मंगलवार, 4 अगस्त 2020

दिल्ली दंगे में फंडिंग का हुआ खुलासा

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून और जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ दिल्ली में फरवरी में हुए धरना-प्रदर्शन और दंगों के मामले में हुई फंडिंग का अब तक का सबसे बड़ा खुलासा हुआ है। दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि दिल्ली में हिंसा से पहले, आरोपियों के खातों में और एक करोड़ 62 लाख 46 हजार 53 रुपए आए थे। हिंसा के आरोपियों ने इसमें से करीब एक करोड़ 47 लाख 98 हज़ार 893 रुपए दिल्ली में चल रहे करीब 20 प्रदर्शन वाली जगहों पर और दिल्ली में हिंसा करवाने में खर्च किया था। दिल्ली पुलिस के मुताबिक आरोपियों ने इन रुपयों से हिंसा के लिए हथियार खरीदे। साथ ही सीएए के खिलाफ धरना-प्रदर्शन के लिए जरूरत की अन्य सामग्री भी खरीदी थी. आरोपियों के बैंक अकॉउंट में भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी मोटा पैसा आया था। ओमान, कतर, यूएई और सऊदी जैसे देशों से दिल्ली में दंगा करवाने के लिए पैसे भेजे गए थे। दिल्ली हिंसा के जिन आरोपियों के बैंक खातों में यह पैसा आया उनके नाम- ताहिर हुसैन, मिरान हैदर, इशरत जहां, शिफा उर रहमान और खालिद सैफी है। सबसे ज्यादा पैसा ताहिर हुसैन के बैंक खाते में आया था।
हिंसा के आरोपी और पूर्व पार्षद इशरत जहां के खाते में और नगद के तौर पर 5,4100 रुपए आए, जिसमें 4,60,900 रुपए खर्च किए गए। इसमें से बड़ा हिस्सा दिल्ली हिंसा के लिए हथियार खरीदने और प्रदर्शन साइट पर खर्च किए गए। पुलिस के अनुसार, हिंसा के आरोपी शफी उर रहमान के खाते में और कैश के तौर पर 12,88,559 रुपए आए, जिसमें से 5,55,000 रुपए विदेशों से आए थे। इसमें कतर, ओमान, सऊदी से 9,34,600 रुपए आए जो ब्।।-छत्ब् के खिलाफ प्रदर्शनों की जगहों पर खर्च किए गए थे। पुलिस के मुताबिक, हिंसा के आरोपी मिरान हैदर के खाते में और कैश के तौर पर 5,46,494 रुपए आए, जिसमें से 2,67,000 रुपए निकाले गए। इसी आरोपी ने दिल्ली हिंसा का रजिस्टर बनाया था, जिसमे ये लिखा होता था कि कितना पैसा किसके पास से आ रहा है और किसे कितना दिया जा रहा है। दिल्ली पुलिस ने इसके पास के कैश भी बरामद किया गया था। उसके पास भी विदेशों से रुपए आए थे। पुलिस के मुताबिक हिंसा के आरोपी खालिद सैफी का खाते में और कैश के तौर पर 6,23,000 रुपए आए थे, जिसमें से 2,10,893 रुपए हिंसा और प्रदर्शन वाली जगहों पर खर्च किए गए।         


18,55,755 की मौत, संक्रमित 5,86,298

नई दिल्ली। देशभर में पिछले 24 घंटे में कोरोना वायरस कोविड-19 के संक्रमण का पता लगाने के लिए 6,61,892 नमूनों की जांच की गयी है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की ओर से मंगलवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक 03 अगस्त को कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए देशभर में 6,61,892 नमूनों की जांच की गयी और इसके साथ ही अब तक जांच किये गये नमूनों की कुल संख्या 2,08,64,750 हो गयी है। देश में कोरोना परीक्षण लैब की संख्या बढ़कर 1,356 हो गयी है। पिछले 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 52,050 नए मामले सामने आये हैं जिससे अब तक संक्रमण का शिकार हुए व्यक्तियों की संख्या बढ़कर 18,55,755 हो गयी है। देश भर में फिलहाल संक्रमण के 5,86,298 सक्रिय मामले हैं।             


वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल का निर्देश

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान अकेले रह रहे वरिष्ठ नागरिकों की समुचित देखभाल करने के उपाय सुनिश्चित करने को लेकर केंद्र सरकार को मंगलवार को निर्देश दिया। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की खंडपीठ ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि उन वरिष्ठ नागरिकों का वृद्धावस्था पेंशन समय पर उन्हें मिल जाये। न्यायालय ने यह भी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता जतायी कि कोरोना महामारी के दौरान अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों के अनुरोध पर समय पर सहायता प्रदान की जानी चाहिए। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि अकेले रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए। राज्य सरकारों को भी किसी सहयोग का अनुरोध किये जाने पर तत्परता से कार्रवाई करनी चाहिए। शीर्ष अदालत का यह दिशानिर्देश राज्यसभा सांसद एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार की याचिका पर जारी किया गया।           


50 हजार बेड तैयार करनें का निर्देश दिया

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एल-2 तथा एल-3 कोविड चिकित्सालयों में 50 हजार बेड यथाशीघ्र तैयार करने के निर्देश दिये हैं। इन बेड्स के लिए चिकित्सा कर्मियों सहित अन्य आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं। उन्होंने महानिदेशक, स्वास्थ्य तथा महानिदेशक, चिकित्सा शिक्षा को इस सम्बन्ध में समयबद्ध ढंग से कार्यवाही करने के निर्देश भी दिये।


मुख्यमंत्री आज यहां अपने सरकारी आवास पर बैठक में अनलाॅक व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रत्येक जिले में इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कंट्रोल सेण्टर को प्रभावी रूप से क्रियाशील करने के निर्देश दिये और कहा कि जिस जिले में इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कंट्रोल सेण्टर स्थापित होने के बावजूद सुचारु रूप से कार्यशील नहीं हैं, ऐसे जिलों के जिलाधिकारी की जवाबदेही तय की जाएगी। उन्होंने होम आइसोलेशन में रह रहे संक्रमित मरीजों से इन्टीग्रेटेड कमाण्ड एण्ड कंट्रोल सेण्टर द्वारा दिन में दो बार दूरभाष से संवाद स्थापित कर उनके स्वास्थ्य की जानकारी प्राप्त करने के निर्देश भी दिये । मुख्यमंत्री ने एम्बुलेंस व्यवस्था को और बेहतर करने के निर्देश दिये तथा कहा कि 108 एम्बुलेंस सेवा के साथ-साथ सरकारी चिकित्सालयों तथा मेडिकल काॅलेज की कुल एम्बुलेंस का 50 प्रतिशत कोविड मामलों में तथा शेष 50 प्रतिशत नाॅन कोविड मामलों में उपयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के मरीजों के स्वास्थ्य की स्थिति के आधार पर सम्बन्धित कोविड चिकित्सालय में बेड उपलब्ध कराया जाए। कोविड-19 के संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए प्रत्येक स्तर पर सावधानी बरतना आवश्यक है। किसी को भी महामारी फैलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। उन्होंने कानपुर नगर की चिकित्सा सेवाओं को बेहतर करने तथा वेन्टिलेटर बेड्स की संख्या में वृद्धि करने के निर्देश भी दिये।

मुख्यमंत्री ने कहा कि बाढ़ग्रस्त इलाकों में प्रभावित लोगों को हर सम्भव राहत एवं मदद उपलब्ध करायी जाए। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की जनता को सूखा राशन दिया जाए। गांवों में राशन किट वितरित की जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 तथा संचारी रोगों के नियंत्रण के उद्देश्य से प्रत्येक शनिवार तथा रविवार को विशेष स्वच्छता एवं सेनिटाइजेशन अभियान का प्रभावी संचालन जारी रखा जाए।           


व्हाट्सएप शुरू कर रहा है पेमेंट सर्विस

नई दिल्ली। पॉपुलर मैसजिंग ऐप व्हाट्सएप (WhatsApp) अब भारत में अपनी सर्विस बढ़ाने की तैयारी में है। इस क्रम में जल्द ही आपको इस प्लेटफॉर्म पर पेमेंट सर्विसेज भी मिलेंगी। कंपनी का कहना कि NPCI, RBI की ओर से जारी डाटा (सर्वर भारत में होना चाहिए) और पेमेंट गाइडलाइंस पर सहमति जता चुका है। बता दें कि वॉट्सऐप ने अपनी पेमेंट सर्विस WhatsApp Pay का टेस्ट भारत में 2018 में शुरु किया था। यह UPI आधारित सर्विस यूजर्स को रुपए भेजने और प्राप्त करने की सुविधा देता है। इसका मुकाबला पेटीएम, फ्लिपकार्ट के फोनपे और गूगल पे से है, लेकिन अभी तक रेग्युलेटर्स की ओर से वॉट्सऐप को इसकी मंजूरी नहीं मिल पाई है।


शुरू करने की तैयारी


कंपनी का कहना है कि उनकी टीम सभी स्टैंडर्ड्स को पूरा करने के लिए पिछले साल से इस पर कड़ी मेहनत कर रही है। वॉट्सऐप भारत में निवेश करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम (Digital India Program) को आगे बढ़ाना चाहते है। हम फाइनेंशियल इन्कलूजन में तेजी लाने के लिए एक महत्वपूर्ण चैनल बनकर एक मजबूत भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। डिजिटल इंडिया के तहत हम भारत में अपने सभी यूजर्स को जल्द ही पेमेंट सर्विस देने लिए उत्साहित हैं। वॉट्सऐप (WhatsApp) के भारतीय कारोबार के प्रमुख अभिजीत बोस ने हाल में बताया था कि कंपनी जल्द माइक्रोफाइनेंस सर्विस को लेकर नया पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की तैयारी में है। आपको इस प्लेटफॉर्म पर इंश्योरेंस, पेंशन और माइक्रो फाइनेंस जैसी सर्विस मिलने लगेगी। व्हाट्सऐप इन सभी सर्विसेज को आसान बनाने के लिए बैंक और वित्तीय संस्थाओं जैसे साझीदारों के साथ मिलकर काम करेगी। इसको लेकर पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू हो सकता है।                


राजस्थान पुलिस ने किया बड़ा खुलासा

मनोज सिंह ठाकुर


जयपुर। राजस्थान में लगभग एक महीने से राजनीतिक खींचतान चल रही है। सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के रूप में कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई है। अभी भी दोनों धड़े अपने-अपने विधायकों को सुरक्षित करने में लगे हैं। इस दौरान सीएम अशोक गहलोत भाजपा पर चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाते रहे है। इस मामले को लेकराब राजस्थान पुलिस की तरफ से भी बयान सामने आये है।


अशोक गहलोत सरकार को गिराने की कथित साजिश की जांच कर रही राजस्थान पुलिस ने अपनी जांच में पाया है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने सचिन पायलट कैंप के विधायकों से जुलाई महीने में दो बार मुलाकात की है। जबकि बीजेपी कहती रही है कि उसका कांग्रेस के भीतर आपसी विद्रोह से कोई लेना-देना नहीं है। सोमवार को एक अधिकारी ने यह जानकारी दी।


सूत्रों के मुताबिक नाम नहीं बताने की शर्त पर इस जांच से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘पूनिया ने 18 जुलाई और 29 जुलाई के बीच दो बार सचिन पायलट कैंप के विधायकों से मुलाकात की थी।’ उन्होंने कहा कि पहली मीटिंग 18 जुलाई से 20 जुलाई के बीच और दूसरी मीटिंग 28 जुलाई को हुई। ये दोनों मीटिंग हरियाणा के मानेसर में हुई थी। यह पूछे जाने पर कि क्या जांच में सतीश पूनिया का नाम सामने आया है, एसओजी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अशोक राठौर ने कहा कि मामले की जांच चल रही है और अब तक की गई जांच के निष्कर्षों से संबंधित विवरण का खुलासा नहीं किया जा सकता है।


हालांकि, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने किसी भी बागी विधायकों से मुलाकात से इनकार किया है। उन्होंने कहा, ‘मैं कभी पायलट या किसी अन्य बागी विधायक से नहीं मिला। पुलिस सरकार की भाषा बोल रही है।’ गौरतलब है कि राजस्थान में सियासी संकट का परिणाम यह हुआ कि सचिन पायलट को कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और गहलोत सरकार में उपमुख्यमंत्री पद भी चला गया। 12 जुलाई को सचिन पायलट और उनका समर्थन करने वाले 18 विधायकों ने गहलोत के नेतृत्व पर सवाल उठाए थे और उन्हें हटाने के लिए कहा था।


वहीं, राजस्थान के सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सोमवार शाम जैसलमेर से जयपुर लौटे। इस दौरान उन्होंने कहा कि दुख है कि रक्षाबंधन के दिन विधायक घर नहीं जा सके। हमारी प्राथमिकता है कि लोकतंत्र मजबूत बने। यह सबकुछ लोकतंत्र बचाने के लिए किया जा रहा है। जनता पूरे खेल को देख रही है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में सरकार को गिराने की साजिश की जा रही है। यह तीसरी कोशिश थी। दो पहले हो चुकी हैं। कर्नाटक और मध्यप्रदेश के बारे में सभी के मालूम हैं। राजस्थान में भी ऐसा ही करने की तैयारी थी। इतना बड़ा सीटों का अंतर है फिर भी बेशर्मी से गेम खेला गया। कहां 73 और कहां 122 हमारे पास थे। हॉर्स ट्रेडिंग अभी भी की जा रही है। टेलीफोन आते हैं। सब हमारी जानकारी में है।


मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार में बैठे नेता जनता की नजर से नहीं बचेंगे। सच्चाई हमारे साथ हैं। इस षडयंत्र में कुछ और लोग शामिल हैं। जिस तरह राजस्थान के केंद्रीय मंत्री ने गेम खेला, उन्हें धैर्य रखना चाहिए था। वो तो मैदान में कूद पड़े। राजस्थान की परंपरा को ही भूल गए। नए-नए एमपी बन गए। फिर मंत्री बनने का चांस मिल गया तो जल्दबाजी हो गई उनको। इसलिए मैंने कहा कि वो खुद धराशायी हो गए। सीबीआई के छापे तो उनके ऊपर पड़ने चाहिए। पड़ उन पर रहे हैं जिनके रिश्ते हम से जुड़े हैं।                    


नीति से नहीं अच्छी नियत से सुधरेगी शिक्षा

अजीत द्विवेदी


नई दिल्ली। लंबे इंतजार के बाद नई शिक्षा नीति का मसौदा सरकार ने मंजूर किया। अब इस नीति के आधार पर सरकार कानून बनाएगी और जहां जरूरी होगा वहां पुराने कानूनों को बदला जाएगा। अभी नई शिक्षा नीति सिफारिश के स्तर पर ही है, जिसे कानूनी दस्तावेज नहीं बनाया गया है इसलिए अभी से यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि अंत में यह किस रूप में सामने आएगा। यह भी अभी अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है कि सरकार इसमें से किस सिफारिश को किस अंदाज में कानूनी रूप देगी। ऊपर से शिक्षा को भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है, जिसका मतलब है कि इससे जुड़ी नीतियां बनाने में राज्य सरकारों की भी भूमिका होती है और कई राज्य सरकारों ने अभी से सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।


इससे कोई असहमत नहीं हो सकता है कि भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य ये दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें सुधार सबसे ज्यादा जरूरी है। पर यह सुधार कैसे होगा? क्या सिर्फ नीति बना देने से शिक्षा में बदलाव आ जाएगा? शिक्षा में बदलाव लाने के लिए नीति से ज्यादा नीयत की जरूरत है और सबसे ज्यादा संदेह उसी को लेकर है। नीयत का बड़ा सवाल तो इसी बात को लेकर है कि, जिस नीति पर पिछले पांच साल से विचार हो रहा था और मसौदा दस्तावेज सौंपे जाने के बाद भी एक साल तक इस पर फैसला नहीं हुआ उसे एक वैश्विक महामारी के बीच स्वीकार किया गया है। सरकार की नीयत पर संदेह को सिर्फ एक उदाहरण से समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने जिस नई शिक्षा नीति के मसौदे को मंजूर किया है उसमें चार साल के डिग्री कोर्स का प्रावधान है। इसके साथ ही मल्टीपल एक्जिट-एंट्री की बात कही गई है, जिसे बड़ी बात के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। महज पांच-छह साल पहले भाजपा ने इसी नीति का पुरजोर विरोध किया था।


इस देश में लोगों की याद्दाश्त इतनी कमजोर है कि किसी को यह बात याद नहीं है कि सात साल पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में चार साल के डिग्री कोर्स की सिफारिश की गई थी। तब भाजपा ने इस नीति का पुरजोर विरोध किया था और 2014 के लोकसभा चुनाव में वादा किया था कि उसकी सरकार बनी तो वह चार साल के डिग्री कोर्स को खत्म कर देगी। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के थोड़े दिन बाद ही यह प्रस्ताव वापस भी हो गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के उस समय के कुलपति दिनेश सिंह ने चार साल का जो डिग्री कोर्स लागू किया था, उसमें दो साल के बाद डिप्लोमा, तीन साल के बाद डिग्री और चार साल के बाद ऑनर्स के साथ डिग्री देने का प्रावधान था। यह भी प्रावधान था कि जो छात्र चार साल में डिग्री लेंगे वे एक साल में पोस्ट ग्रेजुएट कर सकेंगे। भाजपा की जिद के कारण जून 2015 में यह प्रस्ताव वापस हुआ था और उसके ठीक पांच साल के बाद उसी नीति को हूबहू लागू किया जा रहा है। क्या इससे नीयत का सवाल नहीं पैदा होता है? जो नीति पांच-छह साल पहले बहुत खराब थी वह आज कैसे बहुत अच्छी हो गई?


नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि शिक्षा का खर्च बढ़ाया जाएगा और सरकार जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च करेगी। यह बहुत अस्पष्ट सी बात है। मौजूदा सरकार के पिछले छह साल के कार्यकाल में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है, जिससे यह लगे कि सरकार शिक्षा पर खर्च बढ़ाने जा रही है। उलटे शोध पर होने वाले खर्च में और छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति के फंड में कटौती होने की खबरें हैं। एक तरफ सरकार शिक्षा पर खास कर उच्च शिक्षा और शोध पर खर्च कम कर रही है। उच्च शिक्षा के बेहतरीन केंद्र किसी न किसी बहाने सरकार या सत्तारूढ़ दल के निशाने पर रहे हैं और अब एक दिन अचानक सरकार जीडीपी का छह फीसदी खर्च करने की बात करने लगी है। इसमें एक और पेंच है। सरकार ने 10+2 के पुराने प्रावधान को बदल कर 5+3+3+4 का फॉर्मेट बनाया है। पहले पांच का मतलब है पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई, उसमें सबसे शुरुआती पढ़ाई आंगनवाड़ी केंद्रों पर भी हो सकती है। पर यह स्पष्ट नहीं है कि आंगनबाड़ी का बजट उस कथित छह फीसदी खर्च में जुड़ेगा या नहीं। इसका पता भी कानून बनने के बाद ही चलेगा।


