भारत-चीन सीमा विवाद: 10 कैमरे…20 सैनिक…100 सेकेंड का वायरल वीडियो…चीनी सेना ने ऐसे बनाई प्रोपेगेंडा फिल्म।
नई दिल्ली/ बीजिंग। भारत और चीन के बीच लद्दाख में जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है।इंटरनेट पर ऐसी तस्वीरों और वीडियो की बाढ़ आ गई है जिनमें तिब्बत क्षेत्र में चीनी सेना की ड्रिल्स को देखा जा सकता है।इनकी प्रोडक्शन क्वालिटी एक्शन मूवीज के डायरेक्टर्स को भी मात देती प्रतीत होती है।ये वीडियो चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन ऑर्मी पीएलए की रणनीति का अहम हिस्सा है जिसका इकलौता मकसद शत्रु को भयभीत करना है।
इंडिया टुडे की ओपन सोर्स इंटेलीजेंस (ओएसआइएनटी) टीम ने पीएलए की एक हालिया फिल्म का विश्लेषण किया। इसमें शिनजियांग मिलिट्री रीजन से एक बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट को दिखाया गया।ये विश्लेषण इसलिए किया गया जिससे कि समझा जा सके चीनी सेना ने इन वीडियो को बनाने में कितनी मशक्कत की पीएलए की ओर से जारी शॉर्ट वीडियो में एक वास्तविक टीम टकराव ड्रिल को दिखाया गया।
हॉलीवुड स्टाइल में शूट की गई इस 100-सेकेंड की फिल्म में पर्वतीय क्षेत्र में टकराव अभ्यास को दिखाया गया है। इसमें 20 सशस्त्र पीएलए टोही अधिकारी और जवान हिस्सा लेते देखे जा सकते हैं। वीडियो को दर्जनों कैमरा एंगल्स से शूट किया गया।ये आभास देने की कोशिश की गई ये लाइव मिलिट्री ड्रिल है और इसे महज कैमरे के लिए शूट नहीं किया जा रहा है (जहां ड्रिल को हर शॉट के बाद पॉज दिया गया जिससे एक कैमरे से दूसरे कैमरे की ओर मूव किया जा सके) हम सुरक्षित तौर पर इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि सभी कैमरा एंगल्स को कवर करने के लिए कम से कम दस कैमरा क्रू का इस्तेमाल किया गया होगा।ऐसे कैमरा क्रू जिन्हें खास पोजिशन्स पर तैनात किया गया।
यहां पीएलए के प्रोपेगेंडा वीडियो की मेकिंग के बिहाइंड द सीन्स पर एक नजर डाली जा सकती है।
पहला दृश्य तीन सेकंड के इनडोर शॉट के साथ शुरू होता है जिसमें पीएलए सैनिकों को हथियार उठाते देखा जा सकता है। अगले दृश्य में उसी प्रक्रिया का क्लोज-अप शॉट शामिल है लेकिन एक अलग कोण से।
एक तीसरा कैमरा हट्स (झोपड़ियों) के ठीक बाहर तैनात है जहां सैनिकों को हथियारों के साथ तेजी से बाहर निकलते देखा जा सकता है।
चौथा कैमरा सैन्य वाहन के पास तैनात किया गया है जो वाहन पर सवार होते लोगों के क्लोज अप को कैप्चर करता है।
पांचवा एक ड्रोन-माउंटेड एयरबोर्न कैमरा है जो पहाड़ की घाटी में घूम रहे 20 लोगों के दो अलग-अलग शॉट्स दिखाता है।
छठे कैमरे को चलते लोगों के नाटकीय ट्रैकिंग शॉट्स को कैप्चर करने के लिए रखा गया है, जैसे कि वे फायरिंग जोन की ओर बढ़ना जारी रखते हैं।
सातवें कैमरे को फायरिंग जोन से पहले पानी की धारा के पास रखा गया।इसमें टारगेट जोन की तरफ बढ़ते सशस्त्र कार्मिकों के और ट्रैकिंग शॉट्स को फिल्माया गया।
वीडियो 27 और 31 सेकंड के बीच फायरिंग जोन के कई शॉट्स दिखाता है, इससे समझा जा सकता है कि सभी शॉट्स को कैप्चर करने के लिए कम से कम एक कैमरा तैनात किया गया था।
नौवें कैमरे की पहाड़ियों पर तैनात स्नाइपर्स के क्लोज-अप शॉट्स को कैप्चर करने के लिए जरूरत थी।
दसवां यूनीक कैमरा हथियारबंद लोगों के हेडगियर में लगा था जो उनकी बंदूकों की पोजीशन और टारगेट्स को कैप्चर करता है।
इनके अलावा, पीएलए अधिकारियों के इंटरव्यू, मिक्स्ड और मूविंग कटवेज, लैंडस्केप के शॉट्स आदि हैं, जिन्हें हमने नहीं गिना है, क्योंकि इन्हें पहले के कैमरों का इस्तेमाल कर शूट किया गया हो सके
विश्लेषण से पता चलता है कि ड्रिल का वीडियो प्रोडक्शन पीएलए के लिए उतना ही अहम लगता है जितना कि खुद ड्रिल।प्रोडक्शन का स्केल वास्तव में दिखाने के लिए काफी है कि पीएलए की ओर से प्रोपेगेंडा मशीनरी को कितना महत्व दिया जाता है।
चीन में घरेलू भावनाओं को संबोधित करने के साथ ही, इस तरह के प्रोपेगेंडा वीडियो में चीनी सशस्त्र बलों की ताकत को ‘लार्जर दैन लाइफ’ दिखाने की कोशिश करने का अहम मकसद विरोधी बलों में हैरानी और खौफ पैदा करना हो सकता है।वो चीनी सशस्त्र बल जो असल युद्ध स्थितियों को लेकर काफी अनुभवहीन हैं।