रविवार, 9 मई 2021
6 हजार कैदियों को घर भेजने की तैयारी: हरियाणा
17 मई सुबह 7 बजे तक यूपी में रहेगा लॉकडाउन
2.1 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारी नौकरी से हाथ धो बैठे
यूँ तो बेरोज़गारी की समस्या आम जनता के किसी न किसी हिस्से के सामने हमेशा खड़ी रहती है। मगर आर्थिक संकट के दौरान बहुत बड़ी मज़दूर आबादी बेरोज़गारी के नर्ककुण्ड में धकेल दी जाती है। मौजूदा दौर में भारत की अर्थव्यवस्था भयंकर मंदी के दौर से गुजर रही है। कोरोना महामारी के दौरान बिना योजना और तैयारी के लगाये गए लॉकडाउन से स्थिति और भी गंभीर हो गयी है। सीएमईआई के आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग सवा बारह करोड़ लोगों की रोज़ी-रोटी छिन गयी थी। लॉकडाउन के पहले की स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं थी। जुलाई 2017 के 3.7 फीसदी बेरोज़गारी दर के मुकाबले मार्च 2020 में बेरोज़गारी दर 8.7 फीसदी पर पहुंच चुकी थी। सीएमईआई के ही एक अन्य आंकड़े के मुताबिक अप्रैल-अगस्त के दरमियान लगभग 2.1 करोड़ वेतनभोगी कर्मचारी नौकरी से हाथ धो बैठे। बढ़ती बेरोज़गारी और छँटनी का डर दिखाकर पूँजीपति रोज़गारशुदा लोगों को भी कम मज़दूरी/वेतन पर काम करने के लिए मजबूर करता है। मतलब साफ़ है कि मुनाफ़े के लिए जारी पूँजीवादी अराजक प्रतिस्पर्धा की वजह से पैदा हुई मन्दी का संकट एक तरफ नौजवानों को बेरोज़गारी में धकेलता है तो दूसरी ओर रोज़गारशुदा लोगों की ज़िन्दगी को भी कठिन बना देता है। पूँजीपतियों के मुनाफ़े की हवस से पैदा हुये संकट की कीमत इस रूप में आम जनता चुकाती है।
1991 में आर्थिक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाजे वैश्विक पूँजी के लिए खोल देने के बाद युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर कम होने लगे तो वहीं शुरुआती तेज़ी के बाद अब पूँजीवादी होड़ की वजह से प्राइवेट सेक्टर में भी नौकरी पैदा होने की दर लगातार कम हो रही है। सातवें वेतन आयोग के आँकड़ों के मुताबिक 1995 में केंद्र सरकार के अलग-अलग विभागों में (सैन्य बलों को छोड़कर) कुल नौकरी करने वालों की संख्या 39 लाख 82 हज़ार थी, वह 2011 में घटकर 30 लाख 87 हज़ार पर आ गयी। पिछले दो सालों में 16 राज्यों मे कोई भर्ती ही नहीं हुई है। स्थिति यह है कि एक सीट के लिए औसतन 5000 फॉर्म भरे जा रहे हैं। मोदी के सत्ता में आने के बाद नयी भर्तियों की जो रफ्तार है उससे सहज ही समझा जा सकता है कि अब स्थिति क्या होगी? दूसरी ओर मन्दी की वजह से उत्पादन के क्षेत्र में कम होते निवेश (2009-14 के बीच निजी क्षेत्र में मशीनरी और संयंत्र में औसतन सालाना निवेश दर 14 प्रतिशत से घटकर 2016-18 के बीच 6.4 प्रतिशत पर आ गयी।) से प्राइवेट सेक्टर में भी नौकरी पैदा होने की दर लगातार कम हो रही है। 2004-09 के बीच निजी क्षेत्र में रोज़गार सृजन की दर 10.5 से गिरकर 2014-18 के दौरान 1.3 फीसदी पर आ गयी थी। इसमें दो चीज़ों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। पहली बात कि यह वह दौर है जब मोदी सरकार और उसका भोंपू मीडिया अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने के दावे कर रहे थे और दूसरा कि जो रोज़गार पैदा हुए है उसका भी बड़ा हिस्सा ठेका मज़दूरों, कॉन्ट्रैक्ट आदि का है। इसको सीएमईएआई के इस आंकड़े से समझा जा सकता है।
जनवरी-अप्रैल-2016 में देश में व्हाइट कालर मज़दूरों की संख्या 1.25 करोड़ थी जो अप्रैल- जुलाई 2020 में घटकर 1.21 करोड़ रह गयी है। एनएसएसओ पीएलएफएस सर्वे (नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइज़ेशन के पेरिओडिक लेबर फोर्स सर्वे- 2017-18) की रिपोर्ट आज के भारत की स्थिति को और साफ-साफ बयान कर रही है। यही कारण था कि मोदी सरकार इस रिपोर्ट को जनता के बीच आने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही थी। रिपोर्ट के मुताबिक बिना अनुबन्ध वाले नियमित मजदूरों की संख्या 2011-12 के 64.4% से बढ़कर 2017-18 मे 71.1% हो गयी और सवेतन छुट्टी के अधिकार से वंचित नियमित मजदूरों की तादाद 50% से बढ़कर 54.2% हो गयी है। मतलब साफ है कि अब प्राइवेट सेक्टर में भी बेहतर नौकरियों के अवसर लगातार सिकुड़ते जा रहे है। फ़ासिस्ट मोदी सरकार की ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ की नीति इस स्थिति को और भयंकर करने वाली है। हरदम बेरोज़गार नौजवानों को उपदेश देने के मूड में रहने वाला भारत का खाया-पिया-अघाया मध्यवर्ग, गोदी मीडिया चीख़-चीख कर उद्यमी बनने का सलाह देते रहते है। अब जरा आइये कुछ तथ्यों से देखें कि देश में स्वरोज़गार करने वाले युवाओं की क्या स्थिति है?
2018-19 की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक स्वरोज़गार करने वाले व्यक्तियों की औसत मासिक आय 8,363 रुपये थी, जो बहुत से प्रदेशों में मिलने वाली न्यूनतम मजदूरी से भी कम है। 95 फ़ीसदी से अधिक स्वरोज़गार करने वाले किसी दूसरे को काम पर नहीं रखते हैं। मतलब साफ है ये 95 फीसदी का आँकड़ा नौजवानों की वह आबादी है जो 28-30 साल की उम्र तक तो नौकरी की तलाश करती है, और फिर कुछ न मिलने कि स्थिति में रेहड़ी-खोमचा लगाकर या छोटी-मोटी दूकान खोलकर किसी तरह से जीवन यापन करती है। स्वरोज़गार करने वालों के लिए एक तो आज की महंगाई में इतनी कम आमदनी में खर्च चलना भी मुश्किल है ऊपर से छोटी पूँजी का बड़ी पूँजी से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना निश्चित है, इसलिए स्वरोज़गार में हर-हमेशा भविष्य का संकट मुँह खोले खड़ा रहता है।
बेरोज़गारी की चक्की में सबसे ज्यादा नौजवान पिस रहे हैं। देश का हर पाँचवा डिग्री होल्डर रोज़गार के लिए भटक रहा है। देश में ग्रेजुएट बेरोज़गारों की तादाद सवा करोड़ के ऊपर पहुँच चुकी है। अंडर ग्रेजुएट नौजवानों में औसत बेरोज़गारी की दर 24.5% पहुँच चुकी है। मतलब यह कि देश का हर चौथा डिग्रीधारी बेरोज़गार है। वहीं 21-24 साल के नौजवानों में यह स्थिति और भी गंभीर है। इस आयु वर्ग का हर दूसरा नौजवान स्नातक की डिग्री लिए बेरोज़गार घूम रहा है।ग्राफ 1 में 21-24 आयु वर्ग के कॉलेज/यूनिवर्सिटी से निकलने वाले छात्रों को दर्शाता है, जो बेहतर नौकरी के लिए सरकारी विभागों में भर्तियों की तैयारी करते रहते है। फ़ासीवादी सरकार नौकरियाँ पैदा करने की जगह सरकारी भर्तियों पर अप्रत्यक्ष रोक लगा चुकी है। 2014-15 में देशभर में कुल 1,13,524 सरकारी भर्तियाँ हुईं तथा पब्लिक सेक्टर मे कुल 16.91 लाख लोग कार्यरत थे, वह 2016-17 में घटकर एक लाख और 15.23 लाख पहुँच गयी है। जो नौकरियाँ आ भी रही रही है वो भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जा रही है। अदालती कार्रवाई भर्तियों का एक आवश्यक चरण बन गया है। इसीलिए हताशा-निराशा का शिकार होकर आत्महत्या करने वाली छात्र आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा इसी आयु वर्ग का है। 30 साल आयु वर्ग आते-आते बेरोज़गारी दर में अचानक बहुत तेज़ गिरावट आई है (हालाँकि तब भी बेरोज़गारी दर 13% है जो कि भयानक स्थिति है)। इसका कतई मतलब यह नहीं है कि यह आयु वर्ग आते-आते ज़्यादातर लोगों को रोज़गार मिल जाता है बल्कि इस उम्र तक पहुँचते-पहुँचते छात्र नौकरी पाने की आस छोड़ रेहड़ी-खोंमचा लगाने, ई-रिक्शा चलाने आदि काम करने लगते है। जिसको यह बेशर्म व्यवस्था सेल्फ एम्प्लायड का “खूबसूरत” नाम देती है।
लॉकडाउन को एक सप्ताह के लिए बढ़ाया: दिल्ली
सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली। दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन के कारण कम हुए कोरोना के आंकड़ों के चलते रविवार को एक बार फिर लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लॉकडाउन को बढ़ाने का ऐलान करते हुए कहा कि 26 अप्रैल को 35 प्रतिशत से ज्यादा केस आने शुरू हो गये थे जिसको देखते हुए हमने लॉकडाउन लगाने का फैसला लिया था। जिसके बाद से कोरोना के मामलों में गिरावट आई है और कोरोना की चेन टूटी है। लेकिन अभी समय नहीं आया ढिलाई देने का, इसलिए हमने लॉकडाउन बढ़ाने का फैसला लिया है। जान है तो जहान है। इस बार और सख्त लॉकडाउन लगाया जा रहा है। कल से मेट्रो भी बंद की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन की वजह से यहां रोजाना सामने आने वाले मामलों में काफी गिरावट आई है और यह 17 हजार तक आ गया है। दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट में भी काफी कमी आई है और यह 25 फीसदी से नीचे रह रही है। राष्ट्रीय राजधानी में बीते 19 अप्रैल से लॉकडाउन लागू है, जिसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तीन बार बढ़ा चुके हैं। दिल्ली में 10 मई की सुबह खत्म होने वाले लॉकडाउन को एक बार फिर बढ़ा दिया गया है। जिसके बाद दिल्ली सरकार के अगले आदेश के आने तक दिल्ली में लॉकडाउन की स्थिति बरकार रहेगी।
वहीं, एक सर्वे की मानें तो कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए 85 फीसदी दिल्ली वाले चाहते हैं कि लॉकडाउन की अवधि कम से कम एक हफ्ते और बढ़ाई जाए। जबकि 47 प्रतिशत ने तीन हफ्ते लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में राय दी। ये राय ऑनलाइन मंच लोकलसर्कल के सर्वेक्षण में आई है। यह सर्वेक्षण 6 से 8 मई के बीच कराया गया और सर्वेक्षण में शामिल 84 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि बिना संपर्क सभी सामान की घर में आपूर्ति करने की अनुमति दी जाए, जिससे कारोबार चलता रहे है और ग्राहकों को भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के नए मामलों में थोड़ी कमी आई है। लेकिन संक्रमण होने वाली मौत का आंकड़ा लगातार तीन सौ के ऊपर बना हुआ है। दिल्ली सरकार की तरफ से शनिवार को जारी किए गए आंकड़ों के हिसाब से बीते 24 घण्टे में राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना से 332 लोगों की मौत हो चुकी है, वहीं 17,364 नए मामले सामने आए हैं। जो बीते कई हफ्ते में सबसे कम हैं। इस दौरान पॉजीटिविटी रेट 23.34 प्रतिशत की रही।
दिल्ली में कोरोना संक्रमण दर के कम होते आंकड़े थोड़ी राहत जरूर दे रहे हैं। लेकिन समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। दिल्ली में बीते 24 घण्टे में 74 हजार से ज्यादा लोगों की कोरोना जांच की गई है जिसमें लगभग 17 हजार लोग संक्रमित पाए गए हैं। वहीं 20 हजार 160 लोग स्वस्थ होकर वापस अपने घर गए हैं। ये बताता है कि दिल्ली में लॉकडाउन के प्रतिबंध से कोरोना के बढ़ते मामले पर आंशिक असर पड़ा है।
6 वर्षों से बायोलॉजिकल वेपन तैयार कर रहा चीन
अकांशु उपाध्याय
बीजिंग/नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत साल 2019 के आखिर में चीन से हुई और इसने तेजी से पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। एक साल से अधिक समय हो गया है लेकिन दुनिया अब भी इस संकट में फंसी हुई है। चीन को लेकर अमेरिका और ब्राजील जैसे देश साफतौर पर कहे चुके हैं कि उसने कोरोना वायरस को बायोलॉजिकल हथियार (Biological Weapons) के तौर पर तैयार किया है। साथ ही कई देशों ने तो इस मामले में चीन की जांच करने की मांग की है। अब अमेरिकी जांचकर्ताओं ने कुछ बड़े खुलासे किए हैं, जिनमें ये बायो हथियार बनाने वाली बात का भी जिक्र किया गया है।
अमेरिकी जांचकर्ताओं के हाथ एक दस्तावेज लगा है, जिसके आधार पर उन्होंने कहा है कि चीन के वैज्ञानिक पिछले छह साल से तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी कर रहे हैं, जिसे कोरोना वायरस जैसे बायोलॉजिकल और जेनेटिक हथियारों से लड़ा जाएगा।
इस हैरान कर देने वाले दस्तावेज (Secret Covid Document) में कहा गया है कि युद्ध में ‘जीत के लिए ये मुख्य हथियार होंगे’। इसमें लिखा है कि वो बेहतर परिस्थिति कौन सी होगी जब बायो हथियार को जारी किया जाएगा और इससे ‘दुश्मन के मेडिकल सिस्टम’ पर क्या प्रभाव पड़ेगा। चीन 2015 से ही SARS कोरोना वायरस को सैन्य क्षमता के तौर पर इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा था। कई अधिकारी तो अब भी ये मानते हैं कि वायरस चीनी लैब से ही निकला है।
वरिष्ठ अधिकारी देश को लेकर चिंतित
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People’s Liberation Army) के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के डोजियर में बीमारी के साथ छेड़छाड़ कर एक ऐसे हथियार को बनाने की जांच का जिक्र किया गया है, जैसा ‘पहले कभी नहीं देखा गया’। वरिष्ठ अधिकारियों ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के करीबी लोगों के इरादों पर चिंता व्यक्त की है।
वह देश को लेकर डर में हैं क्योंकि लैब में होने वाली इस तरह की गतिविधियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। दस्तावेज लिखने वालों ने कहा है कि तीसरा विश्व युद्ध ‘बायोलॉजिकल होगा’ और बाकी के दो विश्व युद्ध से बिल्कुल अलग होगा। इसमें इन दो युद्धों को कैमिकल और न्यूक्लियर युद्ध बताया गया है।
जापान पर परमाणु हमले का जिक्र
इसमें जापान (Japan) पर गिराए गए दो परमाणु बम और उसके बाद उसके सरेंडर करने के साथ ही दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति का जिक्र है और फिर दावा किया गया है कि बायो हथियार तीसरे विश्व युद्ध में जीत के लिए एक प्रमुख हथियार है। इसमें बताया गया है कि कौन सी परिस्थिति में इस तरह के हथियार को जारी किया जाए, ताकि ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो सके।
चीनी वैज्ञानिकों ने कहा है कि ऐसे हमले साफ दिन में नहीं किए जाने चाहिए क्योंकि सूरज की रोशनी रोगजनकों को मार सकती है, जबकि बारिश या बर्फ एयरोसोल कणों (हवा में मौजूद) को प्रभावित कर सकते हैं। इसके बजाय इसे रात में या फिर सुबह, शाम, या जब बादल छाए हों, ‘तब स्थिर हवा की दिशा में टार्गेट वाले इलाके में जारी करना चाहिए, ताकि वो हवा से वहां तक पहुंच जाए।
स्वास्थ्य सिस्टम को ध्वस्त करने का इरादा
दस्तावेज में कहा गया है कि ऐसे हमलों से अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ेगी और उस देश का स्वास्थ्य सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा (Wuhan Covid Origin)। अमेरिका ने चीन के घातक इरादों पर चिंता जताई है। वहीं ब्रिटेन में विदेश मामलों की समिति के चेयरमैन सांसद टॉम टुगेधांत का कहना है कि जो शीर्ष नेतृत्व की बात करते हैं, उनके इराकों को लेकर ये दस्तावेज चिंता देने वाला है। चाहे कितना भी सख्त नियंत्रण कर लिया जाए लेकिन ये हथियार फिर भी खतरनाक ही रहेंगे। इस दस्तावेज के 18 लेखक हैं, जो ‘उच्च जोखिम’ वाली लैब में काम कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलियाई स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीटर जेनिंग्स ने भी इसपर चिंता जताई है।
बोल्सनारो ने कही थी यही बात
खुफिया एजेंसियों का मानना है कि कोविड-19 चीन की वुहान लैब से ही पूरी दुनिया में फैला है, लेकिन अभी तक ऐसे सबूत नहीं मिल सके हैं, जो ये साबित कर सकें कि संक्रमण को जानबूझकर फैलाया गया है। इसी हफ्ते ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सनारो (Jair Bolsonaro) ने चीन की आलोचना की और कहा है कि उसी ने रसायनिक युद्ध छेड़ने के लिए कोविड बनाया है। वह देश में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के कारण लगातार आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। बोल्सनारो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है, ‘ये एक नया वायरस है, कोई नहीं जानता कि ये कहां उत्पन्न हुआ, लैब में या इंसानों ने कुछ जानवरों को खाया। सेना जानती है कि रासायनिक, बैक्टीरियोलॉजिकल और रेडियोलॉजिकल युद्ध क्या होता है। क्या हम एक नए युद्ध का सामना नहीं कर रहे हैं? किस देश ने अपनी जीडीपी को सबसे ज्यादा बढ़ाया है? मैं आपको नहीं बता सकता।’
प्राधिकृत प्रकाशन विवरण
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