म्यांमार। सेना ने सरकार का तख्ता पलट कर दिया है। देश की नेता आंग सांग सू की और राष्ट्रपति यू विन म्यिंट को अरेस्ट कर लिया गया है। सेना की ओर से संचालित टीवी पर सोमवार को कहा गया कि सेना ने देश को अपने कब्जे में ले लिया है और एक साल के लिए आपातकाल लगा दिया गया है। फिलहाल पूर्व जनरल तथा उपराष्ट्रपति मिंट स्वे को कार्यकारी राष्ट्रपति बनाया गया है। उन्हें सेना प्रमुख का भी दर्जा दिया गया है। बताया जा रहा है कि किसी भी विरोध को कुचलने के लिए सड़कों पर सेना तैनात है और फोन लाइनों को बंद कर दिया गया है। इससे पहले एनएलडी के प्रवक्ता मयो न्यूंट ने कहा कि राष्ट्रपति आंग सांग सू की और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं को सेना ने सोमवार को प्रातःकाल अल सुबह छापेमारी की कार्रवाई के बाद हिरासत में ले लिया है। उन्होंने कहा कि सुबह-सुबह राष्ट्रपति आंग सांग सू की और अन्य नेताओं को ’उठाया’ गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। मयो ने आशंका जताई कि उन्हें भी जल्द ही हिरासत में लिया जा सकता है।
अमेरिका ने जताई चिंता
इस बीच अमेरिका ने म्यांमार की सेना के ऐक्शन पर गहरी चिंता जताई है। राष्ट्रपति कार्यालय वाइट हाउस की प्रवक्ता जेन पास्की ने कहा कि अमेरिका उन रिपोर्टों से चिंतित है कि म्यांमार की सेना ने देश के लोकतांत्रिक बदलाव को खोखला कर दिया है और आंग सांग सू की को अरेस्ट कर लिया है। इस घटना के बारे में राष्ट्रपति जो बाइडेन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जानकारी दी है।
जेन पास्की ने कहा कि हम म्यांमार की लोकतांत्रिक ताकतों को समर्थन देते रहेंगे और सेना से अपील करेंगे कि सभी हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा किया जाए। अमेरिका चुनाव परिणाम को बदलने या लोकतांत्रिक बदलाव में बाधा डालने के किसी भी प्रयास का विरोध करता है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर आज उठाए गए कदमों को वापस नहीं लिया गया तो अमेरिका कड़ी कार्रवाई करेगा। जेन ने कहा कि अमेरिका म्यांमार के लोगों के साथ खड़ा है और पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है।
यंगून शहर में हर जगह सेना तैनात
सैन्य तख्तापलट की आशंका के बीच सोमवार सुबह से ही राजधानी नेपीडॉ में फोन लाइन काम नहीं कर रही हैं। देश के चुनाव में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सांग सू की की पार्टी एनएलडी की जोरदार जीत के बाद आज म्यांमार में संसद की बैठक होने वाली थी। सेना ने इस ’तख्तापलट’ पर अभी कोई बयान नहीं दिया है। एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि यंगून शहर में हर तरफ सेना को तैनात कर दिया गया है। वहीं सरकारी टीवी ने कहा है कि वह तकनीकी कारणों से प्रसारण करने में अक्षम है।
इससे पहले म्यांमार में तख्तापलट की साजिश रचे जाने की खबरों के बीच देश की सेना ने रविवार को दावा किया था कि वह संविधान की रक्षा और पालन करेगी और कानून के मुताबिक ही काम करेगी। इस बयान के साथ सेना ने सैन्य तख्तापलट की आशंका को खारिज किया था। म्यांमार में 1962 में तख्तापलट किया गया था जिसके बाद 49 साल तक सेना का शासन रहा।
बयान को गलत तरीके से पेश करने का आरोप
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ऐंटोनियो गुतारेस और म्यांमार में पश्चिमी राजदूतों ने इसे लेकर आशंका जाहिर की थी। इसके बाद देश की सेना तत्पदौ ने कहा है कि उसके कमांडर इन चीफ सीनियर जनरल मिन आंग लाइंग के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है। सेना ने कहा कि ’तत्पदौ 2008 के संविधान की रक्षा कर रही है और कानून के मुताबिक ही काम करेगी। कुछ संगठन और मीडिया जो चाहते हैं, उसे मान लिया है और लिखा है कि तत्पदौ संविधान को खत्म कर देगी।’
लोगों की इच्छा का सम्मान कर रही सेना?
सेना के इस बयान को आंग सान सू ची की सत्ताधारी नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने इसे ’उपयुक्त सफाई’ बताया है। एनएलडी प्रवक्ता म्यो न्युंट ने कहा है कि ’पार्टी चाहती थी कि सेना ऐसा संगठन हो जो चुनाव को लेकर लोगों की इच्छाओं को स्वीकार करे।’ नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी ने भारी जीत दर्ज की थी। म्यांमार का संविधान सेना को संसद में 25 प्रतिशत सीटें और तीन मंत्रालय का अधिकार देता है।
संविधान खत्म करने की चेतावनी
संसद के नए सत्र से पहले सेना ने चेतावनी दी थी कि चुनाव में वोट के फर्जीवाड़े की शिकायत पर अगर ऐक्शन नहीं लिया गया तो सेना ’ऐक्शन लेगी।’ दरअसल इस हफ्ते राजनीतिक तनाव बढ़ गया था जब सेना के प्रवक्ता ने तख्तापलट की संभावनाओं को खारिज करने से इनकार कर दिया था। कमांडर इन चीफ ने यहां तक कह दिया था कि अगर संविधान का पालन नहीं किया गया तो उसे वापस ले लिया जाएगा। उन्होंने पहले ऐसा किए जाने की घटनाओं का जिक्र भी किया था। दूसरी ओर सेना ने सफाई दी है कि कमांडर इन चीफ संविधान की अहमियत समझाना चाहते थे।
देशभर में हुए प्रदर्शन
विवाद के बीच सेना के समर्थन में देश के कई बड़े शहरों में प्रदर्शन भी हुए थे। शनिवार को देश की आर्थिक राजधानी यंगून में 200 लोगों ने बैनरों के साथ सेना के समर्थन में मार्च भी निकाला था। लोग देश में विदेशी दखल का विरोध भी कर रहे हैं। वहीं, म्यांमार के निर्वाचन आयोग ने गुरुवार को सेना के आरोपों को खारिज किया है और कहा था कि वोटों को फर्जी करार देने लायक गलतियां नहीं पाई गई हैं।