अश्वनी उपाध्याय
साहिबाबाद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी तो उनका लक्ष्य हर शहर को खूबसूरत बनाना था। गाजियाबाद के अधिकारियों ने भी एक से बढ़कर एक दावे किए। परिणाम यह हुआ कि स्वच्छ मिशन 2018-19 में गाजियाबाद को देश के सबसे साफ शहरों की श्रेणी में 13वां स्थान मिला। फिर शुरू हुआ निगम अधिकारियों और कूड़ा उठाने वाली एजेंसियों का खेल। खेल ऐसा कि सड़कों पर जहां-मलबा-कूड़ा फैला है। शिकायत करते रहिए कोई सुनवाई नहीं होती। यही कारण है कि स्वच्छ मिशन 2019-20 के शुरुआती परिणामों में गाजियाबाद 13वें से खिसककर 19वें स्थान पर जा पहुंचा है। दरअसल, स्वच्छ मिशन को कामयाब करने के लिए गाजियाबाद नगर निगम ने कई योजनाएं बनाई थीं। इनमें से एक महत्वपूर्ण योजना थी जिसमें निर्माणाधीन मकानों का मलबा उठाने के लिए एक निजी कंपनी को अधिकृत भी किया गया। इस दौरान जोर-शोर से नगर निगम अधिकारियों ने इसका प्रचार भी किया कि अब गाजियाबाद मलबा मुक्त हो जाएगा। हालांकि समय बीतते-बीतते निगम का यह अभियान ध्वस्त हो गया है। नगर निगम के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत के चलते कंपनी काम ही नहीं कर रही है। गाजियाबाद की वसुंधरा, वैशाली, साहिबाबाद, शालीमार गार्डन आदि इलाकों में सड़कों पर मलबे के ढेर लगे हुए हैं। निगम का निर्माण विभाग मलबा फेंकने वालों का चालान तो कर देता है लेकिन उसे उठाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। जब स्वच्छ सर्वे होता है तो गाजियाबाद के अंक कट जाते हैं। लगातार गिर रही स्वच्छता रेटिग: 2020 की शुरुआत में ही स्वच्छ सर्वेक्षण शुरू हुआ तो निगम की रेटिग भी गिरनी शुरू हो गई है। जगह-जगह कूड़े मलबे के ढेर लगे हैं। लोग शिकायत करते हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। ट्रांस हिंडन आरडब्ल्यूए फेडरेशन के अध्यक्ष कैलाशचंद्र शर्मा ने बताया कि मलबे की शिकायत के बाद भी सेक्टर पांच में एक माह से कार्रवाई नहीं हुई है। निगम के अधिकारी कोई जवाब ही नहीं देते। एजेंसी को 440 रुपये प्रति टन के हिसाब से पेमेंट दिया जा रहा है। इसके बाद भी सफाई नहीं हो रही। निगम के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से यह हो रहा है।