परिचय:- भिंडी एक लोकप्रिय सब्जी है। इसे लेडी फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। इसकी अगेती फसल से अधिक लाभ अर्जित कर सकते है। इसकी खेती भारत के हर राज्यों में की जाती है। भिंडी की खेती वर्ष में दो बार होती है, इसलिए लगभग वर्ष भर भिंडी उपलब्ध रहता है। भिंडी में भरपूर पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह अनेक बीमारियों में भी उपयोगी है।
खेत की तैयारी:- बीज के अंकुरण के लिए 27 से 30 डिग्री से.ग्रे. तापमान उपयुक्त माना जाता है। तापमान में अधिक कमी होने पर अंकुरण नहीं होता है। अच्छी जल निकासी वाली किसी भी भूमि में भिंडी की खेती की जा सकती हैं
लवणीय या छड़ीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है। खेत तैयार करने के लिए खेत को दो–तीन जुताई के बाद पाटा चला कर समतल कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें।
विकशित प्रजातियाँ
पूसा ए – 4 पैदावार ग्रीष्म में 10 टन व खरीफ में 15 टन प्रति हेक्टयर है। परभनी क्रांति पैदावार 9–12 टन प्रति हैक्टेयर है।
पंजाब – 7 पैदावार 8–12 टन प्रति हैक्टेयर है।
अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वि.आर.ओ.- 6 कुछ अन्य प्रजातियाँ हैं जो दोनों ऋतुओं में पाई जाती है।
बुआई एवं बीज की मात्रा:- खेत को तैयार करने के बाद खेतों में भिंडी की बुआई की जाती है। वर्षा कालीन भिंडी के लिए कतार से कतार की दुरी 40 – 45 से.मी. तथा पौधों की बीच की दुरी 25 – 30 से.मी. का अंतराल उचित रहता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई भी कतारों में उचित दूरी के साथ करें।
बुआई का समय:- ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई फ़रवरी–मार्च वर्षकालीन भिंडी की बुआई जून-जुलाई भिंडी की व्यापारिक रूप से लगातार फसल लेने के लिए तिन सप्ताह के अंतराल पर फ़रवरी से जुलाई के मध्य अलग – अलग खेतों में भिंडी की बुआई करनी चाहिए।
खाद व उर्वरक:- प्रति हेक्टयर 15 से 20 टन गोबर की खाद दे सकते हैं। रासायनिक खाद में 80 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टयर देना उचित है। नाईट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश के साथ बुआई से पहले भूमि में दे। शेष नाइट्रोजन को दो भागों में 30 से 40 दिनों के अंतराल पर दे।
भिंडी की सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण तथा रोग उपचार।
खरपतवार नियंत्रण:- भिंडी की फसल में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है। अतः बुआई के 15 से 20 दिन बाद प्रथम निराई-गुडाई करना आवश्यक है।
फ्लूक्लोरेलिन की 1.0 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। लेकिन खरपतवार नियंत्रण के लिए इसका उपयोग जितना कम करें उचित होगा।
सिंचाई:- सिंचाई मौसम के आधार पर आव्यशकता अनुसार करना चाहिए। मार्च महीने में 10 से 12 दिन, अप्रैल माह में 7 से 8 दिन और मई – जून में 4 से 5 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है। वर्ष ऋतू में सिंचाई करने की जरुरत नहीं हैं।
भिंडी की बीज खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए की बीज रोगरोधी हो।
पीत शिरा रोग – रोकथाम के लिए 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता – इस रोग की रोकथाम के लिए प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए।