रविवार, 27 दिसंबर 2020

गाय की हत्या पर जश्न, यूपी की गायो की चिंता

हरिओम उपाध्याय  

नई दिल्ली। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के लेटर के बाद उत्तर प्रदेश में गायों की दुर्दशा को लेकर राजनीति हो रही है। रविवार को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में कहा कि जिन लोगों ने केरल में अपने पदाधिकारियों के माध्यम से गो-माता की हत्या करवाकर उसका इश्तिहार छपवा दिया, यूपी की जनता इतनी भ्रमित नहीं है कि उन लोगों का पाप माफ कर देगी। यहां की जनता भली-भांति जानती है कि गो-माता के संरक्षण में भाजपा ने कितना काम किया है।

दरअसल, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के तीन दिवसीय दौरे पर हैं। रविवार को दौरे के आखिरी दिन स्मृति ईरानी ने सलोन विधानसभा के हाजीपुर गांव में PM नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम को सुना। इसी दौरान उन्होंने कहा कि जनता जानती है कि किस प्रकार से केरल में गो-माता की हत्या करने का उत्सव कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों ने मनाया था? कांग्रेस पार्टी के आलाकमान ने ऐसे लोगों का प्रोत्साहन किया। मेरा मानना है कि जो दोगलापन कांग्रेस पार्टी दिखा रही है, उसकी सच्चाई जनता भली भांति जानती है।

प्रियंका गांधी ने ललितपुर में गायों की दुर्दशा पर चिंता जाहिर की थी

दरअसल, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ललितपुर की एक गौशाला में गायों की मौत पर चिंता जाहिर किया था। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कहा था कि गौशाला में चारा-पानी का समुचित इंतजाम न होने से गायें भूख से मर रही हैं। ऐसा सिर्फ ललितपुर की एक गौशाला में नहीं बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश में हो रहा है। इसके बाद कांग्रेसियों ने ललितपुर में जिला प्रशासन और शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया। शनिवार को ललितपुर जिले के ग्राम दैलवारा में गाय बचाओ यात्रा निकालते समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू को पुलिस ने दर्जनों कार्यकर्ताओं सहित गिरफ्तार कर लिया था।

दर्ज हुआ था 9 अफसरों पर केस

बता दें कि ललितपुर में ग्राम पंचायत सौजना में संचालित अस्थायी गोवंश आश्रय स्थल में हुई दस गायों की मौत के बाद उनके शवों का समय पर निस्तारण नहीं किए जाने के मामले में जिला पंचायतराज अधिकारी, खण्ड विकास अधिकारी महरौनी सहित 9 लोगों पर गम्भीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।

