के लिए माफी मांगी

'राष्ट्रपति' ने विमान हादसे के लिए माफी मांगी  अखिलेश पांडेय  मॉस्को। कजाकिस्तान विमान हादसे के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुति...