पूरी दुनिया ने अपने कैलेंडर बदलकर सोच लिया कि आज से दुनिया में सब कुछ बदल जाएगा ,लेकिन ये इतना आसान नहीं है। आसान इसलिए नहीं है क्योंकि सब कुछ केलेण्डर बदलने से नहीं बदलता । बदलाव की पहल न केवल सामूहिक स्तर पर करना पड़ती है बल्कि निजी स्तर पर भी करना पड़ती है। साल 2021 इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि साल 2020 नए साल के जिम्मे ढेर सारी चुनौतियाँ छोड़कर रफूचक्कर हो गया है।
दुनिया में जबसे कैलेंडर बने हैं। तभी से शायद नया साल मनाने की प्रथा शुरू हुई होगी । मै तो नहीं मानता लेकिन दुनिया के पुरातत्वविद दावा करते हैं। कि एडर्बीनशायर इलाके में चंद्रमा की गति पर आधारित दुनिया का सबसे पुराना कैलेंडर खोजा है।उनका कहना है। कि कार्थेस किले में एक खेत की खुदाई में 12 गड्ढ़ों की एक श्रृंखला मिली है। जो चंद्रमा की अवस्थाओं और चंद्र महीने की तरफ संकेत करती है।बर्मिंघम विश्वविद्यालय के नेतृत्व वाली एक टीम के मुताबिक़ इस प्राचीन स्मारक को क़रीब 10 हज़ार साल पहले शिकारियों ने बनवाया था।
दुनिया ने कब कौन सा कैलेंडर ईजाद किया इसकी जानकारी आपको कम्प्यूटर महाशय एक क्लिक पर दे देंगे,मै तो आपसे ये कह रहा हों कि कैलेंडर बदलने से चुनौनियाँ नहीं बदलतीं,वे कोशिशों से ही बदलती हैं और बदली जाती हैं। आजकल पूरी दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती जानलेवा विषाणु कोरोना और उसके नए स्ट्रेन से निबटने की ह।। दुनिया के अनेक देशों ने इस विष्णु से निबटने के लिए ठीके ईजाद कर लिए हैं।उनके इस्तेमाल का श्रीगणेश हो गया है। लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं होती।
नए साल में कोरोना और उसके नए स्ट्रेन के खिलाफ बनाये गए दुनिया के तमाम प्रतिरोधी टीकों की अग्निपरीक्षा होगी। यदि टीके कामयाब होते हैं। तो दुनिया में एक बार फिर जनजीवन मामूल पर आ जाएगा ,अन्यथा जो बदहवासी कल तक थी वो आगे भी रहेगी। अच्छी बात ये है। कि दुनिया उम्मीदों की तिपाई पर खड़ी रहती है। ये उम्मीदें ही हैं। जो जीवन को गति देती है। कोरोना के खिलाफ भी हमारी उम्मीद कमजोर नहीं हुई है। हालांकि हम अभी तक कोरोना और उसके स्ट्रेन के मूल की खोज नहीं कर पाए हैं। नए साल में हमें टीके के साथ ही इस बीमारी की जड़ की भी तलाश करना चाहिए।
नए साल की बात काटते हुए हमें हर हाल में गए साल की बात करना ही पड़ती है। दुनिया की छोड़िये ,हम अपने देश की बात करते है। हमारे देश में गया साल जिसक अभूतपूर्व किसान आंदोलन का प्रत्यक्षदर्शी बना था,नया साल भी उसके साथ ही खड़ा है। आने वाले दिनों में सरकार और किसान किसी सहमति के बिंदु पर आ जाएँ तो देश का तनाव कम हो। हम जैसे लेखक और साहित्यकार रोजाना एक से बढ़कर एक दुखद विषय पर लिखते है। अनेक बार तो हमें लिखने के बाद न्यायधीशों की तरह अपनी कलम के पाते तोड़ देना पड़ते हैं।क्योंकि जिस ह्रदय विदारक मांमले पर हम लोग लिखते हैं। उस पर दोबारा नहीं लिखना चाहते।
सूरज उगने के साथ ही हमलोग अक्सर सोचते हैं कि लिखने के लिए अब कोई विसंगति नहीं चुनना पड़ेगी ,लेकिन ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि ,विसंगतियों का सिलसिला अंतहीन है। विसंगतियों की संगत में रहे बिना हम रह नहीं सकते। शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो जिसमें विसंगतियां न हों। हमारे देश में तो विसंगतियों की इतनी प्रजातियाँ है कि गिनना मुश्किल हो जाए।
हम लेखकों की सबसे बड़ी विसंगति ये है। कि हम सबके मन का नहीं लिख पाते। सबके मन का न लिखा जा सकता है। और न कहा जा सकता ह। हमारे प्रधानमंत्री जी के मन की बात भी इसी तरह की विसंगतियों का जीवंत प्रमाण है। प्रधान जी जब अपने मन की बात करते हैं। तो शायद ही कोई माध्यम ऐसा होगा जिससे उसका प्रसारण न होता हो ,इस तरह उनके मन की बात तो सब तक पहुँच जाती है। लेकिन उन्हें सुनने वालों के मन की बात प्रधान जी तक नहीं पहुँच पाती।
बहरहाल नए साल में हम सब मिलकर देश,समाज और परिवार की समृद्धि और सुदृढ़ता के लिए प्रयत्नशील रहें तो ही कोई सार्थक परिणाम हासिल हो सकते हैं। अन्यथा नया साल भी गए साल की तरह अनपेक्षित दंश देकर हुआ आगे निकल जाएगा। हमें समय के साथ कदमताल करना होगी। दुनिया और हम सब इन्हीं विसंगतियों के साथ आगे बढ़कर खुशहाली तक अवश्य पहुंचेंगे। हमारे पास सभी समस्याओं के हल होना चाहिए । किसानों,मजदूरों,छात्रों,बेरोजगारों की समस्यायों के हल लम्बे आरसे से अनुत्तरित हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए की हम नए साल में अपने निर्वाचित सदनों की गरिमा की रक्षा के लिए कृत संकल्प रहें। एक बार फिर नए साल की शुभकामनाएं एवं बधाइयाँ।