वाशिंगटन डीसी। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव अब करीब है, प्रचार और बयानबाजी चरम पर है। संपूर्ण विश्व का आकर्षण भी इस चुनाव में निहित समझें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि विश्व जानता है कि अमेरिका के नेतृत्व परिवर्तन से विश्व के कई निर्णयों में परिवर्तन भी संभव है। जहां वर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं और इसके लिए वे हर पक्ष और समूह से संपर्क में हैं, उसी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के बाइडेन भी अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं।
हाल ही में विस्कॉन्सिन प्रांत की केनशा में हुए एक कार्यक्रम में बाइडेन ने तिब्बत के विषय में स्पष्ट मत रखते हुए यह कहा कि अगर वे सत्ता में आए तो तिब्बत में चीनी अधिकारियों द्वारा मानवाधिकार के उल्लंघन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेंगे। साथ ही एक नया विशेष समन्वयक नियुक्त करेंगे जो इस बात पर जोर देगा कि चीनी सरकार अमेरिकी राजनयिकों, पत्रकारों और अमेरिकी नागरिकों को तिब्बत पहुंचने में कोई समस्या खड़ी न करे, ताकि तिब्बत के स्थानीय नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा हो सके और उनकी मूल संस्कृति और परंपराओं पर कोई चीनी प्रतिबंध न रहे। यह बयान तब विशेष महत्व रखता है जबकि भारत व चीन सीमाओं पर आमने सामने है, कई स्तर की बातचीत, रक्षामंत्रियों की वार्ता, सैन्य अधिकारियों की वार्ता के बाद भी चीन की मानसिकता में कोई सुधार नहीं आया।
इतिहास के घटनाक्रम को देखें तो समझ मे आएगा कि अतिक्रमण चीन का चरित्र रहा है। वर्तमान में हम चीन देख रहे है, वह तिब्बत, मंगोलिया, हांगकांग आदि कई देश व द्वीपों पर जबरन अतिक्रमण के बाद बना है। ऐसी स्थिति में किसी अमेरिकी प्रतिनिधि द्वारा तिब्बत के विषय में उठाया गया यह व्यापक विचार ही माना जाएगा। हालांकि इसे भारतीय मूल के मतदाताओं को आकर्षित करने की योजना भी माना जा सकता है। यों विश्व जानता है कि चीन ने अपने आसपास के कई देशों में अतिक्रमण किया और उनके भूभाग पर कब्जा किया है। लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। पिछले कुछ समय से सीमा पर चले आ रहे विवादों में भी भारतीय सेना ने विपरीत परिस्थिति और भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद चीनी सैनिक घुसपैठियों को कई बार पटखनी दी। बहरहाल, अमेरिका में चुनावों के बाद नेतृत्व जो भी आए, अब अमेरिका भारत के सहयोगी के रूप में खड़ा रहेगा, ऐसी उम्मीद है।