देश के किसान मोदी सरकार के तीन नये विधेयकों का विरोध क्यों कर रहे हैं।
वो दिन दूर नही जब भारत के हिंदू यजीदी बनकर अपनी ही जन्मभूमि पर रहम की भीख मांगते नजर आयेगें।
यूपी में क़ानून का नहीं, अपराधियों से रिश्तों का 'राजधर्म' चलता है।
जब तुम कहते हो कि भारत पर तुम्हारा बराबर का हक़ है।
कृष्णकांत।
मैंने ये जानना चाहा कि देश के किसान मोदी सरकार के तीन नये विधेयकों का विरोध क्यों कर रहे हैं।किसान संगठनों के विरोध के कारण जायज हैं।
किसान संगठनों का आरोप है।
नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों और कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका सीधा नुकसान किसानों को होगा।
इन तीनों विधेयक किसानों को बंधुआ मजदूरी में धकेल देंगे।
ये विधेयक मंडी सिस्टम खत्म करने वाले, न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म करने वाले और कॉरपोरेट ठेका खेती को बढ़ावा देने वाले हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा।
बाजार समितियां किसी इलाक़े तक सीमित नहीं रहेंगी।दूसरी जगहों के लोग आकर मंडी में अपना माल डाल देंगे और स्थानीय किसान को उनकी निर्धारित रकम नहीं मिल पाएगी।नये विधेयक से मंडी समितियों का निजीकरण होगा।
नया विधेयक ठेके पर खेती की बात कहता है।जो कंपनी या व्यक्ति ठेके पर कृषि उत्पाद लेगा, उसे प्राकृतिक आपदा या कृषि में हुआ नुक़सान से कोई लेना देना नहीं होगा।इसका नुकसान सिर्फ किसान उठाएगा।
अब तक किसानों पर खाद्य सामग्री जमा करके रखने पर कोई पाबंदी नहीं थी।ये पाबंदी सिर्फ़ व्यावसायिक कंपनियों पर ही थी।अब संशोधन के बाद जमाख़ोरी रोकने की कोई व्यवस्था नहीं रह जाएगी, जिससे बड़े पूंजीपतियों को तो फ़ायदा होगा, लेकिन किसानों को इसका नुक़सान झेलना पड़ेगा।
किसानों का मानना है कि ये विधेयक "जमाख़ोरी और कालाबाज़ारी की आजादी" का विधेयक है।विधेयक में यह स्पष्ट नहीं है कि किसानों की उपज की खरीद कैसे सुनिश्चित होगी, किसानों की कर्जमाफी का क्या होगा।