शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

यूपी चुनाव में बदलेगा पंचायतों का आरक्षण

लखनऊ। यूपी में पंचायत चुनाव की तैयारियां अब धीरे-धीरे जोर पकड़ते नजर आ रहा है। इधर, प्रशासनिक स्तर के साथ ही चुनाव लड़ने के दावेदार भी मैदान भी कूद पड़े हैं। वोटर लिस्ट पुनरीक्षण की घोषणा होने के बाद अब गांवों में इस बात पर चर्चा हो रही है कि कौन सा गांव आरक्षित होगा और कौन सा नहीं। सबसे पहला गुणाभाग इस बात के लिए लगाया जा रहा है कि इस बार जो सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है या अनारक्षित है, अब इस बार के चुनाव के लिए वह सीट किस वर्ग के लिए तय होगी। अभी दावेदार पूरा माहौल इस लिए भी नहीं बना पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें यह नहीं मालूम कि इस वक्त जो सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित या अनारक्षित है। आगामी चुनाव में वह सीट किस वर्ग के लिए तय होगी। वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव में सीटों का आरक्षण नए सिरे से हुआ था। यह मानकर नए सिरे से आरक्षण हुआ कि 2010 के चुनाव में आरक्षण पूरा हो चुका है, इसलिए अब नए सिरे से आरक्षण किया जाना चाहिए। जानकारों का मानना है कि वर्ष 2015 के चुनाव के बाद इस बार अब चक्रानुक्रम आरक्षण का यह दूसरा चक्र होगा। चक्रानुक्रम आरक्षण का अर्थ यह है कि आज जो सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, वो अगले चुनाव में वह सीट उस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं होगी। चक्रानुक्रम के आरक्षण के वरीयता क्रम में पहला नम्बर आएगा एसटी महिला। एसटी की कुल आरक्षित सीटों में से एक तिहाई पद इस वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे। फिर बाकी बची एसटी की सीटों में एसटी महिला या पुरुष दोनों के लिए सीटें आरक्षित होंगी। इसी तरह एससी के 21 प्रतिशत आरक्षण में से एक तिहाई सीटे एससी महिला के लिए आरक्षित होंगी और फिर एससी महिला या पुरुष दोनों के लिए होगा। इसके बाद ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में एक तिहाई सीटें ओबीसी महिला के लिए तय होंगी, फिर ओबीसी के लिए आरक्षित बाकी सीटें ओबीसी महिला या पुरुष दोनों के लिए अनारक्षित होगा।                     


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प्राधिकृत प्रकाशन विवरण

यूनिवर्सल एक्सप्रेस   (हिंदी-दैनिक)


 नवंबर 21, 2020, RNI.No.UPHIN/2014/57254


1. अंक-96 (साल-02)
2. शनिवार, नवंबर 21, 2020
3. शक-1980, कार्तिक, शुक्ल-पक्ष, तिथि-सप्तमी, विक्रमी संवत 2077।


4. प्रातः 06:49, सूर्यास्त 05:17।


5. न्‍यूनतम तापमान 11+ डी.सै., अधिकतम-23+ डी.सै.। आद्रता बनी रहेंगी।


6.समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्‍याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा। सभी पद अवैतनिक है।
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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

पीएम बोरिस की क्रांति के लिए प्रतिज्ञा

लंदन। एक वैश्विक घटनाक्रम में यूनाइटेड किंगडम के प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन ने एक हरित औद्योगिक क्रांति के लिए प्रतिज्ञा ली है। उनके नेतृत्व में ली गयी इस प्रतिज्ञा का दावा है कि यूके में न सिर्फ़ ऊर्जा, परिवहन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में 250,000 नौकरियों का सृजन होगा बल्कि 2030 तक वहां नयी डीजल और पेट्रोल करों की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लग जायेगा।
साथ ही, उसके बाद अगले पाँच सालों में सभी नए निवेश, कारोबार, हीटिंग सिस्टम, और कारों को शून्य कार्बन उत्सर्जन के अनुरूप होना पड़ेगा। यहीं नहीं, 2021 तक ट्रेजरी को सभी निवेश निर्णयों की समीक्षा करनी होगी और ये सुनिश्चित करना होगा कि सभी निवेश शुद्ध शून्य कार्बन के अनुसार हों। और सरकार की जलवायु अनुकूलन टीमों की सभी योजनाएं, विश्व तापमान वर्ष 2100 तक 4c  को ध्यान मैं रखकर बनाना शुरू कर देना चाहिए। इसी क्रम में यह फ़ैसला भी लिया गया कि सभी तरह के व्यवसायों को 'नेट शून्य कार्बन के अनुसार निगरानी और सत्यापन' के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। इस बात की भी उम्मीद है कि यूके नए एनडीसी कंट्रीब्यूशन को दिसंबर 2020/जनवरी 2021 तक  प्रस्तुत करेगा।
इस पूरे घटनाक्रम का आधार बनी यूके क्लाइमेट असेम्बली की एक जांच रिपोर्ट जो कहती है कि कोविड के बाद सरकार को सभी भागीदारों (चीन, अमेरिका सहित) के साथ काम करना चाहिए, यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज जलवायु-अनुकूल हों ।
इस जांच रिपोर्ट में पाया गया है कि:
* कुल 93% विधानसभा सदस्य पूरी तरह से सहमत थे कि नियोक्ताओं और अन्य लोगों को लॉकडाउन आसान करने के इस तरह के कदम उठाने चाहिए जिससे जीवन शैली में ऐसे बदलाव आएं कि वह नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन के अनुरूप हो सकें।
* 79% सदस्यों को लगता था कि नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन को प्राप्त करने में मदद के लिए सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए उठाए गए कदम ठीक हैं लेकिन 9% सदस्य इस बात से असहमत थे ।
इस घटनाक्रम पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (IIED) की वरिष्ठ फेलो डॉ कमिला तौल्मिन कहती हैं, “महामारी के कारण जलवायु सम्बन्धी वार्ताएं लगभग एक वर्ष पीछे चली गई हैं, COP26 के राष्ट्रपति के रूप में हम वर्ष 2020 में जलवायु कार्रवाई में मंदी या देरी को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। ब्रिटेन में और दुनिया भर में जलवायु का प्रभाव बार बार और लगातार महसूस किया जा रहा है। कई अफ्रीकी देश जलवायु प्रभावों और महामारी की दोहरी मार की वजह से एक गंभीर ऋण संकट का सामना कर रहे हैं । जलवायु संकट थम नहीं रहा है।”
यह रिपोर्ट और प्रधान मंत्री जॉनसन के फ़ैसले दर्शाते हैं कि युके रिकवरी पैकेज पेश करके अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका निभा सकता है जिससे आने वाले वक्त में अर्थव्यवस्था, नौकरियों और जलवायु के अनुरूप कम कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा मिलेगा।
आगे, इंस्टीट्यूट फॉर न्यू इकोनॉमिक थिंकिंग (INET) के सीनियर फेलो, एडिअर टर्नर ने कहा, “समिति उन नीतियों के लिए अधिक अवसर प्रदान करने पर जोर देती है जिससे दोनों दिशाओं में प्रगति होगी एक ओर आर्थिक सुधार और दूसरी ओर शून्य कार्बन उत्सर्जन, जो बिल्कुल सही भी है। 
वो आगे कहते हैं, “ब्याज की गिरती हुई दरों को देखते हुए, अब अक्षय ऊर्जा और हरित बुनियादी ढांचे के अन्य रूपों में निवेश करने का समय है;  रोजगार को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है इसलिए सरकार की नीतियां हरित रोजगार बनाने पर केंद्रित होनी चाहिए और उन फर्मों को सरकारी समर्थन मिलना चाहिए जो  उत्सर्जन में कटौती के लिए ज़्यादा से ज़्यादा प्रतिबद्ध हैं, पुरानी तकनीक पर निर्भर और संभावित रूप से फंसी हुई परीसंपत्तियों का समर्थन करने से बचना चाहिए।”               


1.3 मिलियन कच्चे तेल के गिरने का खतरा

कैरेकस। एक ताज़ा मिली जानकारी के मुताबिक़ वेनेजुएला और त्रिनिदाद के बीच, पारिया की खाड़ी में, एक ख़राब और लगभग डूबते तेल टैंकर से 1.3 मिलियन बैरल के करीब कच्चे तेल के समुद्र में गिरने का ख़तरा बन गया है। अगर इस मात्रा में कच्चा तेल समुद्र में गिरता है तो यह मात्रा 1989 के बहुचर्चित एक्सॉन वाल्डेज़ स्पिल के लगभग पांच गुना के बराबर है। टैंकर पेट्रोसुक्रे नामक कंपनी के स्वामित्व में है, जिसका मालिकाना हक वेनेजुएला की राष्ट्रीय तेल कंपनी पेट्रोलिओस डी वेनेजुएला के पास है, जिसकी 74%हिस्सेदारी है, और इटली की ईनी बाकी 25% की मालिक है। त्रिनिदाद और टोबैगो की एनजीओ फिसरमैन एंड फ्रेंड्स ऑफ द सी पिछले कुछ महीनों से इस स्थिति की निंदा करते हुए इस स्थिति के निपटान की मांग कर रही है। अगस्त की शुरुआत में ही इस एनजीओ ने चेतावनी दी थी कि जहाज़ "खतरनाक तरीके से झुक रहा है और इसके पलटने का खतरा बढ़ रहा है"।                   


प्रदूषण फैलाने वालों को टारगेट नहीं किया

राजनीतिक व्यवस्था में किसान,मजदूर और आम जनता का एक विशाल वर्ग सबसे दीन-हीन और कमजोर वर्ग..!


प्रदूषण के असली कारकों को नजर अंदाज कर सारा दोष किसानों के सिर पर मढ़ कर क्या हासिल..!


देश में वर्तमान समय की राजनीतिक व्यवस्था में किसान, मजदूर और आम जनता का एक विशाल वर्ग सबसे दीन-हीन और कमजोर वर्ग है, क्योंकि सत्ता के कर्णधार पूंजीपतियों के लिए ही अपनी सारी नीतियों को बनाते हैं और उसे बिना हिचक के लागू कराने की कोशिश भी करते हैं। सिर्फ प्रदूषण के मसले पर ही गौर किया जा सकता है। ऐसी खबरें आई कि देश के प्रदूषण में किसानों द्वारा जलाई गई पराली का योगदान चालीस फीसद है। क्या इस आंकड़े को सही माना जा सकता है? अब तक के प्रदूषण डाटा के सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल प्रदूषण में बहत्तर फीसद प्रदूषण डीजल-पेट्रोल चालित गाड़ियों से, बीस प्रदूषण कल-कारखानों से और सिर्फ आठ फीसद प्रदूषण में पराली सहित सभी अन्य कारकों से होने वाला प्रदूषण सम्मिलित है।


सवाल है कि आखिर सरकारों के कर्णधार आज तक किसानों को स्वामीनाथन आयोग के सुझावों के अनुसार उनकी फसलों की जायज कीमत (न्यूनतम समर्थन मूल्य) क्यों नहीं देते? केवल इस एकमात्र नीतिगत निर्णय से ही किसानों की आत्महत्या करने और परालीजनित प्रदूषण सहित लगभग अन्य सभी समस्याओं का समाधान हो जाता। दूसरी बात, पराली के निस्तारण का समय से पूर्व समुचित समाधान क्यों नहीं किया जाता है?सरकारें साल भर बिल्कुल नींद की अवस्था में रहतीं हैं। जब किसान अपनी धान की फसल को अगली गेहूं की फसल के समय से बुआई के लिए खेत की साफ-सफाई करने के क्रम में मजबूरी में कटाई से बची पराली (पुआल) को जलाने लगते हैं, तब अचानक सरकारें अपनी कुंभकर्णी नींद से जगतीं हैं! सरकारें किसानों को उनकी फसलों की उत्पादन लागत के अनुसार कीमत न देकर प्रतिदिन किसानों की खुदकुशी के अलावा अब अपने पालित डाटा सर्वेक्षण कार्यालयों के मिथ्या सर्वेक्षणों और किसानों के खिलाफ मनमाफिक फैसलों के जरिए प्रदूषण का मुख्य कारण परालीजनित प्रदूषण को बताने में लगी हैं। प्रदूषण के असली कारकों को नजर अंदाज कर सारा दोष किसानों के सिर पर मढ़ कर क्या हासिल कर लिया जाएगा? सवाल यह भी है कि देश में साठ फीसद तक रोजगार देने वाला कृषि क्षेत्र और अन्नदाता किसानों को पराली को मुद्दा बना कर प्रदूषण का खलनायक बनाने का खेल किसके हित में चल रहा है!


