राज्यसभा की 19 सीटों पर 19 जून को चुनाव
बीजेपी ने झारखंड में कांग्रेस का गणित बिगाड़ा
कांग्रेस-BJP को गुजरात में 1 वोट की जरूरत
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यूनिवर्सल एक्सप्रेस (हिंदी-दैनिक)
जून 16, 2020, RNI.No.UPHIN/2014/57254
1. अंक-308 (साल-01)
2. मंगलवार, जूूून 16, 2020
3. शक-1943, अषाढ़, कृष्ण-पक्ष, तिथि-दसवीं, विक्रमी संवत 2077।
4. सूर्योदय प्रातः 05:36,सूर्यास्त 07:28।
5. न्यूनतम तापमान 24+ डी.सै.,अधिकतम-41+ डी.सै.।
6.समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचारों से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। सभी विवादों का न्याय क्षेत्र, गाजियाबाद न्यायालय होगा। सभी पद अवैतनिक है।
7. स्वामी, प्रकाशक, संपादक राधेश्याम के द्वारा (डिजीटल सस्ंकरण) प्रकाशित। प्रकाशित समाचार, विज्ञापन एवं लेखोंं से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहींं है।
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(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आगरा। ताजनगरी आगरा में कोरोना वायरस के कहर के बीच में रविवार को जहरीली गैस तीन लोगों के लिए जानलेवा बन गई। यहां कुंआ में जहरीली गैस ने तीन युवकों की जान ले ली। तीनों कुआं का कचरा साफ करने उतरे थे। जहां जहरीली गैस की चपेट में आकर उनकी मौत हो गई। इस घटना के बाद दमकल कर्मियों ने रेस्क्यू कर शवों को बाहर निकाला। इसके बाद स्वजनों ने उनके शव हाईवे पर रखकर जाम लगा दिया। यहां पर आगरा-ग्वालियर हाई-वे पर तीन घंटे तक जाम से हाईवे पर वाहनों की लंबी लाइनें लगी हैं। आगरा के सैंया के सौरा गांव में हाकिम सिंह का कुंआ है। इसके पानी का इस्तेमाल खेतों की सिंचाई में होता था। कुछ वर्षों से यह बंद था। रविवार को सुबह हाकिम का बेटा 20 वर्षीय भोलू, गांव के 18 वर्षीय पप्पू और 19 वर्षीय लखन इस कुंआ की सफाई करने गए थे। करीब एक घंटे बाद परिवार के लोग वहां पहुंचे तो तीनों वहां नहीं दिखे। कुएं में झांककर देखा तो नीचे पड़े हुए थे। इसके बाद वहां पुलिस और दमकलकर्मी मौके पर पहुंचे। करीब डेढ़ से दो घंटे बाद उनको बाहर निकाला जा सका। तब तक तीनों की मौत हो चुकी थी।
इससे गुस्साए गांव के लोगों ने तीनों ते शव को सैंया चौराहा के पास रखकर आगरा-ग्वालियर हाईवे जाम कर दिया। एसपी पश्चिम रवि कुमार, सीओ खेरागढ़ प्रदीप कुमार फोर्स के साथ वहां पहुंचे। ग्रामीणों को समझाया, लेकिन जाम नहीं खुला। इनके परिवार के लोगों का आरोप है कि गांव में बीस दिन पहले त्यागी समाज के लोगों ने नाली का पानी निकलने से रोका था। इसको लेकर विवाद हुआ था। रविवार को तीनों युवक घर से कुंआ की सफाई को निकले थे। मगर, त्यागी समाज के युवकों ने उनसे मारपीट की। उनसे बचने को भागते समय कुएं में पैर फिसलकर उनकी मौत हुई है। वे त्यागी समाज के लोगों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। वहीं पुलिस इनके आरोपों को खारिज कर रही है। सीओ खेरागढ़ का कहना है कि तीनों युवक एक-एक करके कुएं में गए हैं। जहरीली गैस की चपेट में आकर मौत की आ शंका है। अब स्वजन अलग कहानी बना रहे हैं। फिर भी उनके आरोपों की जांच की जा रही है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि कामगारों और श्रमिकों को सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार कार्ययोजना तैयार करेगी। योगी ने रविवार को अनलाक व्यवस्था की समीक्षा बैठक के दौरान कहा कि सरकार सभी कामगारों एवं श्रमिकों को रोजगार देने के लिए संकल्पित है।