इसी नीति में उच्च शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त बनाने का प्रस्ताव भी है। ध्यान रहे उच्च शिक्षण संस्थाओं को स्वायत्त बनाने का प्रस्ताव काफी समय से लंबित है। दिल्ली विश्वविद्यालय सहित कई दूसरे विश्वविद्यालयों के चुनिंदा कॉलेजों को स्वायत्त बनाने का प्रस्ताव कुछ समय पहले आया था पर शिक्षकों और छात्रों के जबरदस्त विरोध की वजह से इसे रोकना पड़ा है। विरोध का कारण यह है कि स्वायत्तता के नाम पर कॉलेजों को सिर्फ फीस बढ़ाने की अनुमति मिलने वाली है। कॉलेज स्वायत्त तभी होंगे, जब वे अपना खर्च फीस के पैसे से निकालने लगेंगे। सोचें, ऐसे कॉलेजों में पढ़ाई कितनी महंगी हो जाएगी। यह असल में शिक्षा के निजीकरण और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण खत्म करने का एक परोक्ष प्रयास है। ऊपर से सरकार की मंशा पर इसलिए भी संदेह होता है क्योंकि इस नीति में यूजीसी और एआईसीटीई को खत्म करके उसकी जगह एक नई रेगुलेटरी बॉडी बनाने की बात कही गई है साथ ही यह भी कहा गया है कि शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में एक परामर्शदात्री समिति बनेगी और यह नई रेगुलेटरी बॉडी उस परामर्शदात्री समिति की सलाह से काम करेगी। इसका क्या यह मतलब नहीं हुआ कि नियंत्रण सरकार का ही रहेगा? संस्थानों को सिर्फ इस बात की स्वायत्तता मिलेगी कि वे फीस बढ़ा सकें और आरक्षण के प्रावधानों की अनदेखी कर सकें!


अगर यह नीति कानून बन जाती है तो विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस खोलने की मंजूरी मिल जाएगी। जैसे इस समय निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं वैसे ही विदेशी विश्वविद्यालयों के कैंपस खुल सकेंगे। सवाल है कि अगर सरकार पिछड़े, वंचित या आदिवासियों की हिस्सेदारी उच्च शिक्षा में बढ़ाना चाहती है तो वह वादा इन विश्वविद्यालयों से कैसे पूरा होगा? जो विदेशी विश्वविद्यालय खुलेंगे उनमें आरक्षण की क्या व्यवस्था होगी, गरीब और वंचितों के दाखिले का क्या प्रावधान होगा और फीस कौन तय करेगा? रिलांयस की यूनिवर्सिटी को खुलने से पहले ही भारत सरकार ने इंस्टीच्यूट ऑफ एमिनेंस का दर्जा दे दिया। अशोका यूनिवर्सिटी, शिव नाडार, जिंदल आदि के यूनिवर्सिटी खुले हैं, जिनमें लाखों रुपए की फीस है। दाखिले से लेकर नियुक्तियों तक में दलित, वंचित, आदिवासी, पिछड़ों को आगे लाने के लिए लागू किए गए एफर्मेटिव एक्शन में से कोई भी इन विश्वविद्यालयों में नहीं लागू होता है। सो, चाहे स्वायत्तता की बात हो या विदेशी संस्थानों को कैंपस खोलने की मंजूरी देने का मामला हो, इनका एक ही मकसद है शिक्षा के निजीकरण और उसके व्यावसायीकरण को ठोस शक्ल देना। मातृभाषा या स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने और छठी कक्षा से वोकेशनल कोर्स शुरू करने को लेकर भी बहस चल रही है इस पर कल विचार करेंगे।           


27 वर्ष बाद दुष्कर्मी को 10 साल की सजा

27 वर्ष बाद दुष्कर्मी को 10 साल की सजा  गणेश साहू  कौशाम्बी। सैनी कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में खेत से लौट रही बालिका के साथ 27 वर्ष पहले स...