अश्वनी उपाध्याय
गाजियाबाद। उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराधों को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सख्त तेवर दिखाए हैं। मुख्यमंत्री की यह नाराजगी कानपुर के बिकरू कांड के बाद लैब टेक्नीशियन के अपहरण व हत्या तथा गाजियाबाद में पत्रकार की हत्या को लेकर है। कानपुर में युवक संजीत की अपहरण के बाद हत्या के मामले में नाराजगी प्रदर्शित करते हुए मुख्यमंत्री ने वहां के एएसपी व सीओ सहित 11 पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। कानपुर में हुई यह कार्रवाई पुलिस कार्रवाई में लापरवाही, अपराधियों के बच निकलने, बदमाशों द्वारा फिरौती वसूलने को लेकर है। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री की नाराजगी से पुलिस अधिकारियों में कोई खौफ पैदा होगा या फिर यह बस एक घटना बनकर रह जाएगी। क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि हमारे पुलिस सिस्टम में भ्रष्टाचार और अवैध उगाही का ऐसा दीमक घुस गया है जो अब अपने और पराये का भेद करना भी भूल गया है। उसी का परिणाम है कि एक पुलिस इंस्पेक्टर बदमाशों की मुखबिरी कर आठ पुलिस वालों को मरवा देता है। बार-बार शिकायत करने के बावजूद गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी को गली के गुंडों के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।
आम जनता में सरकार की इच्छा शक्ति एवं मुख्यमंत्री योगी की मंशा को लेकर कोई संदेह नहीं है। लेकिन उसी जनता को यूपी पुलिस पर रत्ती भर भरोसा नहीं है। बात चाहे कानपुर की हो या गाजियाबाद की या फिर राजधानी लखनऊ की। हर जगह पुलिस ने एक मोटी खाल ओढ़ रखी है, जिसके भीतर से वह बदमाशों की पैरोकारी से लेकर उसे संरक्षण तक देती है। लेकिन मासूम और मजलूम जनता की आवाज और दुख-दर्द उनकी खाल को नहीं भेद पाते। इस मोटी खाल को भेदने के लिए योगी सरकार को जोरदार हंटर चलाना पड़ेगा। यह हंटर सिपाही, दरोगा पर नहीं बल्कि एसपी, एसएसपी एवं उनके ऊपर के अधिकारियों पर चलाने की जरूरत है। यदि जिले का कप्तान मजबूत इच्छाशक्ति वाला हो तो भले ही अपराध पर पूरी तरह अंकुश ना लगे लेकिन अपराधों का ग्राफ काफी हद तक नीचे चला आता है। ऐसे उदाहरण हमने कई दफा देखा है।