देश को औद्योगिक राष्ट्र बनाने को उद्यत नेता और कथित अर्थशास्त्री अब तक इस देश का कितना विकास कर सके हैं और बेरोजगार युवाओं को कितनी नौकरी दे सके हैं? सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले पैंतालीस सालों में बेरोजगारी अपने सर्वोच्च स्तर पर है! इस दुखद स्थिति में इस देश की ढहती और बदहाल अर्थव्यवस्था की संबल बनी कृषि को भी बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है।


देश का किसान, मजदूर और आम आदमी सबसे कमजोर, असहाय, असंगठित और दरिद्रता से त्रस्त वर्ग है। इसलिए भारतीय समाज के इस अंतिम छोर पर पड़े, किसी तरह अपनी रोटी कमाने-खाने वाले निर्बल समाज को सशक्त, बलशाली और संगठित पूंजीवादपरस्त वर्ग और उनकी संरक्षक सरकारों के कर्णधार अनाप-शनाप आरोप लगा कर उन्हें खलनायक बताने का खेल रच रहे हैं!                                    


नेट ज़ीरो इमारतें बनाना पूरी दुनिया में संभव

दुनिया के लगभग हर हिस्से में नेट-ज़ीरो या नेट-ज़ीरो के करीब बिल्डिंग निर्माण के लिये जरूरी तमाम प्रौद्योगिकी और क्षमताएं पहले से ही मौजूद हैं। यह क्षमताएं विकसित तथा विकासशील, दोनों ही देशों में मौजूद हैं और इनकी लागत भी परंपरागत निर्माण परियोजनाओं की लागत के लगभग बराबर ही है। यह बातें निर्माण क्षेत्र में जलवायु के अनुकूल वैश्विक नवाचार को लेकर हुए एक ताज़ा अध्ययन में सामने आयी हैं। एनुअल रिव्यू ऑफ एनवायरमेंट एंड रिसोर्सेज़ में छपे एक अध्ययन पत्र में कहा गया है कि बिजली, परिवहन और निर्माण क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के मामले में सबसे बड़ा अंतर पैदा करने की क्षमता है। यह शोध ऐसे समय पर किया गया है जब हमारे शहर और समाज सामूहिक रूप से यह एहसास करने लगे हैं कि लॉकडाउन के दौरान हम कैसे रहते हैं और कैसे अपने घर का मूल्यांकन करते हैं। दुनिया भर में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा संबंधी ग्रीन हाउस गैसों के 39% हिस्से के लिए निर्माण क्षेत्र ज़िम्मेदार है और निर्माण संबंधी सामग्री तैयार करने में निकलने वाले कार्बन पर डेढ़ डिग्री सेल्सियस कार्बन बजट के बाकी बचे हिस्से का लगभग आधा भाग तक खर्च हो सकता है।           


डीएम की अध्यक्षता में मासिक बैठक आयोजित

डीएम की अध्यक्षता में मासिक बैठक आयोजित  भानु प्रताप उपाध्याय  मुजफ्फरनगर। जिलाधिकारी उमेश मिश्रा की अध्यक्षता में विकास भवन के सभाकक्ष में ...