राजनांदगांव। पेट्रोल-डीजल के दामों में लगभग तीन सप्ताह से लगातार हो रही वृद्धि तथा कोरोना संकट के कारण आम आदमी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। ऐसे समय मे केंद्र सरकार द्वारा लगातार की जा रही मूल्य वृद्धि के विरोध में प्रदेश कांग्रेस के निर्देश पर शहर जिला व ग्रामीण जिला कांग्रेस द्वारा जिला कार्यालय के सामने एक दिवसीय धरना दिया गया। इस धरने के दौरान सभी वक्ताओं ने कहा कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के मूल्य कम हैं तो देश मे दाम यदि ऐसे ही बढ़ते रहे तो और उग्र आंदोलन किया जाएगा।
सोमवार, 29 जून 2020
गांव को सील करने की तैयारी शुरू हुई
पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का सिलसिला
नई दिल्ली। पैट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने का सिलसिला एक दिन के ठहराव के बाद सोमवार को फिर शुरू हो गया। देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के अनुसार, दिल्ली में आज पेट्रोल की कीमत पाँच पैसे बढ़कर 80.43 रुपये प्रति लीटर पर पहुँच गई जो 27 अक्टूबर 2018 के बाद का उच्चतम स्तर है। डीजल का मूल्य भी 13 पैसे बढ़कर 80.53 रुपये प्रति लीटर के नये रिकॉर्ड स्तर पर रहा।देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने का मौजूदा क्रम 07 जून से शुरू हुआ। इस दौरान दिल्ली में पेट्रोल अब तक 9.17 रुपये यानी 12.87 प्रतिशत और डीजल 11.14 रुपये यानी 16.05 प्रतिशत महँगा हुआ है।
प्राधिकृत प्रकाशन विवरण
यूनिवर्सल एक्सप्रेस (हिंदी-दैनिक)
जून 30, 2020, RNI.No.UPHIN/2014/57254
1. अंक-322 (साल-01)
2. मंगलवार, जूूून 30, 2020
3. शक-1943, अषाढ़, शुक्ल-पक्ष, तिथि- दसवीं, विक्रमी संवत 2077।
4. सूर्योदय प्रातः 05:31,सूर्यास्त 07:28।
5. न्यूनतम तापमान 27+ डी.सै.,अधिकतम-42+ डी.सै.। तेज हवाओं के साथ बरसात की संभावना।
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रविवार, 28 जून 2020
अपने खराब दौर से गुजर रहा है 'ईरान'
तेहरान। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा है कि ‘ईरान इस वक़्त अपने सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहा है। इसकी वजह उन्होंने कोविड-19 महामारी और अमरीका द्वारा लगाये गए कड़े प्रतिबंधों को बताया है। उन्होंने कहा है कि "महामारी ने उनकी अर्थव्यवस्था के सामने बहुत सी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं जिनसे पार पाना अमरीकी प्रतिबंधों के कारण और भी मुश्किल हो गया है। रविवार को ईरान में टीवी पर प्रसारित हुए अपने भाषण में रूहानी ने कहा, “दुश्मन देश द्वारा बनाये गए आर्थिक दबाव और महामारी के कारण ये वर्ष ईरान के लिए सबसे मुश्किल समय है। उन्होंने कहा, “साल 2018 में बनना शुरू हुआ आर्थिक दबाव अब बढ़ गया है... और मौजूदा समय हमारे देश के लिए सबसे कठिन समय है। चीन के बाद और यूरोप से पहले, कोरोना वायरस महामारी ने ईरान को बुरी तरह प्रभावित किया था। रविवार को ईरान के स्वास्थ्य विभाग की प्रवक्ता सिमा सादत लारी ने बताया में ईरान में अब तक कोरोना संक्रमण के दो लाख 22 हज़ार 669 केस दर्ज किये गए हैं और दस हज़ार से ज़्यादा लोगों की कोविड-19 से मौत हुई है। हसन रूहानी ने कहा है कि अगले रविवार से ईरान में भीड़भाड़ वाली जगहों और चिन्हित किये गए रेड ज़ोन में मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया जाएगा। वर्ष 2018 में अमरीका ने ईरान न्यूक्लियर डील से हाथ खींच लिए थे और फिर से ईरान पर कई प्रतिबंध लगा दिये थे। बीते सोमवार को ईरान की करेंसी अमरीकी डॉलर की तुलना में अपने सबसे निचले स्तर तक गिर गई थी।
'कालापानी' पर क्यों दावा कर रहा नेपाल
काठमांडू। नवम्बर 1814 से मार्च 1816 तक नेपाल (जिसे उस समय गोरखा अधिराज्य कहा जाता था) और भारत पर शासन कर रही ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच युद्ध चला जिसमें नेपाल को पराजय का सामना करना पड़ा। 4 मार्च 1816 को सम्पन्न सुगौली संधि के साथ इस युद्ध का समापन हुआ और संधि के फलस्वरूप नेपाल को अपने एक तिहाई हिस्से से हाथ धोना पड़ा। संधि से पहले तक जो नेपाल का भू-भाग था वह ब्रिटिश भारत में शामिल कर लिया गया। नेपाल, जो कभी किसी का उपनिवेश नहीं रहा, अब भी एक स्वतंत्र राष्ट्र तो था लेकिन संधि के अनुसार काठमांडो में स्थायी तौर पर एक ब्रिटिश रेजिडेंट की नियुक्ति हुई और ब्रिटिश सेना के लिए गोरखा सैनिकों की भर्ती की प्रथा शुरू हुई। वैसे भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का मक़सद तिब्बत तक व्यापार के लिए रास्ता तैयार करना था।
सुगौली संधि की धारा 5 के अनुसार महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र नेपाल के हिस्से में आया और इसके पश्चिम का सारा क्षेत्र ब्रिटिश भारत में मिल गया। इस संधि में लिंपियाधारा को महाकाली नदी का स्रोत बताया गया है। कालापानी और लीपुलेख महाकाली नदी के पूर्व में हैं जिसके आधार पर नेपाल इस पर अपना दावा करता है।
कालापानी में भारतीय सैनिक कब और कैसे पहुँचे, इसका किसी के पास ठोस रूप से कोई जवाब नहीं है। नेपाल के सीमा विशेषज्ञ और ‘भू सर्वेक्षण विभाग’ के पूर्व डायरेक्टर जनरल बुद्धि नारायण श्रेष्ठ का अनुमान है ‘1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध होने के बाद जब चीनी सेनाओं ने भारतीय सैनिकों को पीछे खदेड़ना शुरू किया तो वे कालापानी तक पहुँचे। उन्होंने देखा की सामरिक दृष्टि से यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है और फिर उन्होंने यहाँ एक सैनिक अड्डा स्थापित कर लिया ताकि अगर चीन दोबारा हमला करे तो वे मुक़ाबला कर सकें। यह स्थान थोड़ी ऊँचाई पर था जहाँ से चीनी सैनिकों पर निगरानी रखी जा सकती थी।’
लंबे समय तक नेपाल के लोगों का ध्यान कालापानी और वहाँ स्थित भारतीय सैनिक अड्डे पर नहीं गया क्योंकि 1991 के बाद से ही कालापानी की चर्चा सुनने को मिलती है। इसकी दो वजहें समझ में आती हैं। एक तो यह कि सुदूर पश्चिमी नेपाल का यह हिस्सा अत्यंत दुर्गम था और वहाँ तक पहुँचने के लिए कोई साधन नहीं था। महेंद्र राजमार्ग बनने के बाद ही सुदूर पश्चिम का काठमांडो तथा अन्य हिस्सों के साथ सहज संपर्क कायम हो सका। दूसरी वजह नेपाल की निरंकुश पंचायती व्यवस्था थी जिसमें राजा ही सर्वोपरि था और जनता की आवाज़ का कोई अर्थ नहीं था। राजकाज के मसलों से काफ़ी हद तक लोग उदासीन रहते थे। 1990-91 में लंबे जन आंदोलन के बाद जब बहुदलीय व्यवस्था और संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई, इसके बाद ही लोग ज़्यादा मुखर हो सके।
दवाओं की आपूर्ति के लिए तैयार 'रूस'
माॅस्को। रूस कोरोना वायरस की महामारी के दूसरे दौर के खतरे के मद्देनजर इसके संक्रमितों के इलाज में काम आने वाली दवाओं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति के लिए तैयार है। स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको ने रविवार को यह जानकारी दी।
श्री मुरास्को ने एक ऑनलाइन हेल्थ केयर इवेंट में कहा, “ कोरोना की महामारी के दूसरे दौर के खतरे के मद्देनजर रूस अंतरराष्ट्रीय बाजार में हाइपरसिटोकानिमिया के उपचार में काम आने वाली दवा, टेस्ट किट तथा अन्य संक्रमण रोधी दवाओं की आपूर्ति के लिए तैयार है।
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