किसानों को तबाह करने पर तुली है भाजपा: सपा

संदीप मिश्र   
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर 25 दिसम्बर 2020 से प्रारम्भ समाजवादी किसान घेरा कार्यक्रम आज दूसरे दिन भी प्रदेश के सभी जनपदों में सम्पन्न हुआ। जनजागरण और जनसम्पर्क का यह कार्यक्रम अगले निर्देश तक चलता रहेगा। सुविधानुसार एक दो गांवों का चयन कर समाजवादी किसान घेरा कार्यक्रम का आयोजन जारी रखना है।
सांसदों, पूर्व सांसदों, पूर्व मंत्रियों, पूर्व विधायकों, एवं जनपदों के पदाधिकारियों ने चैपाल लगाकर किसानों के बीच समाजवादी सरकार की उपलब्धियों की चर्चा की। चर्चा के दौरान किसानों ने भाजपा राज में होने वाली तमाम परेशानियों के बारे में बताया।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा सरकार में किसानों के साथ घोर अन्याय हुआ है। भाजपा किसानों को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। भाजपा की आर्थिक नीतियां कारपोरेट कारोबारियों के पक्ष में रहती है। उसकी नीतियों में किसानों के लिए कोई स्थान नहीं है। समाजवादी पार्टी द्वारा समाजवादी किसान घेरा कार्यक्रम के तहत इन्हीं बातों को गांव-गांव किसानों तक पहुंचाया जा रहा है।
अखिलेश यादव ने कहा कि किसान आज देश भर में आंदोलित हैं। भाजपा सरकार किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी देने को तैयार नहीं है। किसानों का खेती पर स्वामित्व भी खतरे में पड़ने वाला है।
भाजपा सरकार कॉन्ट्रैक्ट खेती के नाम पर किसानों का खेत छीनने की साजिश कर रही है। किसान की फसल बड़े सेठो के मनमर्जी के दामों पर लूटने का प्रबन्ध किया जा रहा है। भाजपा ने किसानों से जो वादे किए थे वे पूरे नहीं हुए। न तो किसानों को लागत का ड्योढ़ा दाम मिला, नहीं उनकी आय दुगनी होने के आसार हैं। गन्ना किसानों का बकाया अभी तक अदा नहीं हुआ। मंडिया समाप्त की जा रही है। किसानों को समाजवादी सरकार में कर्जमाफी, मुफ्त सिंचाई, खाद, बीज की समय से उपलब्धता, पेंशन और फसल बीमा की सुविधाएं दी गई थी। किसानों को रियायती दर पर बिजली मिलती थी। भाजपा सरकार ने तो किसानों पर बिजली का भार भी बढ़ा दिया है।
भाजपा सरकार ने जो नए तीन कृषि कानून बनाए हैं उनसे किसान बर्बाद हो जाएंगे। यह किसान के पक्ष में तो कतई नहीं है। इससे आक्रोशित किसानों को सरकार बदनाम करने पर तुल गई है। वह उन्हें आतंकवादी या विपक्ष के इशारे पर आंदोलनकारी बता रही है। यह अन्नदाता को अपमानित करना है।
किसान घेरा कार्यक्रम के साथ चैपाल में शामिल किसानों ने स्वीकार किया कि उन्हें अखिलेश यादव के नेतृत्व पर भरोसा है। वे मानते है कि उन्हें समाजवादी सरकार आने पर ही उनको राहत मिलेगी।
किसान घेरा कार्यक्रम में आज भी समाजवादी पार्टी के नेताओं की सक्रिय भूमिका रही। बदायूं में पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव, आगरा में रामजीलाल सुमन पूर्व सांसद तथा रामगोपाल बघेल, अलीगढ़ में पूर्व सांसद विजेन्द्र सिंह, ठाकुर राकेश सिंह पूर्व विधायक तथा हाजी जमीरउल्लाह खान, पूर्व विधायक सगीर अहमद, इटावा में प्रेमदास कठेरिया पूर्व सांसद, गोपाल यादव जिलाध्यक्ष तथा डाॅ0 भूपेन्द्र दिवाकर, अम्बेडकरनगर में पूर्व सांसद त्रिभुवनदास, कन्नौज में पूर्व विधायक अरविन्द यादव, प्रयागराज में पूर्व विधायक प्रशांत सिंह, जिलाध्यक्ष योगेश चन्द्र यादव, रामसेवक सिंह पटेल, सीतापुर में पूर्व विधायक अनूप गुप्ता ने चैपाल लगाकर किसानों से वार्ता की।
जौनपुर में पूर्व सांसद तूफानी सरोज, पूर्व विधायक श्रद्धा यादव एवं गुलाब सरोज, चंदौली में राम किशुन पूर्व सांसद एवं सत्य नारायण राजभर, भदोही में ही पूर्व विधायक जाहिद बेग एवं मधुबाला पासी तथा जिलाध्यक्ष विघ्न विनायक यादव, गोरखपुर में पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद, पूर्व विधायक विजय बहादुर, महावीर एवं यशपाल रावत, कुशीनगर कसया में पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी तथा रामकोला में राघेश्याम सिंह ने समाजवादी किसान घेरा कार्यक्रम आयोजि किया।
आजमगढ़ में पूर्व सांसद बलिहारी बाबू, आलमबदी विधायक, बेचई सरोज पूर्व विधायक, जिलाध्यक्ष हवलदार यादव, जयराम पटेल, अखिलेश यादव, सिद्धार्थनगर में आलोक तिवारी पूर्व सांसद, नन्दू चैधरी पूर्व विधायक, राजेन्द्र प्रसाद चौधरी पूर्व विधायक, बरेली में भगवतशरण गंगवार, सुल्तान बेग, अताउर्रहमान, मेरठ में राजपाल सिंह जिलाध्यक्ष तथा अतुल प्रधान, बदायूं में पूर्व विधायक प्रेमपाल सिंह ने भी किसान घेरा कार्यक्रम में ग्रामीणों से वार्ता की। पीलीभीत में पूर्व मंत्री रियाज अहमद ग्राम परेवा वैश्य में तथा एटा में पूर्व विधायक अमित गौरव तथा रामेश्वर सिंह के अलावा युवा प्रकोष्ठों के प्रदेश अध्यक्ष भी आज विभिन्न क्षेत्रों में किसान घेरा कार्यक्रम के तहत किसानों के बीच पहुंचे। अरविन्द गिरि प्रदेश अध्यक्ष युवजन सभा काकोरी ब्लाक लखनऊ के सिमरामऊ, रामकरन निर्मल प्रदेश अध्यक्ष लोहिया वाहिनी ने बख्शी का तालाब रैथा गांव में, दिग्विजय सिंह देव प्रदेश अध्यक्ष छात्र सभा ने सीतापुर में सरैया राजा साहब में किसान घेरा कार्यक्रम में किसानों को समाजवादी सरकार की उपलब्धियों के बारे में बताया।

अन्ना हजारे ने आंदोलन के समर्थन का फैसला लिया

मुंबई। वरिष्ठ समाजसेवी अन्ना हजारे ने केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन करने का फैसला किया है। अन्ना हजारे ने जनवरी के अंतिम सप्ताह में दिल्ली के जंतर मंतर मैदान में आंदोलन करने की अनुमति मांगी है। यह जानकारी अन्ना हजारे ने पत्रकारो को दी है। अन्ना का आंदोलन दिल्ली में चल रहे किसानों के समर्थन में होगा। अन्ना हजारे ने कहा था कि उनका आखिरी आंदोलन किसानों के सवाल के लिए होगा। सभी की निगाहें कृषि अधिनियम के खिलाफ चल रहे आंदोलन में अन्ना हजारे की भूमिका पर थीं।

बीजेपी नेता महाराष्ट्र के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हरिभाऊ बागडे और पूर्व केबिनेट मंत्री गिरीश महाजन ने अन्ना हजारे से मुलाकात की थी ताकि उन्हें आंदोलन में शामिल होने से रोका जा सके।
 वाजेद असलम

'मन की बात' देश में नया सामर्थ्य पैदा हुआ

अकांशु उपाध्याय  

 नई दिल्ली। मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। आज 27 दिसम्बर है। चार दिन बाद ही 2021 की शुरुआत होने जा रही है। आज की ‘मन की बात’ एक प्रकार से 2020 की आख़िरी ‘मन की बात’ है। अगली ‘मन की बात’ 2021 में प्रारम्भ होगी। साथियो, मेरे सामने आपकी लिखी ढ़ेर सारी चिट्ठियाँ हैं। Mygov पर जो आप सुझाव भेजते हैं, वो भी मेरे सामने हैं। कितने ही लोगों ने फ़ोन करके अपनी बात बताई है। ज्यादातर संदेशों में, बीते हुए वर्ष के अनुभव, और, 2021 से जुड़े संकल्प हैं। कोल्हापुर से अंजलि जी ने लिखा है, किनए साल पर, हम, दूसरों को बधाई देते हैं, शुभकामनाएं देते हैं, तो इस बार हम एक नया काम करें। क्यों न हम, अपने देश को बधाई दें, देश को भी शुभकामनाएं दें। अंजलि जी, वाकई, बहुत ही अच्छा विचार है। हमारा देश, 2021 में, सफलताओं के नए शिखर छुएँ, दुनिया में भारत की पहचान और सशक्त हो, इसकी कामना से बड़ा और क्या हो सकता है।

साथियो, NamoApp पर मुम्बई के अभिषेक जी ने एक message पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा है कि 2020 ने जो-जो दिखा दिया, जो-जो सिखा दिया, वो कभी सोचा ही नहीं था। कोरोना से जुड़ी तमाम बातें उन्होंने लिखी हैं। इन चिट्ठियों में, इन संदेशों में, मुझे, एक बात जो common नजर आ रही है, ख़ास नजर आ रही है, वो मैं आज आपसे share करना चाहूँगा। अधिकतर पत्रों में लोगों ने देश के सामर्थ्य, देशवासियों की सामूहिक शक्ति की भरपूर प्रशंसा की है। जब जनता कर्फ्यू जैसा अभिनव प्रयोग, पूरे विश्व के लिए प्रेरणा बना, जब, ताली-थाली बजाकर देश ने हमारे कोरोना वारियर्स का सम्मान किया था, एकजुटता दिखाई थी, उसे भी, कई लोगों ने याद किया है।

साथियो, देश के सामान्य से सामान्य मानवी ने इस बदलाव को महसूस किया है। मैंने, देश में आशा का एक अद्भुत प्रवाह भी देखा है। चुनौतियाँ खूब आईं। संकट भी अनेक आए। कोरोना के कारण दुनिया में supply chain को लेकर अनेक बाधाएं भी आईं, लेकिन, हमने हर संकट से नए सबक लिए। देश में नया सामर्थ्य भी पैदा हुआ। अगर शब्दों में कहना है, तो इस सामर्थ्य का नाम है ‘आत्मनिर्भरता’।

साथियो, दिल्ली में रहने वाले अभिनव बैनर्जी ने अपना जो अनुभव मुझे लिखकर भेजा है वो भी बहुत दिलचस्प है। अभिनव जी को अपनी रिश्तेदारी में, बच्चों को gift देने के लिए कुछ खिलौने खरीदने थे इसलिए, वो, दिल्ली की झंडेवालान मार्किट गए थे। आप में से बहुत लोग जानते ही होंगे, ये मार्केट दिल्ली में साइकिल और खिलौनों के लिए जाना जाता है। पहले वहां महंगे खिलौनों का मतलब भी imported खिलौने होता था, और, सस्ते खिलौने भी बाहर से आते थे। लेकिन, अभिनव जी ने चिट्ठी में लिखा है,कि, अब वहां के कई दुकानदार,customers को, ये बोल-बोलकर toys बेच रहे हैं, कि अच्छे वाला toy है, क्योंकि ये भारत में बना है ‘Made in India’ है।Customers भी,India madetoys की ही माँग कर रहे हैं। यही तो है, ये एक सोच में कितना बड़ा परिवर्तन – यह तो जीता-जागता सबूत है। देशवासियों की सोच में कितना बड़ा परिवर्तन आ रहा है, और वो भी एक साल के भीतर-भीतर।इस परिवर्तन को आंकना आसान नहीं है। अर्थशास्त्री भी, इसे, अपने पैमानों पर तौल नहीं सकते।