इसके अलावा अचार, मुरब्बा, पापड़, सिलाई आदि गतिविधियों के तहत रोजगार की काफी सम्भावनाएं मौजूद हैं। महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार के लिए तैयार किया जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि सभी कोविड एवं नाॅन कोविड अस्पतालों में डाॅक्टर्स, नर्स तथा अन्य पैरामेडिक स्टाफ राउण्ड लें। वे मरीज के घरवालों से संवाद भी स्थापित करें। उन्हाेंने पैरामेडिक स्टाफ की लगातार माॅनिटरिंग करने के निर्देश दिए।
उन्होंने कहा कि सभी अस्पतालों की साफ-सफाई सुनिश्चित करते हुए इनका लगातार सेनिटाइजेशन कराया जाए। रोज बेडशीट बदली जाए। मरीजों को पीने के लिए गुनगुना पानी दिया जाए। साथ ही, उन्हें गर्म व ताजा भोजन उपलब्ध कराया जाए। उन्होंने कहा कि निगरानी समितियों को लगातार सक्रिय रखा जाए। इन्हें सक्रिय रखकर ही कोरोना के प्रसार को रोका जा सकता है। उन्होंने फोर्स मेें इन्फेक्शन को रोकने के सभी उपाय करने के निर्देश दिए। श्री योगी ने कहा कि महिलाओं, एससी/एसटी, गो-हत्या तथा गो-तस्करी जैसी आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त अपराधियों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई की जाए। माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, बेसिक शिक्षा, समाज कल्याण तथा कस्तूरबा गांधी विद्यालय में नियुक्त शिक्षकों के डाक्युमेंट की जांच के लिए एक डेडिकेटेड टीम बनाई जाए। उन्होंने कहा कि डिफाॅल्टर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश की जनता की बदहाली के लिए कांग्रेस की पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेताओं ने गरीबी हटाने की बात की, मगर जनता की गरीबी नहीं गई, बल्कि पार्टी नेताओं और चमचों की गरीबी दूर हुई।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने रविवार को गुजरात की वर्चुअल रैली में कहा, कांग्रेस ने 70 साल से गरीबी हटाओ का नारा दिया, लेकिन देश के गरीब, किसान, मजदूर की गरीबी नहीं दूर हुई, बल्कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं और चमचों की गरीबी जरूर दूर हुई।
गडकरी ने कहा कि “1947 से लेकर 2020 के बीच कांग्रेस को 55 से 60 साल देश चलाने का मौका मिला। केंद्र से राज्यों और निगमों तक में कांग्रेस की सरकारें रहीं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश के विकास के लिए रूस का सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट मॉडल चुना। नेहरू जी चले गए और फिर इंदिरा गांधी आईं। उन्होंने गरीबी हटाओ का नारा दिया लेकिन गरीबी नहीं हटी। मुहर लगाते-लगाते पीढ़ियां गुजर गईं मगर बदलाव की कोई तस्वीर सामने नहीं आई। काम करने वाले गरीब की गरीबी दूर नहीं हुई। लेकिन कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं, नेताओं और चमचों की गरीबी जरूर दूर हुई।”गडकरी ने कहा, मोदी सरकार ने पिछले 5 साल में जो कार्य किया है, उसकी अगर कांग्रेस के 55 साल से तुलना की जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हू कि जो काम 5 साल में हुआ, वह कांग्रेस के 55 साल के शासनकाल में नहीं हो पाया।