बुधवार, 13 जनवरी 2021
डॉक्टर की बड़ी लापरवाही, जच्चा-बच्चा की मौत
सरकार का यू-टर्न, दागियों को मलाईदार पद
बिहार सरकार के उस आदेश का सबसे बड़ा असर 1994 बैच के पुलिस अधिकारी जो इंस्पेक्टर बन गए थे, उन पर हुआ था। 80 परसेंट अफसरों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई लंबित है या फिर उनके खिलाफ ब्लैक मार्क लगा था। तब बिहार के तत्कालीन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के सख्त आदेश के बाद जुलाई से ही दागदार छवि वाले इंस्पेक्टरों और थानाध्यक्षों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दिए थे।
उस समय आरा, बक्सर, सासाराम में दागदार छवि वाले थानाध्यक्षों को हटा दिया गया था। सासाराम जिले में 1994 बैच वाले अफसर जो इंस्पेक्टर के रूप में तैनात थे, वैसे 12 अफसरों को हटा दिया गया था। ये वैसे अफसर थे, जिनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई लंबित है या फिर ब्लैक मार्क लगा था। भोजपुर से भी 1994 बैच वालों का पत्ता साफ हो गया था। बता दें कि बिहार में 1075 थाने और 225 ओपी हैं। अन्य जिलों में इसी तरह की कार्रवाई की गई थी।
12 वर्षीय नाबालिग के साथ गैंगरेप, जिंदा जलाया
घटना के बारे में बताया जा रहा है कि पीड़िता अपने गांव में दादा-दादी और बड़ी बहन के साथ गांव में रहती थी। उसके पिता पंजाब में काम करते थे। इसकी जब सूचना मिली तो वह पंजाब से साहेबगंज पहुंचे और आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कराया है। परिजनों ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया है। इस घटना के बारे में एसएसपी जयंतकांत ने बताया कि एसडीपीओ सरैया इसकी जांच कर रहे हैं। जांच रिपोर्ट अपने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। फरार आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी हो रही है।
बड़ी बहन ने देखा
थाने में पिता ने बताया कि 3 जनवरी को बेटी के साथ आरोपियों ने गैंगरेप किया और दिन में 10 बजे कमरे में आरोपियों ने जिंदा जलाकर मार डाला। शव को ठिकाना लगा रहे थे, लेकिन इस दौरान उनकी बड़ी बेटी ने देख लिया। उसके बाद उसने परिजनों को जानकारी दी।
वीडियो बनाकर कर रहे थे ब्लैकमेल
घटना के बारे में यह भी बताया गया है 5 दिसंबर 2019 को भी आरोपियों ने पीड़िता के साथ गैंगरेप किया था। उस दौरान वीडियो बना लिया था। उसके बाद से पीड़िता को ब्लैकमेल कर रहे थे। वीडियो वायरल करने की धमकी देकर उससे बुलाते थे। लेकिन वह नहीं जाती थी। 3 जनवरी को वीडियो वायरल करने की धमकी पर गई तो उसके साथ फिर से गैंगरेप किया और वीडियो वायरल करने के बाद मार डाला।
पीड़िता के पिता पर समझौता का दबाव
पांच जनवरी को जब पीड़िता के पिता गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने केस दर्ज नहीं करने का दबाव दिया और कहा कि गांव में ही बैठकर समझौता कर लिया जाए। कई दौर की गांव में पंचायत हुई, लेकिन पीड़ित के पिता को पंचायत की शर्त मंजूर नहीं थी। जिसके बाद केस दर्ज कराया। साहेबंगज के एक जनप्रतिनिधि भी समझौता कराने की कोशिश में जुटे रहे।
कृषि बिलों की खामियां नहीं बता रहें हैं किसान
काशीपुर। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल हुए काशीपुर महानगर कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष संदीप सहगल एडवोकेट के नेतृत्व में तमाम कांग्रेस जन गाजीपुर बॉर्डर पर किसान रैली में पहुंचे। संदीप सहगल अपने एक दिवसिये दौरे पर पहुंचे थे।इस दौरान किसानों के बीच रैली में कहा कि आज देश के अन्नदाता किसानों के ऊपर केंद्र सरकार अपनी मनमर्जी से कृषि बिल लागू तो कर दिया है। किंतु किसानों को इस बिल की तमाम त्रुटिया बताने में मोदी सरकार नाकाम साबित हो रही है, उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार किसानों के ऊपर दोहरे मापदंड अपना रही है।कोरोना महामारी से देश की जनता जूझ रही है।वहीं दूसरी तरफ इन्होंने कृषि बिल जोकि काला कानून है। गाजीपुर बॉर्डर पर हजारों किसानों के आंदोलन के दौरान उन्होंने कहा कि जो सरकार देश के किसानों के हक की आवाज को लाठी-डंडों से दबाना चाहती है उस सरकार को देश की सत्ता में बैठे रहने का कोई अधिकार नहीं आज देश का किसान सड़कों पर है जिसका कारण भाजपा के तुगलकी फरमान जोकी कृषि बिल के चलते किसान आज सड़कों पर निकलने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि सरकार के नुमाइंदे बिल की खामियां नहीं बता रहे हैं।जिसका उदाहरण पिछले एक माह से ऊपर चल रहे शांतिप्रिय किसान प्रदर्शन के दौरान इस कप कपा देने वाली सर्द मौसम में किसान जो अपने खेत खलियान अपने घर छोड़कर केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषि बिल के विरोध में सड़कों पर है। लेकिन हताश नहीं भाजपा सरकार किसानों, नागरिकों पर कितना भी जुल्म करें जवाब उसे आने वाले समय में जरूर मिलेगा। काशीपुर से गाजीपुर बॉर्डर पर जाने वाले कांग्रेसियों में चेतन अरोरा, राजू छीना ,जगजीत सिंह जीतू, मुशर्रफ हुसैन, सचिन नाडिग एडवोकेट, अनीस अंसारी ,नितिन कौशिक आदि कांग्रेस जन मौजूद रहे।
सरकार शुल्क लेगी तो हम निशुल्क लगाएंगे टीका
अकाशुं उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर केंद्र सरकार से अपील की है कि देश भर में लोगों को कोरोना की वैक्सीन मुफ्त लगवाई जाए। दिल्ली का जिक्र करते हुए केजरीवाल ने कहा कि अगर केंद्र सरकार यहां के लोगों को मुफ्त वैक्सीन नहीं देती है तो दिल्ली सरकार अपने खर्चे पर दिल्ली की जनता को मुफ्त वैक्सीन लगवाएगी।
बता दें कि सीएम केजरीवाल हमेशा से कोरोना वैक्सीन को मुफ्त लगवाने की मांग करते आए हैं। अपनी मांग को सीएम अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को फिर दोहराया, "केंद्र सरकार से अपील की थी कि हमारा देश बहुत गरीब है और ये महामारी 100 साल में पहली बार आई है। बहुत सारे लोग हैं जो हो सकता है कि इसका खर्च न उठा पाएं। केंद्र से मेरी अपील थी कि पूरे देश भर में ये वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध कराई जाए। हम देखते हैं कि केंद्र सरकार क्या करती है। अगर केंद्र सरकार मुफ्त वैक्सीन नहीं देती है तो जरूरत पड़ने पर हम दिल्ली के लोगों के लिए इसको मुफ्त में उपलब्ध कराएंगे।"
हरीश रावत के नए ट्वीट ने फिर मचाई खलबली
पंकज कपूर
देहरादून। आगामी विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियों को छोड़, कांग्रेस, आंतरिक गुटबाजी और प्रदेश के शीर्ष नेताओं के प्रतिद्वंद्विता के कोल्ड वॉर से गुजर रही है। प्रदेश में कांग्रेस के भीतर उठ रहे। ज्वार भाटा का गुबार सोशल मीडिया में दिखाई दे रहा है। एक ओर हरीश रावत के समर्थक हैं तो दूसरी ओर प्रीतम और इंदिरा के समर्थक इन सबके बीच पार्टी की मर्यादा तार-तार कर अब आमने सामने का घमासान होने लगा है। इसी बीच हरीश रावत के कांग्रेस को एक होटल की चारदीवारी में कैद में रहने की बात कहने के बाद चौतरफा घमासान शुरू हुआ, जिसके बाद आज और फिर हरीश रावत ने एक ट्वीट किया है। हरीश रावत ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित होने को लेकर संकोच कैसा ?अगर किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दिया जाए तो मैं उसके पीछे खड़ा रहूंगा. हरीश रावत ने कहा कि रणनीति के दृष्टिकोण से यह भी आवश्यक है कि हम भाजपा द्वारा राज्यों की जीत के लिए अपनाए जा रहे फार्मूले का स्थानीय तोड़ निकालें और तोड़ यही हो सकता है कि भाजपा का चेहरा बनाम कांग्रेस का चेहरा चुनाव में लोगों के सामने रखा जाए ताकि लोग स्थानीय सवालों के तुलनात्मक आधार पर निर्णय करें, हरीश रावत ने यह भी सवाल उठाया है कि आखिर अचानक सामूहिकता क्यों याद आ गई?