साथियो, मुझे विशाखापत्तनम से वेंकट मुरलीप्रसाद जी ने जो लिखा है, उसमें भी एक अलग ही तरह का idea है। वेंकट जी ने लिखा है, मैं, आपको, twenty, twenty one के लिए, दो हजार इक्कीस के लिए, अपना ABCattach कर रहा हूँ। मुझे कुछ समझ में नहीं आया, कि आखिर ABC से उनका क्या मतलब है। तब मैंने देखा कि वेंकट जी ने चिट्ठी के साथ एक चार्ट भी attach कर रखा है। मैंने वो चार्ट देखा, और फिर समझा कि ABCका उनका मतलब है – आत्मनिर्भरभारत चार्ट ABC। यह बहुत ही दिलचस्प है। वेंकट जी ने उन सभी चीजों की पूरी list बनायी है, जिन्हें वो प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं। इसमें electronics, stationery, self care items उसके अलावा और भी बहुत कुछ शामिल हैं।वेंकट जी ने कहा है, कि, हम जाने-अनजाने में, उन विदेशी products का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनके विकल्प भारत में आसानी से उपलब्ध हैं। अब उन्होंने कसम खाई है कि मैं उसी product का इस्तेमाल करूंगा, जिनमें हमारे देशवासियों की मेहनत और पसीना लगा हो।

साथियो, लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने कुछ और भी ऐसा कहा है, जो मुझे काफी रोचक लगा है। उन्होंने लिखा है कि हम आत्मनिर्भर भारत का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन हमारे manufacturers,उनके लिए भी, साफ़ सन्देश होना चाहिए, कि, वे products की quality से कोई समझौता न करें।बात तो सही है।Zero effect, zero defect की सोच के साथ काम करने का ये उचित समय है। मैं देश के manufacturers और industry leaders से आग्रह करता हूँ: देश के लोगों ने मजबूत कदम उठाया है, मजबूत कदम आगे बढ़ाया है। Vocal for local ये आज घर-घर में गूँज रहा है।ऐसे में, अब, यह सुनिश्चित करने का समय है, कि, हमारे products विश्वस्तरीय हों। जो भी Global best है, वो हम भारत में बनाकर दिखायें। इसके लिए हमारे उद्यमी साथियों को आगे आना है।Start-ups कोभी आगे आना है। एक बार फिर मैं वेंकट जी को उनके बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई देता हूँ।

साथियो, हमें इस भावना को बनाये रखना है, बचाए रखना है, और बढ़ाते ही रहना है। मैंने, पहले भी कहा है, और फिर मैं, देशवासियों से आग्रह करूंगा। आप भी एक सूची बनायें। दिन-भर हम जो चीजें काम में लेतेहै, उन सभी चीजों की विवेचना करें और ये देखें, कि अनजाने में कौन सी, विदेश में बनी चीजों ने हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया है।एक प्रकार से, हमें, बन्दी बना दिया है।इनके, भारत में बने विकल्पों का पता करें, और, ये भी तय करें, कि आगे से भारत में बने, भारत के लोगों के मेहनत से पसीने से बने उत्पादों का हम इस्तेमाल करें। आप हर साल new year resolutions लेते हैं, इस बार एक resolution अपने देश के लिए भी जरुर लेना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे देश में आतताइयों से, अत्याचारियों से, देश की हजारों साल पुरानी संस्कृति, सभ्यता, हमारे रीति-रिवाज को बचाने के लिए, कितने बड़े बलिदान दिए गए हैं, आज उन्हें याद करने का भी दिन है। आज के ही दिन गुरु गोविंद जी के पुत्रों, साहिबजादे जोरावर सिंह और फतेह सिंह को दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। अत्याचारी चाहते थे कि साहिबजादे अपनी आस्था छोड़ दें, महान गुरु परंपरा की सीख छोड़ दें। लेकिन, हमारे साहिबजादों ने इतनी कम उम्र में भी गजब का साहस दिखाया, इच्छाशक्ति दिखाई। दीवार में चुने जाते समय, पत्थर लगते रहे, दीवार ऊँची होती रही, मौत सामने मंडरा रही थी, लेकिन, फिर भी वो टस-से-मस नहीं हुए। आज ही के दिन गुरु गोविंद सिंह जी की माता जी – माता गुजरी ने भी शहादत दी थी। करीब एक सप्ताह पहले, श्री गुरु तेग बहादुर जी की भी शहादत का दिन था। मुझे, यहाँ दिल्ली में, गुरुद्वारा रकाबगंज जाकर, गुरु तेग बहादुर जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का, मत्था टेकने का अवसर मिला। इसी महीने, श्री गुरु गोविंद सिंह जी से प्रेरित अनेक लोग जमीन पर सोते हैं। लोग, श्री गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार के लोगों के द्वारा दी गयी शहादत को बड़ी भावपूर्ण अवस्था में याद करते हैं। इस शहादत ने संपूर्ण मानवता को, देश को, नई सीख दी। इस शहादत ने, हमारी सभ्यता को सुरक्षित रखने का महान कार्य किया। हम सब इस शहादत के कर्जदार हैं। एक बार फिर मैं, श्री गुरु तेग बहादुर जी, माता गुजरी जी, गुरु गोविंद सिंह जी, और, चारों साहिबजादों की शहादत को, नमन करता हूं। ऐसी ही, अनेकों शहादतों ने भारत के आज के स्वरूप को बचाए रखा है, बनाए रखा है।

मौसम: कोहरे की चादर में लिपटा पूरा पंजाब

विकास की रिपोर्ट  

अमृतसर। आने वाले 48 घंटों के दौरान मौसम का मिजाज एक बार फिर से करवट ले सकता है। मौसम विभाग अनुसार पंजाब मेें शीत लहर जोर पकड़ सकती है। जिससे ठिठुरन और बढ़ेगी। अधिकतम तापमान का पारा मैदानी इलाकों में 16 से 20 डिग्री सेल्सियस जबकि न्यूनतम पारा 4 से 8 डिग्री सेल्सियस के बीच रह सकता है। सुबह के समय हवा में नमी की मात्रा 70 से 87 फीसदी के बीच और शाम को 62 से 76 फीसदी के बीच रहने की संभावना है। इसी के साथ राहत की खबर ये है कि दिन में धूप खिली होने के कारण सर्दी का कहर थोड़ा कम होगा।

अमृतसर में भी प्रतिदिन धुंध घनी पड़ रही है, जिसमें राहगीरों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, वहीं जन जीवन प्रभावित हो रहा है। वीरवार को सुबह 5 बजे से सारा शहर धुंध की चादर में लिपटा हुआ था, वहीं जीरो विजिबिल्टी थी, जिससे वाहन सड़कों पर धीमी गति से रेंगते हुए नजर आ रहे थे। पहाड़ी इलाकों में जहां बर्फबारी हो रही है वहीं मैदानी इलाकों में ठंड ने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए हैं। दिन-प्रतिदिन ठंड बढ़ती जा रही है एवं तापमान में गिरावट आ रही है। दोपहर में निकली धूप पर भी धुंध का कोई अच्छा असर नहीं दिखा व सड़कों में धुंध दिखाई दी, वहीं ठंड बर्फीली हवाएं चलती रही।

तेज कड़ाके की ठंड एवं धुंध में सुबह अपने कामों पर जाने वाले लोगों को भी ठंड में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मौसम विभाग के अनुसार शहर में 4.1 डिग्री तापमान नोट किया गया, वहीं नव वर्ष तक मौसम इसी तरह रहने की संभावना है। आगामी दिनों में रविवार को बारिश होने की भी संभावना बताई जा रही है, जिससे तापमान में और गिरावट आएगी।

पार्कों में सैर करने वालों की आई कमी

सुबह पडऩे वाली धुंध के कारण पार्कों में सैर करने वालों की संख्या भी कम हो गई है। हालांकि युवा लड़के-लड़कियां शहर के मुख्य पार्कों में सैर करते हुए नजर आए, वहीं युवा ओपन जिम्म में भी कसरत करते हुए दिखाई दिए।

