गरियाबंद। हम भारतीय है, एक ऐसा शब्द हैं। जिसे सभी भारतीय बड़ी शान से कह कर गर्व से अपना सर ऊँचा करके फुले नहीं समाते और बार बार अपनी आज़ादी का एहसास पाते है तथा सारी दनिया भी कहीं ना कहीं किसी न किसी बिंदु पर हमारे सामने और हमारी सहमती में हाथ उठाने पर मजबूर होती है। और क्यों न हो हम विश्व में एक मजबूत हश्ती के रूप में उभर कर सामने आयें है। आज से कई दसक पूर्व इस सोने के धरती के उन पुत्र (बलिदानियों) ने अपनी प्राणों को अपने मां रूपी धरती के नाम न्योछावर कर बचाते हुए भारत रूपी उपहार को हमारे हाथों में देने से पहले इसमें कोई कसर नहीं छोड़ी की उनका देश कहीं से भी किसी भी परिस्थिति में किसी के दबाव में रहे उनका तो शायद सिर्फ एक ही सपना था की उनका भारत पूर्ण रूप से आजाद होकर अनेको समस्यायों को तार-तार करते हुए शक्तिशाली और सम्रद्धशाली होने के साथ साथ एक पूर्ण विकसित रास्ट्र बनकर पुरे विश्व के सामने एक ऐसा मजबूत माहशक्ति बनकर खड़ा हो। जिसके सामने सभी नतमस्तक होने पर मजबूर हो। उन महारथियों के सपनो को सजीव करने के लिए हम हिन्दुस्तानियों ने भरपूर कोसिस भी किया लेकिन साथ ही साथ जातिवाद और भाषावाद रूपी बीमारी को भी जन्म देते रहे जो आज दीमक के रूप में दिखती हैं। बहुत सी जटिल समस्याओं पर वार कर उन पर जीत दर्ज करते हुए यहाँ तक पहुचे है हम,पर सब कुछ पाने और करने के बावजूद यहाँ पर कुछ समस्याए ऐसी हैं जो प्रश्न बनकर बार बार परेशान करती हैं – आखिर क्या है ये समस्याएँ? कहाँ से पैदा होती हैं ये ? कौन बढ़ावा देता है इन्हें ? ये कुछ ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिन पर आज विचार करना अति आवश्यक है क्योकि ये हमारे इस सोने से देश के लिए दीमक का काम करती नज़र आ रहीं हैं! अब सोचने वाली बात तो ये है की ये सभी समस्याए बारिश के साथ तो आती नहीं या फिर किसी के द्वारा बरदान में तो दी नहीं जाती और अगर ऐसा नहीं होता तो फिर ये पैदा कहाँ से होती हैं। शायद गंभीर विचार करने पर इसका जबाब हमें खुद बा खुद मिल जाय और इसके जिम्मेदार भी शायद हम सभी स्वयं खुद ही नज़र आने लगे,जी हाँ यह तो साफ है की हमारे ही द्वारा की गई छोटी बड़ी गलतियना भविष्य में एक खतरनाक जहर रूपी समस्या बनकर हमारे ही सामने खड़ी हो जाती हैं और फिर हम सब स्वयं ही उसे एक दुसरे पर थोपते फिरते हैं।ऐसे में यहाँ पर कुछ ऐसी जटिल समस्याओं को उदाहरण के रूप में पेश करना चाहूँगा जो आज वक्याई में जहर का रूप धारण कर चुकी हैं जैसे – ये आतंकवाद, प्रदुषण या फिर आज पुरे भारत को झकझोर देने वाली मंहगाई और अगर कुछ इनसे बचा तो फिर ये “वाद”(भाषावाद और जातिवाद) यह तो वह दीमक दीखता है जो अकेले ही हरे भरे पेंड को खोखला कर देता है!
जी हाँ मै आपका ध्यान उसी दीमक (वाद से समस्या) पर केन्द्रित करना चाहता हूँ जो इस हरे भरे भारत रूपी पेंड को अंदर से खोखला करता नज़र आता है, शायद यह दीमक हमारे अन्दर के सदभाव,एकता और अखंडता के सपने को खंडित करने का सपना लेकर हमारे बिच कदम जमा कर अपने बाल्यावस्था को त्यागते हुए अपनी किशोरवास्ता की ओर कदम बढ़ाता दिख रहा है जैसे इसने ठान ली हो उन महा बलिदानियों के सपनो को चूर-चूर करने की जिन्होंने अपने जान को न्योछावर करते हुए एक पूर्ण विक्सित रास्ट्र बनाने का सपना हमारे हाथों एवं जिम्मे किया था और शायद उन्होंने ने भी कभी यह नहीं सोचा होगा की उनके सपनो के रास्ते में कभी कोई ऐसी समस्या आकर खड़ी होगी जिसे हम सब ने मिलकर स्वयं ही पैदा किया है। जरा सोचिये उन महारथियों ने अपने हाथों को जलाते हुए जले हाथों से सम्भालकर ये भारत रूपी उपहार हमारे बिच सुरक्षित रखने के लिए दिया और हमने क्या किया?हम कितने स्वार्थी बनते चले गए की अपने चंद स्वार्थ को पाने के लिए इस शक्तिशाली टावर और विशाल समुद्र रूपी भारत को विभिन्न झेत्रों में बढ़ाने की बजाय स्वर्थानुसार बाटने पर ही तुले हुए हैं। अरे उन महारथियों ने तो सभी भाषाओँ,सभी धर्मो और सभी जातियों को एक मानने वाले भारत का ऐलान किया था और शायद ऐसा मानते और घोषदा करते हुए अपने आप को कितना गौरवान्वित महशुश किया होगा की उनका भारत अनेकता में एकता का उदाहरन है। लेकिन अब जरा सोचिये की हमने क्या किया?आज इस जातिवाद रूपी पौधे को इस कदर शिचतें जक रहे हैं जिससे विभिन्न जातियों के बिच एक खाई रूपी दुरी का निर्माण होता जा रहा है।जाती के आधार पर हम अपने बिच दूरियों को बढ़ाते जा रहे हैं।आज देखा जा सकता है की किसी भी चुनाव में एक छोटी सी सफलता और जनता के लोकप्रियता को पाने के लिए कितना आसानी से जातियों और झेत्रो को बाँटने जैसा घिनौना कम कर अपने ही देश के विकास में बाधा उत्पन्न किया जा रहा है और इसमें ये “भाषावाद” इस दीमक ने तो शायद हमारे अपने बीच एक लम्बी खाई बनाने का संकल्प ही ले लिया हो यह आसानी से देखा जा सकता है की किस तरह आज हम अपने बीच भाषावाद जैसी बीमारी को बढ़ाते जा रहे हैं आज अपने ही देश में नागरिकों का एक दुसरे प्रदेश/ज़गह पर जाकर रहना या बसना शायद गुनाह ही होता जा रहा है हम अपने ही देश में दुसरे जगह के नागरिकों जो अपने ही भारत रूपी परिवार के अपने हैं पर आक्रमण करते घबराते नहीं! तो फिर अगर ऐसे में ऑस्ट्रेलिया में या अन्य देशों में भारतियों पर हमले होतें हैं तो यह कैसे गलत हो सकता है? जब हम स्वयं अपने आपस में लड़ रहे है और फिर किसी विदेश के विदेश मंत्री का यह वक्तब्य की “उसका शहर ही अकेला शहर नहीं जहाँ यह होता है,मुंबई और दिल्ली में भी यही होता है” तो शायद हमें अपने गिरेबान में झाकने का एक संकेत है! जी हाँ बिलकुल, शायद हम हम यह भूल चुके हैं की हम उस भारत के सपूत तथा उस भारत रूपी समुद्र में जीने के साथ साथ तैरते हैं जो अनेको धर्मो,जातियों ,और भाषाओँ रूपी समुद्री जीवों को सदभाव रूपी पानी में एक साथ सजोये हुए अपने लहरों से हमेसा आसमान के उचाईयों को झुते हुए विश्व में एक मजबूत शक्ति बनकर उभरा है ! और शायद यह हमारा कर्तब्य ही नहीं अधिकार भी है की हम इस भारत रूपी मकान के राज्यों रूपी सभी कमरों में विभिन्न प्रकार के जातियों ,धर्मो ,और भाषावों रूपी पारिवारिक सदस्यों के बीच सदभाव तथा प्रेम और इज्जत भरे ब्य्वहारों के साथ रहना सीखें, आज हमें इन विभिन्न झेत्रिय भाषाओँ का भरपूर सम्मान करने के साथ झेत्र्वाद और भाषावाद को हमेशा के लिए ख़त्म करना होगा तथा अनेको जातिओं का सम्मान करने के साथ साथ एक खाई रूपी दीमक को मारना होगा अगर हम अपने भारत को और मजबूत बनाना चाहतें हैं तो आज इन विभिन्न विषयों पर विचार करना अति आवश्यक नज़र आ रहा है क्योकि यह आज की स्वतंत्रता और यह आज का सम्पूर्ण विकास की स्थिति बहुत मुश्किलें का सामना करके पाया है हमलोगों ने जिस पर आज कई महत्वपूर्ण देशों के साथ साथ पुरे विश्व की निगाहे टिकी हैं और शायद ऐसा करने के लिए सबको मजबूर भी किया है।शायद हमे अपनी स्थिति को विभिन्न झेत्रों में और मजबूत करने के साथ-साथ आपस के सदभाव को बढाकर एक दूसरों के प्रति सहयोग और इज्जत के भाव अपने अंदर पैदा ही करना ही होगा ताकि भविष्य में हमारी स्थिति इतनी मजबूत हो सके की अन्य देश हमारे अपने इस शक्तिशाली भारत रूपी टावर को इज्ज़त से देखने के लिए तथा इस पर कुछ भी टिप्पड़ी करने से पहले एक बार सोचने पर मजबूर हों,और यह तभी संभव है। जब हम सभी एक हैं और हमे एक होना ही पड़ेगा अपने इस सुंदर से देश को और मजबूत बनाने तथा उन महाबलिदानी शक्तियों के सपनो को साकार करने के लिए! तो आईये दृढ संकल्प लेने के साथ साथ एक कोशिश करके देखें क्योंकि हम एक भारतीय हैं, और यह हमारा कर्तब्य होने के साथ साथ पूर्ण अधिकार भी...