धरना-प्रदर्शन कोर्ट नहीं कृषि कानून के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगा दी है. अदालत ने सरकार-किसान संगठनों के बीच विवाद निपटाने के लिए जिस कमेटी का गठन किया, उसपर भी रार छिड़ गई है. किसान संगठनों का आरोप है कि कमेटी में शामिल चारों लोग पूर्व में कानूनों का समर्थन कर चुके हैं. ऐसे में अब किसान किस प्रकार कमेटी के सामने अपनी बात रखते हैं और आंदोलन किस ओर रुख करता है। SC कमेटी के सदस्यों पर विवाद क्यों? कृषि सुधार-किसान बिल को लेकर क्या रहे हैं उनके विचार?सर्वोच्च अदालत ने केंद्र द्वारा पारित किए गए तीनों कृषि कानून के लागू होने पर रोक लगा दी है, मौजूदा MSP व्यवस्था को जारी रखने को कहा है. साथ ही एक कमेटी का गठन किया है, जिसमें चार एक्सपर्ट शामिल किए गए हैं. ये कमेटी कृषि कानून के विवाद को समझेगी और सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।
पालूराम
नई दिल्ली। किसान नेता राकेश टिकैत की ओर से बयान दिया गया है कि उनका आंदोलन सरकार के खिलाफ है, हम कभी भी सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं गए। हम चाहते हैं कि कानूनों को वापस लिया जाए। सरकार को इस मामले में तुरंत संसद का सत्र बुलाना चाहिए और कानूनों को वापस लेना चाहिए। हम लगातार प्रधानमंत्री और सरकार से जवाब मांग रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की सांसद और बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी ने धरने पर बैठे किसानों को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। हेमा मालिनी का कहना है कि जो किसान धरने पर बैठे हैं, उन्हें कानून में समस्या ही नहीं पता है। कमेटी पर छिड़ी रार के बीच किसानों ने अपनी लड़ाई जारी रखने की बात कह दी है। बुधवार को लोहड़ी के मौके पर किसान संगठनों द्वारा कृषि कानून की प्रतियां जलाई जाएंगी। साथ ही 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के दिन शांति से ट्रैक्टर रैली निकालने की बात कही है। हालांकि, इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी किसानों को नोटिस थमाया है। कांग्रेस पार्टी की ओर से भी किसानों का पुरजोर समर्थन किया गया है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी की आलोचना की गई है। कांग्रेस ने किसानों की ट्रैक्टर रैली के समर्थन का भी ऐलान किया है।
कमेटी पर रार, कैसे बनेगी बात?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन कृषि कानून पर जारी विवाद निपटाने के लिए चार सदस्यों की कमेटी बना दी। इस कमेटी में किसान नेता भूपिंदर सिंह मान, कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रमोद कुमार जोशी, कृषि विशेषज्ञ डॉ. अशोक गुलाटी और महाराष्ट्र के किसान नेता अनिल घनवंत शामिल हैं। लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि ये सभी कानून का समर्थन कर चुके हैं, ऐसे में रिपोर्ट सरकार के पक्ष में ही आएगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी को अगले दस दिनों में अपनी पहली बैठक करनी होगी। बैठक के दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। कमेटी हर पक्ष से बात करेगी और सीधे सर्वोच्च अदालत को ही रिपोर्ट करेगी।
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