खट्टर को भारी पड़ेंगे किसानों पर किए गए मुकदमे

राणा ओबरॉय   
चंडीगढ़। किसानों की समस्या तो है, साथ ही राजनीति भी चल रही है। किसान चाहते हुए भी इस राजनीति को परे नहीं कर सकते। यह ठीक उसी तरह है जैसे दुख की घड़ी में कोई पास आकर बैठ जाता है और कहता है कि भाई ये बहुत बुरा हुआ। अब उसकी नीयत क्या है, यह कौन देखता है। किसान भी आंदोलन से हमदर्दी जताने वालों के शब्दों पर भरोसा कर रहे हैं। किसानों के ऐसे ही हमदर्दों ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। ऐसे प्रदर्शन को नजरंदाज करना चाहिए था लेकिन हरियाणा पुलिस ने 13 किसानों के खिलाफ हत्या और दंगे के प्रयास का मामला दर्ज किया है। इन किसानों ने केंद्र सरकार के नए कृषि कानून का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के काफिले को रोक कर काले झंडे दिखाए थे और लाठियां भी चलाई थीं। कांग्रेस की राज्य प्रमुख कुमारी शैलजा ने सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए इसे सरकार की तानाशाही बताया। विपक्षी दल किसानों को भड़का भी रहे हैं। इसलिए किसानों पर मुकदमा मुख्यमंत्री खट्टर के लिए भारी पड़ सकता है।किसानों की समस्या सिर्फ राज्यों तक सीमित नहीं है, केन्द्र सरकार के साथ तीसरे, चौथे और पांचवें दौर की वार्ताएं क्रमशः एक दिसंबर, तीन दिसंबर और पांच दिसंबर को विज्ञान भवन में ही हुए, जिनमें तीनों मंत्री मौजूद थे। इसके बाद आठ दिसंबर को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद सरकार की ओर से किसान संगठनों के नेताओं को कानूनों में संशोधन समेत अन्य मसलों को लेकर सरकार की ओर से एक प्रस्ताव नौ दिसंबर को भेजा गया, जिसे उन्होंने (किसानों ने) नकार दिया दिया था। सबसे पहले अक्टूबर में पंजाब के किसान संगठनों के नेताओं के साथ 14 अक्टूबर को कृषि सचिव से वार्ता हुई थी। इसके बाद 13 नवंबर को दिल्ली के विज्ञान-भवन में केंद्रीय मंत्रियों के साथ उनकी वार्ता हुई, जिसमें केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलमंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री सोमप्रकाश मौजूद थे। तोमर ने कहा था ''मुझे पूरी उम्मीद है कि हमारे किसान संगठन वार्ता करेंगे। यदि वे एक तिथि और समय सुनिश्चित करते हैं तो सरकार अगले दौर की वार्ता के लिए तैयार है मुझे उम्मीद है कि हम समाधान के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे लेकिन अब तक समाधान नहीं हो पाया है।नए कृषि कानूनों की वापसी को लेकर किसानों के आंदोलन को एक महीना हो रहा है। केन्द्र सरकार की तरफ से दिए गए संशोधन के प्रस्ताव को किसान संगठनों ने खारिज कर दिया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने फैसले के बाद सिंघु बॉर्डर पर कहा कि किसानों का फिलहाल सरकार से बैठक का मन नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को फिर से ठोस प्रस्ताव भेजे। सरकार के साथ बातचीत के लिए किसानों की तरफ से कोई तारीख नहीं तय की गई है।

इस बीच किसान आंदोलन को लेकर राजनीति और तेज हो गयी। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की अगुवाई में वरिष्ठ नेता मार्च के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दो करोड़ हस्ताक्षरों के साथ ज्ञापन सौंपेंगे, जिसमें केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने का आग्रह किया जाएगा। किसान आंदोलन की बड़ी वजह एमएसपी ऐसे ही नहीं बन गया है। इसके पीछे का कारण पंजाब और हरियाणा के किसानों की खुशहाली के अतीत से जुड़ा हुआ है। पंजाब और हरियाणा के किसानों को गेहूं और चावल उगाने के बदले लाभ देने के उद्देश्य से एमएसपी को शुरू किया गया था, जिसके परिणाम 70-80 के दशक में देश को मिलने भी शुरू हुए थे। आज देश में अनाज भंडारण को बनाए रखने में एमएसपी की बड़ी भूमिका मानी जाती है।