नितिन गडकरी ने अपने मंत्रालय की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा, मैं 60 हजार करोड़ से रोड का निर्माण कर रहा हूं। लेह और लद्दाख को आठ हजार करोड़ रुपये की सड़क से जोड़ा जा रहा है। लगातार मोदी सरकार विकास के कार्य कर रही है।गडकरी ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा कि वह कभी आमने-सामने की लड़ाई नहीं जीत सकता, इसलिए वह आतंकियों के सहारे छद्म युद्ध लड़ता है। उन्होंने कांग्रेस नेताओं पर आतंकियों से सहानुभूति रखने का आरोप लगाते हुए कहा कि जब मैं भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष था तो एक शहीद के पिता ने मुझसे पूछा था कि कांग्रेस के नेता आतंकियों के मारे जाने पर उनके घर तो श्रद्धांजलि देने के लिए जाते हैं, मगर शहीद हुए मेरे बेटे के घर क्यों नहीं आए। गडकरी ने कहा कि तब उनके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।
दुनिया में कोरोना का कहर जारी है। कोरोना महामारी को खत्म करने के लिए दुनिया भर के कई देशों में वैक्सीन बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। ब्रिटेन में वैक्सीन का ट्रायल थर्ड फेज में हैं। लेकिन अब तक कोई सटीक दवा नहीं बन सकी है। भारत में भी कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि, भारत के लिए अच्छी खबर है कि एक्टिव केसों से ज्यादा ठीक होने वाले मरीजों की संख्या है। ऐसे में यह सवाल उठने लगा है कि बिना किसी ठोस दवा या वैक्सीन के ये मरीज ठीक कैसे हो रहे हैं। आइए जानते हैं कि भारत में कोरोना वायरस के मरीजों का किन दवाओं और थेरेपी से इलाज किया जा रहा है…
रेमडेसिवीर
ये एक एंटीवायरल दवा है, जिसे सबसे पहले 2014 में इबोला के इलाज में इस्तेमाल किया गया था। WHO के ट्रायल में इस दवा को Covid-19 के कारगर इलाजों में से एक माना गया है। यह शरीर में वायरस रेप्लिकेशन को रोकता है। पिछले महीने, अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज ने शुरुआती ट्रायल के आधार पर बताया था कि रेमडेसिवीर देने वाले कोरोना के मरीजों में 11 से 15 दिनों तक में सुधार हुआ है। ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने 1 जून को रेमडेसिवीर के इस्तेमाल को मंजूरी दे दी। गंभीर रूप से बीमार कोरोना के मरीजों को अब डॉक्टरों की तरफ से ये दवा दी जा रही है।
फेवीपिरवीर
ये एक एंटीवायरल है जो वायरस रेप्लिकेशन को रोकने के लिए दी जाती है। इसे एंटी-इन्फ्लूएंजा दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस दवा को सबसे पहले जापान की फ्यूजीफिल्म टोयामा केमिकल लिमिटेड ने विकसित किया था। भारत में ये दवा ग्लेनमार्क फार्मास्यूटिकल्स और स्ट्राइड्स फार्मा को बनाने की मंजूरी मिली है। ये दवा कोरोना के गंभीर रूप से बीमार मरीजों से लेकर हल्के लक्षण वाले मरीजों को दी जा रही है। कोरोना के मरीजों पर दवा के तीसरे चरण के परीक्षण के लिए दस अस्पतालों को शॉर्टलिस्ट किया गया है।
टोसिलीज़ुमाब
यह एक इम्यूनो सप्रेसेंट दवा है जिसे आमतौर पर गठिया के इलाज में दी जाती है। मुंबई में, कोरोना वायरस के 100 से अधिक गंभीर मरीजों का इलाज इस दवा से किया गया है। सरकारी अस्पतालों में ये दवा मुफ्त में दी जा रही है। पहली बार ये दवा लीलावती अस्पताल में 52 साल के एक मरीज को दी गई थी, जिसकी हालत बहुत गंभीर हो चुकी थी। इस दवा से कोरोना के कई मरीजों की हालत में सुधार देखा गया है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि इस पर कोई भी डेटा देना अभी जल्दबाजी होगी।
इटोलीजुमैब
यह दवा आमतौर पर त्वचा के रोगों जैसे सोरायसिस, रुमेटॉयड आर्थराइटिस, मल्टीपल स्केलेरोसिस और ऑटोइम्यून रोग में किया जाता है। भारत में, बायोकॉन कंपनी ने इसे 2013 में लॉन्च किया था। दिल्ली और मुंबई में कोरोना के मामूली से लेकर गंभीर मामलों में ये दवा ट्रायल के तौर पर दी जा रही है, जिसके शुरुआती नतीजे जुलाई तक आएंगे।
हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन
कोरोना वायरस पर इस एंटी मलेरिया ड्रग के प्रभाव को लेकर पूरी दुनिया में बहस जारी है। द लैंसेट में छपी एक स्टडी के बाद WHO ने इसका सॉलिडैरिटी ट्रायल रोक दिया था। हालांकि स्टडी के लेखकों द्वारा इसे वापस लेने के बाद ट्रायल को फिर से बहाल कर दिया गया है। भारत इस दवा का सबसे बड़ा उत्पादक है। कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों जैसे सिर दर्द, बुखार, बदन दर्द से लेकर गंभीर मरीजों को डॉक्टर ये दवा दे रहे हैं। ICMR के दिशानिर्देशों के अनुसार नौ दिनों तक इसकी कम खुराक दी जा सकती है।
डॉक्सीसाइक्लिन+आइवरमेक्टिन
डॉक्सीसाइकलीन एक एंडीबायोटिक दवा है, जिसका उपयोग यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, आंखों और श्वसन तंत्र संक्रमण के इलाज में किया जाता है। वहीं आइवरमेक्टिन शरीर में मौजूद कीड़ों को मारने की दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा इस दवा का इस्तेमाल जुएं मारने के लिए भी किया जाता है। इन दोनों दवाओं के मिश्रण से कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज किया जा रहा है।
रिटोनावीर+लोपिनावीर
ये एंटीवायरल आमतौर पर एचआईवी के मरीजों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। सॉलिडैरिटी ट्रायल में इनकी जांच की जा रही है। कुछ स्टडीज से पता चला है कि ये दवाएं कोरोना के मरीजों के मृत्यु दर को कम करती हैं जबकि कुछ स्टडीज का दावा है कि मरीजों पर इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिलता है। भारत में एक दर्जन से अधिक दवा निर्माता इन दोनों दवाओं की आपूर्ति करते हैं। कोरोना के गंभीर मरीजों को डॉक्टर कभी-कभी इन दवाओं का मिश्रण देते हैं।
प्लाज्मा थेरेपी
प्लाज्मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के शरीर से लिए गए प्लाज्मा को कोरोना के एक्टिव मरीजों के शरीर में डाला जाता है जिससे, उस मरीज के शरीर में कोरोना से लड़ने की एंटीबॉडी बन जाती है। दिल्ली के कई अस्पतालों में प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल जारी है। अस्पतालों नें अपने ट्रायल में इस थेरेपी को मरीजों पर काफी असरदार बताया है।
दुनियाभर में कोरोना संक्रमण तेजी से बढ़ा है। यूरोपियन देश इटली में कुछ ही हफ्तों पहले संक्रमण से मारामारी मची हुई थी। हालांकि तब भी इसका एक हिस्सा ऐसा था, जहां अब तक कोई भी कोरोना केस नहीं आया। इटली के कैलेब्रिया इलाके में बसे इस गांव Cinquefrondi में अब घरों की बिक्री हो रही है और इसकी कीमत है सिर्फ 85 रुपए. इतनी कम कीमत पर घरों को बेचने की सबसे खास वजह है कि गांववाले अपने इलाके में आबादी बढ़ाना चाहते हैं।
बीते ही साल इंटरनेशनल मीडिया में एक खबर सुर्खियों में थी।वहां एक शहर में बसने के बदले सरकार मुफ्त में पैसे और घर दे रही थी। शर्त एक ही थी कि परिवार बसा-बसाया हो, यानी उसमें पति-पत्नी और कम से कम एक बच्चा जरूर हो। इसके पीछे इटली के स्थानीय प्रशासन का इरादा था कि इलाके में बसाहट शुरू हो सके, जो कि माइग्रेशन की वजह से रुक गई थी। अब इसी तर्ज पर इटली से ही दोबारा एक गांव की बात आ रही है। यहां 100 रुपयों से भी कम कीमत पर बिक्री के लिए घर उपलब्ध हैं। इस शहर के भी सुनसान होने की यही वजह रही कि यहां से युवा पीढ़ी पढ़ाई और फिर नौकरी के लिए शहर बाहर जाती गई. इस तरह से शहर खाली होता गया. इटली के दक्षिणी हिस्से में बसा ये शहर प्राकृतिक तौर पर काफी खूबसूरत है और यहां से सिर्फ 15 मिनट की दूरी पर समुद्र तट है, जहां कार से या फिर पैदल भी जाया जा सकता है। शहर के मेयर माइकल कोनिया के मुताबिक घरों की कीमत एक यूरो (85 रुपए) है। इसके साथ ही इंश्योरेंस पॉलिसी के लगभग 19 हजार रुपए भरने होंगे. लोगों और खासकर युवा परिवारों को बसाने की इस योजना को मेयर ने Operation Beauty नाम दिया है. इसके तहत शहर के सारे हिस्सों में बसाहट की योजना बनाई जी रही है. माना जा रहा है कि यहां वही लोग प्रॉपर्टी ले सकेंगे, जिनकी लंबे वक्त तक यहीं रहने की योजना हो. इतनी कम कीमत पर प्रॉपर्टी लेने के बाद बस मालिक को घर की हालत सुधारने के लिए थोड़े पैसे लगाने होंगे क्योंकि ज्यादातर घर खस्ताहाल हैं और काफी समय से खाली पड़े हैं.
वैसे इटली में गांव या शहर छोड़कर जा चुके लोगों के बाद इलाकों को दोबारा बसाने के लिए न्यूनतम कीमत पर घर बेचने का ट्रेंड काफी चल रहा है. इससे साथ ही इटली के दक्षिणी शहरों में भी एक यूरो में घर बेचने की स्कीम चल रही है. इटली के सिसली इलाके के मुसोमेली में एक यूरो के विला बिकाऊ हैं। बस उनकी दो शर्तें हैं। एक तो यहां लंबे समय तक रहना होगा और दूसरा इन घरों की मरम्मत खुद करानी होगी। इसी तरह से स्वीडन में एक पूरा का पूरा गांव बिकने के लिए रखा गया है, वो भी सिर्फ 1 करोड़ डॉलर यानी 75 करोड़ 55 लाख रुपयों में Sätra Brunn नाम के इस गांव की सबसे बड़ी खूबी ये है कि यह देश की राजधानी स्टॉकहोम से केवल डेढ़ घंटे की दूरी पर है। यानी अगर कोई गांव खरीदेगा तो वो गांव में रहते हुए राजधानी से भी जुड़ा रह सकेगा। वैसे इस गांव का इतिहास काफी दिलचस्प है। ये अपने हेल्थ रिजॉर्ट के लिए मशहूर रह चुका है। आज से 320 सालों पहले से ही यहां पर स्पा सेंटर चलाए जा रहे हैं, जहां दुनियाभर के सैलानी स्पा लेने आया करते हैं। गांव खुद 62 एकड़ में फैला हुआ है लेकिन इसके साथ ही अतिरिक्त 84 एकड़ भी हैं। ये एक्सट्रा जमीन खेती-किसानी और बागवानी के लिए रखी गई है। माना जा रहा है कि साढ़े तीन सौ साल पुराने इस गांव को सहेजने के लिए तैयार होने पर स्वीडन की सरकार खरीददार को काफी चीजों में रियायत भी दे सकती है।
न्याय सम्मेलन एवं विशाल पैदल मार्च का आयोजन भानु प्रताप उपाध्याय मुजफ्फरनगर। जनपद के टाउन हॉल में मंगलवार को सामाजिक न्याय क्रांति मोर्चा ...