कश्मकश में राहुल गांधी,तय नहीं कर पा रहे है कि ‘परिवार’बचाया जाए या ‘पार्टी’, सीडब्ल्यूसी की बैठक खत्म होने के बाद नरम दल- गरम दल के बीच बढ़ी कड़वाहट, नहीं चलेगा- न खाता न बही, जो राहुल कहें वही सही, नेता और कार्यकर्ता पार्टी के लिए हैं, परिवार के लिए नहीं? नई रणनीति बनाने में जुटे तमाम नेता।
नई दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इन दिनों बड़ी उलझनज में नजर आ रहे है। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या खुद के कैरियर के बजाये परिवार बचाने या फिर पार्टी को बचाने की दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस के भीतरखाने से खबर आ रही है कि सोमवार को संपन्न हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद राहुल गांधी की उलझन और बढ़ गई है। दरअसल उनके बयानों को लेकर नाराज हुए वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें पूरी तरह से माफ़ नहीं किया है। ये नेता अपमान का घूंट पी रहे है। हालांकि पार्टी की छवि धूमिल होने और बवाल शांत करने के लिए उन्होंने जरूर अपने ट्वीट वापस ले लिए है।
लेकिन बीजेपी से सांठगांठ के आरोप उन्हें भुलाए नहीं भूल रहे है। बताया जाता है कि कपिल सिब्बल , गुलाम नबी आजाद समेत कई बड़े नेता अब खुलकर राहुल गांधी की खिलाफत करने पर विचार कर रहे है। दरअसल ये नेता पार्टी के भीतर माहौल बना रहे है कि भविष्य में कांग्रेस की मजबूती के लिए अभी कड़वा घूंट पीना होगा। इसके लिए अब वही पुराना राग नहीं चलेगा , जिसमे अलापा जाता था कि न खाता न बही, जो राहुल कहें वही सही। कल की बैठक के बाद सीडब्ल्यूसी के ज्यादातर नेता दो फाड़ में बटे बताये जाते है। एक तरफ गांधी-नेहरू परिवार के समर्थक है तो दूसरी ओर कांग्रेस की मजबूती चाहने का दावा करने वाले नेता कांग्रेस की मजबूती चाहने वाले नेताओं का दावा है।कि सुदृढ़ और उर्जावान नेतृत्व की कमी, खेमेबाजी और क्षमता की बजाय चाटुकारिता को मिल रहे प्रश्रय से पार्टी जूझ रही है। उनके मुताबिक आज कांग्रेस की हालत कुछ ऐसी हो गई है। एक दीवार को संभालने की कोशिश होती है तो दूसरी भरभराने लगती है। इन नेताओं का भी मानना है। कि राहुल गांधी यह तय नहीं कर पा रहे है कि परिवार बचाया जाए या पार्टी। वो ये भी मानते है,कि परिवार और पार्टी अलग अलग है।उनके मुताबिक नेता और कार्यकर्ता पार्टी के लिए हैं, परिवार के लिए नहीं?
उधर गांधी-नेहरू समर्थक नेता मानते है कि सोमवार की बैठक मे राहुल गांधी ने जिस तरह से सोनिया को पत्र लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं का अपमान किया वह यही जताता है कि राहुल का भी परम विश्वास है कि परिवार ही पार्टी है। दरअसल उन्हें आशंका है।कि गांधी परिवार नाराज हुआ तो पार्टी कैसे चलेगी। अध्यक्ष का चुनाव हो भी जाए तो आशीर्वाद तो नेहरू-गांधी परिवार का चाहिए ही।उधर नाम ना जाहिर करने की शर्त पर एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज टुडे से कहा कि मौजूदा जमाना सर्वे का है , इसीलिए मेरा विश्वास है, कि आज जनता के बीच सर्वे हो जाए कि राहुल गांधी ने भरी बैठक में वरिष्ठ नेताओं पर भाजपा से साठगांठ का जो आरोप लगाया वो सत्य है या असत्य | उनके मुताबिक अधिकतर नेता बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे है | उनके मुताबिक राहुल गाँधी को फॉलो करने वाले कुछ खास नेता इसे भी सहज समझते है,कि यूपीए काल में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुए कैबिनेट फैसले की कापी को राहुल ने सार्वजनिक रूप से फाड़ा था | उनके मुताबिक हर बात पर ट्वीट करने वाले राहुल ने सीडब्ल्यूसी में इतने विवादों के बाद भी ट्वीट नहीं किया।इस नेता ने दावा किया कि अब बात हो रही है,कि अगले कुछ महीनों में नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा। लेकिन जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल-सोनिया के शरणागत हैं।उसमें क्या यह माना जा सकता है,कि गांधी परिवार की इच्छा और आशीर्वाद के बगैर कोई काबिल अध्यक्ष सफल हो सकता है। उनके मुताबिक पिछले एक साल से ज्यादा वक्त से राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष नहीं है। कांग्रेस ने उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी है , लेकिन जो लाइन वह खींच दें वही पार्टी की लाइन। यह क्या बताता है। उन्होंने कहा कि कई जमीनी नेता दबे छुपे रोना भी रोते हैं कि पार्टी आधार खोती जा रही है ,लेकिन करे क्या। वरना ऐसा क्यों होता कि सोमवार को सीडब्ल्यूसी की बैठक में पार्टी के कई नेता सोनिया या राहुल को ही अध्यक्ष बनाए रखने की मांग करते। इस नेता के मुताबिक परिवार के संरक्षण में पार्टी चलाना शायद कांग्रेस की मजबूरी बनती जा रही है। ऐसे में आज सवाल उठ रहे हैं, कल विद्रोह की स्थिति हो सकती है।