सीधे सपाट शब्दों में एमएसपी को आमजन न्यूनतम समर्थन मूल्य तक ही समझ पाते हैं, लेकिन वास्तविक तौर पर एमएसपी वह है जो वर्ष में दो बार रबी और खरीफ की फसल के समय फसल कटान से पहले घोषित की जाती है। इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकार किसानों को गारंटी देती है कि उनको फसल का एक निश्चित मूल्य जरूर मिलेगा। अन्य माध्यमों से फसल नहीं बिकने पर सरकार किसानों की फसल की खरीद फरोख्त एमएसपी पर करेगी। किसानों की खुशहाली के लिए यह व्यवस्था कुछ बड़ी फसलों के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा एक कमीशन की सिफारिश के बाद की गई थी।

इसके साथ ही एमएसपी के तहत बुवाई से लेकर कृषि श्रम तक कई तरह की कीमतों को सरकार इसमें शामिल करती है। किसान भी दूरगामी परिणामों को देखते हुए इसी वजह से ही आंदोलन की धुरी एमएसपी को बनाए हुए हैं।

हरियाणा और पंजाब के किसानों के विरोध का कारण कृषि जानकार एमएसपी को ही बता रहे हैं, क्योंकि एमएसपी की शुरुआत ही इन दोनों राज्यों के किसानों को लाभ देने के लिए हुई थी। 1980 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत भी इन्हीं राज्यों से शुरू होकर इतिहास में दर्ज हो गई थी। जिस व्यवस्था से किसान समृद्ध हुए हैं, नए कानून से उन्हें उसी व्यवस्था को खत्म होने का खतरा लग रहा है।

वर्तमान में 23 प्रमुख फसलों को एमएसपी की व्यवस्था में शामिल किया गया है। इनमें गेहूं, चावल, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी के साथ ही पांच तरह की दालों और 8 किस्म के तेल बीज, कच्चा कपास व जूट, गन्ना और वीएफसी तंबाकू शामिल हैं। देश के लगभग 9.0 करोड़ टन अनाज भंडारण में भी एमएसपी को बड़ा कारण माना जाता है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) एमएसपी के अंतर्गत आने वाली फसलों की कीमतें तय करता है। वर्ष 1965 में हरित क्रांति के समय एमएसपी की घोषणा की गई थी। वर्ष 1966-67 में गेहूं की खरीद के साथ इसकी शुरुआत हुई। एमएसपी का लाभ उन्हीं किसानों को मिल पाता है जिनके पास औसतन 5 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि होती है। हरियाणा और पंजाब के किसानों में ऐसे किसानों की संख्या काफी अधिक है। इन दोनों राज्यों सहित देश के अन्य राज्यों में 86 प्रतिशत ऐसे किसान हैं जिनके पास औसतन 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। कई किसानों के पास कृषि भूमि ही नहीं है। ऐसे में वह एमएसपी के दायरे से बाहर हो जाते हैं और उन्हें इसका लाभ ही नहीं मिल पाता है।

इसीलिए कहा जा रहा है कि किसानों की धुरी एमएसपी है। इसके कारण ही किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल पाता है, यदि उन्हें एमएसपी का लाभ ही नहीं मिलेगा तो वह बर्बाद हो जाएंगे। केंद्र सरकार जब तक तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी या वापस नहीं लेगी उनकी लड़ाई जारी रहेगी। एमएसपी किसानों के बेहद महत्वपूर्ण व्यवस्था है। पंजाब-हरियाणा को छोड़कर देश के 71 प्रतिशत किसानों को एमएसपी का अर्थ ही नहीं पता है। हरियाणा के किसानों से ही वहां के मुख्यमंत्री ने पंगा ले लिया है। 

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