बुधवार, 9 सितंबर 2020
सीमा विवाद पर 'रूस' ने दिया बयान
पीडाः दुनिया से अलग-थलग हो गया 'चीन'
नई दिल्ली/ बीजिंग। अपनी सामरिक व आर्थिक ताकत के गुमान में पड़ोसियों के साथ-साथ अन्य देशों से पंगा लेने वाला चीन आज दुनिया से अलग-थलग पड़ गया है। कोरोना संक्रमण को लेकर अपने रहस्यमय रवैये के कारण पहले ही वह दुनियाभर के देशों के निशाने पर आ गया था। इस बीच लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय सैनिकों के साथ चीनी सैनिकों की हिंसक झड़पों व तनातनी ने उसके नापाक इरादे को दुनिया के सामने ला दिया। अब तो चीन के बहकावे और कुटिल चालों में फंसे देशों ने भी उससे किनारा करना शुरू कर दिया है।
भूटान: चीन की नजर पूर्वी भूटान स्थित सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य पर है। गत दिनों उसने इस अभयारण्य पर दावा भी ठोक दिया था, जिसका भूटान ने पुरजोर विरोध किया था। इसके बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि चीन-भूटान के बीच कभी सीमा निर्धारित नहीं हुई। सीमा को लेकर पिछले काफी समय से विवाद चल रहा है।
रूस में मिलेंगे भारत-चीन के विदेश मंत्री
मास्को। लद्दाख में भारत और चीन में जारी तनातनी के बीच आज शाम को भारत और चीन के विदेश मंत्री रूस की राजधानी मास्को में मुलाकात करेंगे। तय कार्यक्रम के मुताबिक भारतीय समयानुसार शाम 5 बजकर 30 मिनट पर विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच मुलाकात होगी। कहा जा रहा है कि रूस अपने दोनों मित्र देशों के बीच तनाव कम करने की जमीन तैयार करने में लगा हुआ है। हालांकि रूस ने इसका खंडन किया है।
इससे पहले रूस में ही भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से चीनी रक्षा मंत्री ने मास्को में मुलाकात की थी लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला था। यह बैठक ऐसे समय पर हो रही है जब भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में शामिल होने मंगलवार को मॉस्को पहुंच चुके हैं।
भारत के तेवर देख बैकफुट पर आया चीन
नई दिल्ली/ बीजिंग। चीन घबराया हुआ है और अब अपने ही लोगों को समझाने की कोशिश कर रहा है कि उसकी सेना युद्ध लड़ सकती है। साथ ही वह यह भी समझा रहा है कि उसे भारत के साथ युद्ध करने का फायदा मिलेगा। इससे साफ जाहिर है कि सीमा पर भारत के आक्रामक रुख से चीन बैकफुट पर है। चीन के स्टेट मीडिया से संबद्ध ग्लोबल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है, ‘‘भारत को लेकर चीन की नीति ताकत पर आधारित है और अगर आम लोग भारतीय उकसावे से नहीं डरते हैं, तो पीएलए कैसे डर सकता है? ऐसे में देश कैसे कमजोर हो सकता है? हर किसी को यह मानना होगा कि चीन भारत पर हावी है और ऐसे में हम भारत को चीन का फायदा नहीं उठाने देंगे।’’
लोगों को दे रहा भरोसा, जमीन नहीं गंवाएगा चीन
ग्लोबल टाइम्स के एडिटर-इन-चीफ हू शिजिन ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा, ‘‘चीन-भारत सीमा की सीमावर्ती स्थिति से परिचित लोगों ने मुझे बताया कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का पूरी स्थिति पर द्दढ़ नियंत्रण है और युद्ध की स्थिति में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह कैसे लड़ा जाता है। पीएलए के पास भारतीय सेना को हराने की पूरी क्षमता है। इतना ही नहीं भारत-चीन सीमा पर चीन अपनी एक इंच जमीन भी नहीं खोएगा। इसे लेकर हम चीनी लोगों को आश्वस्त करते हैं।’’
पाक से भी खराब है 'भारत की हालत'
वॉशिंगटन डीसी। भारत के साथ दोस्ती का दंभ भरने वाले अमेरिका की नजर में भारत की हालत पाकिस्तान से भी खराब है और उसने अपने देशवासियों को भारत नहीं जाने की सलाह दी है। अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए अपने यात्रा परामर्श में संशोधन किया है और इसे तीसरे स्तर पर रखते हुए देशवासियों से पाकिस्तान की ‘यात्रा की योजना पर पुनर्विचार’ करने को कहा है। भारत अभी भी न जाने वाले देशों की सूची में शामिल है।
इससे पहले पाकिस्तान को चौथे स्तर पर रखा गया था। चौथे स्तर पर रखे गए देश ‘यात्रा नहीं करने’ के परामर्श की श्रेणी में आते हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के परामर्श के अनुसार भारत अब भी यात्रा परामर्श के चौथे स्तर में है। भारत के अलावा सीरिया, ईरान, इराक और यमन समेत कई देश चौथे स्तर वाली सूची में शामिल हैं। अमेरिका ने भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के लगातार बढ़ रहे मामलों के मद्देनजर वहां ‘यात्रा नहीं करने’ का परामर्श छह अगस्त को जारी किया था।
फुटबॉलः इटली ने नीदरलैंड्स को दी मात
रोम। इटली ने निकोलो बारेला के गोल दम पर यूईएफए नेशंस लीग के ग्रुप-ए के मैच में नीदरलैंड्स को 1-0 से हरा दिया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, सोमवार को खेले गए मैच के पहले हाफ के स्टॉपेज टाइम में बारेला ने टीम के लिए गोल किया और उनका यह गोल उनकी टीम को जीत दिलाने में काफी रहा।
इस जीत ने इटली को ग्रुप-ए1 के मैच में शीर्ष पर पहुंचा दिया। उनके दो मैचों में चार अंक हैं। इटली के कोच ने इटली के ब्रॉडकास्टर राय से बात करते हुए कहा, मैं मानसिकता, प्रदर्शन, को लेकर काफी खुश हूं। खिलाड़ियों ने शानदार खेला। वहीं अपने स्टार स्ट्राइकर रोबर्ट लेवांडोव्स्की के बिना उतरी पोलैंड ने टूर्नामेंट में अपनी पहली जीत दर्ज की। 24वें मिनट में हैरिस हाजराडिनोविक ने गोल कर बोस्निया को आगे कर दिया। लेकिन ब्रेक से पहले कामिल ग्लीक ने पोलैंड को बराबरी पर ला दिया और 67वें मिनट में कामिल ग्रोसिस्की ने पौलेंड के लिए दूसरा गोल किया जो टीम के लिए विजयी साबित हुआ।
जिंगपिंग पर सख्ती की तैयारी में अमेरिका
बीजिंग/ वाशिंगटन डीसी। अमेरिकी संसद में एक बिल पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका में सरकारी तौर पर शी जिनपिंग को चीन का राष्ट्रपति यानी प्रेसिडेंट नहीं कहा जाना चाहिए। बिल के मुताबिक, चीन में लोकतंत्र नहीं है और न ही, जिनपिंग लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए हैं। लिहाजा, अमेरिका उन्हें राष्ट्रपति कहना बंद करे।
तकनीकी तौर पर बिल में कही गई हर बात सही है। दरअसल, 1980 के पहले किसी चीनी शासन प्रमुख को प्रेसिडेंट यानी राष्ट्रपति नहीं कहा जाता था। इतना ही नहीं, चीन के संविधान में भी ‘राष्ट्रपति या प्रेसिडेंट’ शब्द नहीं है।
‘चेयरमैन ऑफ एवरीथिंग’
2012 में जिनपिंग राष्ट्रपति बने। यह पद उन्हें चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मुखिया होने के चलते मिला। संवैधानिक तौर पर देखें तो सीसीपी का चेयरमैन ही सरकार और सेना का प्रमुख होता है। लेकिन, जिनपिंग के मामले में ऐसा नहीं है। सीएनएन के मुताबिक, जिनपिंग ही सत्ता और पार्टी का एकमात्र केंद्र हैं। वे पार्टी की नई सुपर कमेटीज के चेयरमैन भी हैं। इसलिए, इंटरनेशनल एक्सपर्ट्स उन्हें ‘चेयरमैन ऑफ एवरीथिंग’ यानी ‘हर चीज का अध्यक्ष’ कहते हैं। ये एक तरह से तानाशाह होना ही है।
अमेरिका में लाए गए बिल में क्या है
ट्रम्प की पार्टी के सांसद स्कॉट पैरी ये बिल लाए। नाम दिया गया, ‘नेम द एनिमी एक्ट’। पैरी चाहते हैं कि जिनपिंग या किसी चीनी शासक को अमेरिका के सरकारी दस्तावेजों में न राष्ट्रपति कहा जाए और न लिखा जाए। बिल के मुताबिक- चीन में राष्ट्रपति जैसा कोई पद नहीं है। वहां कम्युनिस्ट पार्टी का जनरल सेक्रेटरी (महासचिव) होता है। और जब हम उसे राष्ट्रपति कहते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे कोई व्यक्ति लोकतांत्रिक तौर पर चुना गया हो। चीन में तो लोकतंत्र नहीं है।
फिर सच्चाई क्या है..
इसे आसान भाषा में समझते हैं। दरअसल, जिनपिंग को ‘राष्ट्रपति’ कहे जाने पर भ्रम है। और इसीलिए विवाद भी हुए। चीन में जितने भी पदों पर जिनपिंग काबिज हैं, उनमें से किसी का टाईटिल ‘प्रेसिडेंट’ नहीं है। और न ही चीनी भाषा (मेंडेरिन) में इस शब्द का जिक्र है। 1980 में जब चीन की इकोनॉमी खुली, तब चीन के शासक को अंग्रेजी में प्रेसिडेंट कहा जाने लगा। जबकि, तकनीकि तौर पर ऐसा है ही नहीं। जिनपिंग सीसीपी चीफ हैं। इसलिए देश के प्रमुख शासक हैं। लेकिन, वे राष्ट्रपति तो बिल्कुल नहीं हैं। बस उन्हें ‘प्रेसिडेंट’ कहा जाने लगा।
सवाल क्यों उठते हैं...
स्कॉट पैरी के पहले भी अमेरिका में यह मांग उठती रही है कि कम से कम आधिकारिक तौर पर तो चीन के शासक को राष्ट्रपति या प्रेसिडेंट संबोधित न किया जाए। आलोचक कहते हैं- जिनपिंग ही क्यों? चीन के किसी भी शासक को राष्ट्रपति कहने से यह संदेश जाता है कि वो लोकतांत्रिक प्रतिनिधि है, और इंटरनेशनल कम्युनिटी को उन्हें यही मानना चाहिए। जबकि, हकीकत में वे तानाशाह हैं।
बात 2019 की है। तब यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन की एक रिपोर्ट में कहा गया था- चीन में लोकतंत्र नहीं है। मतदान का अधिकार नहीं है और न बोलने की आजादी है। जिनपिंग को राष्ट्रपति कहना उनकी तानाशाही को मान्यता देना है।
जिनपिंग के ओहदे
चीन में जिनपिंग के पास तीन अहम पद हैं। स्टेट चेयरमैन (गुओजिया झुक्शी)। इसके तहत वे देश के प्रमुख शासक हैं। चेयरमैन ऑफ द सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (झोंगयांग जुन्वेई झुक्शी)। इसके मायने हैं कि वे सभी तरह की चीनी सेनाओं के कमांडर इन चीफ हैं। तीसरा और आखिरी पद है- जनरल सेक्रेटरी ऑफ द चाईनीज कम्युनिस्ट पार्टी या सीसीपी (झोंग शुजि) यानी सत्तारूढ़ पार्टी सीसीपी के भी प्रमुख। 1954 के चीनी संविधान के मुताबिक, अंग्रेजी में चीन के शासक को सिर्फ चेयरमैन कहा जा सकता है।
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