अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। मोबाइल कंपनियाँ गाज़ियाबाद में अपनी सुविधाएं बेहतर करने के लिए जगह-जगह नए टावर लगा रहे हैं। ज़्यादातर टावर लगाने वाली एजेंसियां नियमों को ताक पर रख कर संबन्धित बिल्डिंग के मालिक से समझौते के आधार पर ही टावर लगा रही हैं। जहां टावर लगाने से बिल्डिंग स्वामी को हर महीने एक निश्चित रकम मिलने से वह शांत रहता है, वहीं इसके रेडिएशन से होने वाले संभावित खतरों को देखते हुए बहुत सी जगह इनका विरोध भी शुरू हो गया है। एक ऐसे ही मामले में ट्रांस हिंडन क्षेत्र के प्रहलाद गढ़ी में रहने वाले सचिन का कहना है कि गाँव में लगे अवैध मोबाइल टावरों के खिलाफ उन्होंने जिला प्रशासन और नगर पालिका में कई शिकायत दर्ज कराई हैं लेकिन ग्राम वासियों के विरोध के बावजूद अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। आपको बता दें कि किसी भी बिल्डिंग में मोबाइल टावर लगाने से पहले संबन्धित एजेंसी को नगर पालिका से अनुमति लेनी होती है। इसके अलावा बिल्डिंग स्वामी को बिल्डिंग की मजबूती साबित करने के लिए Structure Safety Certificate भी जमा करना होता है। सचिन का कहना है हमारे गाँव में इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
क्या कहते हैं नियम
नियमानुसार किसी भी हॉस्पिटल के आसपास 100 मीटर के भीतर मोबाइल टावर नहीं लगाए जा सकते हैं। इसके अलावा यह भी देखा जाना जरूरी है कि टावर के आसपास खाली जमीन है या नहीं। वहीं अगर यदि टावर वाली बिल्डिंग के आसपास में रहने वाले लोग आपत्ति जताते हैं तो टावर नहीं लगाए जा सकते हैं।
मोबाइल टावर रेडिएशन पर बंटी है विशेषज्ञों की राय
क्या मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन का मानव जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है? दरअसल इस सवाल पर वैज्ञानिकों की राय बटीं हुई है। मोबाइल टावर से निकालने वाले रेडिएशन पर दुनिया भर में बहस चल रही है। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) द्वारा 1996 से 2016 के बीच 48,452 लोगों पर किए एक शोध के बाद आशंका जताई थी कि मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर होने की आशंका बढ़ जाती है। 2004 में इज़राइल में किए गए शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का कहना था कि जो लोग मोबाइल टावर के 350 मीटर के दायरे में रहते हैं, उनमें कैंसर होने की आशंका 4 गुना बढ़ जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने बंद कराया था टावर
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनते हुए एक कैंसर पीड़ित की याचिका पर मोबाइल कंपनी को 7 दिनों के भीतर टावर बंद करने के आदेश दिए थे। यह फैसला ग्वालियर के हरीश चंद तिवारी की याचिका पर दिया गया था। हरीश ने अपनी याचिका में कहा था कि मोबाइल टावर के एल्क्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया था।
इससे पहले वर्ष 2016 दूरसंचार मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर माना था कि देश में लगे 212 टावरों में रेडिएशन का उत्सर्जन तय मानकों से अधिक हो रहा है। शीर्ष अदालत इसके बाद दोषी कंपनियों पर 10 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था।
टावर वैध है या अवैध, ऐसे करे जांच
देश भर में मोबाइल रेडिएशन को लेकर फैली गलतफहमियों को दूर करने के इरादे से दूरसंचार विभाग ने तरंग संचार के नाम से एक वेब पोर्टल https://tarangsanchar.gov.in/emfportalशुरू किया है। इस पोर्टल पर मांगी गई डिटेल भरकर आप अपने क्षेत्र में मोबाइल टावरों की लोकेशन के साथ-साथ यह भी जान सकते हैं कि जान सकते हैं कि वह टावर तय मानकों के अनुसार लगा है या नहीं। इसके साथ ही यदि आप अपने घर के आसपास इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन की मात्रा जानना चाहते हैं तो 4,000 रुपए के भुगतान पर आपको मंत्रालय की ओर से विस्तृत रिपोर्ट भी मिल